Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, June 10, 2025

पुस्तक समीक्षा | ‘‘महाभारत‘‘ की कालजयी कथा को रोचक ढंग से प्रस्तुत करती पुस्तक | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


आज 10.06.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित - पुस्तक समीक्षा
     पुस्तक समीक्षा
‘‘महाभारत‘‘ की कालजयी कथा को रोचक ढंग से प्रस्तुत करती पुस्तक
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
-----------------------------------


पुस्तक- महाभारत कथा : इतिहास के झरोखे से
लेखक  - डॉ. कृष्ण कुमार दुबे
प्रकाशक  - मनीषा प्रकाशन, 851/ए, राईट टाउन, जबलपुर (मप्र)
मूल्य     - 550/-
----------------------
‘‘रामायण’’ और ‘‘महाभारत’’ दोनों महाकाव्यों ने भारतीय संस्कृति को जानने के लिए हमेशा प्रचुर सामग्री उपलब्ध कराई है। इनमें अतीत के दीर्घ कालखंडों का विस्तृत विवरण मिलता है जिनमें तत्कालीन राज्य व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, यौद्धिक व्यवस्था, कृषि, उद्योग धंधे, परिवार,  परस्पर व्यवहार के साथ ही तत्कालीन पर्यावरण, कृषि और वनोपज की भी पर्याप्त जानकारी मिलती है। ‘‘रामायण’’ और ‘‘महाभारत’’ दोनों महाकाव्यों में पात्रों की बहुलता के साथ उनकी चारित्रिक विशेषताओं एवं भिन्नताओं की भी प्रचुरता है। विशेष रूप से ‘‘महाभारत’’ महाकाव्य में जितने वैविध्य पूर्ण पात्र मौजूद हैं, उतने और किसी भारतीय महाकाव्य में नहीं मिलते हैं। महाभारत का हर पात्र अपने आप में दोषपूर्ण भी दिखाई देता है और प्रारब्ध से बंधा हुआ दोषी भी। प्रत्येक पात्र के जीवन में जटिलता दिखाई देती है और सरलता भी। यही कारण है कि महाभारत की कथा सर्वकालिक लोकप्रिय रही है। ऊपरी तौर से देखा जाए तो यह सत्य और असत्य के बीच संघर्ष की कथा प्रतीत होती है जिसमें बलशाली सत्तासीन कौरवों से उन पांडवों के संघर्ष की कथा है जो छलपूर्वक राज्य से विस्थापित कर दिए गए। किंतु क्या सचमुच इतनी ही कथा है? नहीं यह सिर्फ इतनी-सी कथा नहीं है, अपितु यह एक विस्तृत कथा है जिसमें अनेक उपकथाएं समाहित हैं, अनेक जीवनियां समाहित हैं तथा अनेक जीवन मूल्य हैं।
“महाभारत” पर विगत दिनों एक पुस्तक प्रकाशित हुई है “महाभारत कथा इतिहास के झरोखे से”। इसके लेखक हैं डॉ कृष्ण कुमार दुबे। इस पुस्तक के प्रति मुझे इस सूचना के साथ प्राप्त हुई कि इसमें मेरे उपन्यास “शिखंडी” का संदर्भ ग्रंथ के रूप में इसमें उपयोग किया गया है। यह मेरे लिए प्रसन्नता की बात थी क्योंकि किसी पुस्तक की उपादेयता तभी सिद्ध होती है जब कोई उसे पढ़े और उस पर चिंतन करे तथा उसे आधार बनाकर उस पर संभावित कार्य को साकार करे। यूं तो लेखक का परिचय उसका लेखन कार्य ही होता है किंतु डॉ दुबे के बारे में जानना दिलचस्प होगा। जैसा कि पुस्तक के बाहरी पृष्ठ भाग में परिचय दिया गया है कि जुलाई 1942 में तिरोड़ा, जिला भण्डारा (महाराष्ट्र) में जन्मे लेखक डॉ. कृष्ण कुमार दुबे ने अपनी प्रायमरी शिक्षा सिवनी, आर्वी (नागपुर) एवं नरसिंहपुर में प्राप्त की। माध्यमिक शिक्षा बिलासपुर तथा राजनांदगांव में पाई। उसके पश्चात स्नातक स्तर तक की शिक्षा रायपुर में प्राप्त की। 17 वर्ष की उम्र पार करते ही पारिवारिक परिस्थितियों के चलते डॉ. दुबे को वर्ष 1959 में सरकारी नौकरी में प्रवेश करना पड़ा। उस समय बी. कॉम. द्वितीय वर्ष के छात्र थे। नौकरी और पढ़ाई साथ-साथ चलती रही। एम. कॉम., एम. ए. (अर्थशास्त्र) और एल एल. एम. की उपाधि प्राप्त करके ष्आपने वर्ष 1988 में कानून में पीएच. डी. की उपाधि प्राप्त की। आप 43 वर्ष की शासकीय सेवा के पश्चात वर्ष 2002 में वाणिज्यिक कर अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। नौकरी में रहते हुए विक्रय कर कानून पर वर्ष 1984 में पहली पुस्तक सृजित की।
डॉ. दुबे ने इस पुस्तक को लिखने की आधार-प्रेरणा देवदत्त पटनायक के लेखन से प्राप्त की है तथा अपनी यह पुस्तक उन्हीं को समर्पित भी की है। डॉ. दुबे ने “मुख-बन्ध” अर्थात प्राक्कथन में लिखा है कि “मैं देवदत्त जी की इस पुस्तक को पढ़ता गया और जब पुस्तक के आखरी पन्ने पर पहुँचा, तो ऐसा लगा कि महाभारत कथा में समझने के लिए अभी बहुत कुछ बाकी है। मैंने दूसरी बार पुस्तक को पढ़ा। मन में विचार आया कि क्यों न कुछ मोटे-मोटे मुद्दे उठाकर उन्हें सीरीयल का रूप दिया जाय। मैंने कथा के 11 एपिसोड तैयार किये और सोशल मीडिया पर जारी किया। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मुझे एक-से- बढ़कर एक प्रतिक्रिया मिलने लगी। कुछ टिप्पणियों में मुझे सुझाव भेजा गया कि इस विचार को लेकर जन साधारण के लिये एक पुस्तक बनाइए जो सीधी-सादी भाषा अर्थात चालू बोल-चाल की भाषा में हो। मेरे मन में यह बात गहरे तक घर कर गई और मैंने इस पर गहन अध्ययन और लेखन का निर्णय ले लिया।”
इस पुस्तक को लिखने में लेखक ने बहुत मेहनत की है पुस्तक का पूरा कलेवर महाभारत के पर्वों के आधार पर विभक्त है। वेद व्यास रचित महाभारत के 18 पर्व हैं। महाभारत लगभग 1,00,000 श्लोक और अनेक पात्र हैं। महाभारत दुनिया का सबसे लंबा महाकाव्य है जो यूनानी काव्यों ‘‘इलियड’’ और ‘‘ओडिसी’’ से परिमाण में दस गुणा अधिक हैं। इनमें से केवल 24000 श्लोक पांडवों और कौरवों की मुख्य कहानी के बारे में हैं। शेष 76000 श्लोक कथानक और उपकथा के बारे में हैं। इनमें आदि पर्व में कुरुवंश की उत्पत्ति और पाण्डु का राज्य अभिषेक, सभा पर्व में द्रौपदी का अपमान और पाण्डवों का वनवास, वन पर्व में पाण्डवों का वनवास, विराट पर्व में पाण्डवों का वनवास और द्रौपदी का अपमान, उद्योग पर्व में युद्ध से पहले शांति के लिए प्रयास, भीष्म पर्व में भीष्म की मृत्यु और उनके उपदेश पर्व, द्रोण पर्व में गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु, कर्ण पर्व में कर्ण की मृत्यु, शल्य पर्व में शल्य की मृत्यु और दुर्योधन का अंत, सौप्तिक पर्व में युद्ध के बाद की स्थिति, स्त्री पर्व में स्त्रियों के दुख और व्यथा, शांति पर्व में भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को दिए गए राज्य-धर्म के उपदेश, अनुशासन पर्व में भीष्म द्वारा धर्म, नीति, और राजधर्म के बारे में उपदेश, अश्वमेधिक पर्व में युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध यज्ञ, आश्रम्वासिक पर्व में धृतराष्ट्र और गांधारी का आश्रमवास, मौसल पर्व में यादव वंश का नाश, महाप्रस्थानिक पर्व में पांडवों का स्वर्गारोहण तथा अंतिम पर्व स्वर्गारोहण पर्व में पांडवों का स्वर्ग में प्रवेश की घटना समाहित है। इन्हीं पर्वों के आधार पर डाॅ. कृष्ण कुमार दुबे ने महाभारत के प्रमुख पात्रों एवं घटनाओं को पर्ववार लेखबद्ध किया है। 
“महाभारत कथा इतिहास के झरोखे से” से पुस्तक के प्रथम खण्ड-महाभारत परिचय में महाभारत - रचना - काल प्रवाह, कथा का विस्तार, उग्रश्रवा, महर्षि व्यास की कथा-संरचना, वेद व्यास की महाभारत एक विलक्षण रचना, महाभारत युग की संस्कृति, क्या महाभारत इतिहास है, रामायण और महाभारत, महाभारत में रामायण एवं वंशावली है।
द्वितीय खंड - महाभारत की कहानी में आदि पर्व, सभा पर्व, वन पर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, कर्ण पर्व, शल्य पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व अश्वमेधिक पर्व, आश्रम वासिक पर्व, मौसल पर्व, महाप्रस्थानिक पर्व तथा स्वर्गारोहण पर्व शिक्षकों से महाभारत की कथा को प्रमुख पात्रों एवं घटनाओं के अनुरूप प्रस्तुत किया गया है। जैसे आदिपर्व में चन्द्रवंश, पुरुरवा, शकुन्तला पुत्र - भरत, ययाति, माधवी - ययाति की पुत्री, शान्तनु,  देवव्रत - भीष्म, सत्यवती, अपहृत तीन राजकुमारियाँ, धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर, श्वेतकेतु की विवाह संहिता, सत्यवती की पौत्र-वधुएं, वंश विस्तार, पाण्डु का परलोक गमन, कृप - कृपी - द्रोण, अर्जुन - सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर, एकलव्य, द्रुपद की पराजय, कर्ण - एक शापित योद्धा, भीम और नाग, लाक्षागृह जलाना- अत्यंत शर्मनाक षड़यंत्र, हिडिम्ब और हिडिम्बा, बकासुर सँहार, गंधर्वराज अंगारपर्ण ख्चित्ररथ,, शिवजी का वरदान - राजा द्रुपद को, द्रौपदी स्वयंवर, द्रौपदी विवाह, खाण्डव वन दहन आदि का विवरण है।
इसी प्रकार सभा पर्व के अंतर्गत राजसूय यज्ञ, जरासंध वध, शिशुपाल वध, शकुनी और उसकी कुटिल चाल, द्यूत क्रीड़ा, द्रौपदी का चीर हरण, दुबारा कपट - द्यूत  की प्रमुख घटनाओं को लिया है।
वन पर्व में द्रौपदी का अक्षय पात्र, विदुर का निष्कासन एवं वापसी, महर्षि मैत्रेय का श्राप, गन्धर्वों का कौरवों पर आक्रमण, श्री कृष्ण काम्यक वन में, जयद्रथ का दुःसाहस, मार्कण्डेय का रामोपाख्यान, अर्जुन पर भगवान् शंकर की कृपा, अमरावती में अर्जुन, नल दमयन्ती का आख्यान आदि रोचक प्रसंग हैं।
विराट पर्व में अज्ञातवास की तैयारी, विराटनगर में पाण्डव, कीचक वध, विराटनगर पर आक्रमण, अज्ञातवास का समापन। उद्योग पर्व में सम्मेलन - मन्त्रणा, सारथी - श्री कृष्ण, मामा के साथ धोखा, ब्रह्मा हत्या और प्रतिज्ञा भंग, नहुष को इन्द्र-पद की प्राप्ति, इन्द्र का पुनः प्रतिस्थापन, पाण्डवों और कौरवों के राजदूत, कौरव सभा में राजदूत संजय, शान्ति-दूत श्री कृष्ण, हस्तिनापुर में श्री कृष्ण, श्री कृष्ण और कर्ण की गुप्त मन्त्रणा, कुन्ती को कर्ण का वचन देना, महायुद्ध की तैयारी, महायुद्ध में तटस्थ, युद्ध क्षेत्र - समन्तपंचक, शिखंडी रहस्य है।
भीष्म पर्व में युद्ध के नियम, संजय को दिव्य दृष्टि, श्रीमद्भगवद्गीता, दल-बदल, महायुद्ध के आठ दिन, युद्ध का नौवां दिन, भीष्म की पराजय, भीष्म और कर्ण का विवरण है।
द्रोण पर्व में सेनापति द्रोण, महापराक्रमी भगदत्त,  चक्रव्यूह निर्माण और अभिमन्यु, वीर अभिमन्यु, अर्जुन की प्रतिज्ञा और जयद्रथ,  खानदानी दुश्मनी, जयद्रथ वध, वीर घटोत्कच, द्रोणाचार्य का निर्वाण, अश्वत्थामा का क्रोध तथा कर्ण पर्व में सेनापति कर्ण, अद्वितीय सारथी- राजा शल्य, युधिष्ठिर-अर्जुन विवाद, दुःशासन वध, कर्ण और अर्जुन, दानवीर कर्ण का वध का विवरण है।
शल्य पर्व में सेनापति शल्य, शल्य का वध, दुर्योधन की खोज,  दुर्योधन का पतन, बलराम का क्रोध, सेनापति अश्वत्थामा की कथा है।
सौप्तिक पर्व में क्रूरतम नर सँहार, शापित अश्वत्थामा तथा स्त्री पर्व में शोकाकुल धृतराष्ट्र, धृतराष्ट्र और गान्धारी का व्रत, जब भगवान् शापित हुये, कुन्ती का गुप्त रहस्य है।
शान्ति पर्व में युधिष्ठिर का वैराग्य, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, प्रशासनिक व्यवस्था, शरशय्या पर भीष्म तथा अनुशासन पर्व में मृत्यु और मृत्युंजय, ब्राह्मणत्व की प्राप्ति, भीष्म का प्राण त्याग की संक्षिप्त घटनाएं हैं।
अश्वमेधिक पर्व में अश्वमेध यज्ञ, श्री कृष्ण द्वारकापुरी में, परीक्षित का जन्म, यज्ञ की तैयारी और अश्व की यात्रा, मणिपुर नरेश-बभ्रुवाहन, यज्ञ सम्पन्न, आश्रम वासिक पर्व, निर्णय वन गमन का, वन गमन की तैयारी, वृद्ध-जनों का अवसान है। मौसल पर्व में यादवों का विनाश, बलराम और श्री कृष्ण का परमधाम गमन तथा द्वारका का ध्वंस जैसी घटनाएं हैं। महाप्रास्थानिक पर्व में “पाण्डवों का आत्म- त्याग” की कथा है और अंतिम आध्याय स्वर्गारोहण पर्व में “बैकुण्ठ में युधिष्ठिर” के साथ महाभारत कथा का अंत किया गया है।
लेखक डॉ. कृष्ण कुमार दुबे ने ‘महाभारत कथा: इतिहास के झरोखे से’ कृति के माध्यम से महाभारत की सम्पूर्ण कथा के चुने हुए प्रसंगों एवं पात्रों को रोचक ढंग से लिखा गया है जिसे पढ़ कर सम्पूर्ण महाभारत कथा को जाना, समझा जा सकता है। 82 वर्ष की आयु में 536 पृष्ठ की पुस्तक लिखना और वह भी विभिन्न पुस्तकों का गहन अध्ययन कर के, निश्चित रूप से प्रशंसनीय कार्य है क्योंकि पुस्तक को पूरी गंभीरता से रुचि ले कर लिखा गया है। यह पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठक के लिए पठनीय है।           
----------------------------
#पुस्तकसमीक्षा  #डॉसुश्रीशरदसिंह  #bookreview #bookreviewer  #आचरण  #DrMissSharadSingh

No comments:

Post a Comment