बतकाव बिन्ना की
ऐसी भक्ती कोन काम की?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘काए भैयाजी, हमने सुनी रई के आप औ भौजी उते सिहोर जाबे वारे हते, रुद्राक्ष लेबे के लाने। मनो आप ओरें अच्छे नईं गए। उते तो देखों कैसी गदर मची। मुतके तो निपट गए औ मुतके हात-गोड़े तुड़ा के आड़े डरे।’’ मैंने भैयाजी से कई। काए से के मैंने संकारे जा खबर पढ़ी रई के उते सिहोर में कथावाचक प्रदीप मिश्रा जू रुद्राक्ष बांटबे वारे हते, सो उते भारी भीर मची औ ओई में को जाने कैसे भगदड़ सी मच गई। अब उते भीर में को काऊ खों देख रओ। एक-दूसरे खों धकियात भए भगन लगे। पुलिस वारे सोई मारे गए।
‘‘हऔ बिन्ना, बा तो बड़ी बुरी खबर आए। बाकी हम ओरों को कोनऊं प्लान ने हतो उते जाबे को, बा तो तुमाई भौजी की फुआ लगी हतीं के अब तो घूंटा दुखन लगे। सो चलबे-फिरबे के जोग ने बचें ऊके पैले हमें एक दारे कुबेरेश्वर धाम लेवा ले चलो। फेर उने कऊं से पता पर गई के उते रुद्राक्ष बांटे जाने हैं, सो बे औरईं पगलया गईं। बाकी हम ओरन को तनकऊ मन ने रओ, सो हम ओरन ने मना कर दओ रओ। ऊ दिनां उने बुरौ तो लगो मनो आज बे जा सोच के खुस हो रई हुइएं के चलो ने गए सो बच गए। अब आंगू बे कभऊ ने कैहें उते चलबे की।’’ भैया जी ने कई।
‘‘जे ने सोचो आप भैयाजी! जे जो ई टाईप के प्रानी होत आएं न, बे कुत्ता की पूंछ घांई होत आएं। का पैले कभऊं ऐसी भीर में भगदड़ ने भई? इन्हई की सभा में पैले बी भगदड़ चुकी। औ ई टाईप के मौका पे भीर परतई आए, जां कछु बंटबे वारो होए। अपन ओरन खों मुफत की चीजें ऊंसई खींब पुसात आएं। एक जांगा तो चुनाव टेम पे मुफत की साड़ियां बंट रई हतीं, वां इत्ती भीर परी के भगदड़ में उते बी मुतके निपट गए रए। फेर भी ऐसे मानुष मानत कां आएं? बे भीर बढाबे में कोन डरात आएं। जो आप सोच रए के फुआ जू अगली दार जिद ने करहें, सो जे आप भूल जाओ। बे एक का सौ दार जिद करहें।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई में, का कओ जाए इन ओरन खों। अरे, घूमबे जाने, दरसन करने जाने तो ऊ टेम पे जाओ जबें भीर होबे वारी ने होए। महूरत से आगे-पीछे जाबे से का पंडज्जी बदल जाहें के बा जांगा बदल जाहे?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कै रए आप भैयाजी! बाकी आज संकारे से अखबार में एक तो जा सिहोर वारी भगदड़ की खबर छपी रई, के एक बा उते उत्तराखंड में बादर फटबे से 34 सेकंड में पूरो गांव मिटबे की खबर हती। दोई डराबे वारी खबर। मनो देखी जाए तो दोई में अपनई ओरन की गलती आए।’’ मैंने कई।
‘‘अपन ओरन की गलती? काए? अपन ओरें तो कऊं गए नईं फेर अपनो का दोस?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अपन ओरन से मोरो मतलब, अपन मानुषों से आए। जो पतो आए के इत्ती भीर परहे, उते जाबे की का जरूरत? जैसे आप अबे कै रए हते के आंगू-पीछू कभऊं जाओ जा सकत आए, मनो नईं जाबी तो ओई टेम पे। अब कओ के पंडज्जी को दोस तो इतोई आए के उने अब बांटा-बूंटी को चक्कर छोर दओ चाइए। काए से पगलात पब्लिक आए औ पाप लगत आ पंडज्जी खों। सो ऐसो काम काए खों करो जाए? आपई कओ के मैंने सई कई के नईं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बिलकुल सई कई। फालतू-फोकट में पंडज्जी को नांव उछलत फिर रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसई तो सल्ल उते उत्तराखड में आए। अब कछू सयाने मान रए के जे जो उते बदरा फटे बे उतई टिहरी बांध के बने भए हते। मनो बा बात ने बी मानी जाए तो जे तो सई आए के उते पेड़ कटत जा रए। जबके बे पेड़ई तो आएं जो पहाड़न खों थामें रैत आएं। बे बेचारे एक हते सुंदरलाल बहुगुणा जू। उन्ने चिपको आंदोलन चलाओ के पेंड़ ने कटें, इत्तो बड़ो बांध उते ने बने, पर काए खों , उनकी कोनऊं ने े सुनी। उल्टे उने बदनाम सोई करो गओ। अब आज भगत रए सबरे।’’ मैंने कई।
‘‘औ का! अपने इते बी तो जेई दसा आए के सड़के चैड़ीं करबे खों पेड़े काट दए गए। उते बक्सवाहा के जंगलन पे आंखें गड़ाए सबरे बैठेंई आएं। जो पेड़ ने रैहें तो कंकरा, मिट्टी कोन के भरोसे टिकहें? पेड़ की जड़ेंई तो आएं जिनके भरोसे पूरे पहाड़ ठाडें रैत आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई बात भैयाजी! पेड़ कटे की बात से मोए याद आई के अबई कछू दिना पैले एक जने ने उते शिमला की फोटुएं अपने सोसल मीडिया पे डारी हतीं। वे बड़े लेखक आएं। उतई शिमला में रैत आएं। हरनोट जू नांव आए उनको। उन्ने बे पेंड़न की फोटुएं डारी हतीं जोन सड़क बनाबे औ चैड़ी करबे के टेम पे काटे सो नई गए, पर उनकी आधी जड़े निपटा दई गईं। अब आपई सोचो के जिते पहाड़ धसकबे को डर बनो रैत होए उते आधी जड़न वारे पेड़ कां लौं टिके रैहें? बे औ खतरा घांईं हो गए। बे कभऊं बी रोड पे गिर सकत आएं। कोनऊं उनकी चपेट में आ जाए तो ऊको तो हो गओ राम नाम सत्त। औ हुसियारी देखों आप के, कैबे खों उन्ने पेड़ नईं काटे, जबके नैंचे से पेड़न की आधी जड़े काट दईं। अब बे तो लेखक आएं तो उने जा सब देख के पीरा पौंची, ने तो उते से गुजरबे वारे सबई जने तो देखत हुइएं पर को बोल रओ? सो जे दसा आए उते। ऐसे में बदरा ने फटहें, पहाड़ ने धसकहें, गांव ने मिटहें तो औ का हुइए?’’मैंने कई।
ई समै पे कोनऊं काऊ की नई सुन रओ। जो सुन रओ होतो जे इत्तो बुरऔ हाल काए खों रैतो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! जे स्वारथ की दुनिया आए। अपनो घर भर जाए, चाए दुनिया जाए चूला में। अबे बी कोऊ कोनऊं खों ने समझाहे के भैया-बैन हरों जो कऊं भीर परपे वारी होय तो उते ने जइयो। अरे ऐसी कैसी भक्ति आए जे? आप सो गए उते, औ जो उते भगदड़ मची औ ऊमें आप निपट सो कोनऊं बात नोंईं, काए से के आप तो ई दुनिया से बढ़ा गए, मनो जोन जे जो आपके सगेवारे इते रै गए बे रोहें जनम भर। पछताओ उन्हें हुइए के हमने उन ओरन खों जाबे से रोको काए नईं। बच्चा, बूढ़ा, ज्वान सबई तो मरत आएं ऐसी भगदड़ में। जो पांछू रैए जाते आएं बे रोत रैत आएं।’’ मैंने कई।
‘‘औ का बिन्ना। रई धरम की बात सो रैदास जू ने सई कई आए के ‘‘जो मन होए चंगा, तो कठौती में गंगा।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आपखों ईकी किसां पतो?’’ मैंने भैयाजी से पूछीं।
‘‘कैसी किसां?’’
‘‘जे कहनात की।’’
‘‘का किसां आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘बड़ी मजे की किसां आए। का भओ के एक दिनां रैदासजू अपने काम में लगे हते। उन्ने एक जने खों उनको जूता बना के देबे को वादा करो रओ, सो उनको मूंड़ उठाबे की फुरसत ने हती। तभईं उनके चिनारी के एक पंडज्जी उते से गुजरे सो उन्ने रैदास जू से कई के हम गंगा में सपरबे खों जा रए, तुम बी चलो। रैदासजू ने कई के बे नईं जा सकत। उनके पास टेम नइयां। उने काम पूरो कर के देने आए। सो पंडज्जी बोले के सो कोई नईं, कछू चढ़ौती भेज देओ, हम तुमाई तरफी से गंगा मैया खों दे देबी। अब उते रैदास जू के जूता बनाबे के ठिया पे चढ़ौती के लाने का धरो रओ? सो उन्ने अपने खींसा टटोले औ ऊंमे से सुपारी निकार के पंडज्जी खों दे दईं के जेई चढ़ा दइयो। पंडज्जी गंगा के लिंगे पौंचे। उते उन्ने सपरो-खोरों औ फेर रैदासजू की सुपारी गंगा मैया खों चढ़ा दई। मनो जे का? तुरतईं गंगा मइयां निकरीं औ उन्ने पंडज्जी खों एक सोने को कंगन दे दओ। पंडज्जी ने सोने को कंगन देखों तो उने लालच आ गओ। उन्ने सोची के जे जो कंगन बे रानीजू के लाने राजासाब खों भेंट कर दैहे तो मुतको इनाम मिलहे। ऐसे बेंचबे जाबी तो कओ कोऊ सोचे के जो चोरी को आए।
सो पंडज्जी कंगन ले के राजासाब के दरबार पौंचे। उन्ने राजासाब खों कंगन भेंट करो औ राजा साब ने रानीजू खों बा कंगन दे दओ। रानीजू ने देखों तो बे मचल गईं के हमें ईकी जोड़ी लान देओ। अब फंस गए पंडज्जी। अब ऊकी जोड़ी कां धरी? गंगा मैया ने तो एकई कंगन उने दओ रओ। सो, पंडज्जी घबड़ाने से भगत-भगत रैदास जू के पास पौंचे औ उने पूरी बात बताई। रैदासजू कछू ने बोले। उन्ने अपने जूता बनाबे में काम आने वारो काठ को पानी बारे कटोरा मने कठौती में अपनो हात डारो, आंखें मींच के गंगा मैंया खों याद करो। फेर जो उन्ने कठौती से हात बायरे निकारो तो उनके हात में ऊंसईं एक कंगन निकर आओ। रैदासजू ने बा कंगन पंडज्जी खों दे दओ। पंडज्जी ने पूछो के जे कैसे भओ? सो रैदासजू ने इत्तोई कओ के ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’। मने जो सच्चे मन से भगवान जू खों याद करो जाए तो बे कऊं बी मिल सकत आएं, ऊके लाने कऊं जाबे की जरूरत नोंई। सो जे हती ई कहनात की किसां।’’मैंने कई।
सो, भैया औ बैन हरों रैदासजू की जेई किसां खों जानो औ समझो, औ उते ने जाओ जिते भगदड़ मच सकत होए। काए से के जान आए तो जहान आए। ऐसी भक्ति ने करो के जान के लाले पड़ जाएं।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर ई बारे में के रैदास जू ने सई कई के नईं?।
---------------------------
#बतकावबिन्नाकी #डॉसुश्रीशरदसिंह #बुंदेली #batkavbinnaki #bundeli #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat
No comments:
Post a Comment