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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, September 9, 2025

पुस्तक समीक्षा | पर्यावरण और जीवन संरक्षण के अंतर्संबंधों को समझाती बेहतरीन पुस्तक | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

'आचरण' में प्रकाशित पुस्तक समीक्षा -
पर्यावरण और जीवन संरक्षण के अंतर्संबंधों को समझाती बेहतरीन पुस्तक
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक   - पर्यावरण और जीवन संरक्षण 
लेखक   - आर. सी. चौकसे
प्रकाशक  - अमन प्रकाशन, डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य मार्ग जवाहरगंज वार्ड, सागर (म.प्र.) 470002
मूल्य      - 300/
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    लेखक रमेश चंद्र चौकसे सहायक वन संरक्षक के पद से सेवानिवृत हुए किंतु उन्होंने अपने सेवाकाल के दौरान प्रकृति से जो तादात्म्य स्थापित किया वह सेवानिवृत्ति के बाद भी बना रहा इसीलिए उन्होंने पर्यावरण पर केंद्रित पुस्तक लिखने का विचार बनाया जिसके परिणाम स्वरुप “पर्यावरण और जीवन संरक्षण” पुस्तक प्रकाशित हुई। इस पुस्तक की अकादमिक मूल्यवत्ता के साथ-साथ सामान्य पाठकों के लिए भी पर्याप्त उपयोगिता है।
इस समय पर्यावरण हमारी सबसे बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि पर्यावरण में उत्पन्न होते जा रहे हैं असंतुलन के कारण जलवायु पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। पर्यावरण परिवर्तन के साथ जलवायु परिवर्तन भी तेजी से हो रहा है जिसके कारण मौसमों में भी अनियमित आ गई है। प्राकृतिक रूप से होने वाली जलवायु तथा अन्य खनिज तत्वों की यथोचित वितरण प्रणाली प्रभावित हुई है जिसके कारण जिन स्थानों पर कभी बाढ़ नहीं आती थी तथा कम वृष्टि का लगभग अकाल जैसा संकट बना रहता था वहां बाढ़ आने लगी है और जहां बाढ़ आई थी वह धीरे-धीरे सूखे का संकट उत्पन्न होने लगा है यह प्राकृतिक बदलाव हमें विवश करता है कि हम पर्यावरण की स्थिति पर ध्यान दें उसे असंतुलित होने से बचाए और इसके लिए आवश्यक है कि हम पर्यावरण को समझे कि वह हमारे लिए क्यों उपयोगी है और हम उसे कैसे बचा सकते हैं कैसे संरक्षित कर सकते हैं लेखक आरसी चौकसे ने पर्यावरण पर समुचित दृष्टि डाली है। उन्होंने अपनी पुस्तक में पर्यावरण के बारे में विस्तार से जानकारी दी है कि पर्यावरण क्या है उसकी क्या परिभाषाएं हैं पर्यावरण का क्या महत्व है तथा प्रकृति एवं मानव में परस्पर क्या संबंध है और किस तरह का संबंध बना रहना चाहिए।
जैसा कि डॉ. सुजाता मिश्र ने पुस्तक की संपादकीय लिखते हुए लेख किया है कि “पुस्तक में पर्यावरण और जीवन संरक्षण के विभिन्न पहलुओं को समग्र दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। यह न केवल वैज्ञानिक तथ्यों, आंकड़ों और अनुसंधानों पर आधारित है, बल्कि इसमें लेखक के व्यक्तिगत अनुभवों और वन विभाग में उनके कार्यकाल के दौरान प्राप्त अन्तर्दृष्टियों का भी समावेश है। यह पुस्तक छात्रों, शिक्षकों, नीति-निर्मिताओं और पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक मूल्यवान माध्यम है, जो उन्हें पर्यावरण चुनौतियों को समझने और उनके समाधान के लिए कार्य करने की प्रेरणा देती है। लेखक के विचार पर्यावरण संरक्षण के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। उनका मानना है कि पर्यावरण संरक्षण केवल सरकारी नीतियों या वैज्ञानिक हस्तक्षेप तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामुदायिक प्रयास है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है। उनकी यह सोच इस पुस्तक के प्रत्येक अध्याय में स्पष्ट रूप से झलकती है।” 
इस पुस्तक की संपादक डॉ. सुजाता मिश्र ने आगे लिखा है कि ‘‘ सम्पादन के दौरान, मैंने लेखक के साथ गहन विचार-विमर्श किया ताकि प्रत्येक अध्याय में शामिल जानकारी तथ्यात्मक रूप से सटीक और प्रासंगिक हो। कुछ अध्यायों में, हमने स्थानीय उदाहरणों और केस स्टडीज को शामिल करने पर विशेष ध्यान दिया ताकि पाठक भारतीय परिप्रेक्ष्य में पर्यावरणीय मुद्दों को बेहतर ढंग से समझ सकें। इसके अलावा, मैंने यह भी सुनिश्चित किया कि पुस्तक का प्रवाह ऐसा हो जो पाठकों को शुरू से अन्त तक बाँधे रखे । इस पुस्तक को सम्पादित करते समय, मुझे चौकसे जी की पर्यावरण के प्रति गहरी सम्वेदनशीलता और उनके विचारों की स्पष्टता ने गहरा प्रभावित किया। उनके अनुभवों को शब्दों में पिरोना और उन्हें एक सुसंगठित रूप देना मेरे लिए एक रचनात्मक और बौद्धधिक यात्रा थी। मैं आशा करती हूँ कि मेरे सम्पादन ने इस पुस्तक को और अधिक प्रभावशाली और पठनीय बनाने में योगदान दिया है।’’
लेखक ने संपूर्ण कलेवर को दो भागों में विभक्त किया है। इनमें से प्रथम भाग के अंतर्गत पांच इकाइयां है तथा दूसरे भाग के अंतर्गत तीन इकाइयां हैं। जैसे, प्रथम भाग की प्रथम इकाई में पर्यावरण प्रकृति एवं मानव संबंध - पारिस्थितिकी एवं जीवन पोषण तंत्र, पर्यावरण की परिभाषाएं, पर्यावरण का महत्व प्रकृति एवं मानव संबंध धर्म व संस्कृति का पर्यावरण से संबंध है पारिस्थितिकी एवं जीवन पोषण तंत्र तथा पर्यावरण एवं जागरूकता चेतन की आवश्यकता विषय सहेजे गए हैं।
 प्रथम भाग की दूसरी इकाई में लेखक ने पर्यावरण प्रदूषण वृक्षारोपण वायुमंडल एवं ओजोन परत एवं जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण की परिभाषा, ग्रामीण प्रदूषण औद्योगिक प्रदूषण तथा निदान, वायुमंडल ओजोन परत ग्रीनहाउस गैस एवं ग्लोबल वार्मिंग वायु प्रदूषण के रोकथाम के उपाय जलवायु प्रदूषण कारण दुष्प्रभाव एवं उपाय के साथ ही वृक्षारोपण द्वारा मृदा प्रदूषण धूल प्रदूषण एवं अशुद्ध जल शुद्धीकरण हेतु हरित पट्टी 100 मीटर में तैयार कर विभिन्न प्रजाति के पौधे लगाकर वृक्षारोपण किया जाने के महत्व को भी विस्तार से समझाया है। इसी इकाई में ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं परिभाषा भू चरण शहरी प्रदूषण एवं नगरीय क्षेत्रों में बढ़ता प्रदूषण एवं प्रभाव भूरे बादल की काली छाया, जलवायु परिवर्तन एक समस्या जैसे मुद्दों को विमर्श के लिए चुना है।
 प्रथम भाग की तीसरी इकाई में प्राकृतिक संसाधन और संरक्षण, ऊर्जा के संसाधन एवं जैव विविधता, प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण में मनुष्य की भूमिका, जैव विविधता, ऊर्जा के संसाधन खाद्य आहार संसाधन, ऊर्जा के संसाधन, खाद्य आहार संसाधन तथा विश्व खाद्य समस्या पर दृष्टिपात किया है।
प्रथम भाग की चैथी इकाई में प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन, प्राकृतिक प्रकोप एवं आपदा प्रबंधन, बाढ़ आपदा, भूकंप आपदा, चक्रवात आपदा, भूस्खलन आपदा पर ध्यान केंद्रित किया है।  प्रथम भाग की पांचवीं इकाई में पर्यावरण संरक्षण कानून, वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम, केंद्र सरकार की सामान्य शक्तियां धारा 3 से धारा 9 तक, पर्यावरण नियंत्रण की धाराएं 10 से धारा 14 तक पर्यावरण अप संघा संबंधी धाराएं 15 से 17 तक अधिनियम 1986 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कर्तव्य अधिनियम 1974 जल प्रदूषण कानून नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम 1974 वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 एवं वन संरक्षण अधिनियम 1988 कुछ वन्य प्राणी एवं पक्षियों के नाम चित्र सहित भी इस खंड में दिए गए हैं अधिनियम की धारा 9 की सूची आदि का विवरण भी इस इकाई में मौजूद है।
दूसरे भाग की प्रथम इकाई में राष्ट्रीय उद्यान अभ्यारण एवं अपशिष्ट प्रबंधन भारत में राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण भारत में वन्य जीव अभ्यारण वनों की कटाई के प्रमुख कारण आर्थिक मजबूती प्राकृतिक संसाधनों पर भी आधारित है जैसे विषय उठाए गए हैं। इसी इकाई में औद्योगिक एवं शहरी क्षेत्र में प्लास्टिक कचरा का निष्पादन तूफान एवं आज की घटनाएं भारत में परली से संबंधित घटनाएं चीन और जापान द्वारा परली नहीं जलाते उसका उपयोग करते हैं इस बात की जानकारी तथा भारत बन सकता है ग्रीन हाइड्रोजन का एक्सपोर्ट हब जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है।

दूसरे भाग की दूसरी इकाई में जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग एवं प्रभाव नासा की सेटेलाइट रिपोर्ट जिसमें भारत में पराली जलाने से सेहत के खतरे के बारे में बताया गया है अमेरिका में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी द्वारा मूल्यांकन भविष्य और जलवायु को सुरक्षित बनाने के लिए 10 हस्तियों का प्रयास, बूंद बूंद पानी को तरस सकते हैं हिंदू को हिमालय क्षेत्र, दुनिया पर युद्ध कितने भरी पर्यावरण पर बड़े देशों की छुट्टी उचित नहीं जलवायु परिवर्तन पर खतरा पर्यावरणीय घटनाओं को कम करने के उपाय धरती के गर्म होने से सूखा और जंगलों की आग, लॉस एंजेलिस आग की त्रासदी। इन विषयों पूरी गंभीरता से प्रस्तुत किया गया है।
दूसरे भाग की तीसरी इकाई में भारत एवं विश्व में पर्यावरण एवं जीवन संरक्षण से संबंधित किया जा रहे कार्य एवं सापेक्ष मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है साथ ही भारतवर्ष एवं राज्यों में किया जा रहे कार्य, ग्रीन क्रांति, सौर ऊर्जा, सोलर पैनल, पवन ऊर्जा एवं भूत आप ऊर्जा से बिजली उत्पन्न करना, जीवाश्म ऊर्जा एवं गैर जीवाश्म ऊर्जा एवं ग्रीन हाइड्रोजन गैस की भारत एवं विश्व के अन्य देशों में वर्तमान स्थिति भी बताई गई है प्रदूषण से हाफ रही अर्थव्यवस्था ग्लोबल वार्मिंग का 167 का खतरा एवं जियोथर्मल से देश का अनूठा टर्मिनल जैसे विषय इस इकाई में अपना विशेष महत्व रखते हैं इनके अतिरिक्त परिभाषा शब्दकोश तथा कुछ अन्य जानकारियां भी पुस्तक में समाहित की गई है।
पुस्तक के आरंभ में पुस्तक की कलेवर पर टिप्पणी करते हुए डॉ सत्यम वर्मा ने लिखा है कि “पर्यावरण विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण और जटिल विषय को आम जनता और विद्यार्थियों के लिए सरल भाषा में प्रस्तुत करना अपने आप में एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है, और इस दिशा में सेवानिवृत्त वन अधिकारी श्री आर.सी. चौकसे जी का यह प्रयास अत्यन्त सराहनीय है। उनकी पुस्तक ष्पर्यावरण प्रदूषण और संरक्षणष् एक ऐसी रचना है, जो पर्यावरणीय ज्ञान को व्यापक जनसमूह तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होती है।”
स्वयं लेखक आरसी चौकसे ने अपनी प्रस्तावना में पुस्तक को लिखे जाने के संबंध में जो आशा व्यक्त की है वह महत्वपूर्ण है वे लिखते हैं-”आशा हैं पर्यावरण एवं प्रदूषण से संबंधित यह पुस्तक जन चेतना हेतु अच्छे परिणाम देगी।”
पुस्तक लेखन के समय 82 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके लेखक रमेश चंद्र चौकसे द्वारा इस कामना के साथ यह पुस्तक लिखी जाना कि पृथ्वी सुरक्षित रहे, पर्यावरण संतुलित रहे तथा जीवन संरक्षित हो बहुत महत्व रखता है। यह पुस्तक अपने आप में पर्यावरण पर संपूर्ण चर्चा करने वाली तथा पर्यावरण और जीवन संरक्षण के अंतर संबंध को समझने वाली एक बेहतरीन पुस्तक है जो न केवल विद्यार्थियों के लिए अपितु प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण में हो रहे परिवर्तन उसके कारण एवं दुष्प्रभाव तथा पर्यावरण के संपूर्ण परिवेश को जानना एवं समझना आवश्यक है। चूंकि मैं स्वयं पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने के मुहिम से जुड़ी हूं अतः इस पुस्तक की अर्थवत्ता का दावे के साथ समर्थन कर सकती हूं। पुस्तक निश्चित रूप से पठनीय एवं संग्रहणीय है तथा नागरिकों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता लाने में सहायक है।
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(09.09.2025 )
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