बतकाव बिन्ना की | किसानों खों बिजली मने जबरा मारे औ रोन न दे
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
जो अपने इते की कहनातें होत आएं, बे बड़े पते की होत आएं। जैसे अबे कल्ल की बात आए भैयाजी, भौजी औ मैं, हम तीनों बैठे बतकाव कर रए हते के तभई गांव से हल्के भैया आ गए। उने देखतई साथ भैयाजी ने पूछी के ‘‘काए हल्के, मोंमफली लाए के नईं?’’
‘‘हऔ, काय ने लाते? जब आपसे बोल दई ती सो बोल दई ती। चाय कछू हो जातो हम तो लातेई।’’ कैत भए हल्के भैया ने मोेमफली की थैलिया भौजी खों पकरा दई।
‘‘आप तो औ! हल्के भैया बैठ पाए नईं औ आप मोंमफली मांगन लगे। इने तनक सांस तो ले लेन देते।’’ भौजी ने भैयाजी खों झिड़को। फेर हल्के भैया से बोलीं,‘‘ठैरो आपके लाने पानी ला रई। पैले चाय पीहो के सूदे खाना खैहो?’’
‘‘खाने की रैन देओ! आप तो पैले हमें ठंडो पानी पिवाओ औ फेर अच्छी अदरक वारी चाय पिवा दइयो।’’ हल्के भैया बोले।
‘‘अरे नईं! हमने आपके लाने खाना बनाओ आए। बस, गरमा गरम गांकड़े सेंक देबी। सो, पैले चाय पीलो, सुस्ता लेओ फेर सबई जने खाना खा लइयो।’’ भौजी बोलीं। खवाबे-पिवाबे में बे बड़ी उदार ठैरीं।
‘‘आपके लाने याद कहाई के हमने आपसे कई हती कि अगली बेरा जब हम आहें तो गांकड़े खाहें।’’ हल्के भैया खुस होत भए बोले।
‘‘काय ने याद रैहे? आप ऊंसई तो कछू नईं खात, कम से कम एक बेर तो आपने गाकड़े खाबे की बोली। हमें तो भौतई अच्छो लगो। जो खाबे खों मन होय आप तो फोन कर के बोल दए करो, हम बना के राखबी आपके लाने।’’ भौजी सोई खुस होत भई बोलीं।
‘‘औ बिन्नाजू आप कैसी हो? सब ठीक-ठाक तो आए न?’’ हल्के भैया ने मोसे पूछी।
‘‘हऔ भैया! सब ठीक आए। आप सुनाओ के का चल रओ? काए की बुआनी करी ई टेम पे?’’ मैंने हल्के भैया से पूछी।
‘‘काय की बुआनी? इते तो जे दसा आए के जबरा मारे औ रोन न दे।’’ हल्के भैया दुखी होत भए बोले।
‘‘काय का हो गओ?’’ मैेने औ भैयाजी ने एक संग पूछो।
‘‘अब का बताएं अब तो किसानी करे में भौतई सल्ल बिंधत जा रई। को जाने का हुइए हम ओरन को?’’ हल्के भैया को मों उतर गओ।
‘‘का हो गओ? कछू तो बताओ।’’ भैयाजी ने फेर के पूछी।
‘‘का बताएं। सरकार ने कई रई के हम ओरन खों सिंचाई के लाने चैबीस घंटा पानी दओ जैहे। मनो बिजली विभाग वारे कै रए के 10 घंटा से ज्यादा बिजली नई दई जैहे। बिजली कंपनी के मालिक हरों ने तो उते काम करे वारन खों धमका दओ आए के जो कोऊ 10 घंटा से ज्यादा बिजली किसानों खों दई ऊकी तनखा से पइसा काटे जाहें। अब आपई बताओ के ईमें हम ओरें का करें? कां तो सोची रई के सरकार 24 घंटा बिजली दैहे सो अच्छी से सिंचाई हुइए, अच्छी खेती हुइए, अच्छी फसल हुइए, ओ इते बिजली कंपनी उल्टे हाथ से थपड़यात भई कै रई के किसानों कों कोऊ 10 घंटा से ज्यादा बिजली ने दे। अब ऊके करमचारी अपने मालिक की ने मानहें तो उनकी तनखा से कटहे। औ जो हम ओरें कछू कहबी सो बे कहन लगहें के 10 घंटा तो दे रए, औ का चाउने? अब उनखों कैसे समझाएं के ने तो सबई माटी एक सी होत औ ने सबई फसल एक सी होत। कऊं ज्यादा पानी लगत तो कऊं कम। अब आपई ओरें बताओ के हम ओरें का करें।’’ हल्के भैया ने अपनी पूरी प्राब्लम बता डारी।
‘‘आपकी बात सुन के सो हमें जा लग रओ के कोनऊं दिनां बा बिजली वारे जा ने कैन लंगें के पैले अपनी फसल की जड़ें नप्पों औ बताओ के कित्तो पानी लगहे, फेर हम उत्तोई पानी देबी।’’ मैंने हल्के भैया से कई।
‘‘का मतलब?’’ हल्के भैया ने पूछी।
‘‘मतलब जे भैया के एक हतो आप घांई किसान। ऊको कोनऊं काम से कछू दिनां के लाने बायरे जाने रओ। ऊको समझ ने पर रई हती के कोन खों खेत सौंप के जाएं? काए से के सिंचाई को बखत रओ। ऊके खेत के चारो तरफी जंगल हतो जीमें बंदरा रैत्ते। बंदरा के मुखिया से ऊ किसान की अच्छी दोस्ती रई। सो, बंदरा के मुखिया ने किसान खों परेसान देखो तो ऊसे परेसानी को कारन पूछो। सो किसान ने ऊको अपनी परेसानी बताई। ईपे बा बंदरा मुखिया बोलो के बस, इत्ती सी बात? हमाई टीम के बंदरा कब काम आहें? जा सुन के किसान भौतई खुस भओ। पर ऊने कई के जो ऐसो हो जाए तो भौतई अच्छो रैहे। बस, तनक ध्यान जे राखने के जोन तरफी के पौधा खों जित्तो पानी चाउने, उत्तई दइयो। बंदरा मुखिया ने कई के तुम फिकर ने करो सब खों नप्प के पानी दओ जैहे।’’ मैंने तनक ठैर के सांस लई।
‘‘फेर का भओ?’’ हल्के भैया ने पूछी।
‘‘होने का रओ, किसान खुसी-खुसी बायरे चलो गओ औ बंदरा मुखिया अपनी टीम ले के ऊके खेत में आ गओ। ऊने अपनी टीम खों आदेस दओ के पौधन में पानी उत्तई डारने के जित्ती जरूरत होए। टीम ने पूछी के जे हमें कैसे पता परहे के कोन पौधा को कित्ती जरूरत आए? जा सुन के बंदरा मुखिया बोलो के गुड क्वेश्चन! औ इस क्वेश्चन को आंसर जो आए के तुम ओंरे पैले पौधा को उखाड़ के ऊकी जड़ नप्पियो औ फेर जड़ के हिसाब से पानी डारियो। टीम खों जो आइडिया भौतई पुसाओ। उन ओरन ने ऊंसई करो। जब किसान अपनो काम निपटा के कछू दिनां बाद अपने खेत को लौटो तो ऊने खेत की दसा देख के अपनो मूंड़ पकर लओ। पूरो खेत सिंचो तो दिखा रओ हतो मनो सारे सारी फसल औंदी दिखा रई हती। तब किसान ने बंदरा मुखिया से पूछो के जे ऐसी दसा कैसे भई तो बंदरा मुखिया बोलो के का पता पौधन खों का भओ? काए से हम ओंरे तो जड़े नप्प-नप्प के पानी डारत्ते। किसान ने सुनी तो उतई गश खा के गिर परो। सो आप ओरें गश ने खइयो जो कभऊं आप ओरन से कई जाए के फसल की जड़े नप्प के पानी डारो करे।’’ मैंने किसां सुनात भई हल्के भैया खों समझाओ।
‘‘सई कै रई बिन्ना। हम तो अच्छे बेवकूफ बने। हमने सुनी के चैबीस घंटे पानी मिलहे सो हमने जो पैले ज्वार बोने की सोची रई, ऊके बदले पिसी बो दई अब पतो पर रओ के दस घंटा से ज्यादा बिजली ने मिलहे। हम तो बुरे फंसे। सरकार औ बिजली कंपनी दोई ने मिल के जबरा मारो औ अब रोन बी नईं दे रए।’’ हल्के भैया घबड़ाए से बोले।
‘‘घबड़ाओ ने, सब ठीक रैहे।’’ भैयाजी ने हल्के भैया खों तनक सउरी बंधाई।
‘‘घबड़ाएं कैसे न, काए से के मौसम को बी कोनऊं भरोसो नई रै गओ आए। कभऊं बी ओला-पानी होन लगत आए। अब तो ऐसो लगत के हम किसानी ज्यादा दिन ने कर पाबी।
‘‘ऐसो ने कओ हल्के भैया! जो आप ओरें किसानी ने करहो, सो हम ओरो खों खाबे के लाने अनाज कां से मिलहे?’’ मैंने हल्के भैया से कई।
‘‘सो का करो जाए बिन्ना? ऐसई अधपर की ब्यबस्थाओं के कारन सो कितेक किसान खेतीबाड़ी बेंच के बड़े शहर चले गए जां उने मजूरी करने पर रई। जो इते सब ठीक रए तो इते से कोऊ काए खों जाए?’’ हल्के भैया ने कई।
‘‘फिकर ने करो भैया, कछू तो हल निकरहे। आप ओरें मिलके सरकार से कओ, बा कछू हल निकारहे। बाकी चलो आप ओरें, हम खाना परोस रए।’’ भौजी बोलीं।
हम ओरन ने हाथ धोओ। फेर बैठ गए जीमबे के लाने। बाकी थारी में जब भौजी ने गांकड़ धरी तो मोए हल्के भैया की पीरा चुभन लगी। हमाई-तुमाई थारी लौं आत-आत ई गाकड़ों के लाने किसान खों कित्ती मेनत करने परत आए, अपन नईं समझ सकत। मनो अब सबई खों समझने परहे।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़िया हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के किसानों के हित की बतकाव करबे औ सई में ऊको हित करबे में अंतर कैसे मिट सकत आए?
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