अकेला मिसरा ही ग़ज़ल का मिज़ाज बता पाने में कामयाब हो गया है और जीवन में इतने उलझे कि ..... तक पहुँचते पहुँचते हर पढने वाला ग़ज़ल में खुद कहीं ढून्ढ पा रहा है ...
hindi gazal ek vidha hai jise dushyant ne prachalit kiya tha.Aap uss kari me jurkar is vidha ko jeevit rakhne ka sarahneey prayas kar rahin..aap ke udgar dil ko chhoo gaye.Itna hi kah sakta hun ki, "jo na jor sakte hain sab ko wahi sab shashak hain bane huye, nyaay ki kursi par baithe hain wo jinke haath khoon se sane huye."
नवीन सी चतुर्वेदी जी, आपने मेरी गज़ल को पसन्द किया आभारी हूं। मेरे ब्लॉग का अनुसरण कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है......सम्वाद बनाएं रखें!
नदिया सूखी, सागर प्यासा .....बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....पढ़ कर मुझे मेरी कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ गईं...'नदियाँ सूखी, कुएँ प्यासे, आसमान बादल को तरसे.मरुभूमि से जंगल देखो, पहाड़ मन पर बोझ भर है .क्या यही है मानव-प्रकृति .सब कुछ नष्ट हो रहा आज,बन मानव मस्तिष्क विकृति . आप के ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा .
Miss Sharad Ji! I appreciate, Your Blog, Write-ups, Poems & Ghazals, these all are really very Beautiful. I like it very much and I would like to you please also visit my Blog - Tumchhulo (http://tumchhulo.blogspot.com) and post your comments please. Dr. Ashok Madhup (Geetkar), NOIDA.
Katra Katra Pighal raha hai, Mom Sareekha Waqt yahan, Jeevan Me Itne Uljhe Ki Bhool gaye Ye Aksar Log..Waaah wah kya khoob kahi Dr. Sharad Singh ji aapne wah..wah..regards rk
wahwa.....behtreen kaha hai aapne...
ReplyDeleteधन्यवाद योगेन्द्र मौदगिल जी! आपके विचारों का सदा स्वागत है।
ReplyDeletenice kavita di
ReplyDeleteदीप जी,बहुत -बहुत ..शुक्रिया !
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल है.
ReplyDelete"अपने वादों को भूले हैं, कसमे भी खा-खा कर लोग".
बहुत उम्दा.आपकी कलम को सलाम
'Pani ki bhi kadr n jane' - jandar mudda uthaya hai aapne. baki ke sha'r bhi khoobsoort.
ReplyDeleteसाबुत घर के टुकड़े टुकड़े तोड़ रहे हैं क्यूं कर लोग
ReplyDeleteअकेला मिसरा ही
ग़ज़ल का मिज़ाज बता पाने में कामयाब हो गया है
और
जीवन में इतने उलझे कि .....
तक पहुँचते पहुँचते हर पढने वाला
ग़ज़ल में खुद कहीं ढून्ढ पा रहा है ...
अभिवादन स्वीकारें .
Thanks for your comments Sagebob!
ReplyDeleteदिलबाग विर्क जी हार्दिक धन्यवाद!
ReplyDeleteदानिश जी,बहुत -बहुत ..शुक्रिया !
ReplyDeletehindi gazal ek vidha hai jise dushyant ne prachalit kiya tha.Aap uss kari me jurkar is vidha ko jeevit rakhne ka sarahneey prayas kar rahin..aap ke udgar dil ko chhoo gaye.Itna hi kah sakta hun ki,
ReplyDelete"jo na jor sakte hain sab ko wahi sab shashak hain bane huye,
nyaay ki kursi par baithe hain wo jinke haath khoon se sane huye."
विजय रंजन जी,
ReplyDeleteआपने मेरी गज़ल को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
सम्वाद क़ायम रखें।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
apne vadon ko bhule hain
ReplyDeletebahut hi satik vyangy sharad ji
navincchaturvedi@gmail.com
नवीन सी चतुर्वेदी जी,
ReplyDeleteआपने मेरी गज़ल को पसन्द किया आभारी हूं।
मेरे ब्लॉग का अनुसरण कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है......सम्वाद बनाएं रखें!
नदिया सूखी, सागर प्यासा .....बहुत सुन्दर प्रस्तुति .....पढ़ कर मुझे मेरी कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ गईं...'नदियाँ सूखी, कुएँ प्यासे, आसमान बादल को तरसे.मरुभूमि से जंगल देखो, पहाड़ मन पर बोझ भर है .क्या यही है मानव-प्रकृति .सब कुछ नष्ट हो रहा आज,बन मानव मस्तिष्क विकृति .
ReplyDeleteआप के ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा .
द्वारकेश जी ,
ReplyDeleteआपने मेरी गज़ल को पसन्द किया आभारी हूं। हार्दिक धन्यवाद!
सम्वाद क़ायम रखें।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
बढ़िया ग़ज़ल है.
ReplyDeletewell,
to research ur Raam..visit now ---
www.susstheraam.blogspot.com, www.theraam.weebly.com
sundar tatha sargarbhit rachana, shubh kamanayen.
ReplyDeleteS.N.Shukla
vedna ka tar saptak chher daala aapne,
ReplyDeletegazal ki harek panki me sargarbhit sher dala aapne...
bahut badhiya.
उम्दा .. लाजवाब... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपने बहुत खूब लिखा है इस गजल को..
ReplyDeleteगज़ल आज फिर से जिन्दा हो गयी... आभार..
Suresh Kumar
ReplyDeleteLink http://sureshilpi-ranjan.blogspot.com
वर्तमान समाज का ख़ूबसूरत आइना. सुन्दर !!
ReplyDeleteMiss Sharad Ji! I appreciate, Your Blog, Write-ups, Poems & Ghazals, these all are really very Beautiful. I like it very much and I would like to you please also visit my Blog - Tumchhulo (http://tumchhulo.blogspot.com) and post your comments please.
ReplyDeleteDr. Ashok Madhup (Geetkar),
NOIDA.
ग़ज़ल अच्छी लगी शरद जी, कुछ नवगीत भी लगाइये न...
ReplyDeleteKatra Katra Pighal raha hai, Mom Sareekha Waqt yahan, Jeevan Me Itne Uljhe Ki Bhool gaye Ye Aksar Log..Waaah wah kya khoob kahi Dr. Sharad Singh ji aapne wah..wah..regards rk
ReplyDeleteplz add me facebook... myfriends1960@gmail.com
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ReplyDeleteअपने वादों को भूले हैं कसमें भी खा खा कर लोग ।
समाज का यथार्थ झलकाती सुंदर गज़ल ।
आपके ब्लाग देखे । सामग्री संग्रहणीय है । मैं प्रोत्साहित हुआ
ReplyDeletebahut hi umda likhti hai aap.bdhai
ReplyDeletehttp://geetantaraatmake.blogspot.in/
bahut sundar rachna hai...
ReplyDeletemere blog par bhi aapka swagat hai..
iwillrocknow.blogspot.in
Nice 👍
ReplyDeleteNice 👍
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