Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, September 11, 2018

आचार्य विनोबा भावे देवनागरी को विश्वलिपि के रूप में देखना चाहते थे - डॉ. ‪शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
भूदान आंदोलन के जनक ‘भारत रत्न’ आचार्य विनोबा भावे यानी विनायक नरहरी भावे आज ही के दिन अर्थात् 11 सितम्बर 1895 को जन्मे थे। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता तथा प्रसिद्ध गांधीवादी नेता थे। सन् 1051 में आचार्य विनोबा भावे ने भूदान आन्दोलन आरम्भ किया था। इस आंदोलन का उद्देश्य था स्वैच्छिक भूमि सुधार। विनोबा चाहते थे कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ सरकारी कानूनों के द्वारा न हो, बल्कि एक आंदोलन के द्वारा जनता में जागरूकता लाते हुए पुनर्वितरण हो। 20वीं सदी के पचासवें दशक में भूदान आंदोलन को सफल बनाने के लिए विनोबा ने गांधीवादी विचारों पर चलते हुए रचनात्मक कार्यों और ट्रस्टीशिप जैसे विचारों को प्रयोग में लाया। उन्होंने सर्वोदय समाज की स्थापना की। यह रचनात्मक कार्यकर्ताओं का अखिल भारतीय संघ था। इसका उद्देश्य अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाना था। इसके साथ ही आचार्य भावे देश के ही नहीं अपितु विश्व की सभी भाषाओं की पारस्परिक दूरी को समाप्त करना चाहते थे और इसका आरम्भ वे भारतीय भाषाओं का पहले देवनागरी लिपि से परस्पर जोड़ना चाहते थे। उनका मानना था कि सम्पर्क लिपि एक होने से विभिन्न भाषाओं को सीखना आसान हो सकता है।
Bharat Ratna Acharya Vinoba Bhave
सभी भारतीय भाषाओं के लिए देवनागरी का प्रयोग हो, इससे राष्ट्रीय एकता और अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव लाने में सहायता मिलेगी। सन् 1972 में उन्होंने कहा था कि-
''इन दिनों यही मेरा एक लक्ष्य है। मैं नागरी लिपि पर जोर दे रहा हूं। मेरा अधिक ध्यान नागरी लिपि को लेकर चल रहा है। नागरी लिपि हिन्दुस्तान की सब भाषाओं के लिए चले तो हम सब लोग बिल्कुल नजदीक आ जायेंगे। खासतौर से दक्षिण की भाषाओं को नागरी लिपि का लाभ होगा। वहां की चार भाषाएं अत्यन्त नजदीक हैं। उनमें संस्कृत शब्दों के अलावा उनके अपने जो प्रान्तीय शब्द हैं, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम के उनमें बहुत से शब्द समान हैं। वे शब्द नागरी लिपि में अगर आ जाते हैं तो दक्षिण की चारों भाषाओं के लोग चारों भाषाएं 15 दिन में सीख सकते हैं। 

Devanagiri Script
 ....विभिन्न लिपियोंं को सीखने में हर एक की अपनी-अपनी परिस्थिति आड़े आती हैं। मैंने हिम्मत की, हिन्दुस्तान की हर एक लिपि का अध्ययन किया। परिणाम में विचार आया कि दूसरी लिपियां चलें उसका मैं विरोध नहीं करता। मैं तो चाहता हूं वे भी चलें और नागरी भी चले। मैं बैंगलोर की जेल में था वहां डेढ़ दो साल रहा। वहां मैंने दक्षिण भारत की चार भाषाएं सीखना एकदम शुरू किया। जेल में विभिन्न भाषाओं के लोग थे। तो किसी ने मुझसे पूछा विनोबा जी, आप चार भाषाएं एकदम से क्यों सीख रहे हैं। मैंने कहा, पांच नहीं हैं इसलिए अगर पांच होतीं तो पांच ही सीखता। चार ही हैं इसलिए चार ही सीख रहा हूं। मैंने देखा कि उन भाषाओं में अत्यंत समानता है। केवल लिपि के कारण ही वे परस्पर टूटी हैं एक नहीं बन पा रही हैं।’’

विनोबा जी राष्ट्र संत थे। वे सभी के अभ्युदय की कामना करते थे। सर्वोदय आंदोलन का उद्देश्य भी यही था। वे किसी राजनीतिक दल में नहीं थे। वे तो भारतीय समाज को एकसूत्र देखने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। उन्होंने स्वयं को
आजीवन सर्वाभ्युदय में लगाए रखा। वे सबका  हित चाहते थे। लिपि-संबंधी उनके विचार भी सर्वहित से ही प्रेरित थे। बीसियों भाषाओं के ज्ञाता विनोबा भावे देवनागरी को विश्वलिपि के रूप में देखना चाहते थे। भारत के लिये वे देवनागरी को सम्पर्क लिपि के रूप में विकसित करने के पक्षधर थे। वे कहते थे कि मैं नहीं कहता कि नागरी ही चले, बल्कि मैं चाहता हूं कि नागरी भी चले। उनके ही विचारों से प्रेरणा लेकर नागरी लिपि संगम की स्थापना की गयी है जो भारत के अन्दर और भारत के बाहर देवनागरी को उपयोग और प्रसार करने के लिये कार्य करती है। 
        ---------------------------

No comments:

Post a Comment