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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, November 23, 2018

गुरु नानक जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं !

Dr (Miss) Sharad Singh
Wish U Very Happy Guru Nanak Jayanti Friends 🙏
Shrestha Sikh Kathayen - A Story Book of Dr Sharad Singh

  यदि सिख धर्म की ज्ञानवर्द्धक रोचक कथाएं पढ़ना चाहते हैं तो मेरी पुस्तक 'श्रेष्ठ सिख कथाएं' amazon, flipcart और pustakorg की निम्नलिखित लिंक्स से मंगा कर पढ़ सकते हैं -

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इस किताब को लिखने की प्रेरणा ...
मुझे सबसे पहले जिस गुरुद्वारे में शीश झुकाने का सुअवसर मिला वह था ग्वालियर का ‘दाता बंदीछोर गुरुद्वारा। संयोगवश वह दशहरे के सात-आठ दिन पूर्व का समय था। मैं अपनी दीदी डॉ. वर्षा सिंह और पारिवारिक मित्र के साथ आगरा से ग्वालियर होते हुए सड़क मार्ग से लौट रही थी। आगरा से ग्वालियर के बीच अकालियों, निहंगों के जत्थे के जत्थे ट्रकों पर सवार हो कर ग्वालियर की ओर जाते दिखे।
‘ये लोग इधर कहां जा रहे हैं... मन में प्रश्न जागा। अधिकांश सिख पुरुष गहरे नीले रंग का लम्बा कुर्ता और पगड़ी पहने हुए थे। उनके चेहरे से प्रसन्नता फूट पड़ रही थी। उनका उत्साह देखते ही बनता था। कई जत्थे पंजाबी में जोशीले गीत गाते जा रहे थे। मुझे पंजाबी भाषा का कामचलाऊ ज्ञान है जबकि उनके गीत आंचलिक शैली की छाप लिए हुए थे अतः मुझे ठीक से समझ में नहीं आए।
जब हम लोग ग्वालियर पहुंचे तो वहां सबसे पहले ग्वालियर का किला घूमने का मन हुआ। किले में पहुंच कर दाता बंदीछोर गुरुद्वारे का पता चला। गुरुद्वारा परिसर में मैं यह देख कर दंग रह गई कि सिखों के जो जत्थे रास्ते में दिखे थे, उनमें से अधिकांश वहां मौजूद हैं। वहां मेले-सा माहौल था। कई सिख सपरिवार थे। उन्हीं में से एक सिख परिवार से मैंने जत्थों की इस यात्रा के बारे में पूछा। वे ठीक से हिन्दी न तो बोल पा रहे थे और न समझ पा रहे थे। वे पंजाबी के अलावा और कोई भाषा ठीक से बोलना-समझना नहीं जानते थे। फिर भी मेरा आशय समझ कर पति-पत्नी दोनों ने उमंग से भर कर बताया कि वे लोग ग्वालियर में मत्था टेकने के बाद नांदेड़ के लिए रवाना हो जाएंगे। उनकी गुडि़या जैसी प्यारी दो बेटियां थीं- हरमन और सिमरन।
वे जत्थे भी नांदेड़ जा रहे थे।
मैंने भी गुरुद्वारे में मत्था टेका, प्रसाद चढ़ाया और एक रागी से गुरुद्वारे का इतिहास जाना। वैसे मैंने सिख इतिहास पढ़ते समय गुरु हरगोबिन्द देव के जीवन से जुड़े ग्वालियर के गुरुद्वारे के बारे में पढ़ा था किन्तु जब मुझे भान हुआ कि ये तो वही गुरुद्वारा है तो मेरा मन रोमांचित हो उठा।
‘दाताबंदी छोर, गुरुद्वारे से लौट कर मैंने सबसे पहले सिख धर्म के इतिहास और परम्पराओं के विकास के बारे में पुनः अध्ययन किया। मैं जितना पढ़ती गई, जानती और समझती गई, उतना ही मेरा मन आन्दोलित होता गया। आज भी मेरे मन को यह प्रश्न कुरेदता है कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति इतना नृशंस कैसे हो सकता है कि उसे खौलते तैल में डाल दे या उस पर जलती हुई रेत डाल दे... या फिर मासूम नन्हें बच्चों को दीवार में जीवित चुनवा दे... सचमुच सिख धर्म का विकास मर्मान्तक पीड़ा की आग में तप कर खरा सोना बनने की प्रक्रिया है। सिख धर्म को समझने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति पहले अपने धर्म के चश्मे को उतार कर दूर रख दे।
‘पटना साहिब वह दूसरा गुरुद्वारा है जहां मत्था टेकने का मुझे सौभाग्य मिला। यह भी धर्म के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व का गुरुद्वारा है। ‘पटना साहिब गुरुद्वारे की विशालता और भव्यता देखते ही बनती है। यूं भी प्रत्येक गुरुद्वारे की सुव्यवस्था और सर्वधर्मप्रियता अनुकरणीय है।
‘पटना साहिब गुरुद्वारे के दर्शन करने के बाद सागर लौट कर मैंने परिचित सिख परिवारों के बड़े-बुजुर्गों से गुरुग्रंथ साहिब के बारे में और जानकारी प्राप्त की। इसी के दौरान सुप्रचलित सिख कथाओं को सुनने और जानने का अवसर मिला।........परिणामस्वरूप ‘श्रेष्ठ सिख कथाएं’ पुस्तक का रूप ले सकीं।

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