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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, February 21, 2019

बुंदेलखंड में कमजोर जल-प्रबंधन - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ...' नवभारत ' में प्रकाशित


Dr (Miss) Sharad Singh
सामाचार पत्र "नवभारत " में प्रकाशित बुंदेलखंड में जल प्रबंधन की कमजोर दशा पर केंद्रित मेरा लेख....इसे आप भी पढ़िए !


बुंदेलखंड में कमजोर जल-प्रबंधन
                 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
                     
एक समय था जब बुंदेलखण्ड पानी की उपलब्धता के लिए प्रसिद्ध था। बुंदेलखण्ड में राजशाही के दौरान अनेक गढ़ियां और किले थे जिनमें जल के उत्कृष्ट प्रबंधन के उदाहरण उनके अवशेषों आज भी विद्यमान हैं। महाराज छत्रसाल (1649 -1731) के समय बुंदेलखण्ड की सीमाएं नदियों से तय की गई थीं-

इत जमुना, उत नर्मदा, इत चंबल उत टोंस
छत्रसाल से लरन की रही न काहूं होंस
बुंदेलखंड में कमजोर जल-प्रबंधन - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ...' नवभारत ' में प्रकाशित  An Article of Dr (Miss) Sharad Singh in Navbharat Newspaper
अनेक कुए, बावड़ियां, पोखर और तालाब उस समय के जल प्रबंधन की कहानी कहते हैं। किन्तु अब जल प्रबंधन की जो दशा है उसके आगे ये कहानियां भी कपोल कल्पित प्रतीत होने लगती हैं। अनियमित दोहन के कारण अधिकांश नदियां अपनी चौड़ाई और गहराई खो चुकी हैं। लापरवाहियों ने कुओं और बावड़ियों को प्रदूषित कर दिया है। तालाबों की दशा भी इनसे अलग नहीं है। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध सागर तालाब अपने अस्तित्व के लिए निरंतर संघर्ष करता रहता है। इस तालाब को लाखा बंजारा झील भी कहते हैं। यह प्रति वर्ष सफाई का मुद्दा बन कर राजनीतिक तवे पर रोटी की तरह सिंकती रहती है।
विशेषज्ञों की मानें तो बुंदेलखंड इलाके में औसतन कम बारिश होती है और इसकी अवधि भी बस दो महीने रहती है। यहां की मिट्टी मोटी है तथा ग्रेनाइट आधार होने के कारण भूजल भंडारण स्थल ज्यादा बड़ा नहीं होता है। मोटी मिट्टी होने के कारण इसमें ज्यादा समय तक पानी नहीं ठहर पाता है। इसीलिए यह जरूरी है कि इसे निरंतर रूप से पानी मिलता रहे, जिससे ज्यादा से ज्यादा जल संग्रहण किया जा सके। इसीलिए यहां पानी को एक बड़े जलग्रहण क्षेत्र में एकत्रित करने की व्यवस्थाएं बनाई गई। जिसके लिए एक चुनिंदा क्षेत्र में बांध या तालाब बनाए जाते थे। ये तालाब आमतौर पर पूरे क्षेत्र में ऊपर से नीचे के क्रम में फैले होते थे, जिससे एक तालाब का पानी दूसरे तालाब में पहुंचता रहता है- या तो सतह से होता हुआ पहुंचता है या फिर भूजल प्रवाह से। इस प्रक्रिया में प्रत्येक जलग्रहण के चारों तरफ कुओं का पुनर्भरण होता रहता है और फिर इन कुओं से सिंचाई की जाती है। इससे तालाबों के ज्यादा पानी का उपयोग होता है और सूखे की अवधि में भी पानी उपलब्ध रहता है। इसमें जलधाराओं, प्राकृतिक नालों के पानी का भी उपयोग किया जाता था। नौवीं सदी से लेकर 13 वीं सदी तक चंदेल शासकों के समय बुंदेलखंड जल विज्ञान के क्षेत्र में आश्चर्यजनक उन्नति कर चुका था। चंदेलशासकों ने अपने समय की जरूरतों के अलावा आने वाले एक हजार साल तक की पानी की जरूरत पूरी करने का इंतजाम कर लिया था। चंदेलशासकों ने अपने समय की जरूरतों के अलावा आने वाले एक हजार साल तक की पानी की जरूरत पूरी करने का इंतजाम कर लिया था। एक शोध के अनुसार ऐतिहासिक रूप से जल विपन्न बुंदेलखंड में बारिश के पानी के अधिकतम हिस्से को रोक कर रखने के लिए तालाबों को एक के बाद दूसरे और दूसरे को तीसरे तालाब से जोड़ने की विधि विकसित कर ली गई थी। चंदेल शासकों ने सात सात तालाबों को जोड़कर ऐसे कई संजाल बनवाए थे। श्रृंखलाबद्ध तालाबों के संजाल से जल ग्रहण क्षेत्र में गिरे पूरे के पूरे पानी को संचित कर लिया जाता था। गर्मी के मौसम में चंदेलों की राजधानी महोबा में तापमान को कम रखने में इन विशाल तालाबों की बड़ी भूमिका थी। 
विगत वर्षों में गर्मी के मौसम में बुंदेलखंड में पानी को लेकर हाहाकार मचने की बाद कुछ प्राचीन कुओं, बावड़ियों और तालाबों से गाद-मिटटी साफ कराने का काम किया गया। लेकिन यह देखा गया कि गहरीकरण का यह काम बारिश के चंद दिनों पहले ही शुरु किया गया जिसे बारिश आरम्भ होते ही बंद कर देना प़ड़ा। इस प्रकार के आधे-अधूरे काम का कोई विशेष परिणाम नहीं निकला। सत्तर के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बुंदेलखंड में पाठा योजना के लिए पूरा दम लगा दिया था। विश्व बैंक से कर्ज लेकर इस योजना को पूरा किया गया था। यह एक महत्वाकांक्षी बांध योजना थी जो बाद में जल प्रबंधन प्राथमिकता सूची ऊपरी पायदान से खिसकता चला गया। बुंदेलखण्ड के मध्यप्रदेशीय हिस्से में सागर संभागमुख्यालय में बने राजघाट बांध ने जहां नगर की पेयजल की समस्या को दूर किया वहीं उसकी दशा बिगड़ती गई। सन् 2018 की गर्मियों में मात्र 17 दिन में बांध में 58 सेंटीमीटर यानी आधा मीटर से ज्यादा पानी कम हो गया था। इस लिहाज से बांध में प्रतिदिन औसतन साढ़े तीन सेंटीमीटर पानी कम होता रहा। 18 अप्रैल 2018 को बांध का जलस्तर 509.88 मीटर था जो 05 मई 2018 तक गिर कर 509.30 मीटर पर जा पहुंचा था। बांध को गहरा करने के लिए उसमें से सिल्ट हटाने का अभियान भी छेड़ा गया। जिससे स्थिति थोड़ी सम्हली।
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( नवभारत, 21.02.2019 )

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