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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, September 11, 2019

बुंदेलखंड के संग्रहालय और रुझान में कमी - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ... नवभारत में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
बुंदेलखंड के संग्रहालय और रुझान में कमी 
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

(नवभारत में प्रकाशित) 


विगत दिनों सागर नगर में एक निजी संग्रहालय सत्यम कला एवं संस्कृति संग्रहालय के रजिस्ट्रेशन के बाद के प्रथम आयोजन में मुझे शामिल होने का अवसर मिला। संग्रहालय की ओर से प्रदर्शनी भी थी और परिचर्चा भी। विषय था-‘‘संस्कृति के संरक्षण में संग्रहालयों की भूमिका’’। मैंने वहां कहा कि ‘‘संग्रहालय अतीत को वर्तमान और भविष्य से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।’’ किन्तु आयोजन के बाद मेरे मन में प्रश्न उठा कि क्या आज भी संग्रहालयों के प्रति लोगों में रुझान है? प्रश्न का उत्तर पीड़ादायक निकला। उल्लेखनीय है कि यह संग्रहालय निजी प्रयासों से स्थापित किया गया है, जिसके संस्थापक-अध्यक्ष दामोदर अग्निहोत्री एवं संरक्षक उमाकांत मिश्र हैं। चूंकि मैं प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व की विद्यार्थी रही हूं और खजुराहो की मूर्तिकला के कलात्मक सौंदर्य पर पीएच.डी. किया है क्योंकि भारतीय कला, संस्कृति, इतिहास एवं पुरातत्व से हमेशा मुझे अगाध प्रेम रहा। 

बुंदेलखंड के संग्रहालय और रुझान में कमी - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ... नवभारत में प्रकाशित
    बहरहाल, बुंदेलखंड पुरासंपदा का धनी है। यहां इतिहास की अनेक धरोहरें मौजूद हैं। इसीलिए अंग्रेजों के समय से बुंदेलखंड में संग्रहालय स्थापित किए जाने लगे थे। छतरपुर जिले के धुबेला संग्रहालय में खड़ी लार्ड किचनर की मूर्ति आज भी इस बात की गवाही देती है कि अंग्रेज भी बुंदेलखंड की पुरासंपदा एवं ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं से अत्यंत प्रभावित थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण खजुराहो है। पुरातत्व संग्रहालय, खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित है। खजुराहो का पुरातत्व संग्रहालय शुरु में जार्डाइन संग्रहालय के नाम से जाना जाता था। 1952 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बाद इसका नाम खजुराहो का पुरातत्व संग्रहालय रखा गया। 1910 में इसे श्री डबल्यू.ए. जार्डाइन ने बनवाया था। यह संग्रहालय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें खजुराहो के मंदिरों से लाई गई अनेक वास्तुकलाओं तथा मूर्तियों के अवशेष रखे हैं।
महाराजा छत्रसाल संग्रहालय धुबेला का उद्धाटन 12 सितम्बर 1955 में भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने किया था। इस संग्रहालय में बुन्देलखण्ड एवं बघेलखण्ड की पुरासामग्री सुरक्षित है, जो वीथिकाओं (गैलरीज़) एवं खुले में प्रदर्शित है। यहां प्रतिमाएं, शिलालेख, सती स्तम्भ लेख संग्रहीत है। यहां बुंदेला महाराज छत्रसाल के शस्त्र से ले कर वस्त्र तक सहेजे गए हैं।
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बुंदेलखण्ड छत्रसाल संग्रहालय है। इस संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1955 में की गई थी। संग्रहालय में कई समृद्ध मूर्तियों, टेरीकोटा, सिक्के और पत्थर से बनी वस्तुओं आदि को प्रदर्शित किया गया है। इस संग्रहालय में एक अलग से विभाग है, जो कि प्राकृतिक विज्ञान से सम्बन्धित है।

झांसी के राजकीय संग्रहालय की स्थापना सन 1978 में की गई थी। उद्देश्य था देश - विदेश के सैलानियों को वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई और बुंदेलखंड की प्राचीन मूर्तिकला, राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में बुंदेलों के योगदान और लोक कला संस्कृति से परिचय कराना। संग्रहालय में 14 वीथिकाएं हैं राजकीय संग्रहालय में सैलानी आकर्षित हों, इसके लिए वर्ष 2016 में 1857 की क्रांति के दृश्यों को दिखाने वाली वीथिका संग्रहालय के सभागार में बनाई गई थी। यह वीथिका 31 दिसंबर को सिर्फ एक घंटे के लिए ही खोली गई थी। तब इसका शुभारंभ हुआ था। संग्रहालय में लगभग 17,000 अद्भूत प्राचीन मूर्तियों, पांडुलिपियों, अस्त्र शस्त्रों, पेटिंग, शिलालेख, सिक्के आदि का विशाल संग्रह है। मूर्तियों में छठवीं शताब्दी से लेकर 16 - 17 वीं शताब्दी तक की हैं। जो बुंदेलखंड के ललितपुर तथा अन्य जिलों में पाई गई थीं।
मध्यप्रदेश में शास द्वारा जिला स्तरों पर पुरातत्व संघ का गठन किए जाने के उपरांत सागर संभाग के जिलों में भी संग्रहालयों की स्थापना एवं विस्तार हुआ। जिला पुरातत्व संघ संग्रहालय के लिये विभाग द्वारा संरक्षित स्मारक किले भवन में संग्रहालय का प्रारंभ 25 अगस्त 1989 को तत्कालीन राज्यपाल सरला ग्रेवाल द्वारा किया गया। यहां संग्रहीत प्रतिमायें शैव, वैष्णव, शाक्त, जैन तथा बौद्ध संप्रदाय से संबंधित हैं। प्राचीनतम कृतियों में छठी-सातवीं शती का नृत्यवाद्य शिल्पखण्ड महत्वपूर्ण है। जिला पुरातत्व संग्रहालय हिन्दूपत महल पन्ना म.प्र. पुरातत्व संग्रहालय द्वारा संचालित जिला स्तरीय प्रमुख संग्रहालय है। म.प्र. के पुरातत्व संघो में सर्वप्रथम 1958-59 में जिला पुरातत्व संघ पन्ना की स्थापना हुई और संघ के प्रयत्नों से राजेन्द्र उद्यान में प्रतिमाओं को मुक्ताकाश में प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय में शैव, शाक्त, वैष्णव जैन प्रतिमाएं धातु प्रतिमाऐं, सिक्के, अभिलेख, तोप सुरक्षित एवं प्रदर्शित है।
इसी क्रम में सागर नगर में भी पुरातत्व संग्रहालय पर ध्यान दिया गया। किन्तु धीरे-धीरे यह शासकीय अवहेलना का शिकार होता गया। पहले जहां एक छोटे से स्थान में प्रतिमाएं संग्रहीत थीं, उन्हें निकाल कर मुक्ताकाश में खड़ा कर दिया गया जहां उनका तेजी से क्षरण होने लगा। इस दौरान जिला अध्यक्ष की अध्क्षता में जिला पुरातत्व संघ का गठन किया गया (जिसमें मुझे भी सदस्य मनोनीत किया गया था)। प्रशासन और संघ के संयुक्त प्रयास से पुरातत्व संग्रहालय के लिए एक ऐतिहासिक भवन प्राप्त हुआ जिसमें प्रतिमाओं को मुक्ताकाश से उठा कर सहेजा गया। इसके बाद जिला पुरातत्व संघ लगभग बिखर गया और उसकी नियमित बैठकें बंद हो गईं।
समूचे बुंदेलखंड में अनेक छोटे-बड़े शासकीय एवं निजी संग्रहालय हैं किन्तु आज मोबाईल और इंटरनेट में व्यस्त आमजन खुद से ही बेखबर रहता है ऐसे में उनसे संग्रहालयों के प्रति रुझान दिखाने की उम्मींद करना खुद को भ्रम में डालने जैसा लगता है। जहां संस्कृति, परम्पराएं और इतिहास को सहेजा जाता हो ऐसे स्थानों अर्थात् संग्रहालयों के प्रति जागरूकता साल में मात्र ‘संग्रहालय दिवस’ का नहीं वरन् प्रतिदिन का विषय होना चाहिए। अन्यथा रुझान की कमी के चलते बुंदेलखंड के अधिकांश संग्रहालय भी अपनी चमक खो देंगे।
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(नवभारत, 30.08.2019)
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