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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, April 22, 2020

चर्चा प्लस … प्राणघातक हो सकता है ढीठ बनना - डाॅ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस … 

प्राणघातक हो सकता है ढीठ बनना
- डाॅ शरद सिंह

         ‘सोशल मीडिया स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हक़ीकत में यह सिर्फ़ और सिर्फ़ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए।
         कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए लॉकडाउन-टू लागू है। संक्रमित जिलों में कर्फ्यू की स्थिति बनी हुई है, लेकिन अनेक गांव, शहर, तहसीलें ऐसी हैं, जहां लॉकडाउन लागू होने के बाद भी लोगों की चहलकदमी थमी नहीं है। जब भी लाॅकडाउन में रियायात बरती जाती है कुछ लोग अपना आपा खो बैठते हैं और वहीं किराना, फल व अन्य दुकानों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना भूल जाते हैं। जब कि यह सभी को पता है कि कोरोना अति संक्रामक वायरस है। इसके चपेट में जो भी आएगा वह स्वयं तो मौत से टकराएगा ही, साथ ही अपने मित्र, रिश्तेदारों और परिचितों के अलावा अपना ईलाज करने वालों के प्राणों के लिए भी खतरा बन बैठेगा। लेकिन ऐसे ढीठ किस्म के लोग स्थिति की गंभीरता को गोया समझना ही नहीं चाहते हैं। गोया उन्हें दो ही बातों की प्रतीक्षा रहती है कि या तो संक्रमण लग जाए या फिर पुलिस का डंडा पड़ जाए।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh Dainik Sagar Dinkar, 22.04.2020
                 सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। नगर के शनिचरी क्षेत्र से पाया गया पहला कोरोना पाॅजिटिव मरीज दो दिन पहले बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था। संदेह के आधार पर उसका जांच सैंपल लिया गया और जांच में वह पाॅजिटिव निकला। कोरोना पाॅजिटिव मिलने की पुष्टि होते ही उसके निवास क्षेत्र के तीन किलोमीटर के दायरे को सील कर दिया गया। उसके परिवार के कुल पांच सदस्यों को भी क्वारंटीन किया गया। उसके आस-पड़ोस के व्यक्तियों की भी जांच की गई। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। ‘सोशल मीडिया स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हकीकत में यह सिर्फ और सिर्फ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए। सरकार जानती है कि लाॅकडाउन लागू करने से किस-किस तरह के नुकसान हो सकते हैं। मिल, कारखाने, दूकानें सभी बंद हैं। उत्पादन थम-सा गया है। बिक्री के लिए सामानों की उपलब्धता लड़खडाने लगी है। कुटीर उद्योग और लघु उद्योग पूरी तरह बैठ चुके हैं। आपदा खत्म होने के बाद उन्हें उन्हें एक तगड़े स्टार्टअप की जरूरत पड़ेगी। किसान चिंतित हैं, दूकानदार चिंतित हैं, बेघर-बेरोजगार मजदूर चिंतित हैं और इन सब के लिए चिंतित है सरकार। मगर किसी भी आपदा के लिए कभी कोई पूर्व तैयारी नहीं की जा सकती है। आपदा का मतलब ही है कि अचानक कोई बड़ा संकट आ खड़ा होना। हमारा देश समूचे विश्व की भांति आपदा के दौर से गुज़र रहा है। मगर अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में स्थिति कई गुना बेहतर है क्योंकि यहां समय रहते आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू कर दिया गया। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं लगातार देश की आमजनता से संवाद बनाए रखा। इस सकारात्मकता ने ही हौसला दे रखा है कोरोना वारियर्स को। फिर भी जो ढीठ किस्म के लोग इन सब बातों को अनदेखा करते रहते हैं और लाॅकडाउन के नियमों को धता बताने की ताक में रहते हैं उन्हें आपदा प्रबंधन अधिनियम के बारे में जरूर जान लेना चाहिए यानी जो बातों से नहीं मानेंगे उनके ऊपर डंडे चलाने का अधिकार रखता है प्रत्येक स्थानीय प्रशासन। जीवन की सुरक्षा के लिए कानून के डंडे भी जरूरी होते हैं।  
               इस वर्ष मार्च महीने के आरम्भ में भारत सरकार ने 123 साल पुराने ब्रिटिश सरकार में बनाए गए एपिडेमिक डिजिज एक्ट 1897 लागू किया था। इस कानून को अंग्रेजों ने फरवरी 1897 में तब के मुंबई शहर में फैल रहे प्लेग महामारी को कंट्रोल करने के लिए बनाया था। इसमें ब्रिटिश सरकार के पास शक्ति थी कि वो देश में कहीं भी ज्यादा लोगों के जुटने पर रोक लगा सकती थी। चूंकि ये कानून राज्य सरकारों को महामारी की प्रकृति को देखते हुए नए नियम बनाने की सहूलियत देता है ऐसे में ये फैसला राज्य सरकारों को लेना होता है कि वह अपने राज्य में क्या नए नियम-कायदे महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए बनाना चाहती है। यहां एक बात स्पष्ट रहनी चाहिए कि यह कानून किसी भी प्रकार के आपदा के लिए है जबकि इसके साथ ही एक और कानून है जो एपिडेमिक डिजिज एक्ट 1897 कहलाता है लेकिन इन दोनों कानूनों में परस्पर थोड़ा अंतर है।
            आपदा प्रबंधन अधिनियम को दिसंबर, 2005 में लागू किया गया था। ये एक राष्ट्रीय कानून है जिसका इस्तेमाल केंद्र सरकार करती है ताकि किसी आपदा से निपटने के लिए एक देशव्यापी योजना बनाई जा सके। इस एक्ट के दूसरे भाग के तहत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के गठन का प्रवधान है. जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। इसके अलावा इसके अधिकतम नौ सदस्य हो सकते हैं जिसका चुनाव प्रधानमंत्री के सुझाव पर होता हैं। इसके तहत केंद्र सरकार के पास अधिकार होता है कि वह दिए गए निर्देशों का पालन ना करने वाले पर कार्रवाई कर सकती है। इस कानून के तहत राज्य सरकारों को केंद्र की बनायी योजना का पालन करना होता है। इस कानून की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण आदेशों का पालन नहीं करने पर किसी भी राज्य के अधिकारी के साथ-साथ प्राइवेट कंपनियों के अधिकारी पर भी कार्रवाई कर सकती है। ये कानून किसी प्राकृतिक आपदा और मानव-जनित आपदा की परिस्थिति पैदा होने पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
             लाॅकडाउन के नियमों का पालन करते हुए जिस संकट से बड़ी आसानी से निपटा जा सकता है, उसे नियमों को तोड़ कर बढ़ावा देना स्वयं को हत्यारा बनाने के समान है। धैर्य, सुरक्षा और शांति से ही टल सकता है यह संकट। यह समझना ही होगा कि ढीठ बनना कोई बुद्धिमानी नहीं है।  
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(दैनिक सागर दिनकर में 22.04.2020 को प्रकाशित)
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