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My Editorials - Dr Sharad Singh

Monday, April 27, 2020

लॉकडाउन है हमारा सुरक्षा-कवच - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक 'स्वदेश ज्योति' में प्रकाशित

Dr (Miss) Sharad Singh
 27.04.20, दैनिक 'स्वदेश ज्योति' में प्रकाशित मेरा लेख, आप भी पढ़िए...
हार्दिक धन्यवाद #स्वदेशज्योति 🙏🌷🙏
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लॉकडाउन है हमारा सुरक्षा-कवच
    - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह  
    यह आपदा का ऐसा अवसर है जो जिंदगी के मायने समझा रहा है। जिस सामाजिकता से हम दूर होते जा रहे थे आज सोशल डिस्टेंसिंग ने हमें सामाजिकता के महत्व की मूल्यवत्ता समझा दी है। यानी परिवार के सदस्यों को परस्पर एक-दूसरे के और अधिक करीब ला दिया है। इसने न केवल परिवार के सदस्यों को वरन समस्त देशवासियों को परस्पर करीब ला खड़ा किया है। हम सभी एक ही भावना को जी रहे हैं कि हमें लाॅकडाउन को सफल बनाना है और कोरोना की आपदा को अपने देश से मिटाना है।
लॉकडाउन है हमारा सुरक्षा-कवच  - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह, दैनिक 'स्वदेश ज्योति' में प्रकाशित 
        अभी 26 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' के जरिये देश को संबोधित किया और कोरोना को लेकर अतिआत्मविश्वास से बचने को कहा। कोरोना वायरस कहर के बीच रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई देश की जनता लड़ रही है। उन्होंने कहा कि भले ही कारोबार हो, कार्यालय की संस्कृति हो, शिक्षा हो या चिकित्सा क्षेत्र हो, हर कोई कोरोना वायरस महामारी के बाद की दुनिया में बदलावों के अनुरूप ढल रहा है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया का अनुभव हमें बहुत कुछ सीखा रहा है, इसलिए हमें  अति-आत्मविश्वास नहीं पालना चाहिए, क्योंकि कोरोना से सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी।
         सागर शहर के पहले कोरोना पॉजिटिव का पूर्ण स्वस्थ हो कर अपने घर सकुशल लौटना राहत की सांस दे गया लेकिन जैसाकि प्रधानमंत्री ने आगाह किया है कि संकट अभी टला नहीं है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए लॉकडाउन-टू लागू है। संक्रमित जिलों में कर्फ्यू की स्थिति बनी हुई है, लेकिन अनेक गांव, शहर, तहसीलें ऐसी हैं, जहां लॉकडाउन लागू होने के बाद भी लोगों की चहलकदमी थमी नहीं है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए। मगर होता उल्टा है, जब भी लाॅकडाउन में रियायात बरती जाती है कुछ लोग अपना संयम खो बैठते हैं और वहीं किराना, फल व अन्य दुकानों में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना भूल जाते हैं। जब कि यह सभी को पता है कि कोरोना अति संक्रामक वायरस है। इसके चपेट में जो भी आएगा वह स्वयं तो मौत से टकराएगा ही, साथ ही अपने मित्र, रिश्तेदारों और परिचितों के अलावा अपना ईलाज करने वालों के प्राणों के लिए भी खतरा बन बैठेगा। लेकिन ऐसे ढीठ किस्म के लोग स्थिति की गंभीरता को गोया समझना ही नहीं चाहते हैं। गोया उन्हें दो ही बातों की प्रतीक्षा रहती है कि या तो संक्रमण लग जाए या फिर पुलिस का डंडा पड़ जाए।
            सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। नगर के शनिचरी क्षेत्र से पाया गया पहला कोरोना पाॅजिटिव मरीज तब दो दिन पहले बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया था। संदेह के आधार पर उसका जांच सैंपल लिया गया और जांच में वह पाॅजिटिव निकला। कोरोना पाॅजिटिव मिलने की पुष्टि होते ही उसके निवास क्षेत्र के तीन किलोमीटर के दायरे को सील कर दिया गया। उसके परिवार के कुल पांच सदस्यों को भी क्वारंटीन किया गया। उसके आस-पड़ोस के व्यक्तियों की भी जांच की गई। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। ‘टिकटॉक स्कूल’ के छात्र कानून तोड़ना ‘डेयरिंग’ यानी दुस्साहस या रोमांच का काम समझते हैं जबकि हकीकत में यह सिर्फ और सिर्फ अपराध होता है। कोई भी कानून नागरिकों की सुरक्षा के लिए बनाया जाता है और आपदा की स्थिति में यह और अधिक जरूरी हो जाता है कि कानून का गंभीरता से पालन किया जाए। सरकार जानती है कि लाॅकडाउन लागू करने से किस-किस तरह के नुकसान हो सकते हैं। मिल, कारखाने, दूकानें सभी बंद हैं। उत्पादन थम-सा गया है। बिक्री के लिए सामानों की उपलब्धता लड़खड़ाने लगी है। कुटीर उद्योग और लघु उद्योग पूरी तरह बैठ चुके हैं। आपदा खत्म होने के बाद उन्हें एक तगड़े स्टार्टअप की जरूरत पड़ेगी। किसान चिंतित हैं, दूकानदार चिंतित हैं, बेघर-बेरोजगार मजदूर चिंतित हैं और इन सब के लिए चिंतित है सरकार। मगर किसी भी आपदा के लिए कभी कोई पूर्व तैयारी नहीं की जा सकती है। आपदा का मतलब ही है कि अचानक कोई बड़ा संकट आ खड़ा होना। हमारा देश समूचे विश्व की भांति आपदा के दौर से गुज़र रहा है। मगर अन्य देशों की तुलना में हमारे देश में स्थिति कई गुना बेहतर है क्योंकि यहां समय रहते आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू कर दिया गया। देश के प्रधानमंत्री ने स्वयं लगातार देश की आमजनता से संवाद बनाए रखा। इस सकारात्मकता ने ही हौसला दे रखा है कोरोना वारियर्स को। फिर भी जो ढीठ किस्म के लोग इन सब बातों को अनदेखा करते रहते हैं और लाॅकडाउन के नियमों को धता बताने की ताक में रहते हैं उन्हें आपदा प्रबंधन अधिनियम के बारे में जरूर जान लेना चाहिए यानी जो बातों से नहीं मानेंगे उनके ऊपर डंडे चलाने का अधिकार रखता है प्रत्येक स्थानीय प्रशासन। जीवन की सुरक्षा के लिए कानून के डंडे भी जरूरी होते हैं।  लाॅकडाउन के नियमों का पालन करते हुए जिस संकट से बड़ी आसानी से निपटा जा सकता है, उसे नियमों को तोड़ कर बढ़ावा देना स्वयं को हत्यारा बनाने के समान है। धैर्य, सुरक्षा और शांति से ही टल सकता है यह संकट। यह समझना ही होगा कि ढीठ बनना कोई बुद्धिमानी नहीं है।  
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