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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, April 29, 2020

चर्चा प्लस ... वे सबक जो हमें याद रखने होंगे कोरोना के बाद भी - डाॅ शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
चर्चा प्लस  
वे सबक जो हमें याद रखने होंगे कोरोना के बाद भी
- डाॅ शरद सिंह
      कोरोना लाॅकडाउन अभी ख़त्म नहीं हुआ है और कोरोना संकट भी। लेकिन एक न एक दिन इसपर विजय जरूर मिलेगी। तब हमें उन सारे सबक पर अमल करना होगा जो हमें इस दौरान मिले हैं। प्रकृति ने हमारे जैसे इंसानों द्वारा ही हम इंसानों को सबक सिखाया है। यदि हम ऐसी आपदा दुबारा देखना नहीं चाहते हैं तो इनमें से कुछ सबक तो हमें याद रखने ही होंगे ।
       कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव व सुरक्षा के लिए पहले लाॅकडाउन-एक, फिर लॉकडाउन-टू और अब लॉकडाउन- थ्री की बारी है। यदि आरम्भिक ग़लतियों से ही हम सीख ले लेते तो टू और थ्री की बारी नहीं आती। एक बार फिर सागर नगर का ही उदाहरण लें तो यह शहर 10 अप्रैल के पहले तक कोरोना से मुक्त था लेकिन 10 अप्रैल के बाद पूरा शहर सकते में आ गया जब पहला कोरोना पाॅजिटिव पाया गया। मरीज की काॅन्टेक्ट हिस्ट्री भी खंगाली गई जिससे उसके ऐसे दोस्त का भी पता चला जो संक्रमित था। यह जानते हुए भी कि कोरोना संक्रमण की श्रृंखला से फैलता है, लाॅकडाउन लागू होने पर भी उन युवकों द्वारा लापरवाही बरती गई और अनेक लोगों के जान से खिलवाड़ की गई। समाचारों की मानें तो अभी पी-1 अपने नागरिक  कर्तव्य नहीं बल्कि दोस्ती निभा रहा है और अपने उन दोस्तों के नाम नहीं बता रहा है जिनमें से कुछ संक्रमित भी निकल सकते हैं। वह शादीशुदा युवक कोई बच्चा नहीं है कि वह स्थिति की गंभीरता को न समझे। कहीं कोई भ्रम की स्थिति अभी भी शेष है। बहरहाल, हमें उन सबकों के बारे में सोचना चाहिए जो लाॅकडाउन के दौरान हमें मिले हैं और अत्यंत बुनियादी हैं।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh, 29.04.2020

सबक 1-खांसने और छींकने के दौरान मुंह पर कपड़ा या हाथ रखना जरूरी होता है जो हम अधिकांश भारतियों के लिए अब तक गैरजरूरी रहा है।

सबक 2-खांसने या छींकने के बाद अपने हाथ अच्छे से धोंए, उसके बाद ही किसी से हाथ मिलाने की सोचें।

सबक 3-साफ़-सफ़ाई से रहने की आदत डालें, चाहे घर पर हों, दफ़्तर पर हों या शहर में हों। उस हवा को साफ़ रखना हमारी अपनी जिम्मेदारी है जिसमें हम सांस लेते हैं।

सबक 4-बड़े रोचक तरीके से यह बात सामने आ रही है कि दिल्ली वालों ने बरसों बाद आसमान में तारे देखे। ज़ाहिर है कि जहां शाम के चार बजते-बजते प्रदूषण का धुंधलका फैल जाता हो वहां आसमान में तारे नज़र ही कहां आएंगे? इस मामले में एक बात और भी है कि दिल्ली वालों को लाॅकडाउन से पहले आसमान देखने की फ़ुर्सत भी कहां मिली? लाॅकडाउन ने उन्हें शाम के बाद की होटलिंग, पब और पार्टियों से दूर जो कर दिया। अब फ़ुर्सत मिली तो अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ उन्होंने आसमान में चांद-तारों की ओर देखा। यानी सबक की बात यह कि दिल्ली के साथ ही सभी शहर प्रदूषणमुक्त रहें और लोग पैसों या चमक-दमक के पीछे भागने के बजाए अपने परिवार को समय देने की आदत बनाए रखें, कोरोनाबंदी के बाद भी।

सबक 5- अकारण गाड़ियां दौड़ाना भी बंद रखें। गाड़ियों की अनावश्यक दौड़ से ध्वनि और वायु का प्रदूषण-स्तर बढ़ता है, ट्रैफिक व्यवस्था जटिल हो जाती है और कीमती डीज़ल-पेट्रोल की क्षति होती है। सरकारें कभी कार-पूल का आग्रह करती हैं तो कभी ऑड-ईवेन की व्यवस्था लागू करती हैं। वे पब्लिक ट्रांसपोर्ट को भी बढ़ावा देती हैं लेकिन हमारी दिखावा पसंद फितरत हमें घर के हर सदस्य के लिए दो पहिया या चार पहिया गाड़ी लेने को उकसाती है। जिस युवा उम्र में सायकिल चलाना सेहत को दुरुस्त रख सकता है, उस उम्र में चार पहिया या नए माॅडल की धांसू दो पहिया पर चढ़ कर हम जिम के चक्कर लगाते नज़र आते हैं। कोरोनाबंदी के बाद हमें चुनना होगा अपनी सेहत और दिखावे में से किसी एक को।

सबक 6- कोरोनाबंदी यानी लाॅकडाउन ने हमें सिखाया कि बताया कि हम अपने बुजुर्गों के लिए कितने जरूरी हैं या यूं कहा जाए कि कोरोनाबंदी ने हमें हमारे बुजुर्गों से एक बार फिर जोड़ दिया है। इस जुड़ाव को कोरोना के बाद भी हमें यूं ही बनाए रखना है। हमें याद रखना होगा कि बुजुर्गों को युवाओं की और युवाओं को बुजुर्गों की जरूरत है।

सबक 7- हमें अपनी लपरवाहियों और ढिठाई पर काबू पाना होगा। कोरोनाबंदी के बीच मिली छूटों का बेजा लाभ उठाते हुए नियमों की धज्जियां उड़ाने की अनेक घटनाएं देश भर में सामने आईं। तो कोरोना के बाद भी हमें जरूरी नियमों का पालन करने की आदत को मजबूत करना होगा। यह हमारी हर प्रकार की सुरक्षा के लिए जरूरी है।

सबक 8- भीड़ के बजाए कतार के अनुशासन को अपनाए रखना होगा कोरोनाकाल के बाद भी। जीवन में अनुशासन ही संवेदनाओं को भी बढ़ाता है और हम संवेदनशील संस्कृति का अहम हिस्सा हैं।

सबक 9- कोरोना आपदा ने उस भावना को पुनः जगा दिया जो धीरे-धीरे कम सोती जा रही थी, परस्पर एक-दूसरे की मदद की भावना। स्थिति यहां तक जा पहुंची थी कि लोग घायल को सम्हालने के बजाए मोबाईल पर उसके कष्टों की वीडियो बनाने को पागल हो उठते थे। यह घातक प्रवृत्ति समाज से संवेदना को तेजी से घटा रही थी। कोरोना आपदा के दौरान लोग जिस प्रकार विस्थापित मजदूरों, बुजंर्गों और बच्चों की मदद के लिए आगे आए वह एक सुखद अहसास है। परेशान लोगों की मदद की यह भावना कोरोना संकट के बाद भी बनाए रखनी है।

सबक 10- कोई भी आपदा जाति, धर्म अथवा सम्प्रदाय में भेद नहीं करती है, यह कोरोना आपदा ने याद दिला दिया है। अतः कोरोना आपदा के बाद भी हमें जाति, धर्म अथवा सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर मानवीय भावनाओं को बनाए रखना होगा। उद्दंड किसी भी जाति, धर्म में हो सकते हैं। अतः ऐसे लोगों के मंसूबों को हवा देने के बजाए आपसी भाईचारे पर ही डटे रहना होगा, जैसा कि कोरोनाबंदी के दौरान हमने किया।  
          बहुत सारे सबकों में से ये कुछ सबक हैं जो कोरोना आपदा ने हमें सिखाए हैं और इन सबकों को हमें कोरोना आपदा के बाद भी याद रखना होगा। यह अच्छी बात है कि अन्य देशों की अपेक्षा हमारे हालात बहुत बेहतर रहे। इन्हें हमें और बेहतर बनाते जाना है।
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(दैनिक सागर दिनकर में 29.04.2020 को प्रकाशित)
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