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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, August 20, 2020

स्वच्छता सिर्फ़ सरकार की जिम्मेदारी नहीं | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | दैनिक जागरण में प्रकाशित

दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा विशेष लेख "स्वच्छता सिर्फ़ सरकार की जिम्मेदारी नहीं" 🚩
❗हार्दिक आभार "दैनिक #जागरण"🙏
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विशेष लेख :
स्वच्छता सिर्फ़ सरकार की जिम्मेदारी नहीं
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 
        जब मैं सुबह-सुबह अपने शहर की एनएच-26-ए रोड पर घूमने निकलती हूं तो पहले जो इलाका पड़ता है वह बजरिया कहलाता है। बजरिया की सड़क जहां मेन रोड से मिलती है वहां एक सुविधायुक्त सुलभ शौचालय है। शौचालय के बाद रोड साईड पर ही कुछ दूकाने हैं जिनमें शराब की दूकान भी है। इससे ओर आगे बढ़ने पर कुछ दूर चल कर एक ऐसा स्पॉट है जहां सड़क की दूसरी ओर के लोग कचरा डालते हैं। वहीं सुबह-सवेरे ‘‘लोटा-परेड’’ का अप्रिय, शर्मनाक दृश्य देखने को मिल जाता है। वैसे आजकल लोग लोटे के बदले प्लास्टिक की बोतल में पानी ले कर जाते हैं जो अकसर कोल्डड्रिंक की बोतल होती है। ऐसे लोगों को देख कर यही सोचती हूं कि अब इसमें दोष किसका है? प्रशासन का या लोगों का? माना कि नगरपालिका प्रशासन में अनेक गड़बड़ियां हो सकती हैं जिनके लिए हम उन्हें कोसते ही रहते हैं लेकिन जो काम जनहित में किया गया है उसका उपयोग करने में कोताही क्यों बरतते हैं? चार कदम और चल कर सुलभ शौचालय तक पहुंचा जा सकता है लेकिन ऐसा करने के बजाए सड़क पार कर के गंदगी फैलानागरिक कर्त्तव्य का उल्लंघन नहीं है? खैर, नागरिक कर्त्तव्य एक भारी-भरकम शब्द लगता है लेकिन इसे इंसान होने का फ़र्ज़ भी तो माना जा सकता है। एक गाय-भैंस कहीं भी गोबर करती है तो हम यह सोच कर अनदेखा कर देते हैं कि वह तो एक जानवर है। तो फिर उन इंसानों को क्या कहा जाए जो इस तरह की गंदगी फैलाते हैं? यदि यह कहें कि वे अनपढ़ हैं तो यह तर्क हज़म नहीं होता है क्योंकि अपने घर के बाहर गंदगी फैलाने वाले भी अपने रसोईघर और भगवान के आले को साफ़-सुथरा रखते हैं। तो यही सफ़ाई की भावना अपने घर से बाहर या सड़क के प्रति क्यों नहीं होनी चाहिए?
     मुझे लगभग रोज ही वह घटना याद आती है जब मैं सागर शहर के प्रबुद्ध नागरिकों के के संगठन ‘‘प्रजामंडल’’ की सदस्य के नाते शहर की एक बस्ती में स्वच्छता-जागरूकता अभियान पर गई थी। बस्ती की महिलाएं पहले झिझकीं फिर आहिस्ते से खुल कर बोलने लगीं। एक महिला ने जिस सरलता से मुझे अपनी सच्चाई बताई, उस पर मुझे समझ में नहीं आया कि मैं उसकी साफ़गोई के लिए उसे बधाई दूं या उसकी ‘लाईफ स्टाईल’ के लिए उसे फटकार लगाऊं। हुआ यूं कि जब मैंने उस महिला से पूछा कि क्या तुम्हारे घर में शौचालय है? उसने बड़े इतरा कर, मुस्कुरा कर उत्तर दिया -‘‘हऔ, है। हमाये इते शौचालय है।’’ लेकिन ग्रामीण इलाके के मेरे पूर्वअनुभवों ने मेरे भीतर घंटी बजा दी और मैंने दूसरे ही पल उससे पूछ लिया, ‘‘लेकिन तुम शौचालय में जाती हो या लोटा ले कर बाहर?’’ वह जरा झेंप कर, हंस कर बोली,‘‘हमें तो बाहर अच्छो लगत है। हम तो बाहरई जात आएं।’’ मेरी शंका सही निकली। दरअसल, यही बात बार-बार सामने आती है कि सुविधाएं उपलब्ध होने से भी कहीं बड़ी आवश्यकता है व्यवहार परिवर्तन की।

आजकल जगह-जगह सार्वजनिक शौचालय बने होते हैं, कोई भी व्यक्ति हो उसे उनका उपयोग करना चाहिए। घर का जो भी कचरा हो उसे कचरे के डिब्बे में रख कर कचरागाड़ी में ही डालना चाहिए। हमारे घर के छोटे बच्चों को भी सड़क स्वच्छता के बारे में जानकारी प्रदान करना चाहिए ताकि वह भी अपना टूटा-फूटा समान, कोल्डड्रिंक की बोतलें, प्लास्टिक की बोतल ,इधर उधर ना फेकें। साफ़ सफाई के लिए लोगो को सामने आना होगा और योगदान देना होगा।
      
“देश की सफाई एकमात्र सफाई कर्मियों की जिम्मेदारी नहीं है क्या इस में नागरिकों की कोई भूमिका नहीं है? हमें इस मानसिकता को बदलना होगा।“ यही तो कहा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘‘स्वच्छ भारत अभियान’’ आरम्भ करते हुए। राजनैतिक स्तर पर राजनीतिक दलों में वैचारिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन स्वच्छता एक ऐसा विषय है जिस पर सभी एकमत दिखाई देते है। क्योंकि स्वच्छता है तो स्वास्थ्य है। दुख की बात है कि देश को स्वतंत्र हुए 73 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आज भी हमें साफ-सुथरा रहने के सबक परस्पर एक-दूसरे को सिखाने पड़ रहे हैं। स्वच्छता हमारे घर, सड़क तक के लिए ही जरूरी नहीं होती है, यह सभी के स्वास्थ्य की पहली आवश्यकता है। इसी को मद्देनजर रखते हुए भारत सरकार द्वारा चलाया जा रहा ‘स्वच्छ भारत अभियान’ और ‘गंदगी भारत छोड़ो अभियान’।

आधिकारिक रूप से 1 अप्रैल 1999 से शुरू, भारत सरकार ने व्यापक ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का पुनर्गठन किया और पूर्ण स्वच्छता अभियान शुरू किया जिसको बाद में 01 अप्रैल 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा निर्मल भारत अभियान नाम दिया गया। स्वच्छ भारत अभियान के रूप में 24 सितंबर 2014 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी से निर्मल भारत अभियान का पुनर्गठन किया गया था। इसके बाद स्वच्छ भारत अभियान की विस्तृत रूपरेखा तैयार की गई। स्वच्छ भारत अभियान 2 अक्टूबर 2014 को शुरू किया गया और 2019 तक खुले में शौच को समाप्त करना इसका उद्देश्य तय किया गया। यह एक राष्ट्रीय अभियान है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने महात्मा गांधी जी की जयंती 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की , स्वच्छ भारत अभियान को भारत मिशन और स्वच्छता अभियान भी कहा जाता है। महात्मा गांधी जी की जयंती के अवसर पर माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी महात्मा गांधी जी की 145 वी जयंती के अवसर पर इस अभियान की शुरुआत की 2 अक्टूबर 2014 थी। साफ-सफाई को लेकर भारत की छवि को बदलने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को एक मुहिम से जोड़ने के लिए जन आंदोलन बनाकर इसकी शुरुआत की। हाल ही में ‘गंदगी भारत छोड़ो’ अभियान भी आरम्भ किया गया है।

स्वच्छ भारत अभियान और गंदगी भारत छोड़ो अभियान के मूल उद्देश्य हैं- खुले में शौच बंद करवाना जिसके तहत हर साल हजारों बच्चों की मौत हो जाती है, सामूहिक शौचालयों का निर्माण करवाना, लोगों की मानसिकता को बदलना, शौचालय उपयोग को बढ़ावा देना और सार्वजनिक जागरूकता लाना। इसी अभियान के तहत सन् 2019 तक सभी घरों में पानी की पूर्ति सुनिश्चित कर के गांवों में पाइपलाइन लगवाना भी तय किया गया था जो अभी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सका है। इनके अतिरिक्त ग्राम पंचायत के माध्यम से ठोस और तरल अपशिष्ट की अच्छी प्रबंधन व्यवस्था सुनिश्चित करना, सड़के फुटपाथ ओर बस्तियां साफ रखना, साफ सफाई के जरिए सभी में स्वच्छता के प्रति जागरूकता पैदा करना भी स्वच्छता अभियान का अभिन्न हिस्सा है। यह सब तभी संभव है जब सभी नागरिक स्वच्छता से रहने की आदत डाल लें। महात्मा गांधी ने सही कहा था -“जो परिवर्तन आप दुनिया में देखना चाहते हैं वह सबसे पहले अपने आप में लागू करें।“ 
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(दैनिक जागरण में 20.08.2020 को प्रकाशित)
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