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My Editorials - Dr Sharad Singh

Saturday, August 15, 2020

स्वतंत्रता : मात्र एक शब्द नहीं - डाॅ शरद सिंह, सागर दिनकर में प्रकाशित विशेष लेख

 

 स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
🌷इस अवसर पर पढ़िए मेरा विशेष लेख...


        स्वतंत्रता: मात्र एक शब्द नहीं
            - डाॅ शरद सिंह


    स्वतंत्रता, आज़ादी, इंडेपेंडेंस - हर भाषा में अलग शब्द लेकिन भावना एक ही है जिसका अर्थ है बोलने, लिखने, पढ़ने और अपने ढंग से जीने की स्वतंत्रता। जी हां, स्वतंत्रता मात्र एक शब्द नहीं है, यह तो मानव जीवन की मूल भावना है। इसीलिए जब कोई इस मूल भावना का दुरुपयोग करने की कोशिश करता है तो वह अपने जीवन का दुरुपयोग कर रहा होता है। इसीलिए स्वतंत्रता शब्द के मूलभाव को आज समझने की बहुत ज़रूरत है। 

आज यदि किसी से पूछा जाए कि स्वतंत्रता का क्या अर्थ है तो वह बेहिचक धाराप्रवाह अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बातें करने लगेगा। यदि वह युवा है और उसके माता-पिता उस पर अंकुश रखते हैं तो वह अपने माता-पिता के अंकुश से स्वतंत्र होने की बात करेगा। यदि कोई व्यक्ति पारिवारिक पेरेशानियों में फंसा हुआ है तो उन परेशानियों से मुक्ति में ही उसे अपनी स्वतंत्रता दिखाई देगी। यदि कोई आॅफिस के कामों के बोझ से लदा हुआ है तो उसके लिए उस बोझ से मुक्ति ही स्वतंत्रता है। यानी आज हम स्वतंत्रता के निहायत व्यक्तिगत संस्करणों के साथ जीने लगे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमने अपनी आंखों से स्वतंत्रता आंदोलन नहीं देखा है। जिन्होंने देखा है, वे हमारे बुजुर्ग हैं और हमारे पास उनके संस्मरण सुनने, उनसे अंाखों देखा हाल जानने की फुर्सत नहीं है। ऐसी दशा में हम स्वतंत्रता को स्वतंत्रता दिवस से जोड़ कर एक दिन के लिए समारोही हो जाना पसंद करते हैं, उससे आगे हमें सोचने की फुर्सत नहीं होती है। जबकि स्वतंत्रता मात्र एक शब्द नहीं है, यह अपने आप में एक ऐसी व्यवस्था है जो मनुष्य को मनुष्य होने का बोध कराती है।

      यदि आज टिक-टाॅक या व्हाट्सएप्प पर नियंत्रण की बात आती है तो हमें लगता है कि हमारी स्वतंत्रता छिनी जा रही है। अभी साल-डेढ़ साल पहले यही हुआ। व्हाट्एप्प पर पांच से अधिक मैसेजे एक साथ करने पर पाबंदी लगा दी गई। जिस पर व्हाट्सएप्प यूज़र को लगा कि उनकी स्वतंत्रता को सीमित कर दिया गया है। एक बौखलाहट भरा स्वर उभरा लेकिन जल्दी ही यह स्वर शांत भी हो गया क्योंकि लोगों ने इस वास्तविकता को स्वीकार किया कि माॅबलिचिंग के कारण ऐसी पाबंदी लगाई गई थी। किसी भी घटना के होने और उसे समझने के बीच ही सारी कठिनाइयां छिपी रहती हैं जैसे ही बात समझ में आ जाती है मुश्क़िलें भी दूर होने लगती हैं। इसीलिए हमें समझना होगा कि स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं बल्कि देश की स्वतंत्रता  है। यदि देश स्वतंत्र है तो हम स्वतंत्र हैं। इसलिए देश की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए उस स्वतंत्रता के प्रति जो भी जरूरी है वह हमें करना होगा। जैसे-आत्मनिर्भरता, आत्मसंयम, समझदारी, अपने मतदान अधिकार का सही प्रयोग, गलत बातों का खुल कर विरोध, अच्छी बातों का मुखर हो कर समर्थन आदि।

मुखर होने का मतलब यह नहीं है कि जो जी में आए वह अनाप-शनाप बका जाए। इनदिनों टेलीविज़न के अधिकांश समाचार चैनलों में जिस तरह की डिबेट होती है उसे देख-सुन कर यही लगता है जैसे इंसान आपस में चर्चा नहीं कर रहे हैं बल्कि जानवर एक दूसरे पर चींख-चिल्ला रहे हैं। एक तो उनकी चींख-चिल्लाहट में आवाजें एक-दूसरे पर इतनी बोव्हरलेप होती हैं कि उन्हें समझना कठिन रहता है। यदि समझ में आ भी जाएं तो यह समझ में नहीं आता है कि वे डिबेटियर्स मूल मुद्दे से भटक कर कितनी दूर निकल गए हैं। यदि राजनीतिक डिबेट हुई तो एक-दूसरे के नेताओं की जन्मपत्रियां खुलने लगती हैं। भले ही उससे मूल विषय का कोई सरोकार न हो। यह आमजन को भटकाने का बड़ा सुंदर तरीका है जो बोलने की स्वतंत्रता का लाभ उठाते हुए अपना लिया गया है। एक डिबेटियर की हार्टअटैक से मौत के बाद स्थिति की गंभीरता को समझते हुए इलेक्ट्राॅनिक मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करने से स्वयं को रोकना होगा, इसके पहले कि किसी कठोर कानून के शिकंजे में उन्हें जकड़ा जाए।   

जब हम स्वतंत्रता की बात करते हैं तो आर्थिक स्वतंत्रता भी मायने रखती है। इसी से शुरू होता है आत्मनिर्भरता का सफर। देखा जाए तो आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता एक-दूसरे के पूरक हैं। यदि हम आत्मनिर्भर हैं तो हम स्वतंत्रतापूर्वक अपने आर्थिक संसाधनों का उपभोग कर सकते हैं। वहीं यदि हम अपने आर्थिक संसाधनों पूरा उपयोग करते हुए स्वदेशी को महत्व देंगे तो आत्मनिर्भरता बढ़ती जाएगी। यदि चीन दुनिया के बाज़ार पर पांव पसार सकता है तो हम क्यों नहीं। हमारे यहां तो चीन से अधिक स्वतंत्रता है। लेकिन एक कमी है जिसके कारण हम चीन से पिछड़ जाते हैं। वह कारण है भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार ने आज तक हज़ारों उद्यमियों को पनपने से पहले ही तोड़ कर मसल दिया है। जब फाइलें ही आगे नहीं सरकेंगी तो उद्योग के पहिए कैसे घूमेंगे? ऐसे भ्रष्टाचारी तत्व जिस तरह स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं उसे देख कर बड़े-बुजुर्ग यह कहने को मजबूर हो जाते हैं कि इससे तो अंग्रेजों का जमाना अच्छा थां यदि हमारे बड़े-बुजुर्गों की यह पीड़ा हमारी चेतना को झकझोर नहीं पाती है तो इसका अर्थ है कि हम स्वतंत्रता का आदर करना ही नहीं जानते हैं। 
  
यदि बात हम अपने समाज की करें तो हमने सामाजिक स्वतंत्रता तो पाई है लेकिन जात-पांत, ऊंच-नीच, साम्प्रदायिकता आदि से आज भी मुक्त नहीं हुए हैं। आज भी हमारी चर्चा का विषय आरक्षण के मुद्दे पर अटका रहता है। उससे आगे सोचने की आदत हमें नहीं पड़ी है। क्योंकि राजनेता अपने निहित स्वार्थों के चलते आगे नहीं सोचने देना चाहते हैं। जहां हमें सामाजिक समानता ज़मीन पर खड़े होना चाहिए था वहां आज हम और भी छोटी-छोटी इकाइयों में बंटते जा रहे हैं। आज समाज का हर वर्ग अपने तरह का अलग-अलग वोट बैंक बन गया है। यही हाल धर्म का है। ईश्वर एक है के तथ्य को मानते हुए भी हर धर्म एक है को हम नहीं मान पाते हैं। हमारे भीतर के धार्मिक उन्माद को मिटाने के बजाए उसे बढ़ा कर हमें वोटबैंक में बदला जाता है और हम खुद को बदलने देते हैं। 
देश को स्वतंत्रता मिले 73 साल हो गए लेकिन आज भी हमारे देश में आए दिन बलात्कार के नृशंस अपराध होते रहते हैं जो स्त्री-प्रगति के चित्र पर रक्त के धब्बे के समान दिखाई देते हैं। स्वतंत्रता मिले 73 साल हो गए लेकिन आज भी बेरोजगारी युवाओं को निगलती जा रही है। सच तो यह है कि स्वतंत्रता मिले 73 साल हो गए लेकिन हम स्वतंत्रता के वास्तविक अर्थ को मानो भुलाते जा रहे हैं और स्वतंत्रता के नाम पर अनाचार को बढ़ते देख रहे हैं। यह वह स्वतंत्रता नहीं है जिसके लिए महात्मा गांधी ने डंडे खाए अथवा शहीदों ने फांसी के फंदे को हंसते-हंसते अपने गले में डाला। इसीलिए स्वतंत्रता शब्द के मूलभाव को आज समझने की बहुत ज़रूरत है कि स्वतंत्रता अधिकारों को पाने और उसके सदुपयोग में निहित होती है। स्वतंत्रता स्त्री के सम्मान और आत्मनिर्भरता में मौजूद होती है। स्वतंत्रता स्वस्थ वैचारिक बहस में फलती-फूलती है। जी हां, स्वतंत्रता मात्र एक शब्द नहीं है, यह तो मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने वाला आत्मनियंत्रित तंत्र है जिसका पालन करना और सम्मान करना हमारा कर्त्तव्य है।     
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(दैनिक सागर दिनकर में 15.08.2020 को प्रकाशित)
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