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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, December 30, 2020

चर्चा प्लस | विदा ! आपदा और आंदोलन से वाले वर्ष 2020 | डाॅ शरद सिंह

Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily

चर्चा प्लस

विदा ! आपदा और आंदोलन से वाले वर्ष 2020       

             - डाॅ शरद सिंह

                            

सभी एक स्वर से मानते हैं कि वर्ष 2020 सबसे ख़राब साल था और इसका सबसे बड़ा कारण रहा कोरोना आपदा। लाॅकडाउन, आइसोलेशन, क्वारेंटाईन जैसे शब्द मार्च से दिसंबर तक ट्रेंड करते रहे। इस आपदा ने जीवनचर्या ही बदल दी। लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ घटित हुआ वर्ष 2020 में जो खट्टा था, मीठा था और कड़वा था। वर्ष 2020 को यदि एक रेलगाड़ी मानें तो इसके इंजन में आंदोलन था और गार्ड के डब्बे में भी आंदोलन रहा। बीच में कोरोना आपदा और चंद उल्लेखनीय उपलब्धियां भी रहीं।
Charcha Plus Column - Vida Aapda  Aur Andolan Wale Varsh 2020 - Dr (Miss) Sharad Singh - Sagar Dinkar, 30.12.2020 

अभी तक के इतिहास में 2020 जैसा वर्ष दुनिया में कभी नहीं आया। 2020 ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। लाखों लोगों की जान ले ली। करोड़ों के रोजगार चले गये, भूख से लोगों ने दम तोड़ा। पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी की चपेट में आ गयी। आज हर व्यक्ति की दिल से यहीं प्रार्थना ही कि साल 2020 जैसा वर्ष कभी न वापस आए। भला कौन भुला सकेगा अपने परिचितों और अपरिचितों का कोरोना से मारा जाना। कौन भुला सकेगा वह दृश्य जब हज़ारों मज़दूर लाॅकडाउन के दौरान बेरोज़गार हो कर अपने गांवों की ओर पैदल लौटने को मज़बूर हो गए। कुछ रेल की पटरी पर कट कर मर गए तो कुछ ने भूख, प्यास से रास्ते में ही दम तोड़ दिया। छोटे-छोटे बच्चे और बूढ़े मां-बाप तक प्रवासी श्रमिकों की उस भीड़ में शामिल थे। कहीं-कहीं उन पर सेनेटाईज़र की बौछार कर के अमानवीयता का परिचय दिया गया तो कहीं पूरी मानवता के साथ उनकी मदद की गई। एक अजीबोग़रीब दौर से गुज़र का निकला है यह वर्ष 2020।  

चलिए वर्ष के पूरे परिदृश्य पर संक्षेप में दृष्टिपात करते हैं। वर्ष 2020 की शुरुआत नागरिकता कानून में संशोधन के खिलाफ दिसंबर 2019 से जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच हुई। सरकार अपना निर्णय बदलने को तैयार नहीं थी और सीएए का विरोध करने वाले पीछे हटने को तैयार नहीं थे। विरोध और प्रदर्शनों की संख्या बढ़ती चली गई। प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली के शाहीन बाग़ में अपना आंदोलन ज़ारी रखा जिसमें महिलाएं और बच्चे भी साथ दे रहे थे। मगर कोरोना आपदा के कारण अंततः उन्हें अपना विरोध प्रदर्शन स्थगित करना पड़ा। लेकिन शाहीनबाग में प्रदर्शन का चेहरा बनी 82 साल की बिलकिस दादी। टाइम मैगजीन ने बिलकिस बानो को 100 सबसे ज्यादा प्रभावशाली लोगों की अपनी सूची में शामिल किया। जनवरी माह के अंत में भारत में कोरोना वायरस का पहला मरीज केरल में सामने आया जिसको देखते हुए सरकार चिंतित हो गयी और स्वास्थ्य मंत्रालय एक्शन मोड में आ गया था। हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी गई। मगर बड़ी आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की लचर व्यवस्था ने सरकार को चिंता में डाल रखा था। जल्दी की कड़ाई बरतने की स्थिति आ गई और लाॅकडाउन के फेज़ शुरू कर दिए गए। कोरोना को रोकने के लिए हर संभव प्रयास शुरू कर दिए गए। कोरोना के कहर के बीच तबलीगी जमात की भी चर्चा उठी। 


फरवरी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की यात्रा पर आए और अहमदाबाद में ‘‘नमस्ते ट्रंप’’ कार्यक्रम में हिस्सा लिया। विश्व के सबसे बड़े स्टेडियम में हुए इस कार्यक्रम में लाखों लोगों ने ट्रंप का अभिवादन किया। फरवरी के अंत में भारत ने फ्रांस और ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का गौरव अपने नाम किया। लेकिन इस गौरव पर इतराने का समय कम ही मिला और मार्च 2020 की शुरुआत आर्थिक परेशानियों के साथ हुई। इसके साथ ही राजनीतिक उथल-पुथल तेज हो गई। मार्च में बड़ी राजनीतिक हलचल तब हुई जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गये। मार्च महीने में मध्य प्रदेश में सप्ताह भर चले राजनीतिक घटनाक्रम में कमलनाथ की सरकार गिर गयी और शिवराज सिंह चौहान ने एक बार फिर मध्य प्रदेश की सत्ता संभाली।


मार्च महीने में जैसे-जैसे कोरोना वायरस की रफ्तार तेज होती रही वैसे-वैसे खेल टूर्नामेंटों और अन्य बड़े आयोजनों के रद्द होने के समाचार आने लगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए कोरोना वायरस महामारी की गंभीरता से देश को अवगत कराया और इसी के साथ ही उन्होंने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का आह्वान किया और इसके दो दिन बाद ही उन्होंने देश में 21 दिनों के संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी। जिसे बाद में आगे बढ़ाया गया। अप्रैल महीने की शुरुआत में दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज में मार्च में हुए तबलीगी जमात के कार्यक्रम में हजारों की संख्या में देश और विदेश से लोग शामिल हुए। जब यह बात सामने आई कि बड़ी संख्या में जमाती कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं, तो यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। कोरोनावायरस के फैलाव में तबलीगी ज़मात और निजामुद्दीन मरकज़ का नाम सामने आने के बाद राजनीतिक खेल शुरू हो गया।


अप्रैल माह में ही देश ने विभाजन के बाद का सबसे बड़ा पलायन देखा। लॉकडाउन के कारण रोजी-रोटी छिन जाने से हज़ारों प्रवासी मजदूर अपने-अपने गृह राज्यों की ओर निकल पड़े। सार्वजनिक परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं थे इसलिए ये लोग पैदल, ट्रकों में भर कर, कंटेनर ट्रकों और कंक्रीट मिक्सिंग मशीन वाहन में छिपकर अपने घर लौटे और इस दौरान कई मजदूर दुर्घटनाओं के शिकार भी हुए। प्रवासी मजदूरों के पलायन के समय देश भर से जिस तरह की भावुक कर देने वाली तसवीरें सामने आईं उनको देश लंबे समय तक याद रखेगा।


मई का पहला दिन यानि मजदूर दिवस मजदूरों के लिए बड़ी राहत लेकर आया क्योंकि इस दिन से प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष ट्रेनों का संचालन शुरू हो गया जिससे विभिन्न राज्यों में फंसे मजदूरों ने राहत की सांस ली। दो मई को लॉकडाउन को बढ़ाने का भी ऐलान कर दिया गया लेकिन रेड, ऑरेंज और ग्रीन जोन के लिए अलग-अलग दिशानिर्देश जारी किये गये। मई में ही प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए भारत को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प दिलाया और एक लाख 20 हजार करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया। मई में आये तूफान अम्फान से पश्चिम बंगाल और ओडिशा में तबाही हुई जिसको देखते हुए प्रधानमंत्री ने इन दोनों राज्यों का दौरा कर हालात की समीक्षा की और उन्हें आर्थिक मदद मुहैया करायी। एक बार फिर 25 मई से देश में घरेलू उड़ानें शुरू हुईं।


जून में फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने अपने मुंबई स्थित घर पर आत्महत्या कर सभी को चैंका दिया। भले ही आत्महत्या का केस आज भी पूरी तरह नहीं सुलझ पाया है लेकिन इसने बाॅलीवुड के ड्रग्स-कनेक्शन की परतें खोल दीं। इसी तारतम्य में ‘‘नेपोटिज़्म’’ और ‘‘मूवी माफिया’’ जैसे शब्दों ने भी तहलका मचाया। वहीं, जून मध्य में भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में भारत के 20 जवानों के शहीद होने से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया। महीने के अंत में भारत सरकार ने डेटा चुराने वाले चीन के 59 मोबाइल एप्स को भी प्रतिबंधित कर दिया। 


कोरोना काल ने कई बड़े बदलाव किये जैसे कि शादी-विवाह आदि बड़े सादे ढंग से आयोजित किये जाने लगे और नाममात्र के ही रिश्तेदारों की उपस्थिति इन आयोजनों में रहने लगी। इस दौरान घरेलू हिंसा बढ़ी। आश्चर्य कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों पर लगाम नहीं लगी। सिनेमाघर, रेस्टोरेंट, पार्क आदि लंबे समय तक बंद रहे। लॉकडाउन के दौरान जब सभी घर पर बिना काम के बैठ गये तब लोगों के पास एक ही मनोरंजन का सहारा था टीवी, मोबाइल और इंटरनेट। दूरदर्शन ने रामायण, महाभारत आदि पुराने धारावाहिक का पुनः प्रसारण किया। सिनेमाघर बंद थे ऐसे में ओटीटी प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता अचानक बढ़ गयी। अमेजन प्राइम, नेटफ्लिक्स, जी5, वूट, जीयो सिनेमा, एयरटेल टीवी, सोनी लिव जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म का लॉकडाउन के दौरान काफी भारी मात्रा में सब्सक्रिप्शन लिया गया। ओटीटी सिनेमा जगत में एक तीसरे पर्दे के तौर पर उभरा और आज के समय में ये प्लेटफॉर्म मनोरंजन का सबसे लोकप्रिय बन बन गया है। घरों में लॉकडाउन के दौरान काम वाली बाई ना होने के कारण लोग घरों के काम खुद ही करते नजर आए। अधिकांश ऑफिस अब भी बंद होने के कारण वर्क फ्रॉम होम शुरू हुआ। 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर रस्साकशी चलती रही। विपक्ष को सत्ता में आने का भरोसा था, लेकिन तस्वीर सामने आई तो बाजी पलट चुकी थी। सभी एग्जिट पोल्स धराशायी साबित हुए। एनडीए एक बार फिर सत्ता पाने में सफल रहा।


वर्ष 2020 में एक लम्बे विवाद का सुखद पटाक्षेप हुआ। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर का रास्ता तैयार किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगस्त 2020 में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी। अब राम मंदिर तैयार होने में लगभग 36-40 महीने का समय लगने का अनुमान है।


वर्ष के उत्तरार्द्ध में सुगबुगाने वाला विरोध दिसंबर में बड़े आंदोलन के रूप में सामने आया। केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन छेड़ दिया। केंद्र सरकार सितंबर महीने में 3 नए कृषि विधेयक लाई, जो संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून बना दिए गए। किसानों को ये कानून रास नहीं आया। किसानों ने ‘‘दिल्ली चलो अभियान’’ छेड़ते हुए दिल्ली की ओर कूच किया लेकिन सरकारी अपले ने उन्हें सीमाओं पर रुकने को विवश कर दिया। देश के किसान आंदोलनों के इतिहास में यह अब तक का सबसे जीवट और हाईटेक आंदोलन माना गया है। 


साहित्यजगत् में भी अचानक स्तब्धता छा गई। साहित्यकार घरों में क़ैद हो कर रह गए। साहित्यकारों ने भी डिज़िटल माध्यमों को अपनाकर पाठकों से लाईव संवाद ज़ारी रखा। फेसबुक, ब्लाॅग, किंडल आदि पर बड़ी मात्रा में साहित्य पढ़ा गया। साहित्यिक मुद्रण-प्रकाशन बाधित हुआ। कई दिनों तक मुद्रणकार्य बंद रहा। पुस्तक प्रकाशन से जुड़े मशीन ऑपरेटर से लेकर वाइंडरप्रूफ रीडर, कंपोजर आदि तक प्रभावित हुए। उनका रोजगार मारा गया। अनेक पुस्तकों का वितरणकार्य अटक गया। लेकिन इस कठिन समय में कई पत्र-पत्रिकाओं ने अपने घाटे की परवाह किए बिना पाठकों को अपने डिज़िटल संस्करण उपलब्ध कराए, वह भी बिलकुल मुफ़्त। यह मुद्रण के इतिहास में एक बड़ी ऐतिहासिक घटना के रूप में आंकी जाएगी। अब आशा यही की जानी चाहिए कि वर्ष 2021 आपदामुक्त एक सुखद साल रहेगा। मैं इन शब्दों के साथ दुआ करती हूं कि-

नए  साल  में   हर  नई बात हो।

खुशियों  की  हरदम ही बरसात हो।

सभी  स्वस्थ  रह  कर जिएं जिन्दगी

दुखों की न  कोई  भी अब घात हो।

‘शरद’ की दुआ  है अमन, चैन की

चमकता  हुआ दिन  भी हो, रात हो।


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(दैनिक सागर दिनकर में 30.12.2020 को प्रकाशित)
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2 comments:

  1. आपकी दुआएं पूरी हों। बहुत बढ़िया आलेख।

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    1. हार्दिक धन्यवाद वीरेंद्र सिंह जी 🌹🙏🌹

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