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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, December 15, 2021

चर्चा प्लस | सरदार वल्लभ भाई पटेल का पुराना नाता था बुंदेलखंड से | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस 
पुण्यतिथि 15 दिसम्बर विशेष
सरदार वल्लभ भाई पटेल का पुराना नाता था बुंदेलखंड से
 - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
  सरदार वल्लभ भाई पटेल भारतीय राजनीति के एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कठोर निर्णयों पर अमल करते हुए देश का राजनीतिक नक्शा ही बदल दिया। रियासतों में बंटा देश एक झंडे अर्थात् तिरंगे के तले आ गया। बारडोली कस्बे में सत्याग्रह करने के लिए ही उन्हंे पहले ‘बारडोली का सरदार’ और बाद में केवल ‘सरदार’ कहा जाने लगा। इसके बाद वे समूचे जनमानस के ‘सरदार’ बन कर देश की सेवा करते रहे। बुंदेलखंडवासी इस पर गर्व कर सकते हैं कि ऐसे लौह व्यक्तित्व का  बुंदेलखंड से पुराना नाता रहा है।  
   बुंदेलखंड से लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाता उनके पिता झावेर भाई के समय से रहा। सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नाडियाड स्थित एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम झावेरभाई और माता का नाम लाडभाई था। उनके पिता पूर्व में करमसाड में रहते थे। वल्लभ भाई के पिता मूलतः कृषक होते हुए भी एक कुशल योद्धा एवं शतरंज के श्रेष्ठ खिलाड़ी थे। सन् 1857 के पूर्व ही अंग्रेजों के विरुद्ध विभिन्न राज्यों में सुगबुगाहट आरम्भ हो चुकी थी। मराठा नाना साहब एवं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों की असम्मानजनक शर्तें मानने से स्पष्ट मना कर दिया था। धीरे-धीरे युद्ध की स्थितियां निर्मित होती जा रही थीं। उत्तर भारत तथा महाराष्ट्र से नाडियाड आने वाले व्यापारियों के माध्यम से इस सम्बन्ध में छिटपुट समाचार झावेर भाई को मिलते रहते थे। वे भी अंग्रेजों द्वारा भारतीय कृषकों के साथ किए जाने वाले भेद-भाव से अप्रसन्न थे। एक दिन उन्हें पता चला कि उनके कुछ मित्र नाना साहब की सेना में भर्ती होने जा रहे हैं। झावेर भाई ने भी तय किया कि वे भी सेना में भर्ती होकर अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ेंगे। वे जानते थे कि उनके परिवारजन इसके लिए उन्हें अनुमति नहीं देंगे। अतः एक दिन वे बिना किसी को बताए घर से निकल पड़े।
नाना साहब की सेना में भर्ती होने के उपरांत उन्होंने सैन्य कौशल प्राप्त किया। उस समय तक झांसी की रानी ने ‘अपनी झांसी नहीं दूंगी’ का उद्घोष कर दिया था। सन् 1857 में अंग्रेजों ने झांसी पर आक्रमण कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई की सहायता करने के लिए नाना साहब अपनी सेना लेकर झांसी की ओर चल दिए। उनकी सेना में झावेर भाई भी थे।
नाना साहब ने अपनी सेना की एक टुकड़ी रानी लक्ष्मीबाई की सेना में शामिल कर दी। इस टुकड़ी में झावेर भाई थे जो रानी लक्ष्मी बाई की सेना के साथ अंग्रेजों से लोहा लेते हुए झांसी से ग्वालियर की ओर बढ़ रहे थे। उस दौरान झावेर भाई ने बुंदेलखंड में एक योद्धा के रूप में अनेक दिन बिताए। दुर्भाग्यवश, रानी लक्ष्मी बाई अंग्रेजों से घिर गयीं और वीरगति को प्राप्त हुईं तथा झावेर भाई को इन्दौर के महाराजा की सेना ने बंदी बना लिया। अपनी चतुराई और शतरंज के कौशल के सहारे झावेर भाई महाराजा इन्दौर की क़ैद से आजाद हुए।
स्वतंत्रता आन्दोलन में वल्लभ भाई का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा आन्दोलन में था। गुजरात का खेड़ा जिला उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से लगान में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो वल्लभ भाई ने महात्मा गांधी के साथ पहुंच कर किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्रेरित किया। अंततः सरकार को उनकी मांग माननी पड़ी और लगान में छूट दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी। इसके बाद उन्होंने बोरसद और बारडोली में सत्याग्रह का आह्वान किया। बारडोली कस्बे में सत्याग्रह करने के लिए ही उन्हंे पहले ‘बारडोली का सरदार’ और बाद में केवल ‘सरदार’ कहा जाने लगा। यह एक कुशलतापूर्वक संगठित आन्दोलन था जिसमें समाचारपत्रों, इश्तिहारों एवं पर्चों से जनसमर्थन प्राप्त किया गया था तथा सरकार  का विरोध किया गया था। इस संगठित आन्दोलन की संरचना एवं संचालन वल्लभ भाई ने किया था। उनके इस आन्दोलन के समक्ष सरकार को झुकना पड़ा था।
महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन के दौरान सरकारी न्यायालयों का बहिष्कार करने आह्वान करते हुए स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए वल्लभ भाई ने सदा के लिए वकालत का त्याग कर दिया। इस प्रकार का कर्मठताभरा त्याग वल्लभ भाई ही कर सकते थे। महात्मा गांधी और मोतीलाल नेहरू दोनों ही बल्लभ भाई पटेल पर अगाध विश्वास करते थे। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा के बाद अपने एक भाषण में स्वीकार किया था कि -‘‘वल्लभ भाई दांडी में मेरे साथ उपस्थित नहीं हो सके क्यों कि सरकार ने उन्हें बंदी बना कर जेल में डाल दिया था, लेकिन उनका उत्साह और उनकी आशाएं दांडी में जनसमूह के रूप में मेरे साथ थीं। यदि मैं नमक कानून तोड़ने में सफल रहा तो इस सफलता की जमीन वल्लभ भाई द्वारा तैयार की गई थी।’’
वल्लभ भाई महात्मा गंाधी को जितना आदर देते थे, महात्मा गांधी भी उन्हें उतनी ही स्नेह करते थे। वे प्रत्येक मामले में एक बार वल्लभ भाई से सलाह ले लेना उचित समझते थे। महात्मा गांधी जानते थे कि वल्लभ भाई व्यवहारिक दृष्टि से उचित सलाह देंगे। जब से वल्लभ भाई ने स्वदेशी वस्त्रों को अपने पहनावे के रूप में अपनाया था तब से ही महात्मा गंाधी का लगाव वल्लभ भाई के प्रति बढ़ गया था। वे समझ गए थे कि वल्लभ भाई कोई अवसरवादी नेता नहीं हैं, वरन् उनमें नेतृत्व और त्याग की क्षमता जन्मजात है। दांडी-यात्रा की सफलता ने महात्मा गांधी के मन में वल्लभ भाई की छवि को और अधिक प्रखर बना दिया।
सरकार एक आर्डीनेंस निकालकर कांग्रेस की समस्त संगठन को गैर कानूनी घोषित कर चुकी थी और कांग्रेस के अध्यक्ष होने के नाते पं. जवाहरलाल नेहरू और उनके पिता पं. मोतीलाल नेहरू गिरफ्तार किए जा चुके थे। पं. मोतीलाल जी जेल जाते हुए सरदार पटेल जी को अपना स्थानापन्न नियुक्त कर गए थे। इसलिए 26 जून 1930 को जेल से बाहर आते ही वल्लभ भाई कांग्रेस संगठन को सुदृढ़ करने और सत्याग्रह-संग्राम को तीव्र करने में संलग्न हो गए।
सरदार पटेल ने अपना महत्वपूर्ण योगदान 1917 में खेड़ा किसान सत्याग्रह, 1923 में नागपुर झंडा सत्याग्रह, 1924 में बोरसद सत्याग्रह के उपरांत 1928 में बारदोली सत्याग्रह में देकर अपनी राष्ट्रीय पहचान कायम की। इसी बारदोली सत्याग्रह में उनके सफल नेतृत्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी और वहां के किसानों ने वल्लभ भाई पटेल को ‘‘सरदार’’ की उपाधि दी। वहीं 1922, 1924 तथा 1927 में सरदार पटेल अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गये। 1930 के गांधी के नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तैयारी के प्रमुख शिल्पकार सरदार पटेल ही थे। 1931 के कांग्रेस के कराची अधिवेशन में सरदार पटेल को अध्यक्ष चुना गया। सविनय अवज्ञा आन्दोलन में सरदार पटेल को जब 1932 में गिरफ्तार किया गया तो उन्हें गांधी के साथ 16 माह जेल में रहने का सौभाग्य हासिल हुआ। 1939 में हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में जब देशी रियासतों को भारत का अभिन्न अंग मानने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया तभी से सरदार पटेल ने भारत के एकीकरण की दिशा में कार्य करना प्रारंभ कर दिया तथा अनेक देशी रियासतों में प्रजा मण्डल और अखिल भारतीय प्रजा मण्डल की स्थापना करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रजा मण्डल की संकल्पना को अपनाते हुए बुंदेलखंड में भी इसकी इकाइयां गठित की गई थीं। लगातार कठोर परिश्रम ने वल्लभ भाई पटेल के स्वास्थ्य को प्रभावित किया था। स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी परिस्थितिवश उन्हें अनेक यात्राएं करनी पड़ीं। लगातार दौरों और विपरीत परिस्थितियों में परहेज संभव नहीं हो पाता था। इन सबका दुष्प्रभाव उनके शरीर पर पड़ता गया। 15 दिसम्बर 1950 को प्रातः वल्लभ भाई पटेल के सीने में दर्द उठा। तत्काल चिकित्सकों को बुलाया गया। चिकित्सकों ने हरसंभव प्रयास किया किन्तु दुर्भाग्यवश  9 बजकर 37 मिनट पर हृदयगति रुकने से उनका निधन हो गया। सरदार पटेल के निधन का समाचार विद्युतगति से पूरे देश में फैल गया और समूचा राष्ट्र गहरे शोक में डूब गया। उसी दिन सायंकाल उनके एकमात्र पुत्र डाह्याभाई पटेल ने उनके शव को अग्नि को समर्पित किया। शोक संतप्त राष्ट्र ने ‘लौह पुरुष’ को श्रद्धांजलि अर्पित की।
समूचा बुंदेलखंड वल्लभ भाई पटेल का स्मरण करता ही है तथा चैक-चैराहों, तिराहों में उनकी प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसी प्रकार सागर संभागीय मुख्यालय की रजाखेड़ी नगरपालिका के बजरिया तिराहे पर भी सरदार वल्लभ भाई पटेल की एक प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा सरदार पटेल के व्यक्तित्व और विचारों का बुंदेलखंड पर प्रभाव का प्रतीक है क्योंकि इस प्रतिमा का निर्माण सन् 2015 में लगभग 6 लाख रुपए के निजी खर्च पर कराया गया। इससे पूर्व लगभग साल भर पहले से प्रतिमा के लिए प्लेटफार्म का निर्माण शुरू कर दिया गया था। प्रतिमा जयपुर से बनवाई गई। इस प्रतिमा का निर्माण एवं स्थापना कुर्मी समाज युवा संगठन के जिलाध्यक्ष विजय पटेल ने अपने पिता स्व. शिब्बू दाऊ पटेल की स्मृति में कराया। विजय पटेल इसका कारण बताते हैं कि वे सदा सरदार पटेल के विचारों से प्रभावित रहे जिसकी प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली। इसीलिए अपने पिता की स्मृति में उन्होंने सरदार पटेल की प्रतिमा स्थापित कराने का निर्णय लिया। वास्तव में वल्लभ भाई पटेल आधुनिक भारत के शिल्पी थे, उनके विचार आज भी बुंदेलखंड की विकासयात्रा का पथप्रदर्शन कर रहे हैं।
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3 comments:

  1. लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल के ऊपर जानकारी भरा सुंदर आलेख, लौह पुरुष को मेरा शत-शत नमन 🙏💐

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  2. लोहपुरुष वल्लभ भाई पटेल के जीवन से जुड़ी जानकारी देता सुंदर आलेख। लोह पुरुष को मेरा शत शत नमन।

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