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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, December 21, 2021

पुस्तक समीक्षा | स्त्री स्वर को मुखर करता एक उम्दा काव्य संग्रह | समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह

प्रस्तुत है आज 21.12. 2021 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई संपादक अनुभूति गुप्ता द्वारा संपादित काव्य संग्रह "स्त्री स्वर" की समीक्षा...
आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
स्त्री स्वर को मुखर करता एक उम्दा काव्य संग्रह
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह   - स्त्री स्वर
संपादक      - अनुभूति गुप्ता
प्रकाशक     - उदीप्त प्रकाशन, लखीमपुर खीरी, (उ.प्र.)
मूल्य        - 100/-
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‘‘स्त्री स्वर’’ यह एक साझा काव्य संकलन है। इसका संपादन अनुभूति गुप्ता ने किया है। इस संकलन में पंद्रह कवि एवं कवयित्रियों की वे काव्य रचनाएं सम्मिलित की गई हैं जिनमें स्त्री स्वर मुखर हुआ है। इस सम्वेत संकलन में डॉ भारती वर्मा बौड़ाई, अजय कुमार मिश्र ‘‘अजयश्री’’ वीणा मावर, डॉ सुरेंद्र निशब्द, आनंद वर्धन शर्मा, डॉ शम्मी श्रीवास्तव, रामेश्वर प्रसाद गुप्त, शिवमंगल सिंह, त्रिवेणी मिश्रा, वीरेंद्र प्रधान, प्रभु दयाल खट्टर, गिरीश चावला, संजय सनातन, जितेंद्र कुमार वैष्णव और विनोद कुमार की कविताएं संग्रहित की गई है। इन सभी कविताओं में स्त्री जीवन के संघर्ष दशाओं और क्षमताओं की चर्चा की गई है।
वर्तमान समाज में भी स्त्री पूर्णतया सुरक्षित नहीं है, न तो घर में और न ही बाहर। वह अपने अस्तित्व को साबित करने के लिए निरंतर संघर्ष करती रहती है। इसके बावजूद उसे प्रताड़ना भी सहना पड़ता है लेकिन उसके भीतर की शक्ति उसे सशक्त बनाए रखती है और वह बिना डरे बिना थके जूती रहती है। कवयित्री डॉ भारती वर्मा बौड़ाई ने अपनी कविता ‘‘मैं नव विहान हूं’’ में स्त्री के सशक्त पक्ष को सामने रखा है। पंक्तियां देखिए-
मेरी ओर /बढ़ते हुए ये
असंख्य राक्षसी हाथ
पर नहीं कोई /हाथ ऐसा
जो रक्षा के लिए /उठता दिखे
पर नहीं /किंचित भी
भयभीत मैं /मेरे दोनों हाथ
समर्थ है पूर्णतया /मेरे लिए,
अब कितने भी /उठें वहशी हाथ मेरी ओर
तोड़ डालूंगी उन्हें स्वयं
करूंगी अब न्याय स्वयं
क्योंकि मैं समर्थ और शक्तिवान हूं
मैं नव विहान हूं।

कवि अजय श्री ने अपनी कविता में साहित्य के उस पक्ष को सामने रखा है जिसमें एक विज्ञापन के समान स्त्री का वर्णन करके वाहवाही लूटने का प्रयास किया जाता है। कतिपय साहित्यकारों का प्रिय विषय गांव का वर्णन और स्त्री की देह मात्र इसलिए होता हैकि उसके द्वारा उन्हें पाठकवर्ग अथवा श्रोताओं की प्रशंसा मिल जाती है। ऐसे कवियों पर कटाक्ष करते हुए अजयश्री ने अपनी कविता ‘‘लेखन का प्रिय विषय’’ के अंतर्गत लिखा है-
गांव की माटी/और औरत की देह !
खूब दोहन करते हैं
जिनका नहीं है सरोकार ।
शहर के किचन में
पकती है गांव की रसोई
गर्भाधान से लेकर श्मशान तक
अनुसंधान करते हैं/परत दर परत।
शहर की रौनक/जब उतरती है
खेतों में बुवाई के लिए
जोड़ती है कछोटामार/खेतीहरनों से,
एक एक शब्द उगता है/किसी आलीशान बंगले में
करीने से सजाएं स्टडी टेबल पर
रखे लैपटॉप पर।

भारतीय संस्कृति यूं तो दुनिया में सदा गौरव का विषय रही है किंतु कुछ ऐसे हादसे हुए हैं जिन्होंने संस्कृति और समाज दोनों को लज्जित किया है। ऐसी ही एक घटना रही है निर्भया कांड। जब भी उस नृशंस घटना की स्मृति जागती है तो समाज में बेटियां असुरक्षित दिखाई देने लगती हैं और समाज को उसकी भीरुता के लिए ललकारने का मन करने लगता है। इसी भावभूमि पर है कवयित्री वीणा मावर की कविता ‘‘निर्भया’’। अंश देखिए-
कहां गए वो समाज सुधारक
गए कहां राममोहन और विद्यासागर जुल्मों के खिलाफ
भुजा जिनकी थी फड़की
करी खिलाफत फिर पूरे समाज की
हुई सुरक्षित जिससे फिर हर अबला
तुमसे तो अच्छा बैटिंग ही निकला
था फिरंगी पर अपना निकला
सती प्रथा को खत्म जो कर गया
था हुमायूं भी एक विदेशी
लगी देर पर पहुंचा वह भी
रखी लाज उसने भी राखी की
राह तक रहे तुम किस पल की?

नारी शक्ति की ही बात करती कविता है डॉ शम्मी श्रीवास्तव की, जिसका शीर्षक ही है ‘‘नारी शक्ति’’। अपनी इस कविता में कवयित्री ने स्त्री की उस क्षमता का स्मरण कराया है जब वह अन्याय के विरुद्ध हथियार उठा लेती है और प्रताड़ना का प्रतिरोध करती है। कवयित्री ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के योगदान का भी स्मरण कराया है -
जब-जब अधर्म पड़ा है अन्याय ने मचाई तबाही है
नारी शक्ति ने आगे बढ सदैव धूम मचाई है
उठो ! आज फिर जगाओ अपनी शक्ति का एहसास
भूल गई? तुमने ही बदला भारत का इतिहास
अगर न तुमने चिंगारी भड़काई होतीं
देश ने कैसे इस साल 73 वीं वर्षगांठ मनाई होती
मत भूलो नारी ने किया है बार-बार चमत्कार
शक्ति शौर्य की है यह देवी जाने कुल संसार।

कवि शिवमंगल सिंह ने अपनी कविता ‘‘पेड़ जैसी होती है स्त्रियां’’ में स्त्री जीवन के विविध पक्षों को अपनी कविता में निबद्ध किया है। जिस प्रकार एक पेड़ सभी तरह के झंझावात  सहन करके भी अपने फल, फूल, पत्तों की रक्षा करता है, उसी प्रकार एक स्त्री सारे दुख कष्ट सहती हुई अपने परिवार के प्रति समर्पित रहती है। स्त्री जीवन की पेड़ से तुलना करती हुए यह कविता उल्लेखनीय है-
पेड़ जो /तेज आंधियों में भी
झुक झुक कर /चुपचाप
उसके थपेड़ों को सह लेता है
ग्रीष्म के तपन में भी
धरती पर शीतल छांव देता है
बरसात में भीग कर/मुस्कुराहट बिखेर देता है
शरद ऋतु में रात रात भर ठिठुर कर
शांत रहता है /मौसम के तमाम
झंझावात को चुपचाप सहन कर लेता
स्त्रियों भी /पेड़ की तरह
अपने जीवन की तमाम वेदना को /सह लेती हैं
विपरीत परिस्थितियों में भी /मुस्कुराती हैं
खिलखिलाती हैं /धरती पर स्वर्ग बिखेर देती हैं ।

कवि वीरेंद्र प्रधान मैं समाज में नारी के महत्व को स्थापित करते हुए उसकी उपस्थिति की महत्ता को रेखांकित किया है। उनकी कविता ‘‘नारी’’ स्त्री शक्ति का आह्वान करने में सक्षम है। कविता देखिए-
पुत्री भगिनी जननी तो पत्नी किसी की
तू नारी तू ही तो है संचालक परिवार की
तेरे बिना घर सूना, जग सूना, सब सूना
फिर भी तुझे समस्या है अपने अधिकार की
इनके भी दिल है, दिमाग है, दो हाथ हैं
नहीं किसी मायने में नर से कम नारियां
नारी की कीमत को कमतर आंकता है नर
उस पे थोपता अपने ऐब और मक्कारियां
अपना अधिकार तुझे लेकर ही रहना है
‘‘मेरी आवाज सुनो’’ नर से यह कहना है
पथ से विचलित न हो जाये कभी तेरा नर
उसको मर्यादित कर सीता स्वयं बनना है

यूं तो इस संग्रह की प्रत्येक कविता में स्त्री स्वर मुखरित हुआ है किंतु एक और कविता है इस संग्रह में जिसका उल्लेख किया जाना जरूरी है। कविता का शीर्षक है ‘‘बस स्टॉप पर खड़ी अकेली लड़की’’। यह कविता कवि संजय सनातन की है जिसमें उन्होंने दैनिक जीवन में एक लड़की के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने वाली कुचेष्टाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है। कविता देखिए -
वह तन्हा लड़की और सिमटती जाती है
उसे पीठ पीछे भी /निगाहों की कटारें चुभने लगती हैं
तभी अचानक उसकी बस आ जाती है
और वह अपने गंतव्य की ओर चली जाती है
लेकिन हवा में टंगी रह जाती है
अश्लील हंसी की ध्वनियां /और वो असभ्य इशारे
बस स्टॉप पर /आने वाली किसी दूसरी लड़की के लिए।

अनुभूति गुप्ता ने स्त्री के पक्ष में लिखी गई कविताओं को एक संग्रह के रूप में प्रकाशित कर प्रशंसनीय कार्य किया है। यह पुस्तक पठनीय है तथा एक सार्थक स्त्री विमर्श रचती है।
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