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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, December 31, 2021

चर्चा प्लस | वर्ष 2021: चलता रहा जीवन, बिछड़ते रहे लोग | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस

वर्ष 2021: चलता रहा जीवन, बिछड़ते रहे लोग
  - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
जिस तरह भोपाल गैस त्रासदी की घटना को याद कर के हम उदास हो जाते हैं, उसी तरह सन् 2021 को याद करके आंखें छलका करेंगी। कोरोना की दूसरी लहर ने मौत का जो तांडव दिखाया उसे कोई भुला नहीं सकेगा। औसतन हर परिवार ने अपना कोई न कोई खोया। जाड़ा, गर्मी, बरसात झेलते किसानों के आंदोलन को इतिहास के पन्ने से हटाया नहीं जा सकेगा। साहित्य, शिक्षा, प्रकाशन, छोटी दूकानें आदि सभी को नुकसान उठाना पड़ा। हां, इस निर्दयी वर्ष के विदाकाल में लड़कियों की विवाह आयु का एक निर्णय सुखद कहा जा सकता है। 


वर्ष 2021... इतिहास के पन्नों पर एक त्रासद वर्ष के रूप में हमेशा दर्ज़ रहेगा। यह वर्ष हर स्तर पर कठोर रहा। इस वर्ष कोरोना की दूसरी लहर ने जो कहर बरपा उसने सैंकड़ों घर उजाड़ दिए। किसी ने मां को खोया तो किसी ने पिता को, तो किसी ने माता-पिता दोनों को एक-साथ खो दिया। कई बच्चे ऐसे थे जो कोरोना के कारण अनाथ हो गए। इस पीड़ा से मुझे भी गुज़रना पड़ा। मैंने भी कोरोना की दूसरी लहर में अपनी मां की मृत्यु के मात्र तेरह दिन बाद ही अपनी मां समान दीदी डाॅ. वर्षा सिंह को खो दिया। मैं अपनी इस पीड़ा को इस लिए साझा कर रही हूं क्योंकि उस दौर में यह सिर्फ़ मेरी पीड़ा नहीं थी, मेरे जैसे उन सभी लोगों की पीड़ा थी जिनके किसी अपने को कोरोना संक्रमण हो गया था। मेरी मां डाॅ. विद्यावती ‘मालविका’ जो स्वयं एक प्रतिष्ठित साहित्यकार थीं और 93 वर्ष की आयु में भी रुचि ले कर अख़बार पढ़ती थी। उस दिन भी अख़बार पढ़ रही थीं। अचानक उनके जबड़े में दर्द हुआ। अप्रैल के महीने में ठंड लगने का तो सवाल ही नहीं था। दर्द का कारण जब तक हम लोग समझ पाते तब तक वे बेहोश हो गईं। एक पडोसी की मदद से दीदी उन्हें तत्काल डाॅैक्टर के पास ले गईं। डाॅक्टर ने बताया कि मां को जबड़े में दर्द हार्ट अटैक के कारण हुआ था। उन्होंने दवाएं दी और दूसरी सुबह तक परिणाम देखने की सलाह दी। वह दिन और रात दोनों ठीक से गुज़र गए लेकिन दूसरी सुबह फिर अटैक आया। दीदी फिर उन्हें डाॅैक्टर के पास ले गईं। डाॅक्टर ने उन्हें एक निजी अस्पताल में तत्काल भर्ती कराने की सलाह दी। दीदी ने मुझसे पूछा। मैंने कहा कि और कोई विकल्प नहीं है हमारे पास। मां को हमने एक निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। दुर्भाग्यवश दो दिन बाद ही स्पष्ट हो गया कि मां चंद दिनों की मेहमान हैं। मैं खाना वगैरह की व्यवस्था देखने घर आ जाती थी और वर्षा दीदी लगभग बीस-बीस घंटे मां के पास अस्पताल में रहीं। तब हमें नहीं पता था कि हम काल के किस कुचक्र में फंस चुके हैं। अंततः अस्पताल के डाॅक्टर ने कह दिया कि अब मां को घर ले जाएं ताकि वे अपनी शेष सांसे अपने घर में ले सकें। मां उस अवस्था में भी चैतन्य थीं। उन्हें जब हमने बताया कि अब डिस्चार्ज हो कर घर चलना है तो वे बहुत खुश हुईं। हम सच उन्हें नहीं बता सकते थे लेकिन उन्हें खुश देख कर हम दोनों बहनों ने भी अपने मन को समझा लिया।
   
घर आने के दूसरे दिन 20 अप्रैल 2021 को सुबह 9 बजे मां ने इस संसार को छोड़ दिया। उस दिन हम दोनों बहनों को अनाथ हो जाने का अहसास हुआ। हम दोनों एक-दूसरे को ढाढस बंधाती रहीं। दीदी व्यथित थीं। थकी-थकी थीं। मैं तो दो साल मां से दूर कमल सिंह मामा के पास भी रही थी लेकिन दीदी कभी मां से अलग नहीं रही थीं। कमल सिंह मामा को हम लोग 2017 में ही खो चुके थे। अब मां भी चली गईं। लेकिन इससे भी बड़ा घात हम लोगों की प्रतीक्षा कर रहा था जिससे हम बेखबर थे। दीदी और मुझे कोरोना संक्रमण हो चुका था। लक्षण कोई नहीं थे। अतः हम दोनों को इस बात का अहसास ही नहीं था। 28 अप्रैल की रात ढाई बजे दीदी ने मुझे जगाया और बताया कि उन्हें दिल की धड़कन में कुछ गड़बड़ लग रही है। घबराहट हो रही है। मैं यह सोच कर घबरा गई कि कहीं दीदी को भी हार्ट अटैक तो नहीं आया है? उन्हें पानी पिलाया, पंखा तेज किया, फिर बाहर ले जा कर बिठाया। जैसे-तैसे सुबह चार बजने को आए। इस बीच मैंने एक निजी अस्पताल में एम्बुलेंस के लिए फोन किया। उन्होंने बताया कि एक भी एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं है। मैंने फिर उन्हीं पड़ोसी को फोन किया जिन्होंने मां के लिए मदद की थी। वे तत्काल आए और उन्होंने अपनी कार में दीदी को बिठाया। मैं दीदी को ले कर उस निजी अस्पताल पहुंची। वहां उन लोगों ने यह तो नहीं बताया कि दीदी को क्या हुआ है, मगर यह जरूर कहा कि इन्हें आॅक्सीजन की जरूरत है और हमारे पास आॅक्सीजन नहीं है। इन्हें दूसरे असपताल ले जाएं। हम दीदी को दूसरे अस्पताल ले कर गए। वहां भी आॅक्सीजन नहीं थी। लेकिन वहां के गार्ड ने बताया कि बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज में कल ही दो टैंकर आॅक्सीजन के आए हैं, आप वहीं जाइए। हम तत्काल बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज की ओर भागे। दीदी की हालत बिगड़ती जा रही थी। यद्यपि वे मेरी खातिर हिम्मत बनाए हुए थीं। वहां पहुंच कर जैसे-तैसे सुबह साढ़े सात बजे दीदी को एडमिट किया गया।

वह दौर ऐसा था कि कोई किसी की मदद करने को तैयार नहीं था। कोरोना के दूसरे दौर का सबसे घातक समय था। ऐसे विषम समय में मेरे उन पड़ोसी ने मानवता दिखाते हुए मेरी मदद की लेकिन इसके आगे की स्थिति मुझे अकेले ही झेलनी थी। परिचितों के कहने पर मैंने भी कोविड टेस्ट कराया और मेरा भी रिजल्ट पाॅजिटिव आया। दीदी वहां कोविड वार्ड में थीं जहां उनसे कोई नहीं मिल सकता था और इधर मुझे 14 दिन के लिए होम आईसोलेशन में हो जाना पड़ा। घर के भीतर दीदी के लिए छटपटाते हुए मैंने अपने हर परिचित से मदद की प्रार्थना की। मुझे इस बात की तसल्ली है कि मेरे हर परिचित ने हरसंभव मेरी और दीदी की मदद की। मगर मेरा दुर्भाग्य कि 02 मई शाम साढ़े पांच बजे मोबाईल से मेरी दीदी से बात हुई। हमेशा बुलंद और जोशीलेपन से भरी रहने वाली उनकी आवाज़ इतनी डूबी हुई थी कि मेरा कलेजा कांप गया। फिर भी मेरा मन किसी अनिष्ट की कल्पना के लिए तैयार नहीं था। मुझे पूरा विश्वास था कि दीदी ठीक हो कर घर लौट आएंगी। लेकिन 03 मई को रात 2 बजे दीदी कोरोना से हार गईं। मेरा होम आईसोलेशन का समय जारी था। दीदी चली गई थीं। कोई मुझसे मिलने भी नहीं आ सकता था। सूना घर काटने को दौड़ता था। इससे भी बढ़ कर यह पीड़ा मन को कचोटती थी कि मैं दीदी के अंतिम पलों में उनके साथ नहीं थी। मेरी जैसी पीड़ा से दुनिया भर में हज़ारों लोग गुज़रे होंगे। वे सब क्या वर्ष 2021 को कभी भूल सकेंगे? नहीं! मैं भी नहीं भूल सकूंगी। मेरे जैसे हज़ारों लोगों की ज़िदगी बदल दी इस 2021 ने। अपनों को छीन लिया, अपने-पराए का भेद समझा दिया और यह भी कि अगर ज़िन्दगी से पलायन नहीं करना है तो दिल पत्थर का करना होगा।

2021 में साहित्य और पत्रकारिता जगत के अनेक बड़े हस्ताक्षर काल का ग्रास बन गए जिनमें मेरी मंा डाॅ. विद्यावती ‘‘मालविका’’ और मेरी दीदी डाॅ. वर्षा सिंह तो थी हीं, इनके अलावा नरेन्द्र कोहली, प्रभु जोशी, जहीर कुरैशी, प्रेम प्रभाकर, कुंवर बेचैन, रोहित सरदाना, कांति कुमार जैन, रेवती रमण, शांति जैन, पद्मावती दुआ, विनोद दुआ, डाॅ. महेश तिवारी आदि कई अपने और कई परिचित। विनोद दुआ से तो एक बार भेंट हुई थी लेकिन उनकी पत्नी पद्मावती दुआ से मिल नहीं पाई। वैसे वे मेरी फेसबुक फ्रेंड थीं। वे एक ‘‘साड़ी आईकाॅन’’ थीं। साड़ी को उसके मैंचिंग की एक्सेसरीज़ के साथ जोड़ कर उन्होंने साड़ी को एक अलग ही ऊंचाई पर पहुंचा दिया था। अनेक महिलाएं उनकी ‘‘काॅपी’’ करती थीं।

कोरोना काल के दौरान न तो बुकस्टाॅल्स खुले, न पुस्तक मेले लगे और न लिटरेचर फेस्टिवल हुए। सिर्फ़ इंटरनेट की आभासीय दुनिया थी जिसके सहारे मन तो बहलाया जा सकता था लेकिन पेट नहीं भरा जा सकता था। आपदाएं हर किसी को अवसर नहीं देती हैं। अनेक छोटे व्यापारियों और दूकानदारों को घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। उस  परसड़क के किनारे ठेला लगाने वाले रेहड़ीवालों पर क्या गुज़री उसे बयान कर पाना कठिन है। ‘‘वर्क फ्राॅम होम’’ सिर्फ़ वे कर पा रहे थे जिनके ‘‘वर्क’’ अपने ‘होम’’ से हो सकते थे, सब इतने सौभाग्यशाली नहीं थे। किसान घर बैठ कर खेती नहीं कर सकता था। उस पर खाद और बीज उसे दूकानों से ही मिलने थे जो प्रायः बंद थीं। आंदोलनकारी किसानों के लिए तो वर्ष 2021 यूं भी भारी रहा। हर विपरीत मौसम का सामना किया, कटाक्ष सहे, निंदा सही, देशद्रोही होने के आरोप के कटघरे तक पहुंचा दिए गए, हिंसा-अहिंसा के बीच भी फंसे, फिर भी वे डटे रहे। राहत की बात यह है कि इस निर्दयी साल की विदा का समय आते-आते देर से सही मगर सरकार और किसानों के बीच एक संवाद-सेतु बनता दिखा और आंदोलन पीड़ा तो थमी।

हां, 2021 के विदा के समय एक अच्छी बात यह हुई कि केन्द्र सरकार ने लड़कियों के विवाह की न्यूनतम कानूनी आयु को 18 साल से बढ़ाकर लड़कों के बराबर 21 साल करने का फैसला किया है। केंद्रीय कैबिनेट ने लड़कों और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र एक समान, यानी 21 साल करने के विधेयक को मंजूरी दे दी है। अब इस विधेयक को कानून का रूप देने के लिए वर्तमान कानून में संशोधन किया जाएगा। यह नया कानून लागू हुआ तो सभी धर्मों और वर्गों में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र बदल जाएगी। वर्तमान कानूनी प्रावधान के तहत लड़कों के विवाह लिए न्यूनतम आयु 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल निर्धारित है।
मगर यह साल जाते-जाते भी एक दहशत दे कर जा रहा है कोरोना के नए वेरिएंट के रूप में। कोरोना के ओमिक्रोन वेरिएंट को लेकर सबसे चिंता वाली बात ये है कि इसके लक्षण सामने नहीं आ रहे। देश में ओमिक्रोन के जिन 183 केस पर शोध किया गया, उनमें से 70 फीसदी संक्रमितों में इसके कोई लक्षण नहीं सामने आए थे। दूसरी लहर में मेरी दीदी और मेरे सहित अनेक संक्रमितों के साथ यही हुआ था। ‘‘नाॅन सिम्टोमेटिक’’ होना ही इसका सबसे घातक पक्ष है। बस, यही दुआ है कि आने वाले वर्ष 2022 में किसी को कोई दुख न सहना पड़े। नया वर्ष सभी के लिए सुखद रहे और स्वास्थ्यकारक रहे।
विदा निर्दयी 2021!!!    
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Thursday, December 30, 2021

सुखद पल | कृतज्ञता पत्र की प्राप्ति | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

आज अटल फाउंडेशन सागर इकाई की अध्यक्ष श्रीमती पुष्पा रमाकांत शास्त्री ने मेरे घर पधारीं। विगत 25 दिसंबर को द ब्लश एंड पेलेट इवेंट कं. एवं  अटल फाउंडेशन द्वारा आयोजित स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्म जयंती पर समारोह में मेरे मुख्य अतिथि होने का "कृतज्ञता पत्र" मुझे प्रदान किया। मैं आभारी हूं पुष्पा शास्त्री जी की 🙏 
Today the President of Atal Foundation Sagar Unit, Smt. Pushpa Ramakant Shastri visited my house.  Last December 25, The Blush & Palette Event Co.  and organized by Atal Foundation. She gave me a "letter of gratitude" for being my chief guest in the celebrations on the birth anniversary of Atal Bihari Vajpayee ji.  
I am thankful to Pushpa Shastri ji 🌷
30.12.2021

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#atalfoundation 
#अटलबिहारीवाजपेयी #अटलबिहारी_वाजपेयी_फाउंडेशन
#कृतज्ञता_पत्र 

Tuesday, December 28, 2021

स्व रमेश दत्त दुबे स्मृति साहित्य सम्मान समारोह 2021 | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कवि साहित्यकार स्वर्गीय रमेश दत्त दुबे सागर नगर के साहित्यिक गौरव रहे हैं। आज भी उनकी रचनाएं युवा साहित्यकारों का मार्गदर्शन करती हैं| 26.12.2021 को श्यामलम संस्था द्वारा आदर्श संगीत महाविद्यालय में एक भव्य आयोजन किया गया जिसमें भोपाल के कवि श्री महेंद्र सिंह को "स्व रमेश दत्त दुबे स्मृति साहित्य सम्मान 2021" से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता की समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर जी ने तथा मुख्य अतिथि थे वरिष्ठ अधिवक्ता जवाहर अग्निहोत्री जी। संचालन किया भाई आशीष ज्योतिषी ने। श्यामलम संस्था अध्यक्ष श्री उमाकांत मिश्र के कुशल निर्देशन में संस्था के सभी पदाधिकारियों ने अपना विशेष योगदान दिया। इस समारोह में पूर्व सांसद दादा लक्ष्मी नारायण यादव, प्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ सुरेश आचार्य, मैं डॉ शरद सिंह, रविंद्र दुबे कक्का, वीरेंद्र प्रधान, डॉ कविता शुक्ला, डॉ मुन्ना शुक्ला आदि नगर के साहित्यकार, कलाविद एवं रंगकर्मी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

पुस्तक समीक्षा | बाल कविताओं का बालोपयोगी संग्रह | समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह

प्रस्तुत है आज 28.12. 2021 को आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कवि वृंदावन राय 'सरल' के काव्य संग्रह "मैं भी कभी बच्चा था" की समीक्षा... 
आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
बाल कविताओं का बालोपयोगी संग्रह
 समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह   - मैं भी कभी बच्चा था
कवि         - वृंदावन राय ‘सरल’
प्रकाशक      - मध्यप्रदेश लेखक संघ, इकाई सागर म.प्र.
मूल्य         - 60/-
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बाल साहित्य का अपना एक अलग महत्व है। बड़ों का साहित्य शिक्षाप्रद होने का स्पष्ट आग्रह नहीं रखता है किन्तु बाल साहित्य का मूल आधार ही शिक्षाप्रद होना है। ऐसा साहित्य जो रोचकता के साथ खेल-खेल में बच्चों को जीवन से जुड़ी शिक्षा दे डाले, वही सार्थक बालसाहित्य है। बाल साहित्य की भाषा ऐसी हो जो बच्चों को सुगमता से समझ में आ जाए। दृश्यात्मकता इतनी हो कि बच्चे कल्पनालोक में विचरण करने लगें। जैसे वह कविता है जिसे हम सभी ने अपने बचपन में सुनी है, पढ़ी है और अनेक बार सुनाई है-‘‘मछली जल की रानी है/जीवन उसका पानी है/हाथ लगाओ डर जाएगी/बाहर निकालो मर जाएगी।’’
यह छोटी-सी कविता मछली के अस्तित्व को बालमन में इस तरह बिठा देती है कि व्यक्ति जीवनपर्यंत उसे भूल नहीं पाता है। कुछ समय पहले कोल्डड्रिंक का एक जिंगल चला था जिसमें ‘‘ठंडा’’ शब्द आते ही पूरा जिंगल मस्तिष्क में ताज़ा हो उठता था। कहीं भी ‘‘ठंडा’’ शब्द चर्चा में आता तो आगे के शब्द स्वतः ज़बान पर आ जाते। यह जिंगल था- ‘‘ठंडा यानी कोेकाकोला’’। इस कामर्शियल जिंगल की तरह मछली शब्द बोलते ही ‘‘जल की रानी... जीवन जिसका पानी...’’ शब्द समूह मस्तिष्क में जाग उठते हैं। यही विशेषता होती है एक अच्छे, सटीक बाल साहित्य की। वह किसी कामर्शियल जिंगल की तरह उसे बालमन पर दस्तक देने और पैंठ जाने की क्षमता रखता हो। एक और कविता थी जो बचपन में कोर्स की किताब ‘‘बालभारती’’ में पढ़ी थी, जिसका शीर्षक था ‘‘नागपंचमी’’- 
इधर उधर जहां कहीं, दिखी जगह चले वहीं।
कमीज को उतार कर, पचास दंड मारकर।
अजी अजब ही शान है, अरे ये पहलवान है।
- इस कविता को पढ़ने के बाद पहलवानों की छाप दिमाग में ऐसी बैठी कि आज भी नागपंचमी आने पर अथवा पहलवानों की चर्चा होने पर इस कविता की प्रथम दो पंक्तियां स्वतः कौंध जाती हैं।
हिन्दी साहित्य में बाल कविताओं की दीर्घ परंपरा नहीं मिलती है। आधुनिककाल में अवश्य भरपूर बाल कविताएं लिखी गईं। नंदन, पराग, चंपक आदि बाल पत्रिकाओं के प्रकाशन ने भी इसे बढ़ावा दिया। साथ ही प्रत्येक पारिवारिक पत्रिका तथा समाचारपत्र में बच्चों के लिए पन्ना तथा कोना निर्धारित हो गया जिसने बाल साहित्य को बच्चों तक पहुंचाने की दिशा में सरल मार्ग बना दिया। बालमुकुन्द गुप्त, मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, सुभद्राकुमारी चैहान आदि सभी ने बड़ों के लिए साहित्य सृजन करने के साथ ही बच्चों के लिए भी कलम चलाई। ये बाल कविताएं बच्चों के भीतर कोमल भावनाओं का विकास करने में सक्षम थीं। इनका उद्देश्य देश के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक गौरव से परिचित कराने के साथ ही देश प्रेम की भावना जगाने तथा नैतिक शिक्षा देने का था। फिर भी ये कविताएं बोझिल नहीं थी वरन रोचक थीं। कवि प्रदीप का वह गीत जो फिल्म के लिए रिकाॅर्ड होने के बाद बच्चे-बच्चे की ज़बान पर चढ़ गया-‘‘आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दुस्तान की/ इस मिट्टी से तिलक करो, ये मिट्टी है बलिदान की।’’ यह कविता बच्चों को संबोधित कर के लिखी गई लेकिन यह थी बच्चों के लिए ही। कहने का आशय यह है कि इससे कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता है कि कविता बच्चों के लिए लिखी गई अथवा बच्चों को आधार बना कर लिखी गई। ‘‘मैंया मोरी मैं नहीं माखन खायो’ कवि सूरदास ने बच्चों के लिए नहीं लिखा किन्तु बच्चों में इसकी सदा भरपूर लोकप्रियता रही है। क्योंकि यह कविता बालमन का एक ऐसा दर्पण प्रस्तुत करता है, जिसमें हर बच्चा अपना प्रतिबिम्ब देख सकता है। पुस्तक समीक्षा के अंतर्गत इस लम्बी भूमिका का औचित्य यह है कि इस बार जो पुस्तक समीक्ष्य है वह बालकविताओं का संग्रह है। इस पुस्तक का नाम है-‘‘मैं भी कभी बच्चा था’’। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि इस संग्रह की कविताएं अपने बालपन के अनुभवों एवं संस्मरण के बहाने बच्चों से सीधा काव्यात्मक संवाद करने का प्रयास है। यह संग्रह है कवि वृंदावन राय ‘‘सरल’’ का जिन्होंने आरंभ में ही अपने विचार रखते हुए बताया है कि उन्होंने कवि दीनदयाल बालार्क जी से प्रेरणा ले कर बाल कविताएं लिखना शुरू कीं। कवि दीनदयाल बालार्क सागर नगर के वरिष्ठ कवियों में रहे हैं तथा उनके बालगीत बहुत चर्चित रहे हैं। 
‘‘मैं भी कभी बच्चा था’’ काव्य संग्रह में दो परिचयात्मक भूमिकाएं हैं। प्रथम भूमिका प्रो. सुरेश आचार्य की है जिन्होंने वृंदावन राय ‘‘सरल’’ की सृजनात्मकता पर टिप्पणी करने हुए लिखा है कि ‘‘यदि बालगीतकार के रूप में इनकी अद्भुत प्रतिष्ठा है और देशव्यापी ख्याति है तो इसका मूल कारण उनकी रचनात्मकता है जो बाल जिज्ञासा को समझने के साथ-साथ उसे नए रास्ते सुझाने, नीति युक्त जीवन हेतु तैयार करने और पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रेरित करते हुए एक अच्छे मनुष्य के रूप में एक श्रेष्ठ जीवन बिताने की शिक्षा देती है।’’
  दूसरी भूमिका कवि स्व. निर्मल चंद निर्मल की हैं। वृंदावन राय ‘‘सरल’’ की कविताओं की विशेषता को रेखांकित करते हुए उन्होंने लिखा है कि -‘‘ ‘‘आज का बालक प्रगतिशील हैं जो आठ पंक्तियों को कंठस्थ कर सकते हैं। मैं सरल जी के इन बाल गीतों की सराहना करता हूं। बाल रुचि को यह रचनाएं भाएंगी और विश्वास करता हूं कि इस ओर अन्य कवि भी अपने कदम बढ़ाएंगे। बाल बुद्धि के लिए बाल गीतों की आवश्यकता है।’’
वृंदावन राय ‘‘सरल’’ की कविताओं में दृश्यात्मकता भी है, ज्ञान भी है और रोचकता भी है। उनकी यह कविता देखिए-
बारहसिंगा, तेंदुआ, 
है जंगल की जान।
दोनों की अद्भुत गति
जैसे हवा समान।
ख़तरनाक़ है भेड़िया
उस पर है चालाक।
खा जाए ख़रगोश को 
तोड़े उसकी नाक।

जहां कवि ‘‘सरल’’ अपनी कविता के माध्यम से वन्य पशुओं से परिचित कराते हैं, वहीं वृक्षों के महत्व को भी बालमन में स्थापित करने का सुंदर प्रयास करते हैं। यह बालगीत देखिए - 
वृक्ष हमारे देवता
नदियां देवी रूप
आओ इनको रोक लें
हम होने से कुरुप
वृक्षों को हम मान लें 
माता-पिता समान
इनके ही आशीष से 
मिलता जीवनदान।

वृक्ष पर्यावरण चक्र की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। उनसे हमें आॅक्सीजन मिलती है तथा छाया, फल, फूल, रुई, लकड़ी, औषधि आदि अनेक चीज मिलती हैं। ऐसे महत्वपूर्ण तत्व के प्रति बच्चों को जागरुक करने की दिशा में यह कविता विशेष महत्व रखती है। इसी तारतम्य में एक और छोटी-सी कविता है-
जंगल जीवन का आधार
करना होगा इससे प्यार
इसकी रक्षा बहुत ज़रूरी
खुशियां इससे मिलें अपार
जंगल जीवन का आधार।

वन और वन्य पशु-पक्षियों के प्रति जागरूकता जगाता एक छोटा-सा बालगीत है जिसमें वन्य पक्षियों तथा उनके साथ ग्रामीणजन का व्यवहार का वर्णन किया गया है। चूंकि आज मनुष्यों की रिहायशी बस्तियां फैल रही हैं और जंगल में मनुष्यों कर घुसपैंठ बढ़ गई है अतः वन्यजीवन और मनुष्यों के बीच मुटभेड़ होना तय है। इस प्रकार के टकराव में मनुष्य को ही धैर्य और मनुष्यता का परिचय देना होगा। यह बात इस गीत में स्पष्टरूप से देखा जा सकता है -
जंगल में देखे बहुत
तोता, मैंना  मोर
कानों को भाता बहुत
जिनका अद्भुत शोर
इनका भी अब गांव में
करते लोग शिकार
इनको मिलना चाहिए
जीने का अधिकार

कवि ‘‘सरल’’ ने भालू पर एक बहुत सुंदर कविता लिखी है जो इस संग्रह में मौज़ूद है। इस कविता में उन्होंने भालू की दिनचर्या और बंदर से उसकी दोस्ती का वर्णन किया है। इस कविता का महत्व यह है कि यदि बच्चे अपनी बालावस्था से ही वन्यप्राणियों स्नेह और अपनत्व रखेंगे तो बड़े होने पर वन्य पशुओं के संरक्षण पर पूरा ध्यान दे सकेंगे। कविता इस प्रकार है-
शहद ढूंढता वन में भालू
मगर नाम है उसका कालू
जंगल में बंदर भी लालू
दोनों अक्सर खाएं आलू
शहद ढूंढता वन में भालू
मगर नाम है उसका कालू

इस संग्रह में आपसी भाईचारे और कौमी एकता पर भी कविता है जिसमें बच्चों को सभी प्रकार के भेद-भाव से ऊपर उठ कर, मिलजुल कर रहने का संदेश दिया गया है-
प्रेम भाव से मिल कर रहना
लेकिन कोई जुल्म न सहना
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई
सबको अपना भाई कहना
सत्य और ईमान की दौलत
यही हमारा असली गहना
अपने घर को महल बनाने
निर्धन के घर कभी न ढहना
भारत के कल्याण की ख़ातिर
हिन्दू मुस्लिम मिल कर रहना

कवि वृंदावन राय ‘‘सरल’’ की बाल कविताओं का यह संग्रह इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि आज बच्चों के लिए साहित्य कम रचा जा रहा है। गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर का यह कथन आज एक कसौटी की तरह है कि -‘‘बच्चों के कोमल, निर्मल और साफ मस्तिष्क को वैसे ही सहज तथा स्वाभाविक बाल साहित्य की आवश्यकता होती है।’’ कवि टैगोर द्वारा दी गई इस कसौटी पर वृंदावन राय ‘‘सरल’’ बालकविताएं एवं गीत खरे उतरते हैं।
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Monday, December 27, 2021

पुस्तकों का निरंतर प्रकाशित होते रहना सुखद है - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

 
 "पुस्तकों का निरंतर प्रकाशित होते रहना सुखद है।"  विशिष्ट अतिथि के रूप में यह मेरे उद्गार थे। - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कल 26.12.2021 को सुबह विशिष्ट अतिथि के रूप में मुझे दो पुस्तकें लोकार्पित करने का सौभाग्य मिला। एक पुस्तक कहानी संग्रह "मंथन" लेखिका श्रीमती आराधना खरे और दूसरा काव्य संग्रह "बतरस" कवि कैलाश तिवारी "विकल"। इस समारोह की अध्यक्षता की डॉ हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के डॉ शशि कुमार सिंह ने। मुख्य अतिथि थे रीवा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ उदय जैन,  चर्चित शायर मायूस सागरी  तथा भोपाल से आए साहित्यकार एवं पूर्व प्रशासक महेंद्र सिंह जी।

प्रगतिशील लेखक संघ की सागर इकाई द्वारा आयोजित इस लोकार्पण समारोह में सागर नगर के अधिकांश साहित्यकार उपस्थित थे, जिसमें बुनियादी योगदान था इकाई के अध्यक्ष डॉ टीकाराम त्रिपाठी "रुद्र", डॉ एम डी त्रिपाठी, श्री मलैया जी तथा डॉ सतीश पांडेय जी का।

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भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी प्रतिबद्ध, संयमशील नेता और प्रखर वक्ता थे - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

"भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी प्रतिबद्ध, संयमशील नेता और प्रखर वक्ता थे। उन्होंने हिन्दी के पक्ष में सदा आवाज़ उठाई। वे स्वयं एक उच्चकोटि के कवि थे। युवाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। अटल जी की जन्मजयन्ती मना कर अटल फाउंडेशन ने जो आदर्श प्रस्तुत किया है वह अनुकरणीय है।" अपने उद्बोधन में मैंने मुख्य अतिथि के रूप में कहा। अवसर था अखिल भारतीय संस्था अटल फाउंडेशन की सागर शाखा, पीआरएस वेलफेयर सोसाइटी और नवगठित संस्था ब्लश एंड पैलेट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अटल बिहारी वाजपेई जी का जन्म जयंती समारोह। कार्यक्रम की अध्यक्षता की नगर के सुविख्यात व्यंग्यकार प्रोफेसर सुरेश आचार्य जी ने। विशिष्ट अतिथि थे डॉ अशोक कुमार तिवारी जी एवं अटल फाउंडेशन की सागर इकाई की अध्यक्ष श्रीमती पुष्पा शास्त्री जी। 
        इस आयोजन की मुख्य अतिथि यानी मुझे तथा अध्यक्ष प्रो सुरेश आचार्य को तिरंगा झंडा प्रदान कर सम्मानित किया गया। जो मेरे लिए एक अमूल्य एवं अद्वितीय सम्मान है जिसके लिए मैं अटल फाउंडेशन की हृदय से कृतज्ञ हूं। - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
         25.12.2021 को आदर्श संगीत महाविद्यालय के सभागार में आयोजित यह समारोह दो चरणों में था प्रथम चरण में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपई पर उद्बोधन प्रस्तुत किए गए तथा तृतीय चरण में युवा कवियों द्वारा काव्य पाठ किया गया तथा इस अवसर पर कुछ विशिष्ट कवियों का सम्मान भी किया गया। इस संपूर्ण समारोह की संकल्पना की थी नगर के अग्रणी साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था श्यामलम के अध्यक्ष श्री उमाकांत मिश्र जी ने। श्यामलम परिवार के पदाधिकारी श्री रमाकांत शास्त्री, कपिल बैसाखिया, संतोष पाठक, कुंदन पाराशर आदि उल्लेखनीय योगदान रहा। कार्यक्रम का संचालन किया था पीआरएस वेलफेयर सोसाइटी के प्रदीप पांडेय जी ने।

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Saturday, December 25, 2021

स्व. पंडित शंकर दत्त चतुर्वेदी के नवम स्मरण पर्व

 पं मोतीलाल नेहरु म्युनिसिपल स्कूल के प्राचार्य रहे सागर नगर के शिक्षा मनीषी साहित्य प्रेमी स्व. पंडित शंकर दत्त चतुर्वेदी के नवम स्मरण पर्व पर व्याख्यानमाला और उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन  कल 24.12.2021 को वरदान होटल के सभाकक्ष में  श्यामलम संस्था एवं स्वर्गीय चतुर्वेदी तिवारी परिवार द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता और मुख्य अतिथि म.प्र. शासन के पूर्व प्रमुख सचिव सेवानिवृत्त आईएएस मनोज श्रीवास्तव जी ने व्याख्यान माला के विषय "महाभारत में लोक" पर अपना सारगर्भित व्याख्यान दिया। इस आयोजन में हिंदी के विद्वान डॉ सुरेश आचार्य तथा गांधीवादी विचारक सुखदेव प्रसाद तिवारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। यह आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है जिसमें आदरणीय चतुर्वेदी जी का स्मरण करते हुए नगर के समस्त प्रतिष्ठित जन उपस्थित होते हैं। श्यामलम संस्था के साथ ही इस आयोजन की सतत नियमितता के लिए आदरणीय चतुर्वेदी की पुत्री डॉ अंजना चतुर्वेदी तिवारी तथा एडवोकेट अमित तिवारी विशेष रूप से प्रशंसा के पात्र हैं।

Thursday, December 23, 2021

साहस, सतर्कता और स्वाभिमान हर छात्रा के अंदर होना चाहिए। - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

"साहस, सतर्कता और स्वाभिमान हर छात्रा के अंदर होना चाहिए। युवाओं के लिए इस समय सबसे बड़ा खतरा साइबर क्राइम के रूप में है । जब छात्राएं सोशल मीडिया पर रहती हैं तो उन्हें फ्रेंडशिप करते समय पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए। अपनी कोई भी ऐसी तस्वीर अपने मित्र को शेयर न करें जो बाद में उनके लिए मुश्किल खड़ी कर दे। फिर भी यदि उनसे ऐसी कोई भूल हो जाती है तो उन्हें संकट आने पर अपने माता पिता अथवा अभिभावक से तुरंत इस बात को साझा करना चाहिए। भले ही वे डाटेंगे लेकिन वही बचाएंगे भी। सरकार की ओर से भी साइबर अपराधियों को पकड़ कर उन्हें सजा दी जाती है अतः लड़कियों को बिना डरे, बिना झिझके अपनी मुश्किलें अपने परिवार जन से साझा करनी चाहिए।" स्वशासी उत्कृष्ट स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय, सागर में तीन दिवसीय युवा महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में अपना उद्बोधन देते हुए मैंने छात्राओं से कहा। उन्हें अपना एक गीत भी सुनाया।🌷 ....लेकिन ज़िंदगी में व्यस्तताएं ऐसी हैं कि तीन दिवसीय समारोह के समापन के बाद उद्घाटन के पल शेयर कर पा रही हूं । 😥🙃😇
🙏आभारी हूं युवा महोत्सव की समन्वयक डॉ.अंजना चतुर्वेदी तिवारी जी की जिन्होंने छात्राओं से संवाद का अवसर दिया🌷- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ ए के पटेरिया जी ने, वर्तमान प्राचार्य डॉ इला तिवारी, प्रो. सुनील श्रीवास्तव सहित महाविद्यालय की प्रोफेसर्स एवं छात्राओं की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। संचालन किया डॉ निशा इन्दुगुरू ने। 
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