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My Editorials - Dr Sharad Singh

Sunday, January 9, 2022

कुछ त्रुटियां अच्छी होती हैं | व्यंग्य | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नवभारत

प्रस्तुत है आज "नवभारत" के रविवारीय परिशिष्ट "सृजन" में प्रकाशित मेरा नन्हा-सा व्यंग्य लेख "कुछ त्रुटियां अच्छी होती हैं" ...😀😊😛
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व्यंग्य
कुछ त्रुटियां अच्छी होती हैं
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

आज सुबह जब मैंने व्हाट्एप्प ग्रुप पर दृष्टिपात किया तो मन प्रसन्न हो गया कि जिस ग्रुप में मैं अपनी कोई प्रकाशित रचना शेयर नहीं करती हूं और न ही कोई ग्रुप का सदस्य मेरी रचना को ग्रुप में शेयर करने की कृपा करता है, उस ग्रुप में मेरा एक लेख चमक-दमक रहा था। मैंने गौर से देखा कि मेरे उस लेख पर इतनी कृपा किस कृपानिधान ने की? तो देख कर आश्चर्य हुआ कि जिसने कृपा की थी उन्होंने भूले-भटके ही मेरे लेखन की तारीफ़ की है। फिर आज यह कृपा क्यों? मुझे खटका हुआ कि कोई तो गड़बड़ है। उस समय तक मैंने अपना वह लेख नहीं देखा था जो उसी दिन प्रकाशित हुआ था। अब ये सोशल मीडिया भी ऐसी चिपकू चीज है कि जो एक बार आपसे चिपकी तो अलग होने का नाम नहीं लेती है। यह प्रभाती बन कर जगाती है और लोरी बन कर सुलाती है। अतः जब आप सुबह सो कर उठते हैं तो सबसे पहले सोशल मीडिया में ही ताक-झांक करते हैं। मैंने भी वही किया यानी उस समय तक वह अख़बार उठा कर नहीं देखा जिसमें मेरा लेख छपा था मगर व्हाट्सएप्प ग्रुप में झांक लिया था। 
व्हाटसएप्प ग्रुप में अपना लेख देखने के बाद मैंने तत्काल अख़बार उठा कर देखा। अपने लेख की छानबीन की तो पाया कि मेरे लेख के शीर्षक की जगह त्रुटिवश दूसरा शीर्षक छप गया है। इस त्रुटि को देखते ही मेरी समझ की घंटी बज गई कि यह कारण है मेरे लेख को ग्रुप में शेयर करने का। मेरी आंखों के सामने वह दृश्य खिंच गया कि जब उन सज्जन ने मेरा लेख देखा होगा और उसका शीर्षक दूसरे विषय का पाया होगा तो वे भारी प्रसन्न हुए होंगे कि ‘‘चलो, आज एक गलती पकड़ी गई।’’ फिर उन्होंने उसे फटाफट शेयर कर दिया होगा। ग्रुप के साथियों में से दो-चार लोगों ने बहती गंगा में डुबकी लगाने की मंशा से मुझे फोन कर के झूठी सहानुभूति भी जता दी कि ‘‘अरे, आपके लेख का तो शीर्षक ही गलत छप गया है। यह त्र्रटि आपसे हुई या अख़बारवालों से हुई? यह तो ब्लंडर मिस्टेक है।’’ आदि-आदि सुवचन मुझे फोन पर कहे गए। 
यह त्रुटि मुझसे नहीं हुई थी और यह तय था कि वह समाचारपत्र भी दूसरे दिन ‘‘भूल सुधार’’ छाप ही देगा। काम के दबाव के चलते इस प्रकार की मानवीय त्रुटियां होती ही रहती हैं। लेकिन इस घटना के बाद मेरे दिमाग़ की बत्ती जल गई। मुझे इस बात का गहन ज्ञान हो गया कि यदि सब ठीक-ठाक रहता है तो कोई बंदा भूल से भी नहीं कहता है कि उसने मेरा हर लेख पढ़ा है लेकिन त्रुटि होते ही जिस जागरूकता से जता दिया गया कि मेरे हर लेख पर लोगों की नज़र रहती है, उससे मेरे कलेजे को बहुत ठंडक पहुंची। अतः अब मैंने यह तय किया है कि अपने लेखों की ‘‘रेटिंग’’ जानने के लिए सात-आठ लेख के बाद एकाध लेख में अब मैं जानबूझ कर त्रुटि कर दिया करूंगी। इससे मुझे उन लोगों के बारे में पता चल जाया करेगा जो ऊपर से बगुला भगत बने खड़े रहते हैं और त्रुटि होते ही चोंच मार कर जता देते हैं कि उनकी दृष्टि चौकन्नी है और वे गलती ढूंढने के लिए ही सही, पर लेख पढ़ने में रुचि रखते हैं। हर क्षेत्र में यह फार्मूला अपनाया जा सकता है। अपनी ‘रेटिंग’ जाननी है तो त्रुटि करिए और जान जाइए। तो मानना पड़ेगा न कि कुछ त्रुटियां अच्छी होती हैं!!! 
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(नवभारत, 09.01.2022)
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