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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, March 30, 2022

चर्चा प्लस | जन्मतिथि विशेष : विश्वविख्यात चित्रकार वैन गॉग जिन्हें जीते जी पागल समझा गया | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

चर्चा प्लस |  जन्मतिथि विशेष :
विश्वविख्यात चित्रकार वैन गॉग जिन्हें जीते जी पागल समझा गया | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
       कई बार चित्रकार के जीवन काल में उसके कला की अवहेलना कर दी जाती है किंतु उसके मरणोपरांत उसकी वही चित्रकारी उसे अमरता प्रदान कर देती है। यह एक विचित्र स्थिति है। यह स्थिति तब बनती है जब कला प्रेमियों द्वारा कला की अपेक्षा कलाकार के निजी जीवन या व्यक्तित्व अथवा उसकी अनचाही कमजोरियों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ विश्व विख्यात चित्रकार वैन गॉग के साथ। आज उनकी जन्मतिथि पर चर्चा उनके बारे में।   
चित्रकार होना आसान नहीं है इसमें कल्पना कला क्षमता समय और धन - चारों खर्च होते हैं और तब कहीं एक कलाकृति कैनवास पर उभरती है उसे देखने वाले यदि समझें और सराहें तो वह सफल कृति मानी जाती है किंतु यदि उससे अनदेखा कर दिया जाए अथवा नकार दिया जाए तो चित्रकार के लिए यह सर्वाधिक कष्टप्रद और अवसाद भरा होता है। प्रत्येक चित्रकार अपनी कृति को दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते समय यही आशा करता है कि जो उसने अपने चित्र में प्रस्तुत किया है, उसे दर्शक समझें और आत्मसात करें। जो पेंटिंग रूपी कलाकृति दर्शकों को पसंद आती है, रुचिकर लगती है, उसकी कीमत करोड़ों रुपयों तक हो सकती है अन्यथा उसका कोई मूल्य नहीं रह जाता है। यह अर्थ तंत्र का प्रभाव है चित्रकला की सफलता या असफलता पर। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है किंतु यही कठोर सत्य है। कई बार चित्रकार के जीवन काल में उसके कला की अवहेलना कर दी जाती है किंतु उसके मरणोपरांत उसकी वही चित्रकारी उसे अमरता प्रदान कर देती है। यह एक विचित्र स्थिति है। यह स्थिति तब बनती है जब कला प्रेमियों द्वारा कला की अपेक्षा कलाकार के निजी जीवन या व्यक्तित्व अथवा उसकी अनचाही कमजोरियों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ विश्व विख्यात चित्रकार वैन गॉग के साथ।
वैन गॉग का जन्म 30 मार्च 1853 को जुंडर्ट, नीदरलैंड्स में हुआ था।  डच मूल के उच्च-मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे विन्सेंट विलेम वैन गॉग का बचपन एक शांत, गंभीर बच्चे के रूप में व्यतीत हुआ। युवा होने पर वे आर्ट डीलर का काम करने लगे। इस दौरान उन्हें  लंदन में जाकर रहना पड़ा। लंदन में वैन गॉग को अपनी मकान मालकिन की बेटी इयूजेनी लोयर से प्रेम हो गया। इस एकतरफा प्रेम का कब अंत हो गया  इयूजेनी द्वारा उनके प्यार को ठुकरा दिया गया। इससे वे हताश हो गए। उन्हें जीवन निस्सार लगने लगा। उनके मानसिक स्वास्थ्य में परिवर्तन आने लगा। वे अवसादग्रस्त रहने लगे। जिस पर लोगों ने विशेष ध्यान नहीं दिया और स्वयं उन्होंने भी अपनी चिंता नहीं की। कुछ समय बाद वे एक चर्च से जुड़ गए और उन्हें एक मिशनरी के रूप में पश्चिम बेल्जियम जाना पड़ा। बेल्जियम से लौटने के बाद उनका स्वास्थ्य फिर खराब हो गया। वे गहन अवसाद में चले गए। उनके छोटे भाई थियोडोरस वैन गॉग भी आर्ट डीलर थे। उन्होंने वैन गॉग की बहुत मदद की। थोड़ा स्वास्थ्य सम्हलने के बाद वैन गॉग चित्रकारी आरंभ की। यह लगभग वर्ष 1881 का समय था। थियोडोरस ने डीलरशिप के काम का जिम्मा अपने ऊपर लिया तथा अपने भाई वैन गॉग को पूरी तरह चित्रकला  में समर्पित हो जाने का अवसर दिया। थियोडोर को लगा कि इससे वैन गॉग अवसाद से बाहर आ सकेंगे।
सन् 1885 से 1890 तक वैन गॉग ने जो पेंटिंग्स बनाईं वे आज विश्व की महान पेंटिंग्स में गिनी जाती हैं। सन् 1885 में ‘द पोटैटो ईटर्स’ पेंटिंग बनाई। इसमें उन्होंने ग्रामीण जीवन की कठिनाइयों को दिखाने के लिए मोटे खुरदरे हाथों वाले किसान परिवार को चित्रित किया जो मुख्य रूप से आलू खाकर रहते थे अर्थात जिन्हें अच्छा भोजन नहीं मिल पाता था। अपने चित्र के द्वारा वह तत्कालीन चित्रकला में गरीब तबके को प्रमुखता देना चाहते थे। इस चित्र में  गरीबों के जीवन की कठिनाइयों को दिखाने के लिए गहरे रंगों का प्रयोग किया। एक ऐसा अंधेरी घुटन भरा वातावरण जिसे जीना गरीबों की विवशता थी।
सन् 1887 में ‘सनफ्लॉवर्स’ पेंटिंग बनाई। यह एक चित्ताकर्षक पेंटिंग है।  वान गॉग ने पीले रंग के केवल तीन शेड्स  का उपयोग करके रंगों का एक शानदार सामंजस्य प्रस्तुत किया।  इसका सरल रूपांकन आज भी लोगों को आकर्षित करता है। ‘सनफ्लॉवर्स’ पेंटिंग से एक दिलचस्प घटना जुड़ी हुई है। यह पेंटिंग एक जापानी संग्रहकर्ता को बेची गई थी और जहाज से सन 1920 में जापान भेजी गई थी। लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान ओसाका पर अमेरिकी हमले में लगी आग से ये नष्ट हो गई थी। एक कला अखबार के संवाददाता और प्रबंधक मार्टिन बेली को यह तस्वीर अपनी पुस्तक ‘‘द सन फ्लॉवर्स आर माइन: द स्टोरी ऑफ वैन गॉग्स मास्टरपीस’’ के लिए शोध के दौरान मिली। मार्टिन के अनुसार, ‘‘मैंने वैन गॉग के उन पत्रों को खोजा, जिसमें उन्होंने लिखा है कि वे जब सन फ्लॉवर्स की पेंटिंग बना रहे थे तो इसे नारंगी रंग के फ्रेम में रखना चाहते थे। जो कभी नहीं देखा गया।’’ कला विशेषज्ञ मार्टिन के अनुसार ‘‘वैन गॉग का अपनी पेंटिग्स को नारंगी रंग के फ्रेम में रखने का विचार बहुत अपने समय में बहुत क्रांतिकारी था। इससे वैन गॉग की कल्पनाशीलता और विशिष्ट योग्यता का पता चलता है। परंपरागत रूप से पेंटिग्स को सुनहरे फ्रेम में रखा जाता था और आधुनिक पेंटिंग्स को कभी-कभी सादे सफेद फ्रेम में रखा जाता है।’’
सन 1888 में ‘बेडरूम इन आर्ल्स’ पेंटिंग में उन्होंने अपने शयन कक्ष के शांत वातावरण को चित्रित किया। इसी वर्ष ‘कैफे टेरेस एट नाईट’, ‘द येलो हाऊस’, ‘रेड वाईनयार्ड’ आदि पेंटिंग्स बनाई। सन् 1889 में दक्षिणी फ्रांस में सेंट-रेमी में सेंट-पॉल शरण में रहते और अपने अवसाद से जूझते हुए अपने कमरे की खिड़की से सितारों वाली रात को दिखने वाले गांव को अपनी पेंटिंग ‘द स्टाररी नाइट’ में चित्रित किया ।
‘आईरिसेस’ तथा सेल्फ पोट्रेट के साथ ही सन् 1890 में ‘पोट्रेट ऑफ डॉ गैचेट’ तथा सन 1890 में ही ‘व्हीटफील्ड विद क्रो’ नामक पेंटिंग बनाई। ‘आईरिसेस’ वह पेंटिंग है जिसमें आईरिस के फूलों को दिखाया गया है। आईरिस फूल का भी गहरा प्रतीकात्मक अर्थ है।  प्राचीन ग्रीस में देवी आइरिस ने स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक कड़ी के रूप में काम किया।  उसने यात्रा करने के लिए इंद्रधनुष का प्रयोग किया। सन 1890 में ही ‘द सिएस्टा’, ‘चर्च एट औवर्स’, ‘प्रिजनर्स एक्सरसाइजिंग’ आदि पेंटिंग्स बनाईं।
वैन गॉग को आज विश्व के महानतम चित्रकारों में गिना जाता है और आधुनिक कला के संस्थापकों में से एक माना जाता है। साथ ही उन्हें पोस्ट-इंप्रेशनिज्म अर्थात उत्तर-प्रभाववाद के मुख्य चित्रकारों में से एक माना जाता है। वैन गॉग ने 28 वर्ष की आयु में चित्रकारी करना शुरु किया और जीवन के अंतिम दो वर्षों में अपनी सबसे महत्त्वपूर्ण  पेंटिंग्स बनाईं। लगभग 9 साल के समय में उन्होंने 2000 से अधिक पेंटिंग्स बनाईं। जिनमें लगभग 900 ऑयल पेंटिंग्स हैं। आरंभिक पेंटिंग्स में फ्रांसीसी प्रभाववादी चित्रकला की छाप को स्पष्ट देखा जा सकता है।
      दुर्भाग्यवश अपने जीवन काल में वैन गॉग को भारी मानसिक दबाव, गहन अवसाद और लोगों की उपेक्षा झेलनी पड़ी। उन्हें अपने जीवन काल में वह ख्याति नहीं मिली जो उनकी मृत्यु के उपरांत उन्हें प्राप्त हुई। जीवनभर उन्हें कोई सम्मान नहीं मिला। वे मानसिक रोगों से जूझते रहे। एक बार एक विवाद के दौरान उन्होंने अपना बायां कान काट लिया था। लोग उन्हें बीमार नहीं बल्कि पागल समझते थे। अंततः मात्र 37 वर्ष की आयु में उन्होंने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली।
वैन गॉग की चित्रकला की अगर प्रमुख विशेषताएं देखें तो पहली विशेषता थी भावनात्मक रंगों का प्रयोग। वैन गॉग ने अपने समय के अन्य कलाकारों की तुलना में रंगों का अलग तरह से उपयोग किया। अपनी पेंटिंग के विषय के रंगों को वास्तविक रूप से पुनरू प्रस्तुत करने के बजाय, उन्होंने ऐसे रंगों का इस्तेमाल किया जो विषय के प्रति उनकी भावनाओं को सबसे अच्छी तरह व्यक्त करते थे।
दूसरी विशेषता थी बोल्ड रंग पैलेट्स। वैन गॉग ने अपनी आरंभिक पेंटिंग्स में गहरे और धूसर रंगों का प्रयोग किया। किंतु इम्प्रेशनिस्ट और नियो-इंप्रेशनिस्ट पेंटर्स की कला को देखने के बाद बोल्ड रंगों का प्रयोग करने लगे। उनकी बात की पेंटिंग्स में नीले, पीले, नारंगी, लाल और हरे  चमकीले रंग समा गए।
तीसरी विशेषता थी एक्सप्रेसिव ब्रशस्ट्रोक यानी अभिव्यंजक ब्रशस्ट्रोक। वैन गॉग की सिग्नेचर पेंटिंग शैली में वांछित भावनाओं पर जोर देने के लिए ऊर्जावान, दृश्यमान ब्रशस्ट्रोक्स हैं। चौथी विशेषता के रूप में उनकी पेंटिंग्स पर जापानी वुडब्लॉक प्रिंट्स का प्रभाव देखा जा सकता है। वैन गॉग की कला की पांचवी विशेषता थी बहुसंख्यक सेल्फ-पोर्ट्रेट। उन्होंने अपनी चित्रकला की संक्षिप्त अवधि में 35 से अधिक स्व-चित्रों यानी सेल्फ पोट्रेट्स बनाए। जो उनकी भावनात्मक और मानसिक स्थिति को व्याख्यायित करते हैं।
वैन गॉग की पेंटिंग्स आज दुनिया भर में सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग्स में गिनी जाती है। अकेली ‘द स्टाररी नाइट’ पेंटिंग की कीमत आज 100 मिलियन डॉलर से अधिक आंकी जाती है।  सन 1975 में ‘पोट्रेट ऑफ डॉक्टर गैचेट’ पेंटिंग 1990 मिलियन डॉलर में एक निजी संग्रहकर्ता ने खरीदी थी। ‘सन फ्लॉवर’ सीरीज की एक पेंटिंग सन 1987 में ढाई करोड़ पाउंड में बिकी थी, जिसने उस समय दुनिया की सबसे महंगी पेंटिंग के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए नया रिकॉर्ड बनाया था। वस्तुतः वैन गॉग एक ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण किंतु महान चित्रकार थे जिन्हें उनके जीते जी उन्हें पागल समझा गया किंतु उनकी मृत्यु के बाद उनकी पेंटिंग्स को सर्वश्रेष्ठ माना गया। आधुनिक मनोचिकित्सकों का यह मानना है कि यदि वैन गॉग की चित्रकला को उनके जीवनकाल में ही सराहा और स्वीकारा जाता तो संभवतः उनका मनोरोग धीरे-धीरे ठीक हो जाता और वे अवसाद से बाहर आ जाते। ऐसी स्थिति में वे आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाते और कला जगत उनकी कुछ और पेंटिंग्स से समृद्ध हो पाता।  
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(30.03.2022)
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