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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, April 12, 2022

पुस्तक समीक्षा | युवामन की पड़ताल करने का आग्रह करती कहानियां | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


प्रस्तुत है आज 12.04.2022 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कथाकार अरुण अर्णव खरे द्वारा संपादित कहानी संग्रह "21 श्रेष्ठ युवामन की कहानियां: मध्यप्रदेश" की समीक्षा... इसमें मेरी कहानी भी शामिल है जिसके लिए धन्यवाद देती हूं अरुण अर्णव खरे जी को तथा आभार दैनिक "आचरण" 🙏

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पुस्तक समीक्षा
युवामन की पड़ताल करने का आग्रह करती कहानियां
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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कहानी संग्रह - 21 श्रेष्ठ युवामन की कहानियां: मध्यप्रदेश
संपादक     - अरुण अर्णव खरे
प्रकाशक- डायमण्ड पाॅकेट बुक्स (प्रा)लि.,एक्स-30, ओखला, इंडकस्ट्रियल एरिया, फेज़ टू , नई दिल्ली-20
मूल्य      - 200 रुपए
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युवा मन हमेशा कौतूहल का विषय रहा है, स्वयं युवाओं के लिए भी और उनके लिए भी जो युवा आयु से आगे बढ़ चुके हैं। हर व्यक्ति जानने को उत्सुक रहता है कि युवाओं के मन में क्या चल रहा है? वे कैसा जीवन जीना चाहते हैं? वे कौन से सपने देखते हैं? हर युग में, हर समय में युवाओं की आवश्यकताएं बदलती रही हैं और उन्हीं के अनुरूप उनके विचार, उनकी आकांक्षाएं, उनके आचार-व्यवहार, उनका प्रेम और उनके स्वप्न आकार ग्रहण करते रहे हैं। जब कथा साहित्य में युवामन की चर्चा हो तो यह तथ्य रेखांकित होता है कि एक कहानीकार युवामन के विभिन्न पर्तों को किस प्रकार खोलता है। यद्यपि युवामन को परिभाषित करना कठिन है। युवामन दैहिक आयु से युवा का हो सकता है और दैहिक प्रौढ़ावस्था के बावज़ूद मानसिक युवा का भी हो सकता है। हिंदी कथाकार अपनी कहानियों में युवा मन को किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं, यह भी रोचक विषय है। इस दिशा में आजादी का अमृत महोत्सव के तारतम्य में डायमंड बुक्स द्वारा भारत कथा माला के अंतर्गत ‘‘21 श्रेष्ठ युवा मन की कहानियां: मध्य प्रदेश‘’ पुस्तक प्रकाशित की गई है। यह वस्तुतः है कहानी संग्रह है जिसमें मध्यप्रदेश में निवास करने वाले 21 कथा कारों की 21 कहानियां संग्रहित की गई है। इस कथा संग्रह का संपादन किया है अरुण अर्नव खरे ने, जो स्वयं भी एक श्रेष्ठ कथाकार हैं।
इस संग्रह में संग्रहित कहानियों का केंद्र युवा मन है सभी कथाकारों ने  अपने अपने दृष्टिकोण से युवा मन को टटोला है आकर किया है और पात्रों के रूप में उनकी मनोदशा दर्शाते हुए अपनी कहानियों में बखूबी पिरोया है जिन 21 कथाकारों की कहानियां इस संग्रह में हैं, वे हैं- आशीष दशोत्तर, इंदिरा दांगी, ए. असफल, डॉ. गरिमा संजय दुबे, गोविंद सेन, भालचंद्र जोशी, मनीष वैद्य, महेश कटारे, डॉ. मीनाक्षी स्वामी, मुकेश वर्मा, राजनारायण बोहरे, राजेंद्र दानी, डॉ. (सुश्री) शरद सिंह, संजय आरजू, श्रीमती संतोष श्रीवास्तव, सपना सिंह, सुषमा मुनींद्र, सूर्यकांत नागर, डॉ. हंसा दीप, हरि भटनागर एवं अरुण अर्णव खरे।
संग्रह की 21 कहानियां युवा जीवन के 21 शेड्स प्रस्तुत करती हैं। आशीष दशोत्तर ने लॉकडाउन के समय उपजी प्रेम कथा को अपनी कहानी में पिरोया है। आज मोबाइल इंटरनेट के जमाने में प्रेम पत्र लिखने का चलन लगभग समाप्त हो गया है किंतु लॉकडाउन के दौरान जो विचित्र स्थितियां जीवन में उत्पन्न हुई उन्होंने कुछ पुराने तौर-तरीकों को एक बार फिर हमारे जीवन से जोड़ दिया। ऐसे ही एक घटना प्रेम पत्र लिखे जाने की है जिसे आशीष दशोत्तर ने अपनी कहानी ‘इसी को प्यार कहते हैं’’ में पिरोया है। इंदिरा दांगी की कहानी ‘पुल‘ एक शिक्षक का अपने छात्रों और छात्र के अभिभावकों से भावनात्मक सरोकार का विवेचन करती है। वहीं, ए. असफल की कहानी ‘‘सुलक्ष्णा‘‘ एक ऐसे युवक की कहानी है जो अपने महाविद्यालयीन जीवन में सुलक्ष्णा नामक युवती से प्रेम कर बैठता है किंतु आगे चल कर यही प्रेम उस युवती के साथ एक विवाहेत्तर संबंध का ताना-बाना बुनता है। यह कहानी आधुनिक जीवन के चौंकाने वाले मूल्यों को उजागर करती है।
डॉ. गरिमा संजय दुबे ने अपनी कहानी ‘‘हेलमेट नंबर 1008‘‘ में युवाओं के द्वारा यातायात नियमों की अवहेलना करना और उसके भयानक दुष्परिणाम होने की समस्या को अपनी कहानी में सामने रखा है। गोविंद सेन की कहानी ‘‘खुमसिंग‘‘ जीवन के उत्साह से भरे एक युवा की कहानी है जो अपनी आकांक्षा के अनुरूप जीवन जीने का प्रयास करता है किंतु आगे चलकर उससे मर्मान्तक पीड़ा झेलनी पड़ती है यह एक मार्मिक कहानी है।
भालचंद्र जोशी की कहानी ‘‘मौसम बदलता है‘‘ में मौसम को आधार बनाकर प्रेम संबंधों में होने वाले परिवर्तन का कथानक बुना गया है। एक विवाह समारोह में अचानक पुरानी प्रिय परिचिता का बदले हुए स्वरूप में मिलना कथा-नायक के मन को उद्वेलित कर देता है। मनीष वैद्य की कहानी ‘‘चिड़ियाघर में प्रेम‘‘ ऐसे युवा प्रेमीयुगल की कहानी है जो नौकरी के सिलसिले में अलग-अलग शहरों में रहते हैं किंतु एक अवसर ऐसा आता है जब लड़की उस लड़के से मिलने महानगर पहुंचती है। उस महानगर में उन दोनों को बैठकर परस्पर संवाद करने के लिए स्थान ही नहीं मिल पाता है अंततः वे एक चिड़ियाघर की शरण में जाते हैं। यह कहानी आजकल के युवाओं के भावनात्मक प्रेम का पक्ष प्रस्तुत करती है।
महेश कटारे की कहानी ‘‘गोद में गांव‘‘ निजी कंपनी द्वारा गांव को गोद लिए जाने और उसकी आड़ में अपने व्यापारिक साम्राज्य को फैलाने की अंतर्कथा है जो अपना हित साधने के साथ ही युवाओं के भविष्य का भी निर्धारण करती है। डॉ मीनाक्षी स्वामी की कहानी ‘‘तुमसे पूछा ही नहीं था‘‘ एक रेल यात्रा के दौरान जन्मी प्रेम कथा है। वहीं, ‘‘काल-सर्प योग‘‘ मुकेश वर्मा की कहानी है। एक युवा द्वारा जीवन के विभिन्न पड़ाव को पार करते हुए वृद्धावस्था प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करना और फिर अपने सामने एक ऐसे युवा को पाना जो उसे उसके जवानी के दिनों को याद दिला देता है। वस्तुतः यह एक मनोवैज्ञानिक विमर्श रचती कहानी है। जबकि राजनारायण बोहरे की कहानी ‘‘गवाही‘‘ एक कर्मचारी की व्यथा कथा है। जिसे भांति-भांति की विसंगतियों का सामना करते हुए अदालती कार्यवाही उसे भी जूझना पड़ता है। राजेंद्र दानी की कहानी है ‘‘गनीमत नहीं‘‘। एक तेईस वर्षीय युवक की कहानी जो शहरी चकाचैंध से होता हुआ विदेश में सुख की तलाश में डूबता-उतराता रहता है । युवाओं में बढ़ती हुई विदेश प्रेम की धारणा इस कहानी के केंद्र में है।
‘‘स्लेव मार्केट‘‘ डॉ (सुश्री) शरद सिंह की कहानी है। यह आजकल के उन युवाओं की कहानी है जो अपने माता-पिता की आकांक्षा की भेंट चढ़कर घर से दूर पढ़ने के लिए महानगरों में जाते हैं ओर फिर वही से प्लेसमेंट की कतार में उन्हें शामिल होना पड़ता है। जैसे पुराने जमाने में गुलामों को खरीदा जाता था और हर गुलाम सोचता था कि उसे एक अच्छा मालिक मिल जाए। उसी तरह आज का युवा सोचता है कि उसे एक अच्छी जॉब ऑफर मिल जाए किसी कारपोरेट कंपनी से। आज का युवा अच्छे कैरियर पाने के असीमित दबाव को झेलता हुआ स्वयं को स्लेव मार्केट यानी गुलाम मंडी मैं खड़ा पाता है। लेखक संजय आरजू की कहानी ‘‘काश!‘‘ उस पछतावे की कहानी है जो स्वार्थ की भावना में पढ़कर लिए गए एक गलत निर्णय के फलस्वरुप जीवन में घर कर जाती है।
कहानी ‘‘ एक मुट्ठी आकाश‘‘  में श्रीमती संतोष श्रीवास्तव ने उन मानसिक रूढ़ियों के विरुद्ध लेखनी चलाई है जिसमें एक परितक्त्य तथा बच्चों का पिता होकर भी पुरुष पुनर्विवाह कर सकता है किंतु यदि कोई युवा स्त्री एक बेटी की मां होते हुए पुनर्विवाह के बारे में सोचें तो लोगों को आपत्ति होने लगती है। ‘‘ हमसफर नहीं‘‘  सपना सिंह की तथा सुषमा मुनींद्र की कहानी ‘‘तेल जले सरकार का मिर्जा खेलें फाग‘‘ पारिवारिक तानों-बानों की कहानियां हैं। डॉ. हंसा दीप की कहानी ‘‘दो पटरियों के बीच‘‘  जीवनशैली को ले कर मां और बेटी के वैचारिक द्वंद्व की कहानी है। वहीं ‘‘मेज, कुर्सी, तख्ता, टाट‘‘ कहानी में हरि भटनागर ने पिता और पुत्र के पारस्परिक संबंधों में वैचारिक विसंगतियों एवं व्यावहारिक असमानता को रेखांकित किया है।
अरुण अर्णव खरे की कहानी ‘‘चिलिंग सेंटर‘‘ एक डेयरी प्लांट के बहाने उस अव्यवस्था की कथा है जो एक ईमानदार युवा को अपने शिकंजे में कसती चली जाती है और उसे पथभ्रष्ट होने पर विवश करती है।
इस संग्रह के सभी 21 कथाकार मध्यप्रदेश के प्रतिनिधि कथाकार हैं। इस प्रकार के कहानी संग्रह की अपनी विशिष्ट उपादेयता रहती है। संपादक अरुण अर्णव खरे ने बड़ी मेहनत के साथ कहानियों को चुना है और  इस संग्रह में सहेजा है। सभी कथाकारों के छायाचित्र एवं परिचय सहित कहानियों के होने से पाठक इन कहानियों के प्रति अधिक जुड़ाव अनुभव करेगा। निःसंदेह यह कहानी संग्रह पठनीय एवं संग्रहणीय है क्योंकि इसकी कहानियां एक विशेष विषयवस्तु का विमर्श रचती हैं और युवामन की पड़ताल करने का आग्रह करती हैं।                        
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