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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, April 19, 2022

पुस्तक समीक्षा | प्रतिरोध को शब्द देती कविताएं | समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह


प्रस्तुत है आज 19.04.2022 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई मणिकांत चौबे  ‘बेलिहाज़’ के कविता  संग्रह "बेलिहाज़ कलम" की समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
प्रतिरोध को शब्द देती कविताएं
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - बेलिहाज़ कलम
कवि       - मणिकांत चौबे  ‘बेलिहाज़’
प्रकाशक    - बुंदेलखंड हिंदी साहित्य-संस्कृति विकास समिति (मंच)
मूल्य       -  100 रुपए
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मैं पूछता हूं आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक्त इसी का नाम है
कि घटनाएं कुचलती हुई चली जाएँ
मस्त हाथी की तरह
एक समूचे मनुष्य की चेतना को ?
   - ये पंक्तियां हैं अपने समय के जुझारू कवि अवतार सिंह पाश की।

दरअसल, जिस कवि में इस तरह के प्रश्न करने का साहस होता है वही अपनी अभिव्यक्ति के साथ न्याय कर पाता है। कवि भी एक इंसान होता है जो अपने अनुभव से सीखता है और अपने अनुभवों को अगर उसे सही शब्दों में पिरोना आ गया तो वह एक ऐसा कवि बनने में सक्षम हो जाता है जो आम आदमी की आवाज को अपने शब्द दे सके।
प्रतिरोध के ऐसे ही कवि हैं मणिकांत चौबे बेलिहाज जी। इनकी कविताएं समाज, राजनीति और अर्थतंत्र में व्याप्त विसंगतियों को अभिव्यक्त करती हैं। हमारे चारों ओर बिखरी हुई जटिलता और जीने की निर्मम शर्तों के प्रति हमारी चेतना को झकझोरती हैं। विरोधाभासों को खंगालना और उनके विरुद्ध आवाज उठाना हर किसी के बस की बात नहीं होती है।
यदि सच कहने में लिहाज आड़े आ रहा हो तो सच कहते नहीं बनता है और तब बेलिहाज होकर ही सच्चाई को प्रखरता से सामने रखा जा सकता है।
यह उस समय और भी संभव हो जाता है जब विचार एहसास बनकर कवि के मन में समाए रहते हैं उदाहरण के लिए बेलिहाज कि ‘एहसास‘ शीर्षक कि यह कविता देखें-
मैं तो हूं एहसास तुम्हारा
मुझे कब तक अनकहा रखोगे
जब भी अंतस को उकसाऊंगा
तुम मुझे सहसा ही कह दोगे
मैं सिहरन को भी कंपन दूंगा
सोते जगते की भी लाचारी दूंगा
रग-रग मुझ से प्रभावित होगी
मैं नया शक्तिपुंज गढ़ूंगा
सच क्या तुम यह सब
सह लोगे जब भी?

अपनी समय को प्रतिबिंबित करती कविताएं ही कालजयी होती हैं। यही वे कविताएं हैं जिनसे पाठक या श्रोता स्वयं को जुड़ा हुआ महसूस करता है और उसे इन कविताओं में आत्मकथात्मकता दिखाई देती है। ‘जिंदगी‘ शीर्षक कविता इसकी बानगी है-
हां सचमुच, बहुत जटिल
व्यवस्था है जिंदगी
अनजान राहों पर चलती
फुटपाथों पर पलती
कहीं अय्याशी में कटती
कहीं एड़िया रगड़ती
और कहीं यूं ही जाती जिंदगी
बारूद से मरती है
आत्मघात भी करती है
कहीं दीर्घायु बनती है
कहीं अल्पायु है जिंदगी
धर्मांधता में लुटाई जाती है
समर्पण कर जलाई जाती है
कभी जिद में मिटाई जाती है
अगर बच जाए जाते-जाते
कहते हैं हजार न्यामत है जिंदगी
गोलियां भी छीनती है
बोलियां भी छीनती है
माले मुफ्त हो जैसे बेलिहाज
सियासी बिसात है जिंदगी।

कवि मणिकांत चौबे ‘बेलिहाज‘ की कविताएं  मानवता का आह्वान करती हुईं, शोषण और अन्याय के विरुद्ध डट कर खड़ी हैं। उनकी कविताएं वर्तमान की विसंगतियों और कटु सत्य को उजागर करने का नैतिक साहस रखती है। संग्रह की कुछ कविताएं अंतस को गहरे तक झकझोरती हैं। ‘अवसरवाद‘ ऐसी ही एक कविता है-
आज फिर रमिया के बर्तन सूखे हैं
आज फिर कलुआ के बच्चे भूखे हैं
आज फिर पिछड़ी बस्ती में हाहाकार है
इसका कौन जिम्मेदार है?
उत्तर में सब मौन
उत्तर दे भी कौन?
राजनीति अवसरवादिता की है
कभी आंख फाड़ फाड़ कर देखती है
और किसी को लक्ष्य करके घेरती है
और कभी आंख मूंद
सूरदास की तरह जीती है

धर्म अर्थ और समाज से जुड़ी जीवन की कठिनाइयां, विसंगतियां, भय, निराशा और तमाम अंतर्विरोध कवि के चिंतन को पैरालाइज्ड नहीं कर पाते हैं। वह इन सब से जूझता हुआ इन्हें ललकारता है। इस तेवर की सबसे प्रखर कविता है इस संग्रह में ‘- बात कहूं मैं खुल्लमखुल्ला‘। इस कविता का एक अंश देखें -
कहीं अड़े हैं पंडित पंडा
तो कहीं खड़े हैं काजी-मुल्ला
पर यह धर्म कर्म की बात नहीं
बात कहूं मैं खुल्लम खुल्ला
न घर के बाहर राम खड़े हैं
न बेघरबार मिले हैं अल्ला
अपनी-अपनी ढपली और अपना राग
सब राजनीति का गोरखधंधा

जमीनी सच्चाई से उनका जुड़ाव एवं अनुभव उनकी हर कविताओं में मुखर होकर सामने आया है जिससे उनकी कविताएं विश्वसनीयता की शर्त को पूरा करती हैं। बेलिहाज जी निश्चित रूप से एक समर्थ एवं सशक्त कवि हैं। संग्रह में अधिकांश  छंद मुक्त कविताएं हैं जो पूर्णतः सशक्त हैं। किंतु इन कविताओं के साथ ही कुछ दोहे और कुछ गजलें भी संग्रह में रखी गई हैं। इनमें कुछ कविताएं ऐसी भी है जो शेष कविताओं से साम्य  नहीं बिठा पाई हैं। जैसे- ‘प्यारे बच्चों‘ ‘वर्षारितु‘, ‘26 जनवरी‘ आदि। यदि कविताओं के चयन में कवि ने लोभ संवरण किया होता तो यह पूर्णतः एक निश्चित भावभूमि की कविताओं का और अधिक प्रभावी काव्य संग्रह होता। किंतु इसका आशय यह भी नहीं है कि ये सभी कविताएं पठनीय नहीं है। प्रत्येक कविता की अपनी अलग उपादेयता है तथा कुलमिलाकर उनका यह प्रथम काव्य संग्रह ‘बेलिहाज कलम‘ प्रतिरोध से भरपूर पठनीय कविताओं का संग्रह है।
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2 comments:

  1. दिल को झकझोरने वाली कविताएँ, सुंदर समीक्षा

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनीता जी 🙏

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