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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, May 3, 2022

संजीवनी बाल आश्रम में डॉ (सुश्री) शरद सिंह द्वारा भोजन सेवा

मित्रो, समय कैसे गुज़र जाता है पता ही नहीं चलता। आज 1 वर्ष हो गए मेरी दीदी डॉ वर्षा सिंह को इस नश्वर संसार से विदा हुए। उनकी स्मृति में मैंने संजीवनी बाल आश्रम अनाथालय में आज  उन अनाथ बच्चों को सुबह का भोजन कराया जिन्हें समाज ने ठुकरा दिया किंतु अनाथ आश्रम ने आश्रय दिया। 
      बच्चों दीदी हमेशा उन छोटे-छोटे बच्चों को देखकर व्यतीत हो जाया करती थी जो सड़कों पर भीख मांगते हैं वह कहती थीं कि "देखो, अपना बचपन कितना भी कष्टों से भरा हुआ रहा हो लेकिन इनके बचपन से कई गुना बेहतर था। यह बेचारे सड़कों पर भीख मांगने के लिए विवश है। कितनी बड़ी विडंबना है इनके जीवन की।" जब कभी अनाथ बच्चों की बात आती तो उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते। इसीलिए मैंने उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर यह निर्णय लिया कि मैं संजीवनी बाल आश्रम जाकर वहां रह रहे अनाथ बच्चों को खाना खिलाऊंगी और अपने हाथों से भोजन परोसूंगी।
       संजीवनी बाल आश्रम में इस समय लगभग 50 बच्चे रह रहे हैं जिनमें लड़कियां और लड़के दोनों शामिल हैं दोनों के लिए अलग-अलग आवासीय व्यवस्था है। इस संस्था की स्थापना की थी स्व. श्रीमती सत्यभामा अरजरिया ने। आज इसके संचालन का कुशलतापूर्वक दायित्व निभा रही हैं उनकी बहू श्रीमती प्रतिमा अरजरिया। उनके पति श्री अरजरिया भी उनका पूरा सहयोग करते हैं तथा उनके साथ आश्रम आया करते हैं। आज अरजरिया दंपति से आश्रम में भेंट हुई।
       श्रीमती प्रतिमा अरजरिया निकल मुझसे चर्चा की थी के बच्चों के लिए आप कैसा खाना बनवाना चाहेंगी, पूड़ी इत्यादि वाला 'पक्का खाना' अथवा रोटी-दाल वाला 'कच्चा खाना'? मैंने उनसे कहा आप जो उचित समझें। इस तेज गर्मी में बच्चों के लिए जो उचित हो, वही खाना बनवाइए। तो उन्होंने कहा कि कच्चा खाना उचित रहेगा। क्योंकि पिछले दिनों किसी दानदाता के सौजन्य से पक्का खाना बनवाया गया था किंतु गर्मी अत्यधिक गर्मी के कारण वह एक-दो बच्चों को नुकसान कर गया था।
      आज मैंने जाकर देखा कि बच्चों के लिए दाल, रोटी, चावल, सब्जी, पापड़ आदि सादा किंतु स्वास्थ्यकर भोजन बनवाया गया था। मैंने भी अपने हाथों से बच्चों को खाना परोसा यह करते हुए मुझे आंतरिक सुख का अनुभव हो रहा था साथ ही मैं यह महसूस कर रही थी कि इससे वर्षा दीदी को भी प्रसन्नता हो रही होगी। पहले हमने बालिकाओं को भोजन परोसा, इसके बाद बालकों के आवास में जाकर उन्हें भोजन परोसा।
        वहां एक भावुक पल भी आया जब श्रीमती अरजरिया ने मुझे एक छोटी बच्ची दिखाई जो बहुत ही प्यारी और मासूम सी थी मैंने कहा कि इतने छोटे बच्चों को कोई कैसे छोड़ देता है, उनका कलेजा नहीं दुखता क्या? तब श्रीमती अरजरिया ने बताया कि इस बच्ची की कहानी तो और अधिक त्रासद है। इसे इसके माता-पिता द्वारा नहीं छोड़ा गया, बल्कि इसकी मां  जंगल में आवारा स्थिति मे भटकती हुई पाई गई थी। वह नाबालिग है। उसे किसी ने वहां छोड़ दिया था । वह कहां की रहने वाली है यह भी अभी तक पता नहीं चल सका है क्योंकि वह  बोलने मैं सक्षम नहीं है। किसी ने उसके साथ छल किया। उसे धोखा दिया। अब उसकी बच्ची का लालन-पालन संजीवनी बाल आश्रम में किया जा रहा है। बालिकाओं का आश्रम भवन तो स्वयं संजीवनी बाल आश्रम का है किंतु बालकों का आश्रम भवन किराए के भवन में संचालित करना पड़ रहा है। मुझे लगता है कि प्रशासन एवं  जनप्रतिनिधियों को भवन संबंधी व्यवस्था में आगे बढ़कर सहयोग करना चाहिए।
       मेरे साथ मेरे छोटे भाई श्रीराम सेवा समिति के संचालक समाजसेवी श्री विनोद तिवारी तथा श्री पंकज शर्मा भी संजीवनी बाल आश्रम पहुंचे थे, उनकी  उपस्थिति ने मुझे मानसिक संबल प्रदान किया। 
      मैं आभारी हूं संजीवनी बाल आश्रम की संचालक श्रीमती प्रतिमा अरजरिया की, भाई विनोद तिवारी की तथा श्री पंकज शर्मा जी की।
दिनांक : 03 मई 2022
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