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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, May 4, 2022

चर्चा प्लस | आत्मीय ऊर्जा से भरपूर एक संवेदनशील ग़ज़लकार डाॅ वर्षा सिंह | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस 
आत्मीय ऊर्जा से भरपूर एक संवेदनशील ग़ज़लकार डाॅ वर्षा सिंह
  - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
             मुस्कुराता चेहरा, हंसती आंखें और आत्मीयता से भरपूर प्रभावी व्यक्तित्व। एक कर्मठ कामकाजी महिला और एक अत्यंत संवेदनशील ग़ज़लकार। ये सभी कुछ था डाॅ वर्षा सिंह में। बचपन से ही वे आत्मिक ऊर्जा से लबरेज़ थीं। अनेक कार्य, अनेक योजनाएं जिन्हें पूरा करना था उन्हें, किन्तु अधूरे सपनों के साथ अधूरी ज़िन्दगी। कोरोना के कारण विदा लेना पड़ा उस बड़ी बहन को जो अपनी छोटी बहन को अपनी अंतिम सांस तक ढाढस देती रही कि-"मैं ठीक हूं।"
चली हूं मै अकेली, साथ कल इक कारवां होगा
न जो मिट पायेगा ऐसा कोई बाकि निशां होगा
- ये पंक्तियां हैं ग़ज़लकार डाॅ. वर्षा सिंह की। वे अकेली चली गईं लेकिन उनके निशां उनकी ग़ज़लों के रूप में यक़ीनन मौजूद हैं और रहेंगे।

29 अगस्त 1958 को रीवा मध्यप्रदेश में जन्मीं वर्षा सिंह को साहित्य का वातावरण अपनी बाल्यावस्था से ही मिला। रीवा में जन्म के तीन-चार साल बाद ही मां का स्थानान्तरण पन्ना हो गया। अतः वर्षा दीदी का शेष जीवन मुख्यरूप से पन्ना और सागर में व्यतीत हुआ। चूंकि वे मेरी बड़ी बहन थीं अतः मैं उन्हें तब से जानती थी जब से मैंने होश सम्हाला। हमारी मां डाॅ. विद्यावती ‘‘मालविका’’ एक प्रतिष्ठित साहित्यकार थीं। पिता श्री रामधारी सिंह स्वयं साहित्यकार तो नहीं थे किन्तु साहित्य में उनकी अभिरुचि अवश्य थी। नाना संत श्यामचरण सिंह स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही उच्चकोटि के कवि भी थे और नानी श्रीमती सुमित्रा देवी अमोला भक्तिरस की कवयित्री थीं। दीदी वर्षा सिंह जी के जन्म के बारे में एक महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख नानाजी किया करते थे जिसका पालि साहित्य के बौद्ध विद्वान डाॅ. भिक्षु धर्मरक्षित जी ने सन् 1964 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘‘संत श्यामचरण: जीवन एवं कृतित्व’’ में उल्लेख किया है। घटना यह थी कि नानाजी की आंखों में मोतियाबिंद हो गया था। सही चिकित्सा न हो पाने के कारण उन्हें ठीक से दिखाई नहीं देता था। किन्तु वर्षा दीदी के जन्म होते ही उनकी नेत्रज्योति बढ़ गई और उन्हें स्पष्ट दिखाई देने लगा। इस घटना को हमने चमत्कार की दृष्टि से कभी नहीं देखा किन्तु यह अवश्य महसूस किया कि नानाजी उनके जन्म से इतने अधिक उत्साहित एवं प्रफुल्लित हुए होंगे कि जिसका उनकी नेत्रज्योति पर सकारात्मक असर पड़ा होगा।

     जब वर्षा दीदी लगभग सात वर्ष की रही होंगी तब पिताश्री का निधन हो गया। उस समय मैं दो वर्ष की थी। वर्षा दीदी कुशाग्र बुद्धि की थीं। वे पढ़ाई में तेज थीं। उनमें ग़ज़ब की कल्पना शक्ति थी। बचपन में वे मुझे मन से बना कर कहानियां सुनाया करती थीं। वे मेरा इतना अधिक खयाल रखती थीं कि मानो मैं उनके लिए मात्र उनकी छोटी बहन नहीं अपितु सबसे प्रिय व्यक्ति होऊं। बाल्यावस्था में पढ़ाई के मामले में मैं उनका अनुकरण करती रहती थी और उनके जैसा बनना चाहती थी। नौवीं कक्षा में दीदी ने साईंस ग्रुप को चुना। आगे चल कर उन्होंने वनस्पति शास्त्र में एम.एस.सी किया, बी.एड. किया और फिर डॉक्टर ऑफ इलेक्ट्रो होम्योपैथी एण्ड मेडिसिन की उपाधि प्राप्त की। रीक्रूटमेंट द्वारा मध्यप्रदेश विद्युतमंडल में कार्यालय सहायक के पद पर उनका चयन हो गया। उन्होंने पूरी कर्मठता से अपने कार्यालयीन कर्तव्यों का पालन किया। वे अपनी साहित्यिक अभिरुचि और कार्यालयीन कार्यों को परस्पर एक-दूसरे पर प्रभावी नहीं होने देती थीं। ऑफिस में साहित्यिक चर्चा नहीं और घर पर ऑफिस की चर्चा नहीं, यही उसूल बनाए रखा उन्होंने।

वर्षा दीदी बहुत बहादुर थीं। जब मैं छोटी थी तो हम दोनों बहनें छुपा-छुपाई, छुआ-छुव्वल जैसे खेल खूब खेला करते थे। एक बार जाड़े की रात थी, नौ बजे के आस-पास का समय था। हम दोनों घर के भीतर ही छुआ-छुव्वल खेलने लगे। कमरे में मिट्टी की गोरसी में अंगारे धधक रहे थे। मां ने हमें डांटा और समझाया भी कि गोरसी से मत टकरा जाना, ऐसे मत दौड़ो। मगर हम दोनों का ध्यान तो खेल में था। दीदी दाम दे रही थीं और मैं आगे-आगे भाग रही थी। ढाई कमरे के छोटे से घर को खेल का मैदान बनाने का दुष्परिणाम सामने आ गया। मैं गोरसी से टकरा कर गिर पड़ी। गोरसी के धधकते अंगारे मेरे पैरों और पीठ पर आ गिरे। वह तो ऊनी कपड़ों की मोटी परत थी इसलिए मेरी जान बच गई। लेकिन पैर जल गए थे। मां तो यह देख कर मानो पागल हो उठीं। वे घबरा कर दीदी से कहने लगीं-‘‘जाओ मीना मौसी के घर से बरनोल ले आओ।’’ दीदी को अंधेरे में बाहर जाने में डर लगता था। ठंड की रात और लगभग नौ बजे का समय, काॅलोनी में सन्नाटा और अंधेरा छा चुका  था। मगर मेरी दशा देख कर दीदी अपने डर को भुला कर दौड़ कर मीना मौसी के घर गईं और बरनोल ले आईं। मेरी चिंता में उन्होंने अपने डर को भुला दिया।  

वे धोखाधड़ी कभी नहीं करती थीं और न धोखाधड़ी बर्दाश्त कर पाती थीं। हम लोगों के साथ दो बहने खेलने आया करती थीं। उनके पिता जेलर थे और उनका घर काॅलोनी से लगा हुआ ही था। एक बार हम लोग रेस कर रहे थे। बड़ी वाली बहन का नाम मुझे याद है क्यों कि उन्हें मैं बिट्टन दीदी कहती थी। तो बिट्टन दीदी ने रेस में तय किया कि वे एक जगह खड़ी रहेंगी और मैं और उनकी छोटी बहन रेस करती हुई उनके पास पहुंचेंगी। जो पहले उन्हें छू लेगा वह जीत जाएगा। हम दोनों दौड़े। जब उनके निकट पहुंचे तो मैं आगे थी मगर बिट्टन दीदी ने चीटिंग करते हुए अपनी बहन की ओर बढ़कर उसे छूने का मौका दे दिया। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने वर्षा दीदी से कहा कि अगली बार तुम भी ऐसा ही करना। तब दीदी बोलीं,‘‘ऐसी चीटर्स के साथ अगली बार खेलना ही नहीं है और हमें कभी किसी के साथ चीटिंग नहीं करनी है। यह गंदी बात है।’’ उनकी यह बात मेरे नन्हें से दिमाग पर छप कर रह गई।  

वर्षा दीदी बचपन से ही हंसमुख थीं। जिंदादिल थीं और साथ के बच्चों में लोकप्रिय थीं। उनकी बौद्धिक अभिरुचि के परिणामस्वरूप हम सभी छोटे बच्चे उनके निदेशन में ‘‘अंधेर नगरी चौपट राजा’’ जैसे नाटक खेला करते थे। जैसे-जैसे वे बड़ी हुईं, उनकी साहित्यिक अभिरुचि प्रखर होती गई। उन्होंने नवसाक्षरों के लिए - 1.पानी है अनमोल और 2. कामकाजी महिलाओं के सुरक्षा अधिकार नामक पुस्तकें लिखीं। एक आलोचना पुस्तक- ‘‘हिन्दी गजल - दशा और दिशा’’ लिखी। उनके छः ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुए - 1.सर्वहारा के लिए 2. वक्त पढ़ रहा है 3. हम जहां पर हैं 4. सच तो ये है 5. दिल बंजार 6. गजल जब बात करती है। उन्होंने नौकरी में लम्बा समय व्यतीत करने के बाद साहित्य सेवा के लिए सेवानिवृति के समय से पूर्व ही वीआरएस ले लिया था।
सारिका, आजकल, वागर्थ, धर्मयुग, सामयिक सरस्वती, हंस, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, मधुमती,  नई धारा,  बेला, नई गजल, गजल गरिमा, साहित्य सुरभि, पहला अंतरा, पहले पहल, लोकजंग, ईसुरी, गोलकुण्डा दर्पण, परिधि, जनसत्ता, साहित्य सरस्वती, पत्रिका, नवभारत, दैनिक हिन्दुस्तान, लोकमत समाचार, दैनिक भास्कर, आचरण, दैनिक जागरण, देशबन्धु, ज्ञानयुग प्रभात, नवीन दुनिया, नई दुनिया, पहल, साक्षात्कार, लोकमत हिन्दी, शुभम, समांतर आदि देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं सहित मध्यप्रदेश विद्युत मण्डल एवं मध्यप्रदेश पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी की गृह पत्रिकाओं क्रमशः ‘विद्युत सेवा’ एवं ‘विद्युद् ब्रह्मेति’ में विभिन्न विधाओं की अनेक हिन्दी रचनाओं का प्रकाशन होता रहा। 
उनकी ग़ज़ल पुस्तकों पर देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध कार्य किया जा चुका है। अनेक सम्वेत संकलनों में उनकी ग़ज़लों को ससम्मान शामिल किया गया जिनमें कुछ प्रमुख हैं- ‘‘रेत में कुछ चिन्ह’’ (सागर सम्भाग के साहित्यकार) - सम्पादक राजेन्द्र प्रसाद, ‘‘समकालीन महिला गजलकार’’ सम्पादक हरेराम समीप, गीतिका प्रकाशन, बिजनौर, उ.प्र., ‘‘स्वयंसि़द्धा’’ देशबंधु प्रकाशन भोपाल, ‘‘महिला संदर्भ’ ग्रंथ’’ ,देशबंधु प्रकाशन, छत्तीसगढ़, ‘‘बुंदेलखण्ड की कवयित्रियां’’ सम्पादक हरिविष्णु अवस्थी, सरस्वती साहित्य संस्थान, इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश, ‘‘बुंदेलखण्ड में स्त्री’’ सम्पादक आनन्द प्रकाश त्रिपाठी, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली, ‘‘इन्द्रधनुषी हिन्दी गजलें’’ सम्पादक रोहिताश्व अस्थाना, सामयिक प्रकाशन, दिल्ली,  ‘‘समकालीन गजलें’’ सम्पादक इसाक ‘अश्क’, शुजालपुर, ‘‘समकालीन दोहे’’ सम्पादक इसाक ‘अश्क’, शुजालपुर, ‘‘हिन्दी के मनमोहक गीत’’ सम्पादक इसाक ‘अश्क’, शुजालपुर, ‘‘कजरारे बादल’’ सम्पादक इसाक ‘अश्क’, शुजालपुर, ‘‘गजल से गजल तक’’ - सम्पादक अशोक ‘अंजुम’, अलीगढ़ आदि।                                                    
डाॅ. वर्षा सिंह ने जबलपुर से प्रकाशित अनियतकालीन साहित्यिक पत्रिका ‘परिवर्तन‘ का कार्यकारी संपादन किया। म.प्र.राज्य विद्युत मण्डल हिन्दी परिषद् (बीना इकाई) की पत्रिका ‘विद्युत पुष्प’ का अतिथि संपादक रहीं।
उन्होंने काॅलम भी लिखे। सागर झील समाचारपत्र में ‘साहित्य वर्षा’, काॅलम, दैनिक आचरण में ‘सागर - साहित्य एवं चिंतन’ तथा युवा प्रवक्ता में ‘‘विचार वर्षा’’ काॅलम लिखा। ‘सागर - साहित्य एवं चिंतन’ में उन्होंने सागर नगर के छोटे-बड़े, परिचित-अपरिचित लगभग 72 जीवित साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लेख लिखे। यह एक अत्यंत ऐतिहासिक एवं बड़ा काम था।
डाॅ. वर्षा सिंह ने अनेक अकादमिक साहित्यिक मंचों एवं कविसम्मेलनों में काव्य पाठ किया। दूरदर्शन, भोपाल एवं आकाशवाणी के भोपाल, छतरपुर, सागर केन्द्रों से रचनाओं का नियमित प्रसारण होता रहा। उन्हें अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर के सम्मान मिले। इनमें प्रमुख थे-‘सुधारानी डालचंद जैन’ सम्मान मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, सागर द्वारा, ‘गुरदी देवी स्मृति सम्मान’ बुंदेली लोककला संस्थान झांसी (उत्तर प्रदेश) द्वारा, विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान’ केन्द्रीय हिन्दी परिषद्, मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मण्डल, जबलपुर, ‘हिन्दी सेवी सम्मान’ केन्द्रीय हिन्दी परिषद्, पाथेय संस्था, जबलपुर द्वारा, ‘सृजनधर्मी सम्मान’ प्रगतिशील लेखक संध, पन्ना द्वारा, ‘‘हिन्दी शिरोमणि’ सम्मान’ हिन्दी परिषद् (बीना शाखा) मध्य प्रदेश राज्य विद्युत मण्डल, ‘उत्कृष्ट साहित्य सृजनकर्ता सम्मान’ राजभाषा परिषद् भारतीय स्टेट बैंक, सागर शाखा द्वारा, ‘लीडिंग लेडी ऑफ मध्य प्रदेश’ सम्मान जनपरिषद् भोपाल द्वारा, ‘शक्ति सम्मान’ सागर नगर विधायक श्री शैलेन्द्र जैन जी द्वारा, ‘नारी सशक्तिकरण सम्मान’ पत्रिका समाचारपत्र एवं सेंट्रल हीरो सागर द्वारा, ‘विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान’ हिन्दी लेखिका संघ, दमोह द्वारा, ‘विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान’ हिन्दी लेखिका संघ, सागर द्वारा, ‘विशिष्ट अतिथि सम्मान’ दैनिक भास्कर एवं राहगीरी सोशल ग्रुप, सागर द्वारा, ‘विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान’ सागर साहित्य एवं सामाजिक सम्मान समारोह 2013, सागर द्वारा, ‘क्षमावाणी महापर्व सौजन्य सम्मान’ रोटरी क्लब, सागर सेंट्रल, सागर द्वारा, ‘विशिष्ट सम्मान’ क्षत्रिय समाज, सागर द्वारा, श्रीमंत सेठ दादा डालचंद जैन की स्मृति में  ‘प्रतिभा सम्मान 2018’ श्रीमंत सेठ नरेश जैन, सागर द्वारा, ‘एक्सीलेंस अवार्ड फॉर क्रिएटर्स 2018’ सागर टी.वी. न्यूज द्वारा।
28 अप्रेल 2021 को उन्हें कोरोना पाॅजिटिव होने के कारण बुंदेलखंड मेडिकल काॅलेज सागर में भर्ती होना पड़ा। जहां वे पांच दिन निरंतर संघर्ष करती रहीं। मैं उनसे फोन पर ही बात कर पाती थी। दो मई की शाम साढ़े पांच बजे मेरी उनसे आखिरी बात हुई। वे कठिनाई से बोल पा रही थीं। फिर भी उन्होंने मुझसे यही कहा कि -‘‘मैं ठीक हूं, तुम चिन्ता मत करो। चाहे कुछ भी हो हिम्मत रखना। घबराना नहीं और टूटना नहीं।’’ इसके बाद मेरी उनसे कोई बात नहीं हो सकी। तीन मई सुबह दो बजे मेडिकल काॅलेज से सूचना आई कि वर्षा दीदी ने इस संसार से विदा ले ली है। उनकी निधन की सूचना से सागर का ही नहीं सागर से बाहर का साहित्य जगत भी स्तब्ध रह गया। मां के निधन के ठीक तेरहवें दिन उन्होंने भी चिरनिद्रा ग्रहण कर ली। अब उनके शब्द ही हैं जो मुझे हिम्मत और सहारा देते हैं। उनके समूचे व्यक्तित्व को एक लेख में नहीं समेटा जा सकता है। अतः उनके व्यक्तित्व के कुछ और पक्ष अगले किसी ‘चर्चाप्लस’ में।
अंत में दीदी डाॅ वर्षा सिंह की एक ग़ज़ल के चंद शेर-
गजल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं।
गमों की  स्याह रातों  में  खुशी के  दीप जलते हैं।
सुलझते  हैं  कई मसले, मधुर  संवाद करने से
भुला कर दुश्मनी मिलने के फिर, पैगाम मिलते हैं।
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(04.05.2022)
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1 comment:

  1. ब्लॉग पर डॉ. वर्षा सिंह की कई रचनाओं से रू-ब-रू होता रहा हूँ. उनकी रचनाओं ने हमेशा प्रेरित किया है. आपके इस चर्चा प्लस ने उनके बहुमुखी व्यक्तित्व के कई आयामों को हमारे सामने प्रस्तुत किया है. उनके निधन से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है.

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