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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, May 19, 2022

बतकाव बिन्ना की | काए के अव्वल ? ठेंगा सें ! | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

"काए के अव्वल ? ठेंगा सें !" ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद #प्रवीणप्रभात  🙏
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बतकाव बिन्ना की
काए के अव्वल ? ठेंगा सें !
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
            भैयाजी गुनगुनात भए ठाड़े हते। मनो उनको मूड अच्छो कहानो। ने तो बे ऐसो गानो-मानो नईं गुनगुनात आएं।
‘‘का हो गओ भैयाजी? कोनऊ लाटरी-माटरी खुल गई का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जेई समझो बिन्ना!’’ भैयाजी बड़े खुस-खुस मूड में बोले।
‘‘हैं? बाकी आप तो कभऊं लाटरी के टिकट खरीदतेई नईयां, फेर कोन सी लाटरी खुल गई?’’ मैंने अचरज से पूछी।
‘‘है कोनऊ?’’ भैयाजी मुस्कात भए गोलमाल से बोले।
‘‘कहूं आपने आईपीएल को सट्टा-मट्टा तो नईं खेल लओ?’’ मोरो माथा ठनको।
‘‘अरे नईं! तुम तो जानत हो बिन्ना, मोए तो क्रिकेट को क नई आऊत, ऊपे सट्टा का खेलबी? जे सट्टा-मट्टा मोए ऊंसई नईं पोसात। अपनी मेहनत को कमाओ, जोन में सार आए। मोरो तो कहनो आए के कोनऊं खों सट्टा, जुआ नईं खेलो चाइए। जे इनसे कछु मिलत नइयां, ऊपरे से घर को पइसा और फुंक जात आए।’’ भैयाजी ने अच्छो-खासो लेक्चर दे डारो।
‘‘बात तो सही कै रए हो आप! मनो अब तो टीवी पे विज्ञापन आउत आएं जुआ खेलबे के। मनो सीदे-सीदे नई, पर जे खोलो, वो खेलो बोल-बोल के उकसाऊत आएं। औ अपनो पल्ला झाड़बे के लाने जे सोई बोल देत आएं कि इसकी आदत पड़ जेहे सो अपनी जुम्मेदारी पे खेलो। जुआ खेलाओ तुम औ जुम्मेदार रए खेलबे वारो। खूब दूकानदारी चला रए भैया हरें।’’ मोए बे सबरे विज्ञापन याद आ गए जीमें बड़े-बड़े हीरो-हिरोइन नच-नच के कैंत आएं के खेलो-खेलो। उनें सो विज्ञापन करे के पईसा मिल गए, मनो दूसरे की कोन पड़ी उनें।
‘‘हऔ, मनो जे बी सो बोलत हैं के ईकी आदत पड़ सकत है, जैसे बो बिड़ी-सिगरेट औ दारू के संगे लिखो रैत आए के तुम तो पियो मनो जे तुमाए स्वास्थ्य के लाने हानिकारक आए। काए, इमें सोई सरकार खों रेवेन्यू मिलत हुइए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘खैर, जे सब छोड़ो, आप सो जे बताओ के आप काए इत्ते खुस दिखा रए? ऊपर से गाना गुनगुना रए? अबई सो अनवरसिटी की कोनऊ एलुमनी मीट बी नई भई के आपकी कोनऊ पुरानी सहेली आप खों मिल गई होऐं।’’ मैंने भैयाजी की तनक टांग खिंचाई करी।  
‘‘देखो-देखो, कहां की कै रईं!’’ कहत भए भैयाजी मुस्कुरा परे। हो सकत, के उनखों सच्ची में अपनी कोनऊ सहेली याद आ गई होए।
‘‘अरे बिन्ना, मोए खुसी जे बात की हो रई के कोनऊ क्षेत्र में सही अपनो देस को, अपने शहरन को नांव दुनिया के टाॅप 15 शहरन में तो आ गओ।’’ भैयाजी चहकत भए बोले।
‘‘दुनिया के 15 शहरन में? मोए तो पतो परो है के हमाए बैडमिंटन वारे खिलाड़ियन ने 14 बार के चैंपियन इंडोनेशिया के खिलाड़ियन खों हरा के 73 साल में पैलई बार थाॅमस कप जीत के अपनो देस को नाम रोसन करो आए। जे पन्द्रा शहर कहां से आए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘लेओ, तुमने जे वाली खबर पढ़ी, मनो बो वाली ने पढ़ी जीमें लिखो रओ के दुनिया के सबसे गरम शहरन में हमाए देस के 12 शहर आएं औ ऊमें बी दो अपने प्रदेस के। नौगांव औ खजुराहो। सो सोचो, जे कित्ती बड़ी बात कहानी! ऊमें बी अपनो बुंदेलखंड खों ले लेओ सो, बांदा सबसे पैले नंबर पे ठाड़ो कहानो। काए से के उते गरमी को पारा 49 डिग्री लो पौंच गओ आए। अपन ओरें अव्वल आए कहाने।’’ भैयाजी ऐसे खुस हो के बोल रए हते मनो अपने देस ने कोनऊ ओलम्पिक में सोना ने जीत लेओ होए।
‘‘काए के अव्वल? ठेंगे से! जे कोन-सी नोनी बात कहानी? ई खबर पे आप काए अकड़ कर रए? जे तो शरम की बात कही जाओ चाइए।’’ मोए ताव आ गओ।
‘‘जे का कै रई बिन्ना? अरे, कोनऊ सूची में होए मनो अपने देस को नांव सो टाॅप पंद्रा में कहानो।’’ भैयाजी मोए घूरत भए बोले। मनो मोरो दिमाग कहूं हिरा गओ होए।
‘‘जे हमाए इते इत्ती गरमी काए पड़न लगी? पैले तो ने पड़त्ती।’’ मैने भैयाजी से पूछी।
‘‘मोए का पतो?’’ भैयाजी कुनमुनात भए बोले।
‘‘आप खों काए नई पतो? अबई ऊ दिनां सो बड़े बढ़-चढ़ के बोल रए हते।’’
‘‘कबे?’’
‘‘अरे, ऊ दिना, जब आप मंदिर गए हते औ आपकी चप्पलें उते चोरी हो गई रईं। आप नंगे पांव घरे लौट रए हते औ आपके गोड़े जर रए हते।’’ मैंने याद दिलाई।
‘‘हओ-हऔ, याद आ गई। सो ऊसे का?’’
‘‘ऊसे जे के पैलऊं जित्ते पेड़-पौधा अपने इते हते, अब इत्ते नई बचे। सो धूप खों को रोकहे? ठंडक खों को बनाए रखहे? हमने पानी को सोई ठीक-ठिकानो नई रखो सो पानी खों संकट बढ़ गओ। अब आपई बताओ के जे जो गरमी के सारे रिकाॅर्ड टूटे जा रए ऊ लाने अपन ओरें जिम्मेदार नाइयां, सो औ कोन आए?’’ 
‘‘कै तो तुम सच रईं। जे तो हमने सोचई नईं।’’ भैयाजी सोचत भए बोले।
‘‘हऔ भैयाजी, जे जो सूची छपी बता रए आप, जे कोनऊ बड़वारी की सूची नोईं। जे हमाई लापरवाही की सूची आए। तनक समझो।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘सो, इत्ते पेड़े काट डारे हमने के इत्ती गरमी पड़न लगी?’’ भैयाजी भैराने से बोले।
‘‘हऔ तो! उते बक्सवाहा में को जंगल काट रए? हमें सो हीरे चाएने न, जंगल चाए कटें चाए बरें। चाए खेतन की जमीन होए, चाए जंगल की जमीन होए, हमें सो अपनी बिल्डिंगे बनाऊंनी है। सड़कें चैड़ी करीं सो ठीक, मनो पैले कहूं शहरी-वन सो उगा लेते। अब दसा जे है के मूड़ें जरत आएं, गोड़े जरत आएं मनो हमें का? रिकाॅर्डतोड़ गरमी परत है सो परन देओ। हमें सो, खुसी मनाओ चाइए के हमाओ नांव जलवायु बिगारन वारन की सूची में पैलऊं पंद्रा में आ गओ!’’ मोरे मों से कछु ज्यादई निकर गओ।
‘‘अब हमें ताना ने मारो! हो गई गलती। हमने सो सोची के चलो कहूं कोनऊं सूची में अपने शहरन को नांव सो आओ। मनो जे है तो शरम की बात , तुमने सांची कही बिन्ना!’’ भैयाजी शरमात भए बोले।
‘‘चलो, कोई बात नईं भैयाजी! होत का है के अपन ओरें अपने शहर के नांव, अपने देस को नांव दुनिया में सबसे ऊपर देखन चात आएं, जेई उत्साह में गड़बड़ी हो जात आए। चलो कछु नईं, अब सो आप समझई गए।’’ मैंने भैयाजी खों ढाढस बंधाई।
‘‘पर मोए सो अच्छो नई लग रओ! हमें सो जे सूची से सबक लेओ चाइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी, जे कोनऊं ई एकई साल में गरमी नोई बढ़ गई। हर साल बढ़त-बढ़त इते लो आ गई। हमने पैलऊं ध्यान दे लओ होतो सो ऐसे दिन ने देखने परते। मनो, अबे भौत कछु नई बिगरो आए। आज बी अपन ओरें सब ठीक कर सकत आएं।’’ मैंने कही। 
‘‘बो कैसे?’’
‘‘बो ऐसे के पेड़ कटबे से बचा के, जल्दी बढ़बे वारे पेड़ लगा के और पानी के स्रोत बचा के। कुआ गंदो ने करें, बावड़ियां साफ कर ले, नदी तालबन पे मोटर लगा के फालतू पानी खेंच के बरबाद ने करें। बस, इत्तई में तो भौतई दसा सुधर जेहे।’’   
‘‘मोए बताओ के मोए का करो चाइए?’’ भैयाजी अकुलाने से बोले।
‘‘कछु नईं, पैले सो आप अपने घरे जाओ। ठंडो पानी पिओ। भौजी के काम में हाथ बंटाओ। काए से के पेड़ लगाबे खों काम सो अब पानी बरसबे के बाद हुइए। बाकी कोनऊं तला, बावड़ी साफ करने खों चलने होए सो कल चल सकत आएं, तनक ठंडी बेरा में।’’ मैंने भैयाजी खों समझाओ।
‘‘हओ, जे ठीक कही तुमने। कल चलबी।’’ कैत भए भैयाजी अपने घरे की ओर चल परे।
मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। चाए सूची में नांव छपे, चाए ने छपे मोए का करने। मोए सो पेड़ लगाने है औ पानी बचाने है। आप आरें बी जेई करो। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!     
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(19.05.2022)
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