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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, May 18, 2022

चर्चा प्लस | क्या रूफ हार्वेस्टिंग से ज़्यादा ज़रूरी हैं रूफ-पूल? | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस 
क्या रूफ हार्वेस्टिंग से ज़्यादा ज़रूरी हैं रूफ-पूल?
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह                                               

 आमतौर पर आम आदमी को सलाह दी जाती है कि लंबे समय तक नल को खुला न छोड़ें, ध्यान से पानी खर्च करें, पानी बचाएं आदि-आदि। लेकिन उन लोगों के बारे में कुछ क्यों नहीं कहते जो बड़े निजी लॉन की सिंचाई करते हैं या निजी होम पूल बनाते हैं? क्या उन्हें भी पानी बचाने की सलाह नहीं दी जानी चाहिए? छत के रूफ हार्वेस्टिंग के बजाय रूफ टॉप निजी पूलों का तेजी से चलन बढ़ रहा है। यदि पानी बचाने में भी अमीर-ग़रीब का भेद किया जाता रहा तो ‘पानी बचाओ अभियान’ कैसे सफल होगा?

एक आर्किटेक्ट समूह के प्रबंध निदेशक पीयूष प्रकाश कहते हैं कि ‘‘आप एक मेट्रो में 250 वर्गमीटर के छोटे घर में रह रहे हों। तो भी आप अपना नहाने का पूल बनवा सकते हैं। एक सामान्य आकार के पूल के लिए एक निजी पूल की लागत 4-8 लाख रुपये के बीच आती है। उनके समूह ने पिछले कुछ वर्षों में भारत में 100 से अधिक निजी पूल बनाए हैं।’’ पीयूष प्रकाश के एक सहयोगी, अमित बहल आगे कहते हैं कि ‘‘उपयोग में आसान गैजेट्स आ जाने के कारण निजी पूल का निर्माण, रखरखाव और स्वच्छता के बारे में परेशान होने की आवश्यकता अब नहीं रही।’’

बात सुनने में लुभावनी लगती है लेकिन एक छोटा पूल क्या है? जबकि पूल के आकार और आयाम अलग-अलग होते हैं। जो लगभग 10 फीट गुना 10 फीट या उससे छोटा होता है, उसे आमतौर पर एक छोटा पूल माना जाता है। गहराई के मामले में, तीन फीट भिगोने और तैरने के लिए मानक है, और चार से पांच फीट और उससे अधिक छोटे पूल के लिए सबसे अच्छी गहराई है। 10 गुना 10 गुना 2.5 फीट माप वाले सबसे छोटे पूल में 1,052 गैलन पानी की क्षमता होती है। याद रखना चाहिए कि 1 लीटर 0.264 गैलन के बराबर होता है। छोटे पूल के 1,052 गैलन पानी का अर्थ है 4782.487 लीटर पानी। जो तैरने, नहाने के काम के बाद बहा दिया जाता है।
5 फीट की औसत गहराई वाले 12 बाई 24 फुट आयताकार पूल में लगभग 10,800 गैलन पानी भरा जाता है। समान गहराई वाले 16 बाई 32 फुट वाले पूल में लगभग 19,200 गैलन पानी लगता है और 20 बाय 40 फुट पूल में 30,000 गैलन पानी की ज़रूरत पड़ती है। भूतल पर जगह की कमी के कारण इन दिनों छत या छत पर पूल बनाने का चलन बढ़ गया है। भारत में केवल रूफटॉप स्विमिंग पूल की कीमत 900 से 1300 रुपये प्रति वर्ग फीट है जबकि 10 फीट व्यास गुना 30 इंच गहरी छत या टैरेस पूल में 3639 लीटर पानी होता है। वहीं, भारत में घरेलू जल उपयोग के लिए मानक मानदंड 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन (एलपीसीडी) है, जिसे केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन द्वारा निर्धारित किया गया है। तो, सवाल यह है कि 4 लोगों के परिवार को कितना पानी इस्तेमाल करना चाहिए? आमतौर पर 4 लोगों का एक परिवार नहाने, खाना पकाने, धोने, मनोरंजन और पानी के लिए 12,000 गैलन का उपयोग करता है।

इंटरनेशनल ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में 270 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो पूरे साल में 30 दिनों तक पानी के संकट का सामना करते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यदि अगले तीन दशकों में पानी की खपत एक प्रतिशत की दर से बढ़ती है, तो दुनिया को एक बड़े जल संकट से गुजरना होगा। भारत में भी पिछले दो-तीन दशकों से भूजल स्तर तेजी से बिगड़ रहा है। 2001 के आंकड़ों पर नजर डालें तो आज की तस्वीर काफी गंभीर है। भारत में प्रति व्यक्ति भूजल उपलब्धता 5,120 लीटर तक पहुंच गई है। 1951 में यह उपलब्धता 14,180 लीटर थी। अब यह 1951 की उपलब्धता का केवल 35 प्रतिशत है। 1991 में यह आधी हो गई थी। अनुमान के मुताबिक, वर्ष 1951 की तुलना में 2025 तक प्रति व्यक्ति प्रति दिन भूजल का केवल 25 प्रतिशत ही बचेगा। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के आंकड़ों के अनुसार, यह उपलब्धता वर्ष तक घटकर केवल 22 प्रतिशत रह जाएगी। 2050. एक महत्वपूर्ण तथ्य के अनुसार मनुष्य प्रतिदिन औसतन 321 बिलियन गैलन पानी का उपयोग करता है। इसमें अकेले धरती के भीतर से 77 अरब गैलन पानी निकाला जाता है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के 1.6 अरब लोगों को शुद्ध पेयजल नहीं मिल रहा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी पर केवल 0.5 प्रतिशत पानी ही उपयोग योग्य और उपलब्ध ताजा पानी है। संयुक्त राष्ट्र मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव का कहना है, ‘‘जिस गति से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, उससे पानी की उपलब्धता भी बदल रही है। गांवों में पीने के पानी की समस्या भी कम विकट नहीं है. वहां की 90 प्रतिशत आबादी पीने के पानी के लिए भूजल पर निर्भर है। हालांकि, कृषि क्षेत्र के लिए भूजल के बढ़ते दोहन के कारण, कई गांव पीने के पानी की समस्या का सामना कर रहे हैं।’’ वैज्ञानिक चिंतित हैं कि दुनिया के अधिकांश क्षेत्रों में पानी की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है, और प्रजातियां मीठे पानी के जीवों की विविधता और पारिस्थितिकी को तेजी से नुकसान हो रहा है। समुद्री पारिस्थितिकी की तुलना में भी यह क्षरण अधिक है।

यह ठीक है कि अगर आपके पास पैसा है तो आप इसे अपनी विलासिता पर खर्च कर सकते हैं लेकिन इस शर्त पर नहीं कि यह दूसरों के लिए असुविधा का कारण बने। पूल में स्नान करने की हर किसी की इच्छा होती है और सार्वजनिक पूल में जाकर यह इच्छा पूरी की जा सकती है। सार्वजनिक पूल का विस्तार करना बेहतर है। इससे उतने पानी की खपत नहीं होगी, जितना कि एक पूल वाले हर हजारवें घर में होगी। यदि हम अपने अतीत में देखें, तो सिंधु घाटी में सार्वजनिक तालाबों के अवशेष मिले हैं, जिससे पता चलता है कि सिंधु सभ्यता में सार्वजनिक स्नानघरों (पूल) का प्रचलन था। जबकि वे सभी शहर सिंधु नदी के तट पर स्थित थे और पानी की प्रचुर उपलब्धता थी। फिर भी वे पानी का सम्हल कर इस्तेमाल करते थे।
इनदिनों निजी पूल का बड़ा बाजार विकसित हो रहा है। लेकिन बाजार और बुनियादी जरूरतों के बीच संतुलन होना चाहिए। ऐसा लगता है जैसे हम अपनी बुनियादी कमियों को नजरअंदाज करने की आदत को अपनाते जा रहे हैं। पेड़ों की कमी है, फिर भी बचे हुए पेड़ों को काटा जा रहा है और भवनों का निर्माण किया जा रहा है। पार्किंग की कोई जगह नहीं है फिर भी सबसे बड़ी कार खरीदने में दिलचस्पी है। वायु प्रदूषण बढ़ रहा है लेकिन हम इस पर ध्यान नहीं देते हैं। इसी तरह, जिन्हें पीने का साफ पानी मिल रहा है, उनके पास पीने के पानी के प्रदूषण के बारे में सोचने का समय नहीं है।
अब जब हम जानते हैं कि जल संकट का विकट समय चल रहा है, तो हमें समझना होगा कि जल का कोई विकल्प नहीं है। प्रश्न है कि रूफ वाटर हार्वेस्टिंग क्या है? संक्षेप में कहा जाए तो इस तकनीक में मकान की छत की ढाल के अनुसार बरसाती पानी के आउटलेट से जल स्रोत तक पीवीसी पाइप लगाए जाते हैं। स्रोत के समीप इसी पाइप लाइन में फिल्टर लगाया जाता है। बस यही है रूफ वाटर हार्वेस्टिंग और इस तरह आकाश का पानी पाताल की गहराई में पहुंचता है। इससे भूमि में जल का स्तर बना रहता है। रूफ वाटर हार्वेस्टिंग के अंतर्गत बारिश के पानी को संचित कर, उसे फिल्टर कर पीने तथा अन्य उपयोग में भी लाया जा सकता है। इससे भू-स्रोतों में उपलब्ध पानी पर उपयोग का दबाव कम हो जाता है और भूमि में जल संतुलन बना रहता है।
मानव अस्तित्व जल पर निर्भर है। जल ही सृष्टि का मूल आधार है। जल ही भोजन है, जल है, वनस्पति है अर्थात् जल का कोई विकल्प नहीं है। जल संरक्षण ही पर्यावरण की रक्षा का उपाय है। जल का पुनर्भरण करना ही जल का उत्पादन करना है। हमें यह समझना होगा कि पानी के लिए इंसान की जरूरत किसी भी अन्य जरूरत से ज्यादा महत्वपूर्ण है। कुल मिलाकर यह समझना होगा कि पानी है तो कल है। हमें निजी पूल की विलासिता के बदले रूफ हार्वेस्टिंग को चुनना होगा।
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(18.05.2022)
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