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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, July 21, 2022

बतकाव बिन्ना की | हमें काए उंगरियां दिखा रईं? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात


 "हमें काए उंगरियां दिखा रईं? "... मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद "प्रवीण प्रभात" 🙏
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बतकाव बिन्ना की           
हमें काए उंगरियां दिखा रईं?                                 
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
     ‘‘का हो गओ भैयाजी? ऐसो मों बनाए काए फिर रए मनो तुमाओ उम्मीदवार हार गओ होए।’’ भैयाजी को उतरो भओ मों देख के मैंने उनसे पूछी।
‘‘ने पूछो, संकारे से बड़ो नुसकान हो गओ।’ भैयाजी पिल्ला घांई कूं-कूं सी करत भए बोले।
‘‘पैले तो आप नुसकान नईं, नुकसान बोलो!’’ मैंने टोंकी।
‘‘हऔ, वोई नुकसान! नुकसान हो गओ।’’ भैयाजी खों मोरी टोंका-टांकी पोसाई नईं।
‘‘सो अब बोलो के का नुकसान हो गओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘ने पूछो बिन्ना! जे बरसात में सोई दो दिना में नल आ रए। तुमाई भौजी बोलीं के सबरो पानी बासो भरो पड़ो आए, सो सब खों मेंक के ताजो पानी भरने परहे। हमने कही के ऊमें बाताबे जोग का आए? पुरानो मेंको औ भर लेओ ताजो पानी।’’
‘‘फेर?’’
‘‘फेर का? तुमाई भौजी बोलीं के मों ने चलाओ, हाथ चलाओ औ इते आ के बासो पानी पलटत जाओ। अब तुम सो जानत हो बिन्ना, के तुमाई भौजी की कही तो मनो पत्थर की लकीर होय। को काट सकत ऊको। सो हम उठे औ हमने गइया की हौदी में कलसा पलटो। अभई दो कलसा पलटे हते के तुमाई भौजी गरियात-सी बोलीं के जे का कर रै? हमने कहीं के तुमाए आदेस को पालन कर रए। कलसा खाली कर रए भरबे के लाने। सो वे बोलीं के जो तो हम सोई देख रए मनो तुम जे हौदी में काए डाल रए? का गऊ माता खों बासी पानी पिलाहो? हमने कही के सो, ऊमें का हो गओ? घरे की गऊ माता को सो पानी, खली, भुसी सबई कछु मिल जात आएं औ तनक उनकी सोचो जो भिखमंगन घाईं सड़क पे डोल रईं। उनको सो नरदा को पानी पीबे खों मिलत आए। हमाई बात सुन के तुमाई भौजी भड़क गईं। औ कहने लगीं के जो सड़क पे अपनी गऊ माता खों अवारा-सी छोड़ देत हैं, उनखों सो कीड़ा पड़हें! पर जे तुम हमाई गऊ माता के लाने बासी पानी ने भरो। औ जो तुमसे नई हो रओ सो जाओ इते से। जे बोलत भईं बे हमाए हाथ से कलसा छुड़ान लगीं। हमने कोसिस करी के बे ने छुड़ा पाएं। बस जेई खींचा-तानी में हमाओ मोबाईल हौदी के पानी में जा गिरो।’’ भैयाजी ने अपनी ट्रेजडी बताई।
‘‘सो, आपने रखो कहां हतो मोबाईल? का हौदी के पाट पे रखो हतो?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे नईं, हमाई जे शर्ट की जे ऊपर वाली खींसा में खुसो रओ। मनो कोनऊ झटका में वा हौदी में टपक गओ। हम सो रै गए सन्न! मनो तुमाई भौजी खों कोनऊ फरक नईं परो। बे तो औ अपनी उंगलियां चटकात, मुस्कात भईं बोलीं के जे अच्छो भओ अब कछु दिना टिपियाते भए ने बैठे रैहो। जरे पे नमक छिड़कबो जोई कहाउत आए। हमने हाथ डार के हौदी से अपनो मोबाईल निकारो। ऊमें से पानी चुचुआ रओ हतो। जे देख के हमाई आंखन में अंसुआं भर आए।’’ भैयाजी उदास होत भए बोले।
‘‘फिकर ने करो भैयाजी! उते चैराहा पे जो मोबाईल की दूकान आए, उते दिखा लेओ। उते मोबाईल सुधरे जात आएं।’’ मैंने भैयाजी को सहूरी बंधाई चाही।
‘‘उतई दे आएं हैं सुधारबे खों।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘कब लों मिलहे?’’ मैंने पूछी।
‘‘जेई तो सल्ल आए। बो कै रओ के दो दिना लग जेहें।’’
‘‘अब लग जान देओ! का कर सकत हो।’’ मैंने कही।
‘‘जेई तो बात आए के जे मोबाईल खों अबई हौदी में गोता लगाने रओ। अब हम दो दिना कछु ने कर पाहें।’’ भैयाजी खिजियात से बोले।
‘‘सो करने का आए? फेसबुक की डीपी दो दिनां बाद बदल लइयो।’’ मैंने भैयाजी को मूड ठीक करबे के लाने उने छेड़ो।
‘‘अरे, डीपी गई चूला में! तुमे पता नईं बिन्ना के जे टेम पे मोबाईल की खूबई जरूरत परने है मोए, औ अबई जे टें बोल गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसी का जरूरत परने?’’ मोए अचरज भओ।
‘‘देखो बिनना, अबई चुनाव भए आएं। सो, सबरी जांगा फेरबदल हुइए। कच्ची में लगे पुराने कर्मचारी बदल दए जेहें। अब जो कुर्सी सम्हालहे बो अपने लोगन खों रखहे। अब तुमे पतोई आए के हमाए मोहल्ला में हमाओ आदमी जीतो आए, सो ऊकी चलहे औ ऊसे सिफारिश के लाने लोग हमसे संपर्क करहें। अब जेई टेम पे मोबाईल को राम नाम सत्त हो गओ, अब हम का करबी?’’ भैयाजी अकुलात भए बोले।
‘‘सो आपका सिरफारिश करहो?’’ मैंने पूछी।
‘‘हऔ!’’ भैयाजी बोले।
‘‘पर जे तो गलत बात आए।’’ मैंने विरोध जताई।
‘‘ईमें कछु गलत नईं! कोनऊं खों काम चाउने, सो हमने उनके लाने बोल दओ, सो ईमें गलत का हो जेहे?’’ भैयाजी ने तर्क दओ।
‘‘सिफारिश के बदले कछु दान-दक्षिणा सोई लेहो?’’ मैंने शंका जताई।
‘‘थोड़ी-भौत ले लेबी सो का हो जेहे?’’ भैयाजी बोले।
‘‘मोए आपसे जे उम्मींद नई हती।’’ भैयाजी की बात सुन के मोए बुरौ लगो। मैंने आगे कही के ‘‘जे तो आप सोई भ्रष्टाचार करहो।’’
‘‘काए को भ्रष्टाचार? जे हमाई नगरपालिका झाड़ू के, नाली सफाई के, कचरा के औ न जाने काए-काए के पइसा बसूलत रैत आए जबके जे सबई कछु ठीक से होत दिखात है का? सो बो गलत नईं कहाओ? हमें काए उंगरियां दिखा रईं? हम सो जोन की सिफारिस करबी बोई से पइसा लेबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आप हमें जे सब ने सुनाओ! हम तो सोचत्ते के आप कछु गलत ने करहो, पर आप सोई ऊंसई निकरे।’’ मोए भैयाजी पे भौतई गुस्सा आ रओ हतो।
‘‘काए, जे सरकार जो मुफत-मुफत बांटत रैत आए, सो ईके लाने पइसा कहां से आउत आए। जे अपनई ओरन को पइसा रैत आए, जोन अपन टैक्स में भरत आएं। सरकार ले सो कछु नईं, औ हम लें सो दोंदरा। अबई सो कछु नईं, हम जरा अपने लोगन खों सेट कर लेवें फेर देखियो के हमें कोनऊ जमीन पे कब्जा कर के प्लाट काटने है, काए से के अगली चुनाव के पैले सबरी अवैध कालोनियां वैध होई जेहें।’’ भैयाजी उचकत भए बोले। मनो उन्ने प्लाट काट देओ होय औ पइसा बरसन लगे होंए।
‘‘बुरौ बोहो, सो बुरौ काटहो - जे कहनात आए। सो, आप सोई गलत ने सोचो।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘तुम औ बिन्ना! कहूं हम ऐसो कर सकत आएं? हम तो तुमें चिड़का रए हते।’’ भैयाजी हंसत भए बोले। फेर तनक दुखी होत कैन लगे,‘‘ बाकी मोबाईल बिना जिनगी झण्ड लग रई। सबई कछु सूनो-सूनो लग रओ। मोबाईल रैतो सो अबे लों पचासेक की पोस्टन पे टिपिया लेने हतो। खैर, जब मिलहे तभईं कसर पूरी कर लेबी।’’
भैयाजी की बात सुन के मोरी जान में जान आई। काए से के हमाए नोने भैयाजी जमाने के संगे बिगड़ जाएं, सो मोए सबसे ज्यादा दुख हुइए। मोरो तो सिद्धांत आए के - कम्म खाओ, गम्म खाओ औ बेंच के घोड़ा नींदें पाओ!     
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए कोनऊ प्लाट काटे, चाए कान काटे, मोए का करने? मनो हुइए बोई जो भैयाजी खुद करबे के लाने कै रै हते। भैयाजी सो ने करहें पर दूसरे सो करहें। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(21.07.2022)
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