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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, August 4, 2022

बतकाव बिन्ना की | चालक अपनों सिर धुने, ढारें टेंसुआ नीर | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

 "चालक अपनों सिर धुने, ढारें टेंसुआ नीर" ... मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
🌷हार्दिक धन्यवाद "प्रवीण प्रभात" 🙏
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बतकाव बिन्ना की
चालक अपनों सिर धुने, ढारें टेंसुआ नीर
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘काए भैयाजी, कहां की तैयारी हो चली?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। बे अपनी बलोरो के पांछू वारे हिस्सा में गठरिया-मठरिया सी ठूंस रए हते।
‘‘अरे कुल्ल जांगा जाने है बिन्ना!’’ भैयाजी गठरिया ठूंसत भए बोले।
‘‘कुल्ल मने कां-कां?’’ मैंने पूछी।
‘‘पैले छतरपुर जाने, उतई से दमोए निकर जाबी। फेर दमोए से जबलपुर सोई जाने। जे ई कोनऊ चार-पांच दिना तो लगई जेहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मनो जे आप बाहरे जा रए कहाने, सो तनक अच्छे ढंग से समान ले जाते, जे का, के गठरिया-मठािया सी बांध लई। कोनऊ देखहे, सो का सोचे? काए अपनो सागर को नांव बदनाम करा रए?’’ मैंने भैयाजी खों टोंको।
‘‘अरे कछु नईं बिन्ना, कोन कोनऊ बड़े शहर जाने, छतरपुर में सोई गांव जाने है। अब उते, बो का कहाऊत आए के ट्रालीबैग ले के जाएं सो सबई सोचहें के हम ओंरे अपनी शान आ दिखा रए। जेई लाने गांव घांई गठरिया बांध लई है। औ तुमाई भौजी ने सोई गुझियां, पपड़ियां बना के पिकिया में भर लईं आएं।’’ भैयाजी मुूस्कात भए बोले।
‘‘सो भौजी सोई जा रईं का?’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ! बे इते रैहें सो जेई सोच-फिकर कर के तबीयत बिगार लैहें के हम उते का कर रै? कोन के संगे फिर रए?’’ कैत भए भैया हंसन लगे।
‘‘आप औ सोई, भौजी कभऊं ऐसो नईं सोच सकत आएं।’’ मैंने भौजी की तरफदारी करी।
‘‘हऔ तो! हम सो ऊंसई ठिठोली कर रए।’’ कैत भए भैयाजी ने एक लठिया बलोरो के ड्राईवर वारी सीट लिंगा रख दई। 
‘‘जे लठिया काए ले जा रए? काए उते गांव में ढोर सोई चराने का?’’ मैंने हंसत भए पूछी।
‘‘गांव में नोई, पर रोड पे ढोर हंकारबे के लाने जे लठिया रखबो जरूरी आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात सो आप सांची कै रै भैयाजी!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘औ का! जेई लाने सो तुमाई भौजी खों संगे लिवा ले जा रए। काए से के कहां लों उतर-उतर के गइयां हकारबी? जे काम तुमाई भौजी के जिम्मे रैहे। तुमसे ऊ दिना पूछी हती सो तुमने कै दई के तुमाए पास चलबे खों टेम नइयां।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी! सांची कही हती हमने। अब करो का जाए, अपने इते के जे श्यामलम संस्था वारे इत्तो नोनो कार्यक्रम करत रैत आंए के छोड़त नईं बनत। औ ऊपे हमाए उमाकांत मिश्रा भैया, बे सो गजबई की मेहनत कर रैत आंए। कौनऊ से कार्यक्रम उनके लाने सौंप देओ, कभऊं फैल नईं हो सकत। रामधई!’’ मैंने कही।
 ‘‘जे तो है!’’ भैयाजी ने गाड़ी को पांछू को गेट बंद करत भए मुंडी हिलाई।
‘‘हौ भैयाजी! अभई छतरपुर गई हती, उते सोई ऐसई नोनो कार्यक्रम देखबे खों मिलो। उते बो ‘प्रसंग नर्मदा’ भओ रओ न, सो मैंने देखी के कित्ते प्यार से, कित्ते सलीका से उन्ने कार्यक्रम करो। सच्ची, जी जुड़ा गओ! मोए सो भौतई अच्छो लगो, मनो उन ओरन खों मोरो बोलबो-चालबो कित्तो पुसाओ, जे मोए ठीक से पतो नईं। बाकी दुसरे दिना उते के सबई अखबारन में इत्ती अच्छे से खबरें लगाई गईं के उनखों देख के मोए तो आंसुवां आ गए। उन ओरन में बड़ो अपनोपन रओ।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘बो सब ठीक आए, पर जे सो बताओ के तुमें आत-जात बेरा रोड पे गइयन को झुंड ने टकराओ का?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘का बात कर रए भैयाजी, आप पूछ रए के का झुंड ने टकराओ? अरे, रस्ता में जात बेरा दो दफा और आत बेरा में तीन दफा, यानी कुल्ल पांच दफा गइयां हमाई गाड़ी से टकरात-टकरात बचीं। आप कछु कर लेओ, जानवर सो जानवर आए। एक दफा सो, एक गइया नांए से मांए जात-जात पलटी औ गाड़ी के आगे आ ठाड़ी भई। बा तो कओ के ड्राईवर अच्छो चलाबो वारो हतो, सो ऊने कट मार के बचा लओ ने तो गइया को गाड़ी घलती सो ऊको चोट लगती औ हमाई गाड़ी को का होतो, कओ नई जा सकत।’’ बतात भई मोए झुरझुरी सी हो आई। बे सारे सीन आंखन के आगे दिखान लगे।
‘‘हऔ, बड़ो खतरो रैत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ का, तीन घंटा को रस्ता चार घंटा में पूरो भऔ। जे कोनऊं इन गइयन के लाने कछु करतई नईयां। दुफारी में सो कछु कम रैत आंए, पर संझा होत-होत सबरी रोड पे आ जाए हैं। उते चुनाव टेम पे अपने शिवराज भैया ने बोली रई के हमाए मध्यप्रदेश की सड़कें अमेरिका की सड़कन से ज्यादा अच्छी हैं, मनो बे ऊ बेरा गइयन के लाने भूल गए रए। एक तो गइयां रोड पे अड्डा जमाए रैत आएं औ उत्तई नईं, गोबर कर के गंदगी सोई फैलात रैत आएं। मनो विपक्ष घांईं उन्ने सोई ठान लेओ होए के सड़कें कित्तई अच्छी बनवा लेओ, हम सो उने अमेरिका घांई होन न देबीं। उने साफ-सुथरा न रैन देबी।’’ कैत-कैत मोए गुस्सा सो आन लगो।
‘‘मोए तो जे समझ में नईं आत बिन्ना! के जे गइयन के मालिक कोन टाईप के इंसान आएं? एक तरफा सो गऊ माता-गऊ माता कैत नईं थकत औ उतई अपनी गइयन खों सड़कन पे अवारा सी छोड़ देत आएं। बो तुमने कारी वारी गइया देखी हुइए, बो जो संकारे से हमाए दरवाजे पे ठाड़ी रैत आए... बो, बो दिखा रई। बा जब हमाए दरवाजे पे भिखमंगन घांई आ ठाड़ी होत है तो हमाओ तो जी भर आत है। तुमाई भौजी ऊको दो रोटी डार देत है, बाकी इत्ते बड़े सरीर को दो रोटियन में का होत है?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सही कही भैयाजी!’’
‘‘हऔ बिन्ना! इनके लाने सो अच्छी बड़ी गऊशाला होय सो ऊमें सब को राख दओ जाए। जोन खों दान-धरम करने होय सो उतई दान कर दओ करे। ई तरहा से इन ओरन खों कछु चारा-पानी सो मिलहे। जे भूंकी सो ने रैहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात सो आप नोनी-नोनी कर रए भैयाजी, पर अपन ओरन की कोन सुन रऔ? अपनी सो ठीक के अपन ओंरे सो छोटी गाड़ियां ले के चलत आएं, तनक उनकी सोचो जो बड़े-बड़े ट्राला ले इन रोडन से गुजरत आएं। उनखों सो मूंड़ भिन्ना जात हुइए।’’
‘‘औ का, बिन्ना। जेई कारण से आए दिना कित्ते एक्सीडेंट होत रैत आएं। जेई से तो हम तुमाई भौजी को संगे ले जा रए के बे उतर-उतर के गइयां भगाउत चलहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मने आप भौजी से क्लीनर को काम लेहो!’’ भैयाजी खों चुटकी लई।
‘‘अरे, जे उनसे ने कै दइयो, ने तो बे अभई चलबें से मना कर देहें।’’ भैयाजी डरात भए बोले।           
 ‘‘ने डराओ, भौजी से कछू ने कहबी। चलो, जेई बात पे मोरो जो दोहा सुन लेओ-
चौराहन औ रोड पे,  भई गइयन की भीर।
चालक अपनों सिर धुने,ढारें टेंसुआ नीर।।

‘‘बाह-बाह! भौत अच्छे! अब मोए तैयार होन देओ। लौट के मिलबी।’’ कैत भए भैयाजी अपने घरे बढ़ा गए।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए रोडन पे गइयां मिलें चाए कुत्ता? भौजी खों डंडा सो भांजनेई परहे। सो बोलो अब जने के -‘‘गऊ हमाई माता आए, जीको घरे राखबो नोई पोसाए।’’ बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(04.08.2022)
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