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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, November 17, 2022

बतकाव बिन्ना की | मोए सोई काल से करेला नई खाने | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

 "मोए सोई काल से करेला नई खाने"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की     
मोए सोई काल से करेला नई खाने                            
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
            ‘‘बिन्ना, तुमने कछु छोड़ो के नईं?’’ भैयाजी ने आतई साथ मोसे पूछी।
‘‘मोए का छोड़ने?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘कछु बी! मने जो तुम चाओ! चाय तो कटहल छोड़ सकत हो, ने तो नाॅनवेज छोड़ सकत हो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जो का कै रै भैयाजी? तबीयत सो ठीक आए न तुमाई? कोनऊ दिमागी बुखार सो नई हो गओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे मोए कछु नई भओ! मोरी तबीयत सोई चंगी आए। बाकी तुम बताओ के तुम का छोड़ रईं?’’ भैयाजी ने फेर पूछी।
‘‘अब जो आप गिना रए हो, सो जानतई हो के मैं ठैरी पक्की वेजेटेरियन मने शुद्ध शाकाहारी। मैंने कभऊं नानवेज को हाथ लो नई लगाओ औ आप छोड़बे की कै रै? बाकी कटहल सोई जेई से मोसे खाओ नई जात, के बो सोई बनबे के बाद नानवेज घाईं दिखात आए। औ आप कै रै के कटहल छोड़ दो, नानवेज छोड़ दो। अरे, जोन को कभऊं छियो लो नईं, उनखों छोड़बे की का बात भई?’’ मोए कछु समझ में नई आ रई हती के भैयाजी मनो कैबो का चा रै आएं।
‘‘बात जे आए बिन्ना के आज एक सभा हती, जीमें सब ओरन से कसम ख्वाई गई के सब जने अपने मन से कछु एक चीज छोड़ देबें। सो हमने सोई कसम खा लई के काल से हम करेला ने खेबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे का बात भई? आप सो ऊंसई करेला नईं खात हो। सो करेला छोड़बे की काए कही?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘ऐसोई करो जात आए बिन्ना! जब कोनऊं ई टाईप की कसम ख्वाए, सो बो चीज छोड़बे की कसम खा लई जानी चाइए जो तुमे पैलई से नईं पोसात! ईसे का होत आए के छोड़बे वाली कसम सध जात आए। कभऊं टूटत नइयां।’’ भैयाजी सयापन से बोले।
‘‘खूब कही भैयाजी आपने! मनो अपन ओरन खों दारू ने पीने की कसम सोई खा लेनी चाइए। काए से के अपन ओरें दारू-मारू खों छीयत बी नइयां।’’ मैंने हंस के भैयाजी से कही।
‘‘हऔ! जे तुमने ठीक कही। अबकी अगली सभा में मोए दारू छोड़बे की कसम खा लेने है, देख लइयो!’’ भैयाजी उचकत भए बोले।
‘‘मैं सो ठिठोली कर रई हती औ आपने सो ठानई लई।’’ मैंने खों टोकों।
‘‘ईमें ठिठोली की का बात? अब तुम्हई बताओ बिन्ना के शराबबंदी पे उन ओरन से कसमें ख्वाई जाती आएं जिनको शराब से कोनऊ लेबो-देबो नइयां। अब हम तुमें का बताए! बे जो उते तिगड्डा के लिंगे बजरंगबली की मढ़िया आए न, उतई बे तिवारन बहनजी रैत आएं। बे प्रायमरी स्कूल में पढ़ाती आएं। बे एक दिना बता रई हती के उनके स्कूल में सबई से कसमें ख्वाई गईं के कोनऊं शराब खों हाथ नई लगाहे। ने तो पीहे औ ने पियन देहे। अब तुमई सोचो बिन्ना के बे तिवारन बहनजी ने कभऊं सपरे-खोंरे बिगर पानी लो ने पियो हुइए औ उनको कसम खानी परी के बे कभऊं दारू खों हाथ ने लगेहें। मने हम जो कैबो चा रै के जे टाईप की कसमें ऐसई चलत आएं। अब का हुइए के तिवारन बहनजी खों कभऊं दारू छीने नईयां औ ने तो उनके तिवारी जी कभऊं छीहें। कहबे को कहो जेहे के जित्ते लुगवा-लुगाइयन खों कसमें ख्वाई गईं, उनमें से दो जने ने कसम खाबे के बाद दारू के तरफी कभऊं देखो लो नईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात सो आप सही कै रै भैयाजी! आंकड़े बढ़ो चाइए, काम बढ़े चाए नई बढ़े। ने तो दारू के ठेका के दुआरे ठाड़े हो के दारू पियन वारों से कसमें ख्वाई जानी चाइए के बे दारू छोड़ दें। मनो अब कोनऊं पढ़ो लिखो सभ्य सो आए। ऊने कभऊं कोनऊं खों मां-बैन की गाली लो नई दई, मने ऊको ऐसी गालियां आती लो नइयां, और ऐसे लोगन से कसमें ख्वा लई जाएं के बे कभऊं मां-बैन की गाली ने देहें, सो ईसे का होने। अरे, कसमें सो उनसे उठवाओ जाओ चाइए जो मां-बैन की गालियों के बिगर एक लाईन नईं बोलत आएं। है के नईं भैयाजी!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ, मनो जे संकल्प-मंकल्प में सोई जेई होत आए। अपने जो जे सयाने हरें रैत आएं बे बोई चाज छोड़बे के लाने संकल्प ले लेत आएं जोन उने अच्छी नई लगत। ईसे का होत आए के घरे बा खाबे के लाने उनपे कोनऊं जोर नईं डाल सकत आए। जैसे हमें करेला नईं पोसात, पर तुमाई भौजी जब देखो तब हमाए पांछू परी रैत आएं के करेला खाओ चाइए। जे भौत फायदेमंद रैत आए, बगैरा-बगैरा। अरे, मोए नई पोसात सो नईं पोसात। अब का हुइए के हमने तुमाई भौजी को बता दओ आए के हमने करेला नई खाबे की कसम खा लई आए। सो, अब बे हमें करेला ख्वाने के लाने हमाओ मगज ने खाहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आप सोई चतुर कहाने!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘औ का? जब जे नेता हरें चतुराई दिखा सकत आएं सो हम, तुम काए नई दिखा सकत?’’ भैयाजी बोले।
‘‘और का!’’ मैंने कही।
‘‘जेई लाने सो हम तुमसे कै रै के अगली बेरा जब सभा हुइए सो हमाए संगे चलियो औ अच्छे मंच पे ठाड़े हो के माईक के ऊपरे से संकल्प ले लइयो के काल से हम ने तो नानवेज खाबी औ न कटहल खाबी! औ कोनऊं चीज जो ने पोसाए बो छोड़ सकत हो।’’ भैयाजी खुस होते भए बोले।
‘‘कैने को सो कै दूं, बाकी मोसे जे चीटिंग ने हुइए!’’ मैंने भैयाजी से कही। फेर मैंने उन्हें बताई के ‘‘मोरी तो जेई से एक संगवारी से बिगाड़ होत-होत बची। बे बोली के तुम कसम खाओ के कभऊं मां-बैन की गाली ने देहो! मैंने उनसे कही के मैंने सपने लो में कभऊं ऐसी गाली नई दई, सो काए के लाने कसम खाऊं! आप सो उन ओरन को कसमें ख्वाओ जो जे टाईप की गालियां बकत आएं। उनको मोरी बात सुन के बुरौ लग गओ! औ बे कैन लगीं के जे मतलब के तुम गाली देबे को समर्थन करत हो। उनकी बात सुन के सो मोरा मुंडा घूम गओ! मनो मैंने जे न कही के मैं कभऊं कतल ने करबी, सो का ईको मतलब हो गओ के मैं कतल को समर्थन करती होऊं!’’
‘‘अरे, जे सब सो चलत रैत आए! ऐसे टेम पे सो तुमे सोई उनकी मन की कर देओ चाइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘उनके आकड़े बढ़ाबे के लाने मैं झूठ कै देओ? मोसे नईं हो सकत। मनो आप जो कछू छोड़बे की कै रए सो मैं सोच के बताबी की मोए का छोड़ने आए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘ज्यादा ने सोचो, तुमें जो कटहल या नानवेज की नई कैने, सो अंडा ने खाबे की कसम खा लइयो!’’ भैयाजी हंसत भए बोले। 
‘‘सो, ईसे सो औ अच्छो आए के दारू छोड़बे की कसम खा लई जाए जोन को कभऊं ने हाथ लआगो आए औ ने कभऊं लगाने है।’’ मैंने हंस के भैयाजी से कही।
‘‘हऔ, जेई सो हम सोच रए। चलो, हम पता लगाबी के दारू छोड़बे की कसमों वारी सभा कबे औ कां हो रई। अपन दोई चलबी। बढ़िया कसमें खाबी औ अपनी फोटू-वोटू खेंच के अपने सोशल मीडिया पे डार देबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, आपको सो कछु नईं, बाकी मोरे लाने कहूं लोग जे न समझ परें के जे दारू आएं औ जेई लाने अब छोड़बे की कसम खा रईं। रैन देओ, ईसे अच्छो आए के मैं सोई करेला-मरेला टाईप को कछू छोड़ देओं, जो मोय कम पोसात आए।’’ मैंने भैयाजी कही।
‘‘हऔ, एक-दो दिना में सोच लइयो! बाकी नशाबंदी की कसम खैहो सो बो नेता हरन के समर्थन में कही जेहे। आजकाल जेई को सीजन चल रओ।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘रैन देओ भैयाजी! मोए कच्ची में ने बिधाओ! मैंने सोच लई के मोए सोई काल से करेला नई खाने!’’ मैंने भैयाजी से कही।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। रही जे जे कसम-बसम की सो ईमें कछू नई धरो! जो कछू करने होय, सो उते करो जाओ चाइए जिते जरूरत आए! मने शराब के अहाता के लिंगे जा के कसमें उठवाओ औ पूरी कराओ सो कछू बात होय। है के नई? तो अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(17.11.2022)
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