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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, November 24, 2022

बतकाव बिन्ना की | अपने किसान भैया भौतई जिगरा वारे आएं | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"अपने किसान भैया भौतई जिगरा वारे आएं"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की      
अपने किसान भैया भौतई जिगरा वारे आएं                             
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
            ‘‘काए भैयाजी! बड़ी हांफी-सी आ रई, काए कां से भगत चले आ रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। ठंड परन लगी मनो उनके माथे पे पसीना चुचुआ रओ हतो।
‘‘ने पूछो बिन्ना! रामधई गोड़े दुखन लगे, कम्मर पिरान लगी। जे कै लेओ के हाड़-गोड़ सबई कछू पिरा रए।’’ भैयाजी ऊंसई हांफत-हांफत बोले।
‘‘चलो लेओ! जो ठंडो पानी पियो! कछु अच्छो लगहे।’’ मैंने भैयाजी को पानी को गिलास थमा दओ।
‘‘अरे मोरी बिन्ना! जे ठंडे पानी से कछू न हुइए। चाय-माय पिलाओ सो कछू जान में जान आए।’’ भैयाजी कही।
‘‘हऔ, चाय सोई पिला दे रई।’’ मैंने भैयाजी से हंस के कही औ चाय बनाबे के लाने किचन में चली गई।
‘‘लेओ, जे रही आपकी चाय!’’ मैंने भैयाजी खों कप पकरा दओ। तब लों भैयाजी सुस्ता चुके हते।
‘‘चलो, अब आप बताओ के किते से आ रए जो इत्ते थक गए? मों देख के ऐसो लग रओ के मनो कोनऊं ने कुचर-कुचर के मारो होय।’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘ऐसई समझ लेओ बिन्ना! अपने जे किसान भैया हरें बड़े जिगरा वारे कहाने, ने तो हमाए तो दोई दिना में राम नाम सत्त भओ जा रओ हतो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसो ने कहो भैयाजी! शुभ-शुभ बोलो! राम नाम सत्त होएं आपके दुस्मन के। मनो जे किसान भईयन की बात कां से आ गई?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘आने कां से? अरे, तुमने अखबार में पढ़ो हुइए के आजकाल सरकार किसानों के लाने यूरिया बांट रई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो, आप को का करने? आपके कोन से खेत आएं?’’ मैंने भैयाजी खों टोकों।
‘‘मोय नई चायने रओ। बाकी मोरो संग वारो आए न वो, रामचरण, ऊके खेत आएं। ऊने मोसे कई के संगे चलो! उते लेन में लगे-लगे जी सो उकता जात आए। अपन दोई रैहें सो चाए बतकाव करहें, चाए काना-दुआ खेलहें। तुमाओ खर्चा-पानी हमाई तरफी से। हमसे सोई सोची के आजकाल कछु खास काम सो है नईं, सो रामचरण के संगे घूम आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अच्छो करो!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘का अच्छो करो! हमाई मति मारी गई रई के ऊकी बातन में आ गए। वा सो हर साल जात रैत आए, सो ऊको सब पतो आए। मनो हमें सो कछु पतो नई रओ। हमने सोची के ऊके संगे जाबी, घूमबी, फिरबी। दोई जने बतकाव करबी औ अच्छो माल-टाल छानबी। काए से के ऊकी घरवारी ने मुतकी चीजें बना के संगे बांध दई रई।’’ भैयाजी बातन लगे।
‘‘फेर?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘फेर का! काल दुफारी बाद लो उते पौंचे। कछु नईं तो एक-डेढ़ किलोमीटर लम्बी लेन लगी रई। हम दोई जने ट्रेक्टर की ट्राली पे बैठ के काना-दुआ खेलने लगे। इत्ते में दो-चार जने औ आ गए। बे ओरें चा रए हते के ऊमें पइसा लगाओ जाए। बाकी हमने कै दई के हमें जुआ-पट्टी नईं करने! टेम पास की खेलने होय सो खेलो, ने तो फूटो इते से। बे ओरे हम ओरन से पैले से उते मौजूद रए, सो बे पैलऊं भौत बोर हो चुके रए। सो, बे बिना पइसा की खेलबे खों राजी हो गए। दिन ढर गओ, रात हो आई, मनो हम ओरन को नंबर ने आओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘फेर?’’ मैंने पूछी।
‘‘फेर जे के, रात को खुल्ले में हम दोई जने डरे हते। गरम हुन्ना-लत्ता सो ले गए रए, फेर बी जाड़ो लगत रओ। जेई में एक बड़ी उम्मर के किसान भैया हते सो उनकी तबीयत बिगर गई। हम ओरने को लगो के कहूं बे निपट ने जाएं। सो, दो-तीन जने उनको ले के अस्पताले दौड़े। अपने रामचरण भैया के बे पैचान वारे हते सो रामचरण सोई उनके संगे चलो गओ। औ जात-जात मोसे कै गओ के ऊको नंबर को खयाल मोय रखने परहे। सो, जे चिंता में मोय नींद लो नई आई। रई बिछावन की, सो, बा ट्राली पे चाए कोनऊ टाईप को गद्दा डाल लओ जाए, रैतो सो पथरई घांई। अखीर लोहा, सो लोहा ठैरो। ऊ पे जे ठंड के दिना में, खुल्ले में लोहा औरई जुड़ान लगत आए। ने तो मोसे लेटत बन रओ हतो औ ने बैठत बन रओ हतो। कैसऊं ने कैसऊं रात कटी। भुनसारे होतई साथ समस्या जे आई के, अब जो दिसामैदान के लाने निकरत हों सो कऊं रामचरण को नंबर ने आ जाए, औ अपने रामचरण भैया तबलों लौटे ने हते।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे तो वाकई बड़ी वारी समस्या आ गई रई।’’ मैंने भैयाजी से कही। औ कहत साथ मोय हंसी सोई आ गई।
‘‘तुमें हंसी-ठींठीं सूझ रई! तुम उते होतीं, सो पता परती।’’ भैयाजी खिझात भए बोले। फेर आगे बतान लगे, ‘‘बो तो कओ के कछू देरी में रामचरण आ गओ। सो हम दिसामैदान खों दौड़े। जबलों हम कुल्ला-मुखारी कर के लौटे, रामचरण ने चाय बना लई हती। बो सयानों आती बेरा अपने संगे दूध, चायपत्ती लेत आओ रओ। ने तो उते होटल की कट से बी कट चाय पी के सो हमाओ कछू न होतो। रामधई! हम दोई जने ने उते लुटिया भर-भर के चाय पी। रामचरण की घरवारी ने निमकी, शकरपारे रख दए रए, सो बे खाए। मनो फेर के दुफारी होन लगी पर रामचरण को नंबर ने आओ। हमने रामचरण से कही के भैया, जे दो बोरी यूरिया के लाने काय अपने दो दिना खराब कर रए? चलो, दूकान से ले लइयो। सो बो कैन लगो के ई समै पे कहूं ने मिलहे। इतई से लेने परहे। जो तुम थक गए हो सो घरे लौट जाओ! बाकी हम तो यूरिया ले केई लौटबी। हमने ऊसे कही के ऐसे कैसे हो सकत आए? संगे आएं हैं सो संगे लौटबी।’’  
‘‘औ का! बिलकुल सही कई आपने!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘अरे का बिन्ना! कैने को सो कै दई, मनो रात में जो ठंड लगी रई, ऊसे हाथ-गोड़े पिरा रए हते। घर में अच्छी-साजी गद्दा-पल्ली पे सोअत आएं, पर उते तो पथरा घांईं लोहा की ट्रली हती। मोरो तो जी सो घबड़ान लगो रओ, मनो रामचरण खों छोड़ के आओ बी नईं जा रओ हतो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘फेर कबे मिलो यूरिया?’’ मैंने भैयाजी कही।
‘‘आज भुनसारे नंबर लगो। हमने दोई बोरी लादी ट्राली में औ उते से ऐसे भागे, मानो कोनऊं भूत दिखा गओ होय। ऊने पैले मोरे घर मोय पोंचाओ, फेर बो अपने घरे चलो गओ। तुमाई भौजी को हमने आपबीती सुनाई सो बे हमाए अंसुवा पोंछन के बजाए बिगर परीं के कोन ने कई रई जाबे की। अब कहूं तुमाई तबीयत बिगर गई सो का हुइए! अब तुम तो जानते हो बिन्ना के जब तुमाई भौजी बिगरत आएं सो उते से भागबे मेंई भलाई रैत आए। तभई तो हम तुमाए इते भाग आए। तुमाई भौजी ने सो हमें चाय की बी नईं पूछी।’’ भैयाजी बोले।
 ‘‘खैर, भौजी की छोड़ो आप, उनको कैबो बी सही आए। आपको खेत में, खुल्ला में सोबे की आदत सो आए नईं। कहूं कछू ज्यादा ठंड-मंड लग जाती, सो सल्ल बींध जाती। मनो भैयाजी, आपने सही कई, के अपने किसान भैया हरें भौतई जिगरा वारे आएं।’’ मैंने भैयाजी से कही।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। मनों जे यूरिया-मूरिया बांटबे को कोनऊं और सही तरीका होने चाइए। अच्छो रै के खुल्ला बाजार में सब्सिडी दे के कम दोम पे बिकन देंवें। जोन खों जब लगे सो वो तभई उठा ले। बाकी ईकी बारीकी सो अपने किसान भैया जानत हुइएं, मोरे सो न खेत आएं औ न मैंने कभऊं खेती करी। बाकी जे है के दूसरन की पीड़ा में मोरो जी दुखत आए। तो अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(24.11.2022)
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