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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, December 23, 2022

बतकाव बिन्ना की | बे ओरें कां गऐं जो मोड़ियन खों टोंकत आएं | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"बे ओरें कां गऐं जो मोड़ियन खों टोंकत आएं"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।

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बतकाव बिन्ना की 
बे ओरें कां गऐं जो मोड़ियन खों टोंकत आएं                                                              - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 
          मैं भैयाजी के घरे पौंची। काए से के मोए पीनी हती चाय। मनो होत जे आए के जब आप सोचो के आज कहूं चाय मिल जाए सो वोई दिनां कोनऊं चाय को लो नईं पूछत। बाकी भैयाजी के इते ऐसो नइयां। भौजी घरे होंए सो बे चाय बना के पिला देत हैं, औ जो बे घरे ने होंय सो भैयाजी बना देत हैं। बड़ी नोनी चाय बनात आएं भैयाजी। फेर जे सोई आए के उनके घरे मैं मों बोल के चाय मंगा सकत हों। कोनऊं ओर के घरे ऐसो थोड़ई हो सकत आए। कोनऊं ने पिलाई सो पी लई, ने तो आंगू से तो मंगाई नईं जा सकत।   
मेंने देखी के भैयाजी अपने मोबाईल पे कछु टिपियाने में जुटे हते।
‘‘का कर रऐ भैयाजी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे करने का आए, ट्विटर पे पोस्टें देख रऐ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ट्विटर पे? सो आपको एकांट सोई आए ट्विटर पे?’’ मोय भारी अचरज भओ।
‘‘हऔ! ईमें ऐसो का खास कहानो? हमाओ सो इंस्टाग्राम पे सोई एकाउंट आए।’’ भैयाजी शान मारत भए बोले।
‘‘इंस्टाग्राम वारो आपको एकाउंट सो देखों है मैंने, बाकी ट्विटर को पतो नईं हतो।’’मैंने कही।
‘‘जब कोनऊं ट्रोन-मोल वाली पोस्टें देखने होय सो ट्विटर पे जाओ चाइए। ऐसी-ऐसी, ऐसी-ऐसी पोस्टें रैत आएं के अब हम का बताएं तुमाए लाने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, हमें पतो आए! ऊमें कछू सो ऐसी रैत आएं के पढ़ के जी भन्ना सो जात आए। बाकी आप कोनऊं पोस्ट देख रऐ हते के कोनऊं पढ़ रऐ हते?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हम पढ़ रऐ हते! बो का आए, आजकाल बो शाहरुख औ दीपिका की फिलम आई है न, बोई के बारे में ऐसो-ऐसो लिखो गओ है के हम सो तुमाए लाने बता बी नईं सकत। गजबई कर देत आएं लोग सोई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब ईमें लिखबे वारन को का दोष आए? बे शाहरुख औ दीपिका खों करो धरो आए। काए के लाने उन्ने ऐसो पोज दओ के कछु कैत नहीं बनत। अब कहबे वारे भले कहें के का पैले ऐसे पोज औ ऐसे हुन्ना लत्ता फिलम में नईं होत्ते का? मनो होत्ते लेकिन बे फिलम में नचनियां को रोल करन वारी पैनत्तीं। औ अब देखो सो दीपिका घांई अभिनेत्री ऐसो पोज दे रईं। का उने ऐसो करो चाइए? का उनके लाने ऐसो करबो पोसात आए? कित्ते अच्छे-अच्छे रोल करे हैं उन्ने, सो अब कोन को कर्जा पटाने रओ के ऐसो पोज देने परो।’’ मोए सोई कै आई। सच्ची, कहों सो मोय सो हॉलीवुड की फिलमें  बी अच्छी लगत आएं, मनो जब अपने इते की फिलम में बेमतलब की नंगूपना दिखाई जात आए सो मोय तनकऊ नईं पोसात। 
‘‘तुम कै तो ठीक रईं बिन्ना, पर पोज भर का, तुम हुन्ना के रंग सोई दखो!’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे रंग में का धरो? मनो दीपिका ने बोई पोज काले या हरीरे रंग के कपड़ा में दओ होतो तो का ऊ सीन की नंगई में कछु कमी आ जाती? रंग की बात सो अलग धरो, मोय सो बा पोज ई नईं पोसाओ। बा सो कोनऊं थर्ड ग्रेड की फिलम को थर्ड ग्रेड की हिरोइन को सीन लग रओ आए। का दीपिका ने खुद नईं देखो पोज देबे के बाद? अब आपई सोचो भैयाजी, के कोनऊं लुगाई नहाबे वारे छोटे-छोटे कपड़ा में समुंदर के किनारे रेती पे लेटी धूप ले रई होय सो ऊको देख के उत्तो बुरौ ने लगहे जित्तो के पचीस फिट के पोस्टर पे ऐसो पोज देख के बुरौ लगहे। धूप लेबे वारी खों देख के सो दिमाग में जेई आहे के बा सो धूप ले रई, मनो जे बाई का कर रईं? का सोचहें मोड़ा-मोड़ी?’’ मोरो मुंडा खराब होन लगो।
‘‘जे अपने इते कछू सेंसर-मेंसर बचो आए के नईं? मोय सो लगत आए के ओटीटी पे सेंसर सो लगा नईं पा रै सो सोचत हुइएं के फिलम को सोई चलन देओ ऊंसई।’’ भैयाजी बोले। 
‘‘सांची कई भैयाजी! आजकाल सेंसर बोर्ड सो तभई दिखात आए जब कोनऊं राजनीति वारी फिलम बनत आए। ने तो बाकी टेम पे पल्ली ओढ़ के सोत रैत आए। अरे, आप कोनऊं ‘बाज़ार’ या ‘मंडी’ घांई फिलम बना रए हो सो आप रेड लाईट एरिया की दसा खुल के दिखा लेओ, कोनऊं गलत नईंया। मनो सिरफ फिलम चलाने के लाने औ विवाद बनाबे के लाने ऐसो सीन करो सो जमत नइयां।’’ मैंने कही।
‘‘हऔ तो बिन्ना! मनो तुमने एक बात गौर करी?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘का? का बात?’’
‘‘जेई के, जोन विरोध कर रए बेई अपनी पोस्टें चमकाबे के लाने सबसे पैले बोई फोटू लगा रए। फोटू दिखा के लिखत आएं के देखो जे कित्ती गंदी आए। अरे, भैया हरो! जो बे फोटुएं गंदी आंए सो तुम काए के लाने पोस्ट कर कर के फैला रए? तुमई कछु संसर कर लेओ? नईं उने सोई अपनी पोस्ट चमकाने आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे सो, होतई रैत आए भैयाजी! मोय सो जे लगत है के ई टेम पे बे ओरे कां हिरा गए जो बच्चियन के लाने, लुगाइयन के लाने उपदेस देत रैत आएं के पश्चिमी टाईप के  कपड़ा पहनबे के कारण लोग उनपे गंदी नज़र डारत आएं। अब उन ओरन खों जे सब नईं दिखा रओ? सबरे कां चले गए?’’ मोय सोई कै बिना रओ नई गओ।
‘‘सांची कै रईं बिन्ना! बच्चियां तनकऊं जींस पैहन लें सो बोई खटकन लगत आए। कछू करें अपराधी मनो दोष दओ जात आए मोड़ियन के हुन्ना-लत्ता खों। औ जे सब देख के अपराधी हरें का सीखहें? बात उठत है सो इंटरनेट को दोष दे दओ जात आए। चलो ठीक, मान लई! मनो जे सो फिल्म आए, ई के लाने सो कछु ध्यान रखो चाइए।। ने तो सबई खों एक सो रैन देओ। कोनऊं के लाने नियम कनून, औ कोनऊं के लाने कछु नईं।" मैंने कही।       
"चलो छोड़ो बिन्ना! अपन ओरें काय गिचड़ रऐ? उनें अपनी फिलम हिट कराने हती सो करा लई।" भैयाजी बोले।      
"हऔ! मनो बदनाम भऐ सो का, नांव सो भऔ!" मैंने कही। भैयाजी की बातन में दम सो हती।
‘‘औ का जे का पैलई बार हो रई? आजकाल सो फिलम को नांव चमकाने के लाने कछु ने कछु विवाद कर लो जात आए।’’ भैयाजी बोले।   
       ‘‘हऔ, कै सो आप ठीक रै हो! बाकी अब मोय चलो चाइए।’’ मैंने कही।
       ‘‘रुको तो, चाय पी लेओ, फेर जाइयो!’’ भौजी जबलौं चाय ले आई।ं
       सो, मैंने चाय पी। भौजी के लाने दिल से दुआएं दीं औ निकर परी उते से।    
          बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। मोय सो जाने नइयां फिलम देखबे के लाने, सो मोय का। तो अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। औ कोनऊ साजी सी कहनात याद आए सो मोए जरूर बतइयो! सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम! 
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(22.12.2022)
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