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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, March 23, 2023

बतकाव बिन्ना की | ऐसी तरक्की ने करो बाई हरों, प्लीज़ | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"‘ऐसी तरक्की ने करो बाई हरों, प्लीज़ !"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
ऐसी तरक्की ने करो बाई हरों, प्लीज़ !!!                                                       
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        भैयाजी बड़ी सोच-फिकर में डूबे दिखाने। बे जोन टेम पे अपनी कुर्सी पे उकडूं-मुकडूं बैठे दिखात आएं सो, मोय समझ में आ जात आए के भैयाजी की मुंडी पे कोनऊं चिंता सवार हो गई आए।
‘‘का सोच रए भैयाजी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हम जे सोच रए बिन्ना! के नवरातें शुरू हो गईं आएं।’’ इत्तो कै के भैयाजी चुप हो गए।
‘‘सो, ई में खास का? जे सो सबई खों पतो।’’ मैंने कई।
‘‘नईं, हम जे नईं कै रए के ईमें कछू खास आए। हम सो जे कए रए के अपन ओरें सोंचत आएं के अपने इते की बिन्ना हरें, लुगाइयां हरें तरक्की कर लेवें। मनो, अब हमें समझ में आन लगो के अपनी बाईयां खूबई तरक्की करन लगी आएं।’’ भैयाजी ने गंभीरता से कई।
‘‘हऔ, जे तो सही आए। अब आप देख लेओ के अपनी वित्तमंत्री औ राष्ट्रपति दोई लुगाइयां आएं। अब सो चाए फौज होय चाए कार्पोरेट, सबई कहूं हम ओरन ने दिखा दओ के हम ओंरें कोनऊं से कम नोंई। बस, तनक अपराध औ कम हो जाएं, सो खूबई तरक्की करहें हम ओरें!’’ मैंने जोश में आ के अपनों दाइनों हाथ मटकात भए बोली।
‘‘हऔ, तुम ठीक कै रईं! मनो तुम ओरन सोई अब अपराध करे में पांछू नईं रईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का कै रै आप? आपकी जे बात से का मतलब आपको?’’ मैंने देखी के भैयाजी चिड़का नईं रए, बे तो गंभीरता से कै रए हते। सो मोए उनकी जे बात बुरई लगी।
‘‘हम का गलत कै रै? इतिहास उठा के देख लेओ। चाय पुतलीबाई होए, चाए फूलनदेवी बे दोई का मरदन घांईं डाकू नईं बनी रईं?’’ भैयाजी ने कई।
‘‘बे कोनऊं अपनी इच्छा से नईं बनी हतीं। उन ओरन पे अत्याचार भओ रओ जेई से बे डाकू बन गई रईं। बाकी मैं जे नई कै रई के बे ओरें सशक्त लुगाइयां हतीं। सशक्त तो बे तब कई जातीं जब डटी रैंती औ कानून से अपने अपराधियन खों सजा दिलाउतीं। बंदूक चलाबे में कोन सी बहादुरी कहानी? बा तो कोनऊं ठां-ठां कर सकत आए। औ जे ऐसे नांव ने गिनाओ आप! जे कोनऊं तरक्की वारी बात नोईं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
बाकी मोय याद आ गई के अबई हप्ता-दो हप्ता पैले महिलाओं पे एक आयोजन भओ रओ। ऊमें एक लेख लिखबे की प्रतियोगिता सोई हती। ऊमें एक लेख में एक बिन्ना ने इंदिरा गांधी, कल्पना चावला औ अपनी राष्ट्रपति महामहिम द्रौपदी मुर्मू के संगे फूलनदेवी को उदाहरण दओ रओ। मोय न पोसाओ रओ। अपनो बदला लेबे खों बंदूक उठाबो कोनऊ बहादुरी को काम नोईं। सो मैंने ई बारे में उते टोकों रओ। मनो इते भैयाजी दूसरी टाईप से कै रए हते।
‘‘चलो मान लओ के जे तरक्की वारी बात नोईं। मगर जे सोचो के रिश्वत लेबे में, पेपर लीक करबे में सोई लुगाइयन के नांव आने लगे। का ईको तरक्की ने कैहो?’’ भैयाजी बोले। उनकी जे बात सुन के मोय गुस्सा सो आओ, मनो शरम सोई आई। जे ओरे सबई लुगाइन की नाक काय कटवा रईं?
‘‘काय? ई पे कछू नई कै रईं?’’ भैयाजी ने मोरो मजाक बनाओ औ फेर कैन लगे,‘‘बाकी हम सोच रए हते के हमाए जमाने में ई टाईप से परीक्षा के पेपर बिकत रए होते तो हम दो बेर दसमीं में और दो बेर बारहवीं में फेल न भए होते। दसमीं में जब हम पैली बेर फेल भए रए तो हमाए बापराम ने हमाई खूबई सुताईं करी रई। और दूसरी बेरा में सो बे डंडा ले के हमाए पांछू दौड़े हते। जेई से जब हम बारहवीं में पैली बेर फेल भए सो अम्मा ने हमें बाबूजी के घरे आबे से पैलईं मम्मा के इते भगा दओ रओ। हम उते मईना भर डरे रए। जब बाबूजी को गुस्सा तनक ठंडो भओ, तब कहूं हमाई वापसी भई।’’
‘‘औ जब आप बारहवीं में दूसरी बेरा फेर भए सो का भओ रओ? ऊ टेम पे तो बाबूजी ने न छोड़ो हुइए।’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ, हम सोई जानत हते के हमाओ रिजल्ट पतो परतई बाबूजी खों दौरा परन लगहे, सो रिजल्ट आबे के पैलईं हम कक्का के इते दिल्ली भाग गए रए। मनो अम्मा को बता दओ रओ, ने तो बे बिचारी हैरान होत फिरतीं। बे हमाई दसा समझत रईं। बे ई हमें बचात्तीं बाबूजी के डंडा से।’’ भैयाजी बतान लगे।
‘‘सो आप दिल्ली से फेर कबे लौटे?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे लौटबे के नांव पे हमाए प्रान निकरे जा रए हते। हमें पतो रओ के हम लौटबी सो हमाए बापराम हमाई खपड़िया फोड़ दैहें। सो, हमने खबर भेजवा दई के अब हम कभऊं घरे ने लौटबी। हमाई खबर पा के बाबूजी सो औरई भन्ना गए, मनो अम्मा ने खाबो-पीबो छोड़ दओ। उन्ने बाबूजी से साफ कै दई के जब लौं हमाओ मोड़ा हमें ने दिखैहे तब लौं हमें तुलसी को पत्ता लों अपने मों में नई डारने। अखीर में बाबूजी खों झुकनो परो। औ हमाई वापसी भई।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘जो आप तनक मन लगा के पढ़ लेते तो जे सब ने होतो।’’ मैंने कई।
‘‘बा सो ठीक, मनो हम सो जे सोच रए के ऊ टेम पे हमें एकाद पेपर खरीदबे को मिल जातो सो हमाई एक्जाम की नैया एकई बेर में पार लग गई रई होती। हमें नाएं-माएं भागने नईं परतो। जो कोनऊं बैनजी मिल गई होतीं सो हमाए लाने पेपर खरीदबो औरई आसान हो रओ रैतो। काय से के हमें लुगाइन से बोलबे में कभऊं उत्ती हिचक नई होत रई जित्ती के अपने बापराम घांई लुगवां हरों से बोलबे में डर लगत्तो।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘तो का आप सच्ची में एक्जाम को पेपर खरीद लेते?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। काय से के मोय भरोसो आए के भैयाजी अपने टेम पे चाय कित्ते बी उधमी रए होएं मनो इत्तो गलत काम बे कभऊं ने करते।
‘‘का पतो! बाकी हो सकत के बापराम के डर से ऐसो कर सकत्ते।’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले। अब जा के उनकी गंभीरता खतम भई। जे देख के मोय अच्छो लगो।
‘‘सो ई नवरातें में कां जा रए दरसन करबे के लाने?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। काय से के मोय डर हतो के भेयाजी फेर के बा लुगाई पे जा पौंचहें जोन को नांव पेपर लीक वारन में आओ रओ औ ऊकी गिरफ्तारी सोई भई रई।
‘‘ई बेरा कहूं नईं जाने। अबईं पिछली नवरातें में मैहर में शारदा मैया के दरसन कर आए रए, अब जो जानई हुइए सो रानगिर लौं हो आबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हो आइयो! भौजी सोई प्रसन्न हो जैहें। उते रानगिर वारी देवी मैया के इते बड़ी भीड़ परत आए। बाकी इन्तेजाम सोई खूबई नोनो रैत आए। बे तो देवी मैया तीन टेम पे अपनो तीन रूप बदलत आएं। सुबै के टेम पे लोहरी बिन्ना घांई, दुफैर की टेम पे बड़ी बिन्ना घांईं औ संझा की टेम पे सयानी लुगाई घांईं। बड़ो मान आए रानगिर वारी देवी मैया को।’’ मैंने भैयाजी खों याद कराई।
‘‘हऔ,? हम का जानत नइयां? जब हम स्कूल में पढ़त्ते, ऊ टेम पे हम दो-चार ठइयां दोस्त हरें अपनी-अपनी सायकिल पे निकर परत्ते रानगिर के लाने। ऊ टेम पे उते घनो जंगल रओ। मनो अब तो सबरे पेड़ पटा गए। गंजा के सिर पे बाल घांई दसा भई जा रई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब इत्ती बी दसा नईं बिगड़ी।’’ मैंने कई।
‘‘तुम नोई समझ सकत, काय से के तुमने ऊ टेम के उते के जंगल नई देखे। हमने देखे रए। बाकी जे बात सही आए के अब उते दरसन के लाने अच्छो इंतजाम रैत आए। जब से अपने मंत्रीजी गोपाल भार्गव भैया ने उते की सड़कें पक्की करा दईं, तब से तो उते पौंचबों आसान हो गओ। ने तो धचकत-धचकत उते लौं पौंचत्ते। हाड़-गोड़ दुखन लगत्ते।’’ भैया ने कई।
‘‘हऔ, ऐसी बिगरी दसा में सो मोय सोई जाने को मौका परो रओ। बाकी अपने इते बुंदेलखंड में मुतकी जांगा आएं देवी मैया के दरबार की। इतई बाघराज वारी देवी ठैरीं औ उते पन्ना लों पौंच जाओ सो पद्मावती देवी मैया के दरसन कर के आंखें जुड़ा जात आएं। चाय छतरपुर होय, चाय दमोए, चाय टीकमगढ़, उरई, बांदा, कालंजर सबई जांगा माई खों राज आए। दतिया में सो मैया पीताम्बरा रैतई आएं। अपने बुंदेलखंड पे माता की बड़ी किरपा आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो तो आए! जेई लाने सो अपनी बुंदेलखंड की लुगाइयां अच्छो-अच्छो काम कर के तरक्की कर रईं, बे अपराध करबे की दिसा में नईं जा रईं।’’ भैयाजी बोले। मोय समझ में आ गई के भैयाजी अब मोय चिड़काबे के लाने ऐसो कै रए। बाकी बे गलत नोईं। हम लुगाइयन खों मरदन की बरोबरी करो चाइए, मनो अच्छे काम में, गलत काम में नोईं। के बे ओरे रिश्वत ले रए, सो हम लुगाइयां सोई रिश्वत लेन लगें। बे ओरे परीक्षा के पेपर बेंच रए सो हम ओरें सोई पेपर बेचन लगें। ऐसो करबे से सबई लुगाइन खों नीचे देखने परत आए। औ मोय पतो रओ के अब भैयाजी जेई-जेई बात करहें। सो मैंने पतरी गली पड़क के उते से निकरबे में भलाई समझी औ भैया खों टाटा बाय-बाय कर लई।        
रओ तो ठीक के मैंने ई टेम पे भैयाजी के टाॅन्ट के टंटा से सो पीछा छुड़ा लओ, बाकी मोरी लुगाइयन से एकई बिनती आए के बाई हरों तरक्की करो, खूब करो! मनो ऐसी गलत काम वारी तरक्की ने करो के अपन ओरन सब खों नीचो देखने परे। सो, ऐसो ने करो बाई हरों, प्लीज़!
बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम! औ देवी मैया की जै!!!
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