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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, May 4, 2023

बतकाव बिन्ना की | भैयाजी की मानें सो, विपक्षी मनें पर कटे पक्षी | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"भैयाजी की मानें सो, विपक्षी मनें पर कटे पक्षी  " - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
भैयाजी की मानें सो, विपक्षी मनें पर कटे पक्षी                 
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
      ‘कछू कओ बिन्ना, ई बेरा चुनाव में तनऊ मजो नई आने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काय? आप अबई से काय इत्ते निरास दिखा रए? अबे तो चुनाव में कुल्ल टेम आए।’’ मैंने भैया जी से कई।
‘‘काय को कुल्ल टेम? जे कढ़ो जा रओ 2023...औ ईके बाद आ जाने 2024... समै सरकत कोन टेम लगत आए!’’ भैया जी ने कई।
‘‘हऔ, सो तो सही आए! मनो आपको अबई से ऐसो काय लग रओ के ई बेरा मजो नईं आने?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब तुमई बताओ बिन्ना के का ताली एक हाथ से बजत आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘नईं!’’
‘‘का घड़ी में एकई कांटा होत आए?’’ भैयाजी ने फेर के पूछी।
‘‘नईं!’’
‘‘का बच्चा होबे के लाने बाप-मताई दोई नई लगत का? अकेले बाप-बाप या मताई-मताई से हो जात आएं का?
‘‘जो का कै रए आप? मोय कच्छू समझ नई पर रई।’’ सच्ची मोए कछू समझ में ने आ रई हती।
‘‘अरे, हम सो एक बात कै रए, के जां दो लगत आएं, उते दोई लगत आएं! एक से काम नईं चलत।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मने?’’
‘‘मने जे बिन्ना, के ई बेर के चुनाव में पक्ष सो तगड़ो दिखा रओ, मनो विपक्ष तो दूर-दूर लौं नईं दिखा रओ।’’ भैयाजी बोले।
अब जा के मोए समझ में आई के भैयाजी काय के बारे में जे बातकाव कर रए।
‘‘ऐसो नईंयां भैयाजी! आप का देख नईं रए के अपने पुराने वारे डिग्गी राजा इते-उते सभाएं कर रए। जे चुनावई के लाने सो आए। औ बे विपक्ष में आएं। सो आप जे ने बोलो के दूर-दूर लौं विपक्ष नईं दिखा रओ।’’ मैंने भैयाजी खों डिग्गी राजा की सभा की याद कराई।
‘‘हऔ, भली कई सभा की! जिते इने होने चाइए उते तो दिखात नइयां जे ओरें।’’ भैयाजी बमकत भए बोले।
‘‘किते देखो चात हो आप इन ओरन खों?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘तुमई बताओ बिन्ना, के जब अपने इते बे बाल विकास वारी... बो का कहाउत आए के हां, आंगनबाड़ी वारी लुगााइयां अनशन पे बैठी रईं, सो विपक्ष को कोनऊं बड़ो वारो नेता उनके लिंगे ने पौंचो। पक्ष वारे सोई उन ओरन की बाट हेरत-हेरत थक गए। मनो, थकहार के अपने भूपेन्द्र सिंह भैया पौंेचे। उन्ने भरोसो दिलाओ के बहनजी हरों, कोनऊं विपक्ष वारो तुमाए लाने आबे वारो नइयां, सो टेम खोटो ने करो! हमाई बात मानों औ अपने-अपने घरे जाओ। हम सो तुम ओरन की सुध लेई लेबी। बे लुगाइयां सोई समझ गईं औ बे अपनो पंडाल-मंडाल लपेट-लुपूट के अपने घरे बढ़ा गईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसो कऊं नई भओ।’’ मैंने भैयाजी की बातन को विरोध करो।
‘‘मनो ऊपर-ऊपर ऐसो नई कओ गओ, पर भीतर-भीतर जेई बात रई। अब तुमई बताओ के जो उन लुगाइन खों कोनऊं दमदार विपक्ष वारो को साथ मिल जातो तो का बे मांग पूरी कराए बिना बढ़ लेतीं? अच्छा, चलो अपने इते की छोड़ो! जे बताओ के जोन टेम पे अपने देस की पहलवान बिन्ना हरें उते जंतर-मंतर पे बैठीं आएं सो उते जा के उनको हौसला बढ़ाबे के बदले जे इते-उते फिर रए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे भैयाजी, आप सोई कां लगे हो, जे सब राजनीति की बतकाव आए, अपन ओरन खों समझ में ने आहें।’’ मैंने भैयाजी से कई।
 ‘‘ईमें समझ में ने आबे वारी बात कोन सी आए? अकेलो बा राहुल गांधी कां-कां फिरहे? बाकी जने का कर रै? जो कऊं कांग्रेस जीत गई, बाकी ऐसो होत दिखात तो नइयां, मनो सोचबे में का जात आए, के मनो कांग्रेस जीत गई सो देख लइयो स्टांम्प पेपर पे लिख के दे सकत आएं के, जे जो अबे पल्ली ओढ़ के एसी चला के सो रए बे सबरे फोटूशाप करा के दिखात फिरहैं के हमने सबसे ज्यादा मेनत करी रई। जेई-जेई में सो लुटिया डूब गई कांग्रेस की।’’ भैयाजी खरी-खरी बोलत गए।
‘‘मनो विपक्ष में अकेली कांग्रेस नोंईं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो, औ को दिखा रओ तुमें? का तुम दिल्ली वारे की बात कर रईं? आज के जमाना में अकेली दिल्ली से कछू नईं होत। जे बो वारो टेम नोईं के दिल्ली फतेह कर लई सो पूरे भारत पे राज हो गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ई तो बो टेम पे बी नई हो पात्तो! दिल्ली पे भलईं सूरी औ मुगलों को राज रओ, मनो इते महाराज छत्रसाल ने घुसन नई दओ और उते छत्रपति शिवाजी महाराज ने घुसन नईं दओ। मनो फेर बी, बो टेम अलग हतो। बो टेम से आज की बरोबरी ने करो आप!’’ मैंने भैयाजी से गई।
‘‘चलो बो टेम को छोड़ो, हटाओ! तुम तो जे बताओ के राहुल गंाधी की सांसदी बची के चली गई?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘चली गई, मनो...’’मैंने आगे कछू कैनो चाओ पर भैयाजी ने मोरी बात काट दई।
‘‘मनो-वनो छोड़ो! गई मनो गई! औ अब लग रओ के डिग्गी राजा औ कमलनाथ की सांसदी सोई ने चली जाए!’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो का? भले सांसदी ने रैहे, पर बे ओंरे रैहें सो विपक्षी।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, बुरौ ने मानियों के विपक्षी मनें पर कटे पक्षी!’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘खूब कई आपने भैयाजी! विपक्षी मनें पर कटे पक्षी! भौतई ग़ज़ब की कै दई आपने!’’ मोए सोई हंसी आ गई।
‘‘औ का? कभऊं कोनऊ परकटे पंछी खों उड़त भओ देखों?’’ भैया ने पूछी।
‘‘जोन के पर कट गए, बा कैसे उड़ सकत आए?’’ मैंने कई।
‘‘जेई तो हम कै रए के जे पर कटे का खा के चुनाव लड़हें? अब रई चुनाव की, सो तुमई बताओ बिन्ना, के जो चुनाव में विपक्षई ने होय और एकई पक्ष रए, सो काए को चुनाव औ काय को मजा?’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात सो आप ठीक कै रए भैयाजी! मनो अबे  टेम आए! हो सकत के कोनऊं चमत्कार हो जाए!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘तुम औ अंधविश्वास वारी बात करन लगीं! काय को चमत्कार हुइए? राजनीति चमत्कारन से नोईं चलत आए। जेई समझाबे के लाने सो भगवान कृष्ण ने सारथी बन के युद्ध में साथ दओ रओ। ने तो बे चाउते तो कोनऊं चमत्कार से कौरव हरन खों उतई आड़ो कर देते।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सही कई आपने! मनो अब जे सोचबे के अलावा कछू चारो बी तो नईयां। अब साढ़े चार साल कढ़ गए, सो छः मईना में नओ विपक्ष कां से पैदा हो जेहे?’’ मैंने भैयाजी से कई। मोय सोई लगो के भैयाजी सांची कै रए के ई बेरा चुनाव फीको रैहे। दंगल में सोई तभईं मनो आत आए जब दोई पैलवान ताल ठोंकबे वारे होंए। जो एक मुस्टंडा रैबे औ दूसरो पिद्दी, सो काय को दंगल? एकई दांव में किसां पूरी हो जेहे।
‘‘का सोचन लगीं?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘मैं जे सोच रई के जो चुनाव में कोनऊं दम नई रैने सो ऊपे खर्चा ई काए करो जाए? कोनऊं जरूरत नइयां चुनाव-फुनाव की।’’ मैंने कई।
‘‘ऐसो ने कओ बिन्ना! जो चुनाव ने हुइए तो अपनो लोकतंत्र को का हुइए? सो अपन ओरें चाय बोर होवें, चाए मोर होवें, चुनाव तो मनो जरूरी आए।’’  
बात सो सही कई भैयाजी ने मनो आप ओरें सोई सोचिए के ई बेरा कोन टाईप को चुनाव हुइए? मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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