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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, June 2, 2023

मेरे नौका विहार | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मेरे नौका विहार ...⛵🚤⚓
⚓नाव पर सैर करने के गिनती के अवसर मुझे मिले हैं। जब उन अनुभवों को याद करती हूं तो मन प्रफुल्लित हो उठता है। 🥰
🚩मेरा पहला नौका विहार था जबलपुर के भेड़ाघाट का। उन दिनों मैं छठीं कक्षा की परीक्षा पास करके मां के साथ जबलपुर गई थी। उस बार बोर्ड परीक्षा की कॉपियों का मूल्यांकन केंद्र जबलपुर था। हमारे ठहरने की व्यवस्था B.Ed कॉलेज के महिला छात्रावास में थी। कॉपी जांचने के काम के अंतिम दिन सब ने तय किया कि लौटने के पहले भेड़ाघाट भ्रमण किया जाएगा। दूसरे दिन हम सभी लोग भेड़ाघाट गए। नौका विहार शुरू होने से पहले हम लोगों के साथ की एक टीचर आंटी ने मुझे जिंजर बिस्किट खाने को दिया था, जिसे मां की अनुमति मिलने पर मैंने दे दिया था। उन दिनों मां की अनुमति के बिना मैं दूसरों से कुछ भी खाने का सामान नहीं लेती थी और अगर कोई जबरदस्ती पकड़ा दे तो मैं उसे मां की अनुमति के बिना खाती नहीं थी। सो, जब मां का संकेत मिला तब मैंने बिस्कुट खाए। वह मेरे लिए पहला अनुभव था जिंजर बिस्कुट खाने का। इससे पहले मैंने अदरक वाले बिस्कुट कभी नहीं खाए थे। उन बिस्कुटों का अदरक फ्लेवर और मिठास का कॉन्बिनेशन मैं आज तक नहीं भूली हूं। यूं बड़े होने पर मैंने खुद भी जिंजर बिस्कुट कई बार घर पर बनाएं, लेकिन वह स्वाद  नहीं पा सकी। 
    ख़ैर, मैं बात कर रही थी नौका विहार की। तब मैं पहली बार नाव पर बैठी थी और मुझे बहुत अच्छा लगा था। तब मैं बहुत छोटी थी और नर्मदा नदी मुझे बहुत बड़ी प्रतीत हुई थी। लेकिन कमाल की बात यह है कि जब मैंने वर्षों बाद नर्मदा नदी के भेड़ाघाट पर फिर से नौका विहार किया तब भी नर्मदा नदी उतनी ही विशाल दिखाई थी जितनी मुझे बचपन में प्रतीत हुई थी।

🚩 जी हां, संयोग से मेरा दूसरा नौका विहार भी भेड़ाघाट का ही रहा। तब मैं, वर्षा दीदी, मां विद्यावती 'मालविका' और मामा कमल सिंह - हम चारों लोग जबलपुर घूमने गए थे। 
     आप जबलपुर जाएं और भेड़ाघाट न जाएं, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। सो, हम सभी भेड़ाघाट पहुंचे। वहां पर एक दिलचस्प किस्सा हुआ। नाव में हम चारों एक सीट पर एक साइड बैठ गए। नाववाला और सवारी की प्रतीक्षा में रुका हुआ था। तभी मां ने मामाजी को "भाई" संबोधित करते हुए कुछ कहा। वे मामा जी को 'भाई' कहती थीं और उनके देखा-देखी हम लोग भी घर में मामा जी को 'भाई' कहकर ही पुकारते थे। ख़ैर, जैसे ही नाववाले को यह समझ में आया की हम लोगों के साथ मामा जी बैठे हुए हैं तो उसने तत्काल टोका और कहा कि- "मामा भांजी या भांजे को एक सीट पर, एक तरफ नहीं बैठना चाहिए, वरना नाव डूबने का ख़तरा रहता है।" 
     मां और मामा जी अंधविश्वासी नहीं थे लेकिन नाववाले की बात रखते हुए मामाजी सामने वाली सीट पर बैठ गए।
     भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के बीच नौकाविहार करना अपने आप में अद्भुत अनुभव रहता है। अविस्मरणीय !

🚩 मेरी तीसरी नौका यात्रा सागर के लाखा बंजारा झील में हुई थी। झील की वर्तमान दशा देखते हुए वह घटना किसी सपने जैसी लगती है। उन दिनों भी मैं स्कूल में पढ़ती थी और तब बोर्ड परीक्षा की कॉपियों के वैल्यूएशन का केंद्र सागर हो गया था। इसलिए मां को वैल्यूएशन ड्यूटी पर सागर आना पड़ा। मुझे तो बचपन से ही घुमक्कड़ी का शौक था और मां को कहीं भी अकेले जाना पसंद नहीं था। इसलिए मेरी लॉटरी लगती ही रहती थी।😃
     उन दिनों सागर झील में सवारी नौका चला करती थी। सरकारी बसस्टैंड के वर्तमान पं. दीनदयाल उपाध्याय चौराहा के पास वाले घाट से चकरा घाट और बरिया घाट के लिए नावें चलती थीं। चकरा घाट तक का किराया प्रति व्यक्ति 50 पैसे था। यूं तो मां को नाव में बैठने से डर लगता था, लेकिन उन्हें पता था कि मुझे बहुत पसंद है। इसलिए मेरी ख़ातिर वे चकरा घाट तक नाव से यात्रा करने को तैयार हो गईं। वह मेरा सागर झील में भ्रमण का।  उस समय यह तालाब बहुत बड़ा था। उस समय वर्तमान सरकारी बसस्टैंड भी नहीं बना था और वहां तक तालाब फैला हुआ था।  इस तालाब को काटकर शायद छोटा तालाब भी उस समय नहीं बनाया गया था। मुझे ठीक से याद नहीं है।😌 

🚩 सागर झील की मेरा दूसरा नौका भ्रमण वर्षों बाद हुआ, जब झील पर डबल डेकर याट चलाई गई। उसी याट पर सवार होकर एक पूरा चक्कर झील का लगाया था। अब वह याट अतीत का हिस्सा बन चुका है और झील का स्वरूप भी तेजी से बदलता जा रहा है। 🤷
🚩 मुझे दो बार नर्मदा नदी के बरमान घाट में नौका भ्रमण करने का अवसर मिला। एक बार दुखद और एक बार सुखद। जी हां, जब 2017 में मैं बरमान घाट गई थी तब हम कमल सिंह मामा जी की अस्थियां विसर्जित करने गए थे। मेरे लिए नितांत शोकाकुल समय था वह।
   फिर इसी वर्ष (2023) मुझे बरमान घाट जाने का अवसर मिला। यह ख़ालिस घुमक्कड़ी का मौका था। इसलिए इस भ्रमण को मैंने दिल खोलकर इंजॉय किया। इस भ्रमण के दौरान मैंने बरमान घाट को बारीकी से देखा और वहां नर्मदा नदी के सौंदर्य को जी भर कर निहारा। उसके आसपास के क्षेत्र को भी एक्सप्लोर किया। 🌹🚩😎🧐
  
🚩 माउंट आबू में भी मैंने नौका विहार किया था। पर्वतों के बीच स्थित झील में नौका विहार करना बड़ा सुंदर अनुभव था।
    
🚩 भोपाल प्रवास के दौरान चार-पांच बार भोपाल ताल में नौका भ्रमण का अवसर मिला। यह अनुभव इतना आनंददायक होता है कि मैं तो यही कहूंगी कि यदि आप भोपाल जाएं तो वहां के ताल में  नौका भ्रमण करने का समय जरूर निकालें। यद्यपि मैंने वहां पैडल बोट कभी भी नहीं ली। दरअसल, पैडल बोट को लेकर मुझे अपनी योग्यता पर भरोसा नहीं है। 😃 
😟 बस, अभी तक के जीवन में मैंने इत्ते-से नौका विहार किए। काश! कुछ और अवसर मिल जाएं 😔 आमीन !!!

तो मित्रो, आप भी अपने नौका विहारों को याद कीजिए ... और ख़ुश रहिए😍

🌹🚩😎😍😀🚩🌹

💁 "When we are not able to go anywhere, many journeys can be done through memories also." - Dr (Ms) Sharad Singh's advice

💁"जब हम कहीं नहीं जा पा रहे हों, तो यादों के ज़रिए भी कई यात्राएं की जा सकती हैं।"  - डॉ (सुश्री) शरद सिंह की सलाह

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1 comment:

  1. सुंदर संस्मरण। मेरा भी पहला और अंतिम नौका विहार बचपन का ही है। उम्र ठीक से याद नहीं। नानी के घर नदी पार करके जाना पड़ता था। पुल नहीं था तो नाव के सहारे ही जाते थे।

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