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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, June 27, 2023

पुस्तक समीक्षा | मन की उड़ान भरतीं समाज सरोकारित कविताएं | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


प्रस्तुत है आज 27.06.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई  कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ के काव्य संग्रह "मेरी उड़ान" की समीक्षा... 
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पुस्तक समीक्षा
मन की उड़ान भरतीं समाज सरोकारित कविताएं
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - मेरी उड़ान
कवि       - बद्रीलाल ‘दिव्य’
प्रकाशक - चम्बल साहित्य संगम कोटा प्रधान कार्यालय, 12बी-लक्ष्मण विहार (प्रथम) कुन्हाड़ी, कोटा-8 (राज.)
मूल्य       - 250/-
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काव्य में शब्दों की वह शक्ति होती है जो अपने छोटे आकार में एक साथ नौ रस समेटने की क्षमता रखती है। जहां गद्य विस्तार मांगता है, वहीं काव्य संक्षिप्तता को प्रथमिकता देता है। इसीलिए काव्य में अर्थ के साथ-साथ भावार्थ भी निहित होता है। हिन्दी काव्य ने अब तक अपनी एक दीर्घ यात्रा तय कर ली है। छंदबद्धता से छंदमुक्तता तक की दीर्घ यात्रा। छंदमुक्त कविताएं देखने में बहुत सरल और सहज लगती हैं किन्तु वस्तुतः जितना श्रम छंदबद्ध कविताओं को सृजित करने में लगता है, उतना ही श्रम छंदमुक्त कविताएं भी चाहती हैं। अब यह कवि पर निर्भर होता है कि वह छंदमुक्त कविता शैली को कहां तक साध पाता है। छंदमुक्त कविता शैली में प्रकाशित एक ताज़ा काव्य संग्रह ‘‘मेरी उड़ान’’ आज की समीक्ष्य कृति है। यह काव्य संग्रह कोटा (राज.) निवासी कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ का है। इस संग्रह में कुल 53 कविताएं हैं। कविताओं के कथ्य की विविधता इस संग्रह का मूल आकर्षण है, साथ ही शैली की दृष्टि से ये सधी हुई कविताएं हैं।
संग्रह के आरम्भ में कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ की कविताओं पर तीन साहित्यकारों के विचार दिए गए हैं। कवि, समीक्षक एवं साहित्यकार प्रो. कृष्ण बिहारी भारतीय ने संग्रह की कविताओं पर सांगोपांग दृष्टि डालते हुए अनेक विशेषताओं का उल्लेख किया है जिनमें से एक विशेषता है कि-‘‘शब्द संयोजन, गुण, अलंकार, रस, भाव, रीति, प्रकृति वर्णन के साथ छन्द प्रयोग आदि काव्य तत्वों पर दृष्टिपात करने पर प्रस्तुत कविता संग्रह अनायास सहृदय पाठकों को आह्लाहदित करता है। कवि दिव्य ने शब्द संयोजन में बिल्कुल भी बनावटीपन का सहारा नहीं लिया है।’’ वहीं, वरिष्ठ साहित्यकार रामकरण साहू ‘सजल’ ने संग्रह पर अपने विचार इन शब्दों में रखे हैं-‘‘ कविता संग्रह के पूर्ण अध्ययन उपरान्त पाया कि कविता संग्रह ‘मेरी उड़ान’ पूरी तरह से व्यवस्थित एवं दोष रहित है। पुस्तक में कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ का जो अनुपम शब्दकोष देखने को मिला वह अपने आप में अद्वितीय है। कविता संग्रह अपने सभी मानकों में खरा एवं अनोखा है जो समाज को एक दिशा प्रदान करने सक्षम है।’’

हिन्दी के सहायक आचार्य डाॅ. रामावतार सागर ने कवि ‘दिव्य’ के जीवन की विशेषताओं को भी रेखांकित किया है-‘‘राजस्थान के शिक्षा विभाग से सेवानिवृत वरिष्ठ कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ की यह तीसरी कृति है। हिन्दी और राजस्थानी (हाड़ौती) में समानाधिकार से अपनी लेखनी चलाने वाले कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ कोटा ही नहीं वरन राजस्थान की सीमाओं को पार कर देशभर में अपनी पहचान रखते है।’’
तीनों साहित्यकारों के विस्तृत आलेखों के साथ ही उनके विचार टिप्पणियों के रूप में ब्लर्ब पर भी दिए गए हैं। इसके साथ ही कवि ‘दिव्य’ ने प्राक्कथन में काव्य के प्रति अपने रुझान के बारे में चर्चा की है कि -‘‘मुझे विद्यार्थी जीवन से ही कविता लिखने और पढ़ने का शौक था। फिर धीरे-धीरे लिखने की प्रवृति और बढ़ती गई। मुझे विद्यार्थी जीवन से ही कविता संबल प्रदान करती आयी है। काव्य-रस का अतुलित आनन्द ही मानव को काव्य-लेखन की ओर प्रेरित करता है और काव्य-रस ने ही मुझे कविता लिखने की और प्रेरित किया है।’’
‘‘मेरी उड़ान’’ संग्रह की कविताएं कवि बद्रीलाल ‘दिव्य’ की रचनाधर्मिता का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये कविताएं कवि के मन की उड़ान से परिचित कराती हैं किन्तु इसका आशय यह नहीं है कि इनमें कोरी कल्पना या फंतासी मात्र है। इन कविताओं में विषय की विविधता है क्योंकि यह खालिस उड़ान नहीं है वरन इसमें समाज में घटित हो रही उचित-अनुचित घटनाओं एवं परिदृश्यों का आकलन है। यह उल्लेखनीय है कि कवि ने अपने संग्रह की पहली कविता उसे बनाया है जिसमें जीवन के प्रति भरपूर आश्वस्ति है और लौटकर आने की उत्कट अभिलाषा है। यह कविता वर्तमान के निराशा उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में आशा जगाने वाली कविता है। ‘‘फिर लौटूंगा’’ शीर्षक की इस कविता की पंक्तियां देखिए-
देखो !/मैं फिर लौटूंगा
सिर्फ/तुम्हारे लिए
इस संसार में।
जो स्मृतियां
रह गई है शेष
उन्हें समेटने।
तुम अनछुए
पहलुओं को/छू लेना ।
फिर मत कहना
तुम नहीं लौटे
मैं फिर/लौटूंगा ।

अर्थात् अपने संग्रह की पहली कविता से ही कवि ने यह जता दिया है कि वह किसी भी दशा में पलायनवादी नहीं है। वह सांसारिक उलझनों से घबराया हुआ नहीं है। इस प्रकार सकारात्मक कविता से आरम्भित हो कर संग्रह की रचनात्मक यात्रा आगे बढ़ती है। जैसे-जैसे रचनाओं का क्रम बढ़ता है, वैसे-वैसे कवि के सामाजिक सरोकार मुखरित होते जाते हैं। कवि ‘दिव्य’ को विचलित करता है लड़कियों पर अनावश्यक प्रतिबंध लगाया जाना। अतिप्रतिबंधों के बीच लड़कियों की ज़िन्दगी किस प्रकार की है, इसे उन्होंने अपनी कविता ‘‘जिन्दगी लड़कियों की’’ में बखूबी व्यक्त किया है-
तवे में झुलसती हुई
रोटियों की तरह
निकल जाती है लड़कियों की जिन्दगी।
वाह रे ! क्या खेल है तेरा भी विधाता।
देखते रहते है घिनौना खेल
उनके ही जन्मदाता।
आज लड़कियां क्यों पाती है
अपने आप को कैद ?
घर में। समाज में। तो कभी प्रवास में ।
कभी-कभी उन्हें अहसास कराती है।
लड़कियों की जिन्दगी
न होने का ।
  कवि ने जितनी गंभीरता से लड़कियों की दशा पर काव्य सृजन किया है, उतनी की पीड़ा और क्षोभ के साथ गायों की दशा पर कलम चलाई है। ‘‘संताप गायों का’’ शीर्षक कविता इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि हम जिस प्राणी को अपनी माता का स्थान देते हैं, उसी के प्रति कितनी अवहेलना बरतते हैं, इस ओर लक्षित है यह कविता। प्रायः कवियों की कलम दुखी मनुष्यों तक चल कर ठहर जाती है किन्तु कवि ‘दिव्य’ ने भारतीय संस्कृति की प्राणीमात्र के प्रति चिंता के भाव को आत्मसात करते हुए यह कविता लिखी है जो कि आज के समय में एक जरूरी कविता कही जा सकती है। कुछ पंक्तियां देखिए इस कविता की-
मैं देख रहा हूं
लड़खड़ाती असहाय गायों को
जिनके मुख पर
भीषण गर्मी से आ रहे/पंसूगड़े।
मुझे देखा नहीं जाता
कामधेनु का संताप ।

ऐसा नहीं है कि कवि जीवन के कठोर पक्ष को ही देख रहा हो, कवि की दृष्टि प्रकृति की सुंदरता और उसके कोमल पक्ष पर भी है। ‘‘लो! आ गया मधुमास’’ कहते हुए कवि ‘दिव्य’ मधुमास के प्रभावों को अपनी कविता में बड़ी सुंदरता से पिरोते हैं-
देखो/लो! आ गया मधुमास ।
जो होता ऋतुओं में सबसे खास।
शनैः शनैः
हर उपवन में छा रहा है।
अब तो भ्रमर भी छन्दों में
गीत गुनगुना रहा है।

कवि ने संग्रह के नाम में ही स्पष्ट कर दिया है कि यह ‘‘मेरी उड़ान’’ है, फिर भी एक-दो प्रयोग तनिक खटकते हैं। जैसे एक कविता है ‘‘सिर्फ दो रोटी के लिए’’। इस कविता में लाचार स्त्री की व्यथाकथा है। मार्मिक भी है। किन्तु कविता का आरम्भ इन पंक्तियों से होता है-
वीरांगना करती है
कुपेशा।
अपनी देह
को नीलाम
सिर्फ दो रोटी के लिए।
- यहां ‘‘वीरांगना’’ शब्द उचित नहीं प्रतीत होता है। पेट की खातिर देह बेचने को विवश स्त्री लाचार हो सकती है, वीरांगना नहीं। यदि वह देह बेचने का समझौता न करके मजदूरी करती तो उसे वीरांगना कहना सटीक होता।
इसी प्रकार एक और कविता है ‘‘हे गांधारी तुम’’। इस कविता की पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं- ‘‘हे गांधारी तुम/क्यों पगला गई/आंखों के पट्टी बांधकर।/धृतराष्ट तो नेत्रहीन होकर भी/देख रहे थे सब कुछ/अनहोनी घटानाओं को/संजय तो केवल माध्यम था बिचारा।’’
इसी कविता में कवि ने आगे यह भी लिखा है कि -‘‘यदि तुम न पगलाती तो/सम्पूर्ण भारतवर्ष की लाज बच जाती/और दुर्योधन की/अहंकारी पट्टी हट जाती।’’ इस कविता में सारा दोष गांधारी द्वारा अपनी आंखों पर पट्टी बांध लिए जाने पर मढ़ दिया गया है जबकि स्वयं गांधारी की इच्छा के विरुद्ध नेत्रहीन धृतराष्ट्र से उसका विवाह कराया गया था। इसी पीड़ा भरे प्रतिशोध में गांधारी ने अपनी आंखों में पट्टी बांधी थी। महाभारत काल में भी सामाजिक प्रभुत्व पुरुषों के हाथों में था। तत्कालीन दोषपूर्ण परिपाटियों के कारण ही धृतराष्ट्र को जन्मांधता मिली थी। अतः ऐसे प्रसंगों पर समग्र पक्षों के प्रस्तुतिकरण की आवश्यकता होती है।  

संग्रह की शेष सभी कविताएं उम्दा हैं और चिंतन, मनन तथा अनुभूति को जगाने वाली हैं। कवि की भाषाई पकड़ और शैली प्रभावी है। ‘‘भीख मांगने वाला’’,‘‘पेड़ क्या है’’, मैं आदमी हूं’’, ‘‘हे किसान तू हार नहीं सकता’’ जैसी कविताएं इस संग्रह की महत्वपूर्ण कविताएं हैं जिनका पढ़ा जाना जरूरी है। इनमें समाज के प्रति गहरा सरोकार निहित है।
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