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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, June 29, 2023

बतकाव बिन्ना की - घोर-घोर रानी, कित्ता-कित्ता पानी? - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

"घोर-घोर रानी, कित्ता-कित्ता पानी?" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
घोर-घोर रानी, कित्ता-कित्ता पानी?          
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
  .        ‘‘आपके इते पाहुने आए हैं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। काए से के जो आज सुभै भैयाजी के दुआरे से निकरी, सो मोए उनके घरे-भीतरे से दो-तीन जने की आवाजें सुनाईं परी हतीं। अब सात बजे सुभै कौनऊं मिलबे, बैठबे खों सो आओ ने हुइए।
‘‘पाहुने सो नईं, मनों पप्पू आएं हैं अपनी घरवारी औ बच्चों के संगे।’’ भैयाजी ने बताओ।
‘‘तो आप ओरें कौनेऊ पूजा-पाठ करा रए का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ, जो पूजा-पाठ करा रए होते तो तुमाई भौजी काल संझा को ई तुमें न्योता न दे देतीं?’’ भैयाजी बोले।
बात सो ठीक कै रए हते भैयाजी। बाकी अब मोसो जे ने पूछी जा रई हती के जो पूजा-पाठ नोंई हो रओ, सो पप्पू भैया काए के लाने आए इते, वा बी विथ फैमिली?
मनो भैयाजी मोरे मन की बात ताड़ गए औ बोले,‘‘का आए के काल दुफारी औ संझा खों जो जम के पानी बरसो, सो उनके मोहल्ला में घूंटा-घूंटा लों पानी भर गओ। अब पप्पू अपनी गाड़ी संगे अपने घरे ने जा पा रए हते। रात ग्यारा बजे पप्पू ने मोय फोन करी के बाल-बच्चा औ गाड़ी खों बा हमाए इते छोड़ों चात आए। सो हमसे ऊसे कई के अकल पैदल, तुम का उते रात खों नरवा बनाहो? तुम सोई इतई आ जाओ औ जब लौं तुमाए मोहल्ला से पानी नईं उतरत, तब लौं इते हमाएं घरे रओ। नईं-नईं करत-करत बारा बजे लौं इतई आ गऔ। अब संकारे से अपने पड़ोसियन खों मोबाईल लगा-लगा के अपडेट ले रओ आए, के पानी उतरो के नईं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे आपने अच्छो करो के उन ओरन को इतई अपने घरे बुला लओ। बाकी पार की साल सोई उते पानी भर गओ रओ। पर मैंने सुनी रई के उते अच्छी नारी-मारी बना दई गई रई। मनो, ई दारी फेर के पानी भर गओ? मनो नारी अच्छी बनी ने कहाई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘नारी सो अच्छी बनाई गईं, मनो उते रैहबे वारे ऊको अच्छी रैन दें तब न!’’ पप्पू भैया सोई उतई आ गए औ बोल परे।
‘‘राम-राम पप्पू भैया!’’ मैंने पप्पू भैया से नमस्ते करी।
‘‘राम-राम दीदी जी! कैसी हो आप?’’ पप्पू भैया ने मोसे पूछी।
‘‘मेरी छोड़ो औ आप बताओ के आप अपने मोहल्ला के बारे में का कै रए?’’ मैंने पप्पू भैया से पूछी।
‘‘अरे, का कओ जाए दीदी जी, हर मोहल्ला में दो-चार उत्पाती रैत आएं। बो का कओ जात आए ने, के एक मछरिया पूरौ तला मचा देत आए। सो उते सोई दो-चार जने आएं, जो नारी को घरवारी घांईं अपनी प्राॅपर्टी समझत आएं।’’ पप्पू भैया बोले।
‘‘जो का अल्ल-गल्ल बोल रए?’’ भैयाजी ने पप्पू भैया खों टोंकों।
‘‘सई सो कै रए हम! बे उते पटवारी साब के भनेंज रैत आएं, उन्ने दो मईना पैले अपने घर को दूसरो तल्ला बनाओ, औ संगे घर के आगे की तीन फुट जमीन घेर लई, बगीचा लगाबे के बहाने। ऊसे का भओ के उतई से नारी बहत्ती, सो नारी पे फर्शी गड़ा दई। अब आपई बोलो के जो मोहल्ला को पानी बड़े नाला लौं ने पौंच पाहे, सो मोहल्ला में तो भरहे ई।’’ पप्पू भैया ने बताओ।
‘‘जे सो उन्ने गलत करो। उने ऐसो नईं करने चाइए रओ। आप ओंरन ने ऊ समै उने टोंकों नई?’’ मैंने पप्पू भैया से पूछी।
‘‘अरे बे? दीदी जी आप जानत नईयंा उनके लाने! बे सो लड़बे खों सींग तानत फिरत आएं। भैया भए पटवारी, सो डर काए को? बे सबई खों ऐंड़ देत फिरत आएं। ऐसो नईंयां के कोनऊं ने उनसे कई ने होय, हम दो-चार जने उनको बोलबे खों पौंचे बी, मनों जोन ने अपने कानन में अकड़ की उंगरिया डाल रखी होय बा कोनऊं की का सुनहे? बे थाना-माना की धमकी देन लगे। औ उत्तई नईं, उनकी घरवारी औरई बबूल घांई आएं। बे निकर आईं औं अपने घरवारे खों समझाने की जांगा हम ओरन से कैन लगीं के तु ओरें इते से तुरतईं फूटो, नई तो हम अबई महिला थाना फोन करत आएं, तुम सबरे लुगवा बंधे-बंधे फिरहो!’’ पप्पू भैया बोले।
‘‘हैं? उन्ने ऐसी कई आप ओरन से?’’ मोय जे सुन के बड़ो अचरज भओ।
‘‘औ का? हम ओरन के संगे बे हार्ट वारे डाक्टर साब सोई पोंचे रए, सो उनको जे सुन के तनक मुंडा फिर गओ। औ बे बोल परे के तुमें जोन थाने लगाने, सो लगाओ फोन! हम ओरें नईं डरा रए।’’ पप्पू भैया बतान लगे।
‘‘फेर?’’
‘‘फेर का! बे चिचियान लगीं और अपनी चुन्नी फाड़त भईं बोलीं के तुम ओरें हमसे गलत करबो चात हो? टिंकू के पापा तनक फोन तो मिलाइयो महिला थाने के लाने! बस, इत्तो सुन के सो हम ओरें घबड़ा गए। बे हार्ट वारे डाक्टर साब को खुदई हार्टफेल होत-होत बचो। हम ओरे भगे उते से। तब से उन ओरन से उते कोनऊं बात लौं नई करत आए।’’ पप्पू भैया बोले।
‘‘जे सो गजबई की हो गई। बे सो देखबे वारी चीज कहानी! भला कोनऊं लुगाई कऊं ऐसो करत आए? वा बी तनक-सी नारी की जमीन घेरबे के लाने? मोय सो सुन के यकीन नई हो रओ!’’ मैंने पप्पू भैया से गई।
‘‘अब आप खों यकीन होय, चाए ने होए, बाकी सत्त जोई आए!’’ पप्पू भैया बोले।
‘‘औ तुम बता रए हते के बा दूसरी वारी रोड पे एक ने नारी में पन्नी ठूंस दओ आए!’’ भैयाजी ने पप्पू भैया से पूछी।
‘‘हऔ, जो हमाए घर के बाद वाली जो रोड आए, उतई काॅलोनी में, ऊ तरफी की नारी में एक जने ने पन्नियां भर दई आएं। के उनके घरे के आगूं संे पानी ने बहे, चाए रोड पे गिलावो मचो रए।’’ पप्पू भैया ने बताओ।
‘‘जे कैसे-कैसे सेम्पल रय रए उते? कोनऊं नारी पे कब्जा कर रओ, सो कोनऊं नारी में पन्नियां ठूंस रओ, उन ओरन खों इत्ती समझ नई पर रई के, जो नारी बंद रैहे, सो मोहल्ला में पानी भरहे। औ उनके घरे सोई घुसहे।’’ मैंने सो अपनो माथा पीट लओ जे सब सुन के।
‘‘अब का करो जाए दीदी जी! बरसात को मईना सो ऐसई काटने परहे।’’ पप्पू भैया बोले।
‘‘अब का दसा आए उते की?’’ भैयाजी ने पप्पू भैया से पूछी।
‘‘घंटा भर पैले सो पानी नईं उतरो रओ, अब फेर के लगा रए फोन!’’ पप्पू भैया बोले औ तनक मईं को सरक के अपने पड़ोस वारे खों फोन लगाउन लगे। जो लों भैयाजी कैन लगे के,‘‘बे मानुस इते होते, सो हम तो एक मिनट में उने ठीक कर देते।’’
‘‘औ उनकी घरवारी को का करते?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बा, ऊके लाने तुमाई भौजी कुल्ल रैतीं। बे तो ऊके बाल पटा देंती औ संगे कैतीं के तुम का चुन्नी फाड़ रईं, लाओ हम तुमाओ कुर्ता पटा देत आएं। फेर चलो थाने अपनो बदन दिखाबे के लाने। तुरतईं सुधर जाती बा लुगाई।’’ भैयाजी मूंछन पे ताव देत भए बोले।
‘‘जोई सई रैतो भैयाजी! जो जैसो होय, ऊको ओई की भाषा में समझाने परत आए। बाकी बा कित्ती अच्छी काॅलोनी आए।’’ मैंने भैयाजी से कई। इत्ते में पप्पू भैया अपने पड़ोसी से बात कर के हम ओरन के लिंगे आ गए।
‘‘का पतो परो भैया? अब उते कित्तो-कित्तो पानी आए?’’ मैंने पप्पू भैया से पूछी।
‘‘अब उतर गओ आए। औ सब ओरन ने तय करी है, के तीनेक बजे सब जने नगरनिगम जांहें, शिकायत करबे के लाने। औ जो बात ने बनीं सो एफआईआर कराहें।’’ पप्पू भैया ने बताओ।
‘‘हऔ, इत्ते पे तो बात बन जानी चाइए, ने तो तुम ओरें काॅलोनी वारे बा खेल खेलियो औ टेम पास करियो के- घोर-घोर रानी, किततो-कित्तो पानी?’’ मैंने हंस के कई।
मोरी बात सुन के बे दोई भैया सोई हंसन लगे।
बाकी, आप ओरन के इते सोई जो पानी भर रओ होय तो जा के शिकायत करो, ने तो घोर-घोर रानी खेलत रओ। बस, जे ने मनाइयो के पानी बरसबो बंद हो जाए। बरिया बर के पानी बरसबे पे आओ आए।
     मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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