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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, June 8, 2023

बतकाव बिन्ना की | हमें तो आलिया भट्ट बनने आए | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"हमें तो आलिया भट्ट बनने आए !" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
हमें तो आलिया भट्ट बनने आए !              
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
     ‘‘भैयाजी, परों की रोज बड़े गजब की हो गई।’’ मैं चाय सुड़कत भई बोली। और कोनऊं के इते तो सुड़क-सुड़क पियो नईं जा सकत, काए से, के जे गंवारूंपना कओ जेहे। पर, भैयाजी के इते चाए जित्ती जोर से चाय सुड़को, कोऊ कछू कैने वारो नोईं। भौजी सोई सुड़क-सुड़क के चाय पीती आएं। पैलऊं जब कप के संगे बसी चलत्ती सो ऊ टेम पे सुड़कत में औ मजा आओ करत्तों। मनो मताई से डांट सोई खाने परत्ती। कभऊं-कभऊं मूड़ पे एकाध चपतियां सोई घल जात्ती।
‘‘का सोचन लगीं? कोन से गजब की कै रई हतीं? कछू बताओ।’’
‘‘कछू नईं, मैं जे सोच रई हती के जे चाय सुड़कत में कित्तों मजो आत आए!’’ मैंने कई।
‘‘बात ने बदलो।’’ भैयाजी ने तनक गुस्सा दिखाओ। कोनऊं बात उगलवाने के लाने उनके जे सब हथकंडा रैत आएं। मोय पतो।
‘‘तनक चाय तो खतम कर लेन देओ, फेर बताबी।’’ मैंने भैयाजी से कई।
सो मैंने पैलऊं चाय खतम करी फेर बताबो चालू करो-‘‘बात जे भई भैयाजी! के परों मोरे इते एक बिटिया आई।’’
‘‘कां से आई? कित्ती बड़ी हती?’’ भैयाजी पूछन लगे।
‘‘उते आसमान से टपकी हती औ भैंसिया जित्ती बड़ी हती!’’ मैंने कई।
‘‘का कै रईं? ऐसो कऊं हो सकत का?’’ भैयाजी को मों खुलो के खुलो रै गओ।
‘‘जो आप मोय पूरी बात बोलन ने देहो औ बीच में ऐसई टोका-टाकी करत रैहो तो ऐसई होत रैहे। कओ बा बिटिया के दो सींग सोई उंग आएं।’’ मैंने भैयाजी खों तनक हड़काओ।
‘‘हऔ-हऔ, हम समझ गए! अब ने बोलहें बीच में। तुम बताओ के का भओ?’’ भैयाजी नंे पूछी।
‘‘भओ जे के बा बिटिया अपनी अम्मा के संगे आई रई। अच्छी छोटी-सी, लोहरी-सी आए बा। अबे तीसरी में पढ़त आए। कौनऊ अंग्रेजी वारे स्कूल में। स्कूल को नांव सोई बताओ रओ ऊने, बाकी अब मोय याद नईं। सो, का भओ के मैंने ऊ बिटिया से पूछो के का पढ़त हो? सो वा बतान लगी के स्कूल जांत आएं, फेर आॅफ लाईन कोचिंग पढ़त आएं, औ रात को सोबे से पैले आॅन लाईन कोचिंग पढ़त आएं। ऊकी बात सुने के मोय लगो के जमाना कित्ती तेजी से बदल गओ। अपन ओरन से कोनऊं पूछत्तों के का पढ़त आओ सो अपन ओरें हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, जुलाॅजी, बाॅटनी, इतिहास, भूगोल घांई सब्जेक्ट गिनान लगत्ते। मगर अब के मोड़ा-मोड़ी आॅन लाईन, आॅफ लाईन गिनाऊत आएं।’’    
‘‘हऔ, सही कई! अपन ओरने के लड़कोरे में जे लाईने-माईने कां हतीं? बस, एक ठईयां लाईन हती जोन को मारबे के लाने मोड़ा हरें गल्र्स स्कूल के चक्कर लगाउत्ते।’’ कैत साथ भैयाजी हंसन लगे।
‘‘हऔ! मनो ऊ टेम पे अपन ओरन को फिलम देखबे के लाने कम मिलत्तो। मोरे इते तो पैलऊं मताई पतो कर लेत्तीं के बा फिलम हम ओरन के देखबे जोग आए के नईं। जो देखबे जोग रैत्ती सो बे हम ओरन को अपने संगे टाॅकीज ले जात्तीं और लेडीज़ क्लास की टिकट कटाई जात्ती। ऊ टेम पे हम ओरें पन्ना में हते औ उते भौतई नोनी टाॅकीज रई, कुमकुम टाॅकीज। ऊ टेम पे हम ओरन खों अल्लम-गल्लम फिलमी गाना नईं गान दओ जात्तो। औ फिलम बी ऐसे टाईप से दिखाई जात्ती के ऊ फिलम में जो चीज दिखाबे के लाने ले जाओ गओ रैतो, बोई याद रैतो, औ कछू नईं। मोय आज लौं याद आए के एक फिलम हती ‘‘अनमोल मोती’’ ऊमें बबिता हिरोइन रई। बबिता मने वोई करिश्मा औ करीना की मताई। सो, मोरी मताई खों पतो परो के ऊमें ऑक्टोपस दिखाओ गओ आए। बस, अम्मा को लगो के हम दोई बहनों को सोई ऑक्टोपस दिखा दओ जाए। बे हम ओरन खों ले के कुमकुम टाॅकीज पौंची। अब बा हती तो हिन्दी फिलम, सो ऊमें गाना, रोना, प्रेम-मोहब्बत, मार-कुटव्वल सबई कछू हतो, मनो जब हम ओरें फिलम देख के बाहरे आए सो बा ऑक्टोपस याद रओ औ कछू नईं।’’ मैंने भैयाजी खों बताओ।
‘‘मनो, बा हिरोईन सोई याद रई।’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले।
‘‘हऔ, सो हिरोईन याद रई, हीरो नोईं!’’ मैंने सोई नैले पे दैला ठोंक दओ। भैयाजी तनक झेंप गए कहाने।
‘‘मनो, हमें जे समझ नईं पर रई के ई बात से ऊ बिटिया को का लेबो-देबो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अरे, भौतई लेबो-देबो आए! भओ का, के मैंने बा बिटिया से पूछी के तुम बड़ी हो के का बनो चात आओ? सो बा तुरतईं बोली के हमें तो आलिया भट्ट बनने आए।’’
‘‘का? का कई? सच्ची? ऊने आलिया भट्ट बनबे की कई?’’ भैयाजी चैंक परे।
‘‘हऔ तो! हमने ऊसे पूछी के काय तुमें डाॅक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर नईं बनने बल्कि आलिया भट्ट बनने, ऐसो काय? ऐसो काय कै रईं तुम?’’ मोय सोई अचम्भो भओ रओ।
‘‘फेर? ऊने का जवाब दओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अब हम का बताएं आप के लाने। ऊको जवाब सुन के सो मोय लगो के मोय सोई जा के पैली कक्षा में भरती हो जाओ चाइए औ फेर से मोय पढ़बे की जरूरत आए।’’
‘‘ऐसो का कओ ऊने?’’ भैयाजी ऊको जवाब जानबे के लाने मरे जा रए हते।
‘‘भैयाजी, ऊने कई के जो हम आलिया भट्ट बन जेहें से हमें जे डाॅक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर वारे रोल सो ऊंसईं मिल जेहें।’’ मैंने बताई।
‘‘ऐं? ऊने ऐसी कई? गजब!!’’ भेयाजी हैराने से रै गए।
‘‘हओ! बित्ता भर की ब्टििया ने इत्तो बड़ो जवाब दओ के मोय कछू कैत नईं बनो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘रामधई! गजब की मोड़ी कहानी बा तो!’’ भैयाजी सोई भैरां गए।
‘‘बाकी मोय समझ में आ गई के चक्कर का हतो!’’ मैंने तनक राज खोलबे के स्टाईल में कई।
‘‘का चक्कर हतो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘चक्कर जे हतो के फेर हमने मजाक में ऊ बिटिया की अम्मा से कई के जो तुमाई बिटिया आलिया भट्ट बनहे सो कऊं तुमाए मिस्टर महेश भट्ट ने बन जाएं? सो, बा मोसे बोली के, कछू नईं! बे तो ऊंसई महेश भट्ट बने फिरत आएं। सो मैंने पूछी के तुमें बुरौ नईं लगत आए? सो बा तुरतईं बोली हम तो उनकी तरफी ध्यानई नईं देत आएं। हम तो बिटिया खों तैयारी करा रै। जो ईको सिलेक्शन हो जाए कोनऊं टेलेंट शो में सो मताई-बिटिया दोई की जिनगी बन जेहे। रामधई! जे मोसे कई ऊ बिटिया की मताई ने!’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘हें, परमेसर! हम सोच रै हते के खाली बिटिया बिगर गई, मनो इते तो बिटिया की मताई-बाप को कछू ठिकानों नईंया।’’ भैयाजी हक्का-बक्का से रै गए।
‘‘अब आपई बताओ के जे कोन टाईप को जेनरेशन गैप आए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘काय को जेनरेशन गैप? लूघरा!!! मनो नओ काम करबे में कोनऊं बुराई नोंईं, पर पैलऊं पढ़ाई-लिखाई सो हो जाए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई बात हमने ऊ बिटिया की मताई से कई सो बताएं ऊने का कई?’’
‘‘का कई?’’
‘‘पढ़-पढ़ के तुमने कोन सो झंडा गाड़ लओ? एमए करी, पीएचडी करी औ कलम घिसत अपने कमरा में बैठी रैत आओ। अब आपई बताओ के ईके बाद मैं का कैती? सो अपनों सो मों ले के रै गई। वैसे एक बात आए भैयाजी के जो मैं सोई कोनऊं फिलम में चली जाती सो मोय सोई जे राईटर वारो रोल ऊंसई मिल जातो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘तुमें कोनऊं रोल नईं देतो। तुमसे एक्टिंग-वेक्टिंग बनत नईंयां, जो बनत आए बोई करो! समझीं!’’ भैयाजी ने मोय समझाओ।
‘‘बाकी कछू कओ भैयाजी! बा बिटिया आए समझदार!’’ मैंने देखी के भैयाजी खुदई सोच में डूब गए हते। आप ओरें सोई सोचियो ई बारे में।
मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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