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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, July 6, 2023

बतकाव बिन्ना की | नांव में का रक्खो ? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

😲शरद पवार, शरद जोशी, शरद सक्सेना, शरद सिंह, शरदचंद्र ....ये 'नांव' यानी नाम ही तो हैं... फिर लफड़ा क्या है...ज़रा सोचिए?🤪🙃😜
"नांव में का रक्खो ?" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
नांव में का रक्खो ?          
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
         ‘‘आओ शरद बिन्ना, आओ पधारो!’’ भैयाजी ने मोए देखतई साथ कई। उनको कैबो को टोन सुन के मोय बड़ो बुरौ लगो।
‘‘जे ऐसे ताना सो काय मार रए, भैयाजी? मैंने आपके कौन से खेत पटा लए?’’ मोय बी कै आई।
‘‘अरे, हम तुमाए लाने ताना नोई मार रए, हम तो तुमाओ स्वागत कर रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जो कोन टाईप को स्वागत आए? लट्ठ-सी दे रए औ कै रए के परघा रए। मोरो आनो बुरो लग रऔ होय सो सूधी बोलो, कभऊं ने आबी।’’ मैंने भैयाजी से कई। मोय बुरौ लग रओ हतो औ संगे रोबो सोई आन लगो। भैयाजी से ऐसी उम्मींद ने हती।
‘‘अरे बिन्ना, तुम तो बुरौ मान गईं। सच्ची, रामधई! हम तुमें ताना नोई मार रए हते।’’ भैयाजी तनक घबड़ात भए बोले।
‘‘सो जे का हतो- शरद बिन्ना, पधारो- जो का हतो? ऐसे सो आप कभऊं नईं पधरात आएं मोए, फेर आज ऐसो काय कओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘चलो बैठो, तनक ठंडो पानी पियो! अपनो मुण्डा ठंडो करो, फेर हम तुमें बता रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘नईं, पैले आप मोय बताओ, ने तो मोय नईं बैठने आपके इते।’’ सच्ची मोय भौतई गुस्सा आ रओ हतो।
‘‘अच्छा चलो सुनो! बात का आए के आजकाल चाय टीवी होय, के अखबार होय, सबई में शरद पवार की खबरें दिखा रईं। मनो शरद नांव को डंका बज रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘उनको काय को डंका? कच्चे में बिंधे दिखा रए शरद पवार दद्दा!’’ मैंने कई।
‘‘डंका माने बाजे सो बज रए अब चाय सूधे बाजे होंए चाय उल्टे वारे। बाजे बजत सुनाई सो पड़ रए। औ रई चाचा-भतीजा की रार, सो बा तो अपने देस में हमेसई से होत रई आए। मनो शरद पवार को नांव सुन के मोय ई नांव के कुल्ल जने याद आ गए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोन-कोन को नांव याद आ गओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘बाद में बताबी, पैले जे तो देखो के अपने प्रफुल्ल पटेल भैया कां बोल गए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का बोलो उन्ने?’’ मैंने पूछी।
‘‘काय तुमने टीवी नई देखी?’’ भैयाजी  ने मोसे पूछी।
‘‘नईं, न्यूज नई देखी। बाकी एक सीरियल को विज्ञापन जरूर देखो। अच्छो नईं लगो हमें।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘कौन सो विज्ञापन?’’
‘‘बा धारावाहिक को नांव बरसात या बरसातें कछू ऐसई रओ, बाकी ऊके विज्ञापन में हीरो ऐसो ऐंडू दिखाओ गओ आए के ने पूछो। बा हीरो पानी बरसत में बिना छत्ता के सड़क पे चल रओ, वा बी ऐसो के बाजू से गुजरन वालों को ऊके चलबे से धक्का लग रओ। औ इत्तई नईं, बा ऊकी हिरोईन एक टैक्सी रुकात आए औ अपनो छाता बंद कर के टैक्सी में बैठ पाए के ईके पैले बा हीरो टैक्सी में घुस जात आए औ अपनो हात बढ़ा के हिरोईन को छाता फेर के खोल के टैक्सी ले के चलो जात आए। मनो, मोय जे समझ में ने आई के जे धारावाहिक वारे दिखन का चात आएं? अरे, बात तो जे होती के हीरो हिरोईन के लाने टैक्सी रुकातो, ने तो अपनी टैक्सी हिराईन खों दे देतो और खुद खड़ो भींगत रैतो। बाकी ऊको ई टाईप से भींगत देख के हिराईन ऊको अपने संगे चलबे को आॅफर दे देती। मनो जे तो लुगवा हरों खों, संगे मोड़ा हरों खों बत्तमीजी करबो सिखा रए।’’ मैंने भैयाजी को पूरो विज्ञापन सुना दओ। बाकी ऊ धारावाहिक के दूसरे विज्ञापन सोई जेई टाईप के आएं, मनो कहां लौं मैं सुनाती।
‘‘हऔ जे सो ठीक नईयां! बा ऊमें देखो टाईटेनिक फिलम जेई से सो दुनिया में हिट हो गई के हीरो ने हिरोईन खों बचाबे के लाने अपनी जान दे दई। बाकी बिन्ना, हम तो जे मानत आएं के जो कोनऊं लुगाई नौकरी कर रई औ घरे चलाबे खों पईसा कमाबे में साथ दे रई, सो उके आदमी को सोई घर के काम-काज में ऊको हाथ बटाओ चाइए। अब जे का बात भई के लुगाई नौकरी बी करे, बच्चा बी पाले औ चूला-चैका बी करे, औ उतई ऊको आदमी 20-20 देखत पसरो रए।’’ भैयाजी ने बड़ी साजी बात कई।
‘‘ठीक कै रए आप भैयाजी! ऐसोई होन चाइए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘का खाक होन चाइए? बिन्ना, तुमने सो हमें असल बात से बिलमा दओ। कां हम शरद पवार औ प्रफुल्ल पटेल की बात कर रए हते औ तुम सीरियल के विज्ञापन की बात करन लगीं।’’ भैयाजी कुड़मुड़ात भए बोले।
‘‘बा तो आपई ने टीवी देखबे वारी बात बोली, सो मोय बा विज्ञापन याद आ गओ। बाकी अब बता देओ आप के प्रफुल्ल पटेल ने का कई? अबे कोन सी देरी हो गई कहाई?’’ मैंने भैयाजी से कही।
 ‘‘जे ना कओ बिन्ना, आजकाल राजनीति औ मौसम एकई सो हो गओ आए। कओ अभई पानी गिर रओ औ कओ पांच मिनट बाद धूप कढ़ आए। ऐसई हाल राजनीति को चल रओ। जो मानुस पांच मिनट पैले ‘क’ पार्टी को गुन गा रओ हतो, बा पांच मिनट बाद ‘ख’ पार्टी को गुन गान लगे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो जे तो हुइए, जो ‘क’ वारो खाबे खों ना देहे और ‘ख’ वारो कोनऊं अच्छी ‘डील’ ख्वा देहे, सो धनी ‘ख’ के बाजू में बैठो दिखाहे।’’ मैंने हंसत भई कई।
‘‘सई कै रई बिन्ना! अब सो जेई चलन चल गओ। अरे हऔ, सुनो तो बा प्रफुल्ल पटेल ने का कई के जो हम शिवसेना के संगे चल सकत आएं सो बीजेपी के संगे चलबे में का दिक्कत आए? उन्ने सो जे बी कै दई के शरद पवार बिना बहुमत के बदलाव लाबे की कोसिस कर रए, जे देख के मोय हंसी आन लगत आए।’’ भैयाजी ने अखीरकार प्रफुल्ल पटेल को कओ भओ मोय सुनाई दओ।
‘‘ऐसो आए भैयाजी के आजकाल राजनीति में कोनऊं ठिकानो नईं रओ, के कोन सो ऊंट कब कोन से करवट बैठ जाए। जनता जोन खों जितात आए, बेंचबे-खरीदबे वारे ऊको पटकनी दे के कोनऊं औरई खों कुर्सी पकरा देत आएं। मनो राजनीति में सोई खेल घांईं फिक्सिंग चलन लगी आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, अपन ओरें सो ऊंसई खुस होत रैत आएं के हमने जिताओ, हमने हराओ। अरे, हऔ! सो हम बता रए हते के शरद पवार के नांव से हमें कुल्ल जने याद आ गए ऊमें पैले सो तुमाई याद आई।’’  भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, आप मोय खुस करबे के लाने झूठी कै रए। आतई साथ तो ऐसो स्वागत करो के मनो संसद भवन में राहुल भैया पौंच गए होंय।’’ मैंने मुस्क्या के कई।
‘‘तुम और! कां से कां पौंच गईं।’’ भैयाजी की हंसी फूट परी। फेर अपनी हंसी पे ब्रेक देत भए बोले,‘‘सच्ची, पैले तुमाई याद आई के शरद नांव वारों को कछू नांव-गांव सो होत रैत आए। बे एक हते शरद जोशी जी। बे उन्ने कित्ते अच्छे ब्यंग्य लिखे।’’
  ‘‘हऔ, शरद जोशी को बा ब्यंग्य ‘जीप पे सवार इल्लियां’ सो कभऊं भूलत नईयां। गजब की कटाई करी आए।’’ मैंने कई।
‘‘बे एक औ रए शरद जोशी, जोन ने शेतकरी आंदोलन चलाओ रओ। और बे शरतचंद्र चट्टोपाध्याय। बे उते बंगाल में भए सो ‘शरत बाबू’ कहाए, इते होते सो ‘शरद बाबू’ कहाते। औ बा जो एक एक्टर आए शरद सक्सेना। बाकी हमें जे खयाल आओ के सबई शरद ओरें अच्छे नोने काम में रए, कोनऊं क्रिमिनल ने बनो।’’ भैयाजी सोचत भए बोले।
‘‘सो आप का चा रए के अब मोय सुपारी लेबे को धंधा शुरू कर देओ चाइए?’’ मैंने हंस के पूछी।
‘‘रैन देओ, तुमसे चिटियां लों नई मरत, कोनऊं की सुपारी का लैहो?’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी, जेई से तो कओ जात आए के नांव में का रक्खो? जो कछू रक्खो, काम में रक्खो! काम साजो, सो सब साजो!’’ मैंने कई औ भैयाजी से विदा ले लई।
     काए से के मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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