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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, August 31, 2023

बतकाव बिन्ना की | जो बे ओरें लाड़ली, सो हम ओरें का बिलौटियां आएं? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"जो बे ओरें लाड़ली, सो हम ओरें का बिलौटियां आएं?" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
जो बे ओरें लाड़ली, सो हम ओरें का बिलौटियां आएं?              
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘का हो गओ भौजी? ऐसो लग रओ के आपको मूड कछू खराब आए?’’ मैंने भौजी से पूछी। बे सूके-सुकाए हुन्ना ऐसे पटक-पटक के घड़ी कर रई हतीं मनो कोनऊं खों धोबीपछाड़ दे रई होंएं।
‘‘कछू तनक-मनक नोईं बिन्ना, हमाओ पूरो मूड खराब आए।’’ भौजी की आवाजई बता रई हती के उने कोनऊं बात को भौतई बुरौ लगो आए।
‘‘का हो गओ भौजी? जो मोसे कैबे जोग होय सो, कै डारो, जी हल्को हो जैहे।’’ मैंने भौजी खों पुटियाओ।
‘‘अब का कैं बिन्ना! देख नई रईं, के कित्तों गलत हो रओ।’’ गुस्सा के मारे भौजी को गलो भर आओ। मोय लगो के बे कहूं रोन ने लगें।
‘‘मनो हो का गओ, भौजी? को कर रओ गलत?’’ मैंने फेर के पूछी।
‘‘देख नई रईं? अबईं ई राखी पे बे लाड़ली बहना लोगन खों सस्तो गैस सिलेंडर दे दो गओ। उनके लाने पैलई फोकट के हजार रुपइया दए जा रए हते औ अब कै रए के बढ़ात-बढ़ात 3 हजार कर दए जैहें। जे सब देबे के लाने सरकार के पास कां से पइसा आहें? अपनई ओरन से ले-ले के दए जा रए। का अपन ओरें अंबानी-अडानी आएं के अपन से लेत जाएं औ उते देत जाएं।’’ भौजी ने अपने मन को गुबार बाहरे काढ़ दओ।
‘‘बात सो तुमाई ठीक आए भौजी, मनो करो का जा सकत आए? आप सो अपनी की सोच रईं, तनक मोय से पूछो के मो पे का गुजरी जो जब जे पढ़ी के उने कछू नईं मिलने जिनको ब्याओ नई भओ। अब आपई बताओ के अगर मोरो ब्याओ नई भओ सो ई में मोरो का दोष? चलो, मान लओ जाए के कोनऊं किस्मत को दोष रओ हुइए, तो बिन ब्याओ वारी बहनें का खात-पियत नईयां? का हम ओरन खों चूलो नईं जलाने परत का? के हम ओरें हवा पी के जीत रैत आएं। अब का भइया जे चात आएं के हजार-तीन हजार के लाने हम ओरें कोनऊं खों पकर के ऊसे ब्याओ कर लेवें? जे कां की बात भई?’’ मैंने भौजी खों अपने जी की पीरा बताई।
‘‘जेई पे तो हमें गुस्सा आ रओ, बिन्ना! बात हजार-तीन हजार से ऊपरे जा रई। इते अपन ओरन खों बारा सौ रूपइया में सिलेंडर मिलत आएं औ उते उन ओरन खों 4-5 सौं में दे रए। बे उनकी लाड़ली बहना आएं सो अपन ओरें का बिलौटियां आए? औ जो तुम कै रईं के ब्याओ वारी लुगाइयन खों मिल रए सो, बे बी सब खों नई मिल रए। हमें कां मिलत आएं? इन्ने पइसा जोड़-जोड़ के हमाए नांव पे जे घर बनवा दओ सो हम सोई कट्टस हो गए।’’ भौजी भिन्नात भई बोलीं।
‘‘बा दूसरी पार्टी कै रई के हम सबई खों देहें।’’ मैंने कई।
‘‘बे पैले आ तो जाएं! औ जो कऊं भूल-भटक के आ गए सो बे कां से दैहें? बे सोई अपनई ओरन खों बकरा बनेहैं।’’ भौजी ने बड़ी समझदारी की बात करी। फेर भौजी आगे बोलीं के-‘‘सबई भगवान के पूरे आएं। अपन ओरन को कोनऊं भलो ने करहे। उन्हें सौ रुपइया में मईना भर बिजली दई जाने, औ इते बत्ती बुझात-बुझात उंगरिया पिरान लगत आए। अबई परों की बात आए। तुमाए भैयाजी सो ठैरेई ऊंसई। उने कोन ध्यान रैत आए के कमरा से बाहरे जा रए सो बत्ती बुझात जाएं। बे परों गए ऊपरे ढबिया पे। उते की उन्ने बत्ती जलाई। अपनो जो कछू काम-वाम करो औ लौटत बेरा बत्ती जलत भई छोड़ के नैंचे चले आए। ने उने खबर, ने हमें खबर के उते ढबिया को बलब जल रओ। बा सो कल संझा की बिरियां कोनऊं काम से हमें ढबिया पे जानो परो सो हमाओ तो जी धक से रै गओ। हम समझ गए के जे बलब कल से जल रओ। हमने बलब बुझाओ और ऊंसई सदमा में नैंचे आए। हमाओ मों सफेद पर गओ रओ। जे देख के तुमाए भैयाजी घबड़ा गए। का हो गओ, का हो गओ पूछन लगे। हमें आओ गुस्सा। हमने कई के हमसे का पूछ रए? तुम कल ढबिया को बलब जलत छोड़ आए। अब भरियो बिल। अक्कल आ जेहे ठिकाने। सो, बे बोले भर देबी, मनो तुम अपने खों सम्हारो! कऊं तुमाओ ब्लडप्रेशर ने बढ़ जाए। जान आए सो जहान आए। बे हमें समझाबे की कोशिस कर रए हते औ हमाओ हो रओ हतो मुंडा खराब। हमने कई के सुनो अब बो जमानों नई रओ के जान आए सो जहान आए। अब सो जहान आए तोई जान आए, ने तो का धरो इते।’’
‘‘अरे अब हो गई, आपको ऐसो नई कओ चाइए हतो।’’ मैंने भौजी खों समझाओ।
‘‘हऔ, बा सो बाद में हमें सोई लगो के हमने कछू ज्यादा-सी बोल दई रई। अब भूल गए सो भूल गए। कभऊं हम सोई भूल सकत आएं। मनो करो का जाए, जो बिजली के बिल की सोचो तो मूंड़ भिन्न जात आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘खैर, जे सब छोड़ो आप! जे बताओं के भैयाजी कां गए?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘बे ललितपुर गए हैं, छोटी जिज्जी के इते। आत हुइएं। कै रए हते के पैलई बस पकर के लौट आहें। जेई साल छोटी जिज्जी के इते गमी हो गई रई, सो बे नईं आ सकत्तीं। जे बोले के हमई हो आएं। हमने बी कई के जे सो उनके इते की अनरय की राखी कहाई, सो आपई हो आओ। उनके इते ललितपुर में जो ऐसी अत्तें नई मचीं, जैसी अपने इते मचीं दिखा रईं। आज सुभैै हमाई फोन पे बात भई रई जिज्जी से। हमने उने लाड़ली बहना वारी अत्ते बताईं सो  बे कैन लगीं के हमाए इते ऐसो नईं हो रओ।’’
‘‘नईं भौजी! कोनऊं की सहायता करे में कोनऊं बुराई नईं, मनो फोकट में काय दे रए? उने काम देओ न। फेर काम के बदले पइसा देओ। जे मुफतखोरी की आदतें काय डार रए? औ इत्तई नहीं अब सो अपन लुगाइयन में फूट परन लगी दिखात आय के, देखों उने मिल रओ औ हमें नई मिल रओ। जो का आए? मनो काम देबे से जे हुइए के हमेसई पइसा देने परहे, औ जे सो चुनाव बाद बंद कर दें, सो का।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘औ का! बा मनरेगा बी तो चलत रई। काम के बदले अनाज टाईप की स्कीमें रईं। अब जे सो बिलकुलई ठलुआ बनावे खों काम चल रओ।’’ भौजी बोलीं।
हम ओरें अपनी-अपनी कै रईं हती के इत्ते में भैयाजी आ गए। बे बस से उतर के सीधे चलत आ रए हते।
‘‘जे नंद-भौजाई की का बतकाव चल रई?’’ आतई साथ भौयाजी ने पूछी।
‘‘कछू नईं! औ आपकी यात्रा कैसी रई? बस से लौटे?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ! रेल सो संझा खों मिलती, बस हती, सो हम कढ़ आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ जिज्जी कैसी आएं?’’ मैंने पूछी।
‘‘ठीक! बाकी उनके इते अनरय को त्योहार रओ सो ज्यादा कछू हल्ला-गुल्ला नई रओ। रखाी बंधाई, पांव पूजे और रुपैया-धेला पकरा के लौट आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बे आप से कछू कै रई हतीं?’’ भौजी ने भैयाजी से पूछी।
‘‘काय की?’’
‘‘कछू बी!’’
‘‘हऔ, तुमसे उनकी बात भई रई सुभैै, तभई से उनको दौरा सो परो औ बे कैन लगीं के का ऐसा नईं हो सकत के हमें सोई लाड़ली बहना को लाभ दिला देओ। हमने उनके लाने समझाई के ऐसो नईं हो सकत। तुम अब यूपी की निवासी आओ, एमपी को कोनऊं लाभ तुमे नई मिल सकत। बे कैन लगीं के तुमाए इते अच्छो आए। सो हमने कई के काय को अच्छो, तुमाए इते पेट्रोल कम को मिलत आए, जबकि हमाए इते ईसे मैंगो मिलत आए। सो जिज्जी, जे आप तनक-मनक की सल्ल में ने परो। तुमाई भौजी खों कछू नईं मिल रओ, सो तुमें कां से मिल जैहे? ई तरहा हमने उने समझाओ। ने तो बे संगे आबे खों उधारी खाई बैठी हतीं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अच्छो करो आपने के उने समझा दओ। अबईं हम ओरें जेई तो बतकाव कर रए हते के जो लाड़ली बहना उनके लाड़ली ठैरीं, सो हम ओरें का बिलौटियां आएं?’’ भौजी मों सो बनात भई बोलीं। मनो भैयाजी ने जो बिलौटियां होबे की सुनी, सो हंसत-हंसत उनको पेट पिरान लगो। उने खूबई मजो आओ जे सुन के।  बाकी हम दोई बी कां तक रोत रैतीं, सो हमें सोई हंसी आन लगी। काए से के बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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