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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, September 1, 2023

शहर का मुद्दा | काए भारत रत्न कबे दे रए? | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | पत्रिका

मित्रो, आज राजस्थान पत्रिका के सागर संस्करण "पत्रिका" में... बुंदेली में... मेरा लेख...
हार्दिक धन्यवाद पत्रिका🙏
🚩बुंदेली बोली को पत्रिका में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार संपादकीय प्रभारी श्री ब्रजेश कुमार तिवारी जी 🙏
एवं हार्दिक आभार श्रीमती रेशु जैन जी 🙏
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शहर का मुद्दा
काए भारत रत्न कबे दे रए?
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

"काए भैया, सो गए पल्ली ओढ़ के?" जेई पूछबे को जी कर रओ। काए से के अपने इते की रीत निराली जो ठैरी। अब देख लेओ! जो हमाई कई झूठी लगे सो कइयो। जैसई पता परी के बे आबे वारे आएं, सो, मुतके ठाड़े हो गए मांगबे के लाने के हमाए गौर बब्बा खों "भारत रत्न" दओ जाए। काए से के सबई जनों खों लग रओ हतो के ई बेरा बे घोषणा कर के जेहैं। बाकी मांगबे वारों में हम सोई शामिल हते। हमने सोई मांग करी हती। पर आपई सोचों के मंगता हरों की कोन सुनत आए।  जो हमाए दुआरे कोनऊं हट्टो-कट्टो मुस्टंडा घांई मंगता आ जात आए, सो हम ऊसे जेई कैत आएं के "हट्टा-कट्टा दिखा रए औ मंगता बन फिर रए। कछू काम किया करे!"
  ने तो जे कै देत आएं के "चलो आगे बढ़ लेओ! तुमाए लाने इते कछू ने मिलहे!"
   मनो, कैबे को मतलब जे के ऐसे मंगता घांई घिघियात रैबे से कुतका कछू ने मिलहे। तनक दूसरी जांगा के लोगन खों देखो, जो चुनाव को टेम नजदीक आन लगत, सो सबरे ठन्ना-मन्ना से ठाड़े हो जात आएं के 'हमें जो चाउने, हमें बो चाउने'। मनो अपने इते का है के तनक सो दोंदरा दओ औ फेर मनो पल्ली ओढ़ के सो गए। 
    अरे भैया हरों ! पल्ली से निकरो औ दम लगा के पूछो के काए हमाए बब्बा जू खों 'भारत रत्न' कबे दे रए? अगली चुनाव में वोटें चाउने के नईं? काए से के रोए-चिंचियाए बिगैर तो अम्मा लो दूध नईं पियात। काए भैया, हमाई कई समझ में आई के नईं?
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01.09.2023
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