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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, September 14, 2023

बतकाव बिन्ना की | सो, ऐसी रई भैयाजी की हिंदी सेवा | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

 "सो, ऐसी रई भैयाजी की हिंदी सेवा" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की      
सो, ऐसी रई भैयाजी की हिंदी सेवा
 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘तुम अच्छी आ गईं बिन्ना! हम तुमई खों याद कर रए हते।’’ मोय देखत साथ भैयाजी उचक के बोले।
‘‘काय? कछू खास बात आए का?’’ मैंने पूछी।
‘‘हऔ खासई समझो!’’
‘‘समझो-वमझो कछू नईं, आप तो जे बताओ के का बात आए?’’
बात जे आए के हमें समझ नईं पर रई के कोन को कुर्ता पैनो जाए? औ कुर्ता के संगे पजामा पैनें, के जींस पैनें, के धुतिया पैनें?’’ भैया जी ने पूछी।
‘‘अब जे मैं का बताऊं? आपको जाने कां? कोन काम के लाने? जो कछू पता परे, तब न बताऊं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जे समझो के हमें एक कार्यक्रम में जाने! बस, ई से आगे हम अबे तुमें कछू नईं बता सकत।’’ भैयाजी बोले।
अब आपई सोचो के जो कोनऊं कए के ‘‘नई बता सकत’’, तो रामधई! जानबे के लाने पेट में मरोरें परन लगत आएं।
‘‘सो ने बताओ आप! हम सोई कछू सलाह ने देबी।’’ मैंने सोई ठेन करी।
‘‘अरे अब बता देओ बिन्ना! जो तै हो जाए सो हम ऊं कपड़ा प्रेस करबे के लाने दे आएं।’’ भैयाजी गिड़गिड़ात से बोले।
‘‘मनो कैसे बताओ जाए के आप का पैनों! आपई सोचो के हमने जे चमक-दमक वारो सूट आपके लाने बोल दओ औ पता परी के आपको तो गमी में जाने रओ, सो? जेई से मैं पूछ रई के आपको जाने कां आए, जे तो बताओ?’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘अरे हमें जाने नईं रओ, पर का आए के बे तुमाए तिबारी जी आएं न, सो जिद करबे लगे के आपको सो आनेई परहे। हमने सो उनके लाने भौत मना करो, पर बे माने नईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो, उनके इते का आए?’’ मैंने पूछी।
‘‘तुम जाने बिगैर ने मान हो?’’
‘‘सवालई नईं उठत!’’
‘‘ऊंमें सीक्रेट सो कछू नईं आएं, बा तो हमें बताए में हिचक हो रई।’’ भैयाजी इत्तो कै के फेर मों चिमां गए।
‘‘काय हिचक रए? एक तरफी कै रए के सीक्रेट नोईं औ दूसरी तरफी कै रए के हिचक हो रई। मनो, कछू तो गड़बड़ आए!’’ मैंने कई। अब मोय जानबे के लाने औरई कुलबुलाहट होन लगी।
‘‘अरे, का आए के परों तिबारी जी घरे आए रए। बे कर रए हिंदी दिवस पे एक सम्मान को कार्यक्रम।’’ इत्तो कै के भैयाजी फेर चुप हो गए।
‘‘कोन को सम्मान को?’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बे हिंदी की सेवा करबे वारन खों सम्मान देबे वारे आएं। बे हमें सोई हिंदी सेवी सम्मान देबे जा रए।’’ भैयाजी ने हिचकत भए बताई दओ।
‘‘ऐं? सो आपने हिंदी की का सेवा करी?’’ अचरज में मोरे मों से कढ़ आओ।
‘‘जेई सो हमने उनसे कई के भैया, हमने तो हिंदी के लाने कछू नई करो, हमें काय दे रए?’’
सो बे प्ूछन लगे के जे बताओ के तुम अखबार कोन सी भाषा को पढ़त हो? हमने कई हिंदी को। फेर उन्ने पूछी के तुम टीवी चैनल कोन सी भाषा को देखत हो? हमने कई हिंदी को। सो बे कैन लगे के सो तुम कर रए हिंदी सेवा के नईं? सो हमने उनसे कई के जो हमें औ कोनऊं भाषा आतई नइयां सो हिंदी में ने पढ़बी, देखबी तो औ का करबी? मनो अब तो जब से जे बुंदेली के चैनल चल गए औ बुंदेली में अखबार औ कालम चलन लगे सो हम तो बेई देखत, पढ़त आएं।’’ भैयाजी तनक सांस लेबे खों ठैरे।
‘‘फेर का कई उन्ने?’’
‘‘का कैते, आ गए असल बात पे। बोले हमें चाउने तुमसे कछू रुपैया। काय से के आयोजन के लाने कछू कम पर रए। सो हमने कई के सीदे जेई बोलो के तुमें रुपैया चाउनें, इते-उते की काय दे रए? सो बे कैन लगे के हम कोनऊं को एहसान नईं रखत। जो तुमसे रुपैया लेबी सो तुमाओ माला, गमछा औ नरियल से सम्मान करबी। संगे एक सम्मानपत्र सोई देबी। सो हमने कई भैया, जे करबे की जरूरत नइयां। जो तुमे रुपैया कम पर रए सो हम दे देबी।’’ भैयाजी बतात जा रए हते।
‘‘फेर?’’
‘‘फेर का? बे कैन लगे के जो तुम सम्मान ने लैहांे सो, हम सोई तुमसे रुपैया न लेबी, चाए हमाए आयोजन की वाट लग जाए। हमने सो भौतई टाल-मटोल करी, मनो बे मानबे को तैयार ने हते। सो हमें उनकी बात माननी परी।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘कित्ते रुपैया ले गए?’’
‘‘अब छोड़ो! जो ले गए, सो ले गए। मनो काम तो अच्छो कर रए।’’ भैयाजी टरकात भए बोले।
‘‘छोड़ो काय? मोय पतो होने चाइए के उन्ने आपको कित्ते को चूना लगाओ?’’ मैंने कई।
‘‘अरे दान के पइसा गिनाए नई जात। जान देओ!’’ भैया जी बताबे खों तैयार ने हते।
‘‘बता देओ भैयाजी, ने तो मोए भौजी से पूछने परहे।’’ मैंने भैयाजी खों धमकाओ। काय से के मोय समझ में आ गई रई के भैया जी ने भौजी से छिपा के तिबारी जी खों रुपैया दए, ने तो बे मोसे कैबे में ने हिचकते।
‘‘जेई से तो हम तुमें बताबो नई चा रए। तुम पैले हमसे जे वादो करो के तुम अपनी भौजी को ई बारे में कछू ने बतेहो।’’ भैयाजी डरात भए बोले।
‘‘हऔ, वादा करी! चलो, अब आप बताओ के बे आपसे कित्ते झटक ले गए?’’ मैंने पूछी।
‘‘पांच हजार ले गए।’’ भैयाजी मरे-मरे से बोले।
‘‘पांच हजार????’’ जे सुन के मोय तो चक्कर सो आ गओ।
‘‘जेई से तो हम तुमें नई बता रए हते।’’ भैयाजी मुरझात भए बोले।
‘‘जे आपने ठीक सौदा ने करो! इत्ते तो बे ओरें देत आएं जिने अध्यक्ष बनाओ जात आए। आपको कैने रओ के हिंदी सेवा सम्मान से कछू ने चलहे, हमें आयोजन को अध्यक्ष सोई बनाओ।’’ मैंने भैयाजी से कई। मोय भैयाजी पे खूबई गुस्सा आ रओ हतो।
‘‘जान तो देओ! अब हम जे अपनई मों से कैसे कैते?’’
‘‘जैसे बाकी जने कओ करत आएं!’’
‘‘अब हमें का पतो!’’ भैयाजी झुझलात भए बोले। उनकी अवाज सुन के मोय लगो के अब जो हो गओ सो हो गओ, तिबारी जी ने चूना सो लगाई दओ आए, अब भैयाजी को मूड काय खराब करो जाए।
‘‘सई कै रए आप! ई दफा जो हो गओ, सो हो गओ। मनो आगे ख्याल राखियो। चलो हम आपके लाने बता रए के जे आप पीलो वारो कुर्ता पैन लइयो औ ईके संगे जे जींस अच्छी लगहे।’’ मैंने एक जींस औ कुर्ता उने छांट के पकरा दओ।
‘‘काय तुमे नई बुलाओ का उन्ने?’’ भैयाजी ने हिचकत भई पूछी।
‘‘मोय काय बुलाहें? मैं कोन हिंदी सेवा कर रई?’’ मैंने हंस के कई। फेर मैं हंसत भई बोली,‘‘मनो आप जरूर जाइयो, काय से के ऊं पांच हजार में से सौ-दो सौ को हिसाब सो होई जैहे।’’
भैयाजी सोई हंसन लगे। फेर उन्ने कपड़ा समेटो औ प्रेस कराबे जाने के लाने ठाड़े हो गए। मैंने सोई उनसे बिदा लई।
सो ई दार से भैयाजी सोई हिंदी सेवी हो गए। आप ओरें भैयाजी खों बधाई जरूर दे दइयो। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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