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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, October 26, 2023

चर्चा प्लस | एक थे डाॅ. सालिम अली | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
एक थे डाॅ. सालिम अली.....
  - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
       पक्षियों को देखना सभी को अच्छा लगता है। उनकी आवाजें सुन कर मन खुश हो जाता है। लेकिन हर सदी, हर दशक में पक्षियों पर कोई न कोई संकट हम मनुष्यों के कारण आता रहा है। उसमें सबसे बड़ा संकट है पक्षियों से उनके रहवास के छिन जाने का। जंगलों की अवैध कटाई और शहरों के असंतुलित विकास ने पक्षियों की कई प्रजातियां ही लगभग समाप्त कर दी हैं। डाॅ. सालिम अली जैसे पक्षीविद ने जो पहल की, उसका अनुकरण करते हुए हमारे देश में आज पक्षियों की प्रजातियों एवं उनके रहवास को बचाने का कार्य चल रहा है, जिसके बारे आमजन को पता ही नहीं है। आमजन मात्र यही सोच कर रह जाता है कि आजकल फलां पक्षी नहीं दिखते। मगर क्यों? इस दिशा में वे नहीं सोचते हैं। जबकि डाॅ सालिम अली ने सिर्फ सोचा नही, बल्कि उन्हें बचाने का प्रयास भी किया।
अभी कुछ दिनों पहले की ही बात है जब श्राद्ध पक्ष चल रहा था मेरे एक परिचित ने दुखी होते हुए कहा कि ‘‘मैंने कुत्ते, गाय आदि सबको उनका अंश खिला दिया किंतु कौवे नहीं मिले और मैं श्राद्ध पक्ष का भोग उन्हें नहीं लग पाया हूं।’’ फिर उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘पता नहीं कौवे आजकल दिखते क्यों नहीं? कहां चले गए?’’
मैंने उनसे पूछा कि ‘‘भैया जी, ये बताइए कि ये सब ऊंचे-ऊंचे वृक्ष जो अपने आसपास थे, वे सब कहां गए?’’ तो उन्होंने लापरवाही से कहा, ‘‘वे वृक्ष कहां जाएंगे? काट दिए गए। उनकी जगह पर घर बन गए। देखा तो रही हैं आप। लेकिन इन पेड़ों से उन कौवों का क्या रिश्ता?’’ मैंने उनसे कहा, ‘‘भैया जी, शायद आपको पता नहीं है कि कौवे हमेशा ऊंचे वृक्षों पर ही अपना घोंसला बनाते हैं और जब ऊंचे वृक्ष ही नहीं रहेंगे तो वे यहां क्यों आएंगे? क्या अपना घर तोड़ने वालों के पास आएंगे वे?’’
‘‘लेकिन मैंने तो न उन वृक्षों को काटा है और न उनका घर तोड़ा है, फिर वह मेरी छत पर क्यों नहीं आते?’’ झुंझलाहट में बचकानी सी बात पूछ बैठे भैया जी।
‘‘अपने पेड़ काटने वालों को रोका भी तो नहीं!’’ मैंने भैया जी को उलाहना दिया।
‘‘क्या सिर्फ मेरे रोकने से कोई रुकता?’’ अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए भैया जी के पास तर्कों की कोई कमी नहीं थी। मैंने कहा,‘‘भैया जी अगर यही बात हम सब सोचते रहेंगे तो कभी किसी को रोक नहीं सकेंगे और सारे पेड़, सारे जंगल यूं ही कटते रहेंगे।’’
सिर्फ मेरे करने से क्या होगा? यदि यही बात डाॅ सालिम अली सोचते तो क्या वे पक्षियों के उन रहवास को बचा पाते जो उस समय उजाड़े जा रहे थे? यदि सालिम अली नहीं होते तो शायद मेरे जैसे अनेक लोग बचपन से पक्षियों के प्रति अपनापन महसूस नहीं कर पाते। एक ऐसे पक्षी प्रेमी जिन्होंने अपना पूरा जीवन पक्षियों के लिए समर्पित कर दिया। वे एक सच्चे प्रकृति प्रेमी थे, पक्षियों के सच्चे हितैषी थे और एक सच्चे भारतीय थे, तभी तो उन्होंने पक्षियों के जीवन के महत्व को समझा।
      मुझे भी बचपन से ही पक्षियों से प्रेम रहा। क्योंकि पन्ना (मप्र) के हमारे घर में एक मध्यम आकार का बगीचा था जिसमें केले, बेर, मुनगे आदि के पेड़ और बहुत से पौधे तथा बेलें लगी थीं। हिरणबाग नाम की हमारी काॅलोनी राजाओं के समय बाग हुआ करती थी जहां हिरण पाले जाते थे। अतः वहां आम, नीम, वट और पीपल के वर्षों पुराने वृक्ष थे। इसीलिए मेरी काॅलोनी और मेरे घर के बगीचे में तरह-तरह के पक्षी आया करते थे। मैं उन सारे पक्षियों का नाम नहीं जानती थी, इसलिए उनका अपने मन से कुछ भी नामकरण कर दिया करती थी। उन्हीं दिनों मां को डाॅ सालिम अली की पुस्तक ‘द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स’ का पता चला। उन दिनो आॅनलाइन शाॅपिंग तो थी नहीं, अतः उन्होंने सीधे प्रकाशक से डाक द्वारा वह किताब मेरे लिए मंगाई। उस किताब में भारत में पाए जाने वाले पक्षियों का चित्र सहित विवरण दिया गया था। वह किताब अंग्रेजी में थी और मैं थी हिन्दी माध्यम की छात्रा। फिर भी जिज्ञासावश मैंने डिक्शनरी की सहायता ले-ले कर और कभी वर्षा दीदी से पूछ-पूछ कर पूरी किताब पढ़ डाली। उस किताब के जरिए ही मैंने सेवन सिस्टर्स, क्रो फीसेंट, बुलबुल, ब्लैक ड्रोंगो, हार्न बिल, हमिंग बर्ड, बया, हुकना जैसे पक्षियों को पहचाना और उनकी आदतें तथा आवाजों के बारे में जाना। उस समय मैं प्रायमरी कक्षा में पढ़ती थी। ठीक उसी समय से मैंने डाॅ. सालिम अली को भी जाना और उनकी अमिट छाप मेरे मन-मस्तिष्क पर अंकित हो गई।

  वे एक भारतीय पक्षी विज्ञानी, वन्यजीव संरक्षणवादी और प्रकृतिवादी थे। डॉ अली देश के पहले ऐसे पक्षी विज्ञानी थे जिन्होंने सम्पूर्ण भारत में व्यवस्थित रूप से पक्षियों का सर्वेक्षण किया और पक्षियों पर ढेर सारे लेख और किताबें लिखीं। उनके द्वारा लिखी पुस्तकों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्हें “भारत का बर्डमैन” के रूप में जाना जाता है। उनके कार्यों और योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें सन 1958 में पद्म भूषण और सन 1976 में देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘‘पद्म विभूषण’’ से सम्मानित किया था। सन 1947 के बाद वे ‘बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ के सबसे प्रधान व्यक्ति बने और ‘भरतपुर पक्षी अभयारण्य’ (केओलदेव् राष्ट्रीय उद्यान) के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ‘साइलेंट वैली नेशनल पार्क’ को बर्बादी से बचाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
      डाॅ सालिम अली का पूरा नाम था डॉ सालिम मोइजुद्दीन अब्दुल अली। सालीम अली का जन्म मुंबई के एक सुलेमानी बोहरा परिवार में 12 नवम्बर 1896 में हुआ। वे अपने नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। जब वे एक साल के थे तब उनके पिता मोइजुद्दीन अली चल बसे और जब वे तीन साल के हुए तब उनकी माता जीनतुन्निस्सा की भी मृत्यु हो गई। मुंबई की खेतवाड़ी में सालीम अली और उनके भाई-बहनों की परवरिश उनके मामा अमिरुद्दीन तैयाबजी और चाची हमिदा ने की।
        सालिम की प्रारंभिक रुचि शिकार से संबंधित किताबों पर थी जो बाद में स्पोर्ट-शूटिंग की दिशा में आ गई जिसमें उनके मामा अमिरुद्दीन ने उन्हें काफी प्रोत्साहित भी किया। उनके आस-पड़ोस में अक्सर शूटिंग प्रतियोगिता का आयोजन होता था। जब वे 13 साल के थे तब गंभीर सिरदर्द की बीमारी से पीड़ित हुए, जिसके कारण उन्हें अक्सर कक्षा छोड़नी पड़ती थी। किसी ने सुझाव दिया कि सिंध की शुष्क हवा से शायद उन्हें ठीक होने में मदद मिले इसलिए उन्हें अपने एक चाचा के साथ रहने के लिए सिंध भेज दिया गया। वे लंबे समय के बाद सिंध से वापस लौटे और बड़ी मुश्किल से सन 1913 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस दौरान बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) के सचिव डबल्यू.एस. मिलार्ड ने सालिम अली में पक्षियों के प्रति जिज्ञासा बढ़ाई और छात्र सालिम को पक्षियों के अध्ययन के लिए उत्साहित किया जिसके स्वरुप सालिम ने गंभीर अध्ययन करना शुरू किया। मिलार्ड ने सोसायटी में संग्रहीत सभी पक्षियों को सालिम को दिखाना प्रारंभ किया और पक्षियों के संग्रहण के लिए प्रोत्साहित भी किया। उन्होंने सालिम को कुछ किताबें भी दी जिसमें ‘कॉमन बर्ड्स ऑफ मुंबई’ भी शामिल थी। मिलार्ड ने सालिम अली की मुलाकात नोर्मन बॉयड किनियर से करवाई, जो कि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में प्रथम पेड क्यूरेटर थे।
      सालिम अली ने प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रहण की। किन्तु कॉलेज का पहले साल में ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और परिवार के वोलफ्रेम (टंग्सटन) माइनिंग और इमारती लकड़ियों के व्यवसाय की देख-रेख के लिए टेवोय, बर्मा (टेनासेरिम) चले गए। वह स्थान सालिम के अभिरुचि में सहायक सिद्ध हुआ क्योंकि वहां पर घने जंगले थे। जहां उनका मन तरह-तरह के पक्षियों को देखने में लगता। लगभग 7 साल बाद सालिम अली मुंबई वापस लौट गए और पक्षी शास्त्र विषय में प्रशिक्षण लिया और बंबई के ‘नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ के म्यूजियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। कुछ समय बाद अवकाश लेकर जर्मनी जाकर पक्षी विज्ञान में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों के बारे में अध्ययन के लिए देश के कई भागों और जंगलों में भ्रमण किया। कुमाऊं के तराई क्षेत्र से डॉ अली ने बया पक्षी की एक ऐसी प्रजाति ढूंढ़ निकाली जो लुप्त घोषित हो चुकी थी। साइबेरियाई सारसों की एक-एक आदत की उनको अच्छी तरह पहचान थी। उन्होंने ही अपने अध्ययन के माध्यम से बताया था कि साइबेरियन सारस मांसाहारी नहीं होते, बल्कि वे पानी के किनारे पर जमी काई खाते हैं। वे पक्षियों के साथ दोस्ताना व्यवहार करते थे और उन्हें बिना कष्ट पहुंचाए पकड़ने के 100 से भी अधिक तरीके उनके पास थे। पक्षियों को पकड़ने के लिए डॉ सालिम अली ने प्रसिद्ध ‘गोंग एंड फायर’ व ‘डेक्कन विधि’ की खोज की जिन्हें आज भी पक्षी विज्ञानियों द्वारा प्रयोग किया जाता है। जर्मनी के ‘बर्लिन विश्वविद्यालय’ में उन्होंने प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक इरविन स्ट्रेसमैन के देख-रेख में काम किया। उसके बाद सन 1930 में वे भारत लौट आए। जब एक साल बाद भारत लौटे तब पता चला कि इनका पद समाप्त किया जा चुका था। सालिम अली की पत्नी के पास कुछ रुपए थे जिससे उन्होंने बंबई बन्दरगाह के पास किहिम नामक स्थान पर एक छोटा सा घर ले लिया। फिर पक्षियों पर और तेजी से कार्य प्रारंभ किया। देश की आजादी के बाद डॉ सालिम अली ‘बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी’ के प्रमुख लोगों में रहे। भरतपुर पक्षी विहार की स्थापना में उनकी मुख्य भूमिका रही।

सन 1930 में सालिम अली  ने अपने अनुसंधान और अध्ययन पर आधारित लेख लिखे। इन लेखों के माध्यम से लोगों को उनके कार्यों के बारे में पता चला और उन्हें एक ‘पक्षी शास्त्री’ के रूप में पहचाना मिली। लेखों  के साथ-साथ सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखीं। वे जगह जगह जाकर पक्षियों के बारे में जानकारी इकठ्ठी करते थे। उन्होंने इन जानकारियों के आधार पर एक पुस्तक तैयार की जिसका नाम था ‘द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स’। सन 1941 में प्रकाशित इस पुस्तक ने रिकॉर्ड बिक्री की। इसके बाद उन्होंने एक दूसरी पुस्तक ‘हैण्डबुक ऑफ द बर्ड्स ऑफ इंडिया एण्ड पाकिस्तान’ भी लिखी, जिसमें सभी प्रकार के पक्षियों, उनके गुणों-अवगुणों, प्रवासी आदतों आदि से संबंधित अनेक रोचक और मतवपूर्ण जानकारियां दी गई थी। डॉ सालिम अली ने एक और पुस्तक ‘द फाल ऑफ ए स्पैरो’ भी लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी कई घटनाओं का जिक्र किया है।
      डॉ सालिम अली ने अपना पूरा जीवन पक्षियों के लिए समर्पित कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि सालिम मोइजुद्दीन अब्दुल अली पक्षियों की बोली समझते थे। उन्होंने पक्षियों के अध्ययन को आम जनमानस से जोड़ा और कई पक्षी विहारों की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई।

       27 जुलाई 1987 को 91 साल की उम्र में डॉ. सालिम अली का निधन मुंबई में हुआ। डॉ सालिम अली भारत में एक ‘पक्षी अध्ययन व शोध केन्द्र’ की स्थापना करना चाहते थे। इनके महत्वपूर्ण कार्यों और प्रकृति विज्ञान और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में अहम् योगदान के  कारण ‘बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ और ‘पर्यावरण एवं वन मंत्रालय’ द्वारा कोयम्बटूर के निकट ‘अनाइकट्टी’ नामक स्थान पर ‘सालिम अली पक्षीविज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र’ स्थापित किया गया। उनकी जन्मशती पर सन 1996 में भारत सरकार ने दो डाक टिकट जारी किए  थे ।

     आज पक्षियों के बारे में नेशनल जियोग्राफी, डिस्कवरी, बीबीसी अर्थ आदि अनेक टीवी चैनल्स हैं, लेकिन जब ये सब कुछ नहीं था तब डाॅ. सालिम अली थे और उनका जुनून था जिसने अनगिनत पक्षियों की जान बचाई, उनके निवासस्थानों को बचाया और आमजन को पक्षियों लिए सोचने की दिशा दी। अब यह सरकार तथा स्वयंसेवी संगठनों का दायित्व है कि वे पक्षियों के प्रति आमजन में जागरूकता लाएं। उनके रहवास (हैबिटेट) की जानकारी दें। पर्यावरण चक्र में उनके महत्व की जानकारी दें। एक छोटा पक्षी भी छोटे-मोटे हानिकारक कीटों को खा कर हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करता है और फूलों के परागण तथा बीजों के फैलाव में पक्षियों की भूमिका सभी जानते ही हैं। पृथ्वी नामक इस घर में पक्षी हमारे परिवार के सदस्य हैं, बस, यही तो समझाना चाहते थे डाॅ. सालिम अली।  
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