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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, October 26, 2023

बतकाव बिन्ना की | उते तो खूबई बड़ो वारो दोंदरा मचो | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"उते तो खूबई बड़ो वारो दोंदरा मचो" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
उते तो खूबई बड़ो वारो दोंदरा मचो
        - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘काय भैयाजी, ई दफे कोन के लाने वोट डालने अपन ओरन खों?’’ काल संझा खों मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘इनसे का पूछ रईं बिन्ना? इनको सो खुदई मूंड़ चकरा रओ।’’ भैयाजी की जांगा भौजी ने जवाब दओ।
मैंने देखी के दोई जने थके-मांदे से दिखा रए हते।
‘‘आप ओरें खूबई थक गए दिखा रए। आप दोई हमाए संगे हमाए घरे चलो, हम आप दोई खों अच्छी तुलसी औ अदरक की चाय बना के पियाबी।’’ मैंने दोई जने से कई।
‘‘हऔ चलो!’’ भौजी तुरतईं बोलीं। ठीक बी हतो। काय से के जब कोनऊं थको-थकाओ घरे लौटो होय औ ऊको चाय बनानी परे, सो बा ऊके लाने सजा घांई लगत आए।
‘‘कछु खाबे के लाने होय, सो संगे कछू ख्वा बी दइयो।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘हऔ, ने हुइए सो बना देबी, ऊकी फिकर आप ने करो। घरे तारा डारो औ चलो संगे।’’ मैंने भैयाजी से कई।
बे दोई मोरे घरे आ गए। सच्ची मोय दोई पे बड़ी दया सी आ रई हती। ने जाने कां-कां भगत फिरत रैं हुंइए? औ मोय तो लगत आए के जोन के लाने जे ओरें चुनाव को प्रचार करबे खों गए हते, ऊने इन ओरन खों कछू खवाओ, पियाओ नईं। ने तो जे दसा में काय दिखाते? मनो अब उन दोई से पूछबे में बी अच्छो सो नई लग रओ हतो, सो मैंने ने पूंछी।
अपने घरे पौंच के मैंने पैलऊं गैस की एक बर्नर पे चाय को पानी चढ़ाओ औ दूसरे बर्नर पे कढाई में तेल चढ़ा दओ, मंदी आंच कर के। बेसन को डब्बा खोलो। बेसन निकार के पतीली में घोर लओ। फेर तुरतईं गिल्की और बैंगन काटे। तनक प्याज के लच्छा से सोई काट लए। फेर बेसन में नमक औ अजवाईन मिला के, ऊमें कटी भईं सबरी सब्जियां डार के फेंटा मार दओ। जो लो तेल गरम हो आओ हतो। उते चाय के पानी में शक्कर और चायपत्ती डारी। उबलत साथ अदरक औ तुलसी के पत्ता मींड़ के डार दए। ई तरफी चाय खों उबलन दओ औ संगे दूसरी तरफी गरम तेल में भजिया तलबो शुरू कर दओ। भजिया सिंके की गंध लगतई साथ बैठक में बैठी भौजी ने टेर लगाई-‘‘काय बिन्ना मदद के लाने आएं का?’’
‘‘नईं आप तो बैठो! बस, अभई बनो जा रओ।’’ मैंने भौजी से कई। भौजी सांची में भौतई थकीं कहानीं, नें तो बे खाली टेर ने लगातीं, बे तो किचेन में आतीं औ झरिया मोरे हाथ से छुड़ा के खुदई सेंकन लगतीं।
मैंने झट्टई भजिया को पैलो घना उतारो, कपों में चाय छानी औ ले के बैठक में पौंचीं। उते देखी के भैयाजी सो दीवान पे पसरे डरे हते औ उने नींद लग गई रई। भौजी सोई सोफा पे ऊंघत टिकी हतीं। मैंने दोई को जगाओ।
‘‘सच्ची! तुमाई जैसी बिन्ना सबई खों मिले!’’ भैयाजी बोल परे। बे भजिया देख के गदगद हो गए हते। जेई से अंदाजा लगाओ जा सकत्तो के उन ओरन की का दसा हती।
बे दोई चाय के संगे भजिया खान लगे औ मैं भजिया को दूसरो घना उतारबे के लाने किचेन में चली आई। तब लौं दूसरो घना सोई सिंक गओ रओ। मैंने दूसरो घना सोई उन दोई के आंगू परोस दओ। दोई ने ना नईं करी। मनो मईंना-खांड़ से भूकें होंए।
तीसरो घना के संगे फेर के चाय बना लई। एकई बेर में ज्यादा चाय बना लेबे में बा टेस्ट ने रैतो, काय से के फेर के गरम करनी परती। जेई से मैंने दुबारा फेर के ताजा चाय बनाई। तीसरो घना औ संगे चाय को डग्गा देख के दोई की आत्मा जुड़ा गई। अब कऊं जा के उन ओरन को मोरो खयाल आओ।
‘‘बिन्ना, तुम तो सोई खा-पी लेओ! हमई ओरन खों ख्वाए जा रईं। तुमाए लाने कछू बचो के नईं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, अब तुम इते बैठो, हम तुमाए लाने बनाए दे रए।’’ अबकी भौजी बोलीं। मनो अब उनकी जान में जान लौटी हती।
‘‘अरे, आप ओरें फिकर ने करों! अबे मैं औ ला रई। ओई में मोरे भजिया औ चाय सोई आहें।’’ मैंने दोई खों बताओ।
बे ओरे कछू ने बोले। धीरे-धीरे जीमन लगे। जे बताए के पांछू मोरो मकसद जे रओ के उने पता पर जाए के अबे औ भजिया औ चाय बन रई। बे ओंरे भरपेट जींम लेवें।
सो तीसरो औ चौथो घना संगे ले के मैं बैठक में पौंची। संगे चाय को भरो डग्गा हतो। फेर एक दफा दोई के कप में भर-भर के चाय छान दई। उने खवाए-पिवाए में मोय बड़ो अच्छो सो लग रओ हतो। कोनऊं भूके को ख्वाबे से बड़ो पुन्न औ कोनऊं होई नईं सकत। बे ओरं ऊं टेम पे सबसे बड़े वारे भूके दिखा रए हते।
‘‘आप ओरें सो अलग-अलग पार्टी वारन के लाने प्रचार करबे गए हते न?’’ उन ओरन के खा के मों पोंछ लेबे के बाद मैंने पूछी।
‘‘हऔ, गए तो अलग-अलग हते।’’ भैयाजी मरी सी आवाज में बोले।
‘‘सो उन ओरन ने कछू ने खवाओ का?’’ मनो पूछो तो नईं चाइए रओ, बाकी पूछे बिगैर मोसे रओ नईं गओ।
‘‘अरे कां? उते तो ऐसो दोंदरा मचो, के ने पूछो! बे उन ओरन खों अपनो ठौर-ठिकाना नई सध रओ, हम ओरन खों कां से ख्वाते?’’ भैयाजी खिजियात भए बोले।
‘‘हऔ, कल्ल से हम ओरन खों कोनऊं के लाने नई जाने। चूला में गओ प्रचार-मचार!’’ भौजी सोई बमकत भई बोलीं।
‘‘हो का गओ ऐसो?’’ मैंने पूछी। मोय बड़ो अचरज हो रओ हतो।
‘‘कछू ने पूछो के का भओ!’’ भैयाजी बोले।
‘‘कछू तो बताओ!’’मैंने सोई जिद करी।
‘‘भओ जे के हम ओरें अलग-अलग पार्टी वारन के लाने प्रचार करबे खों गए हते। हमने प्रचार करी बी। मनो टिकट मिलबे के टेम तक मामलई पलट गओ। हमाए उम्मंीदवारन खों टिकट नईं दओ गओ। सो बे भड़कत भए दूसरी पार्टी के लाने सट्ट-पट्ट करन लगे। औ तुमाई भौजी वारे खों तो एक ठलुआ पार्टी ने टिकट दे बी दओ, मनो हमाए वारे उम्मींदवार खों उन्ने बी ने पूछो। सो संझा होत-होत उन्ने निर्दलीय ठाड़े होबे की घोषणा कर दई।’’ भैयाजी बतान लगे।

‘‘हऔ, अब हम उन ओरन से का कैते? जो उनसे खाबे खों मांगते, सो बे ओरें जेई कैते के- देबी फिरैं बिपत की मारीं, औ पण्डा कै मोय परसा देओ!’’ भौजी हंसत भई बोलीं। अब भौजी के मों की रौनक लौट आई हती। जे देख के मोय अच्छो लगो।
‘‘आप ओरें बी कां भटक रए हते!’’ मैंने दोई खों टोंकी।
‘‘बिना ठोंके घड़ा को पतो नई परत के बा कच्चो आए के पक्को!’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, औ घड़ा ठोंकेबे के चक्कर में आप ओरें खुदईं ठुके-पिटे से दिखान लगे।’’ मैंने हंस के कई।
मोरी बात सुन के बे दोई सोई हंसन लगे।
‘‘वैसे सांची कैं बिन्ना! सो रामधई, उते तो बड़ो भारी वारो दोंदरा मचो आए। पिछली की पिछली चुनाव में हमने जोन के लाने वोट देबे की कई रई, तुमें याद हुइए के बा पिछली चुनाव में निर्दलीय हो गओ रओ।’’ भैयाजी बतान लगे।
‘‘हऔ, औ आपने संगवार-वाद चलात भए मोसे सोई कओ रओ के बोई खों वोट दइयो।’’ मैंने भैयाजी खों टोंको।
‘‘हऔ! मनो हमें लगत आए के तुमने हमाई नईं सुनी हती, अपने मन की करी हती। बाकी बा जीत गओ रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सो! वोटर को कभऊं नईं बताओ चाइए के ऊंने कोन खों वोट दओ। आप तो अपनी कओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘इनसे का पूछ रईं? इनके बा वारे उम्मीदवार सो ई दफा एक दूसरी पार्टी को पट्टा पैन्ह के घूम रए। तुम तो इनकी बातन में ने आइयो। जोन के लाने तुमें ठीक लगे, बोई खों वोट दइयो। उते तो जोई समझ नई पर रई के, को कां पौंच गओ? औ कोन, कोन के संगे ठाड़ो?’’ भौजी ने सोई भैयाजी की खिंचाई कर दई। भैयाजी भए चुप रै गए।        
तो, भैया औ बैनों हरों! आप ओरें कोनऊं दोंदरा में ने फंसियो औ अपनी समझ के हिसाब से वोट डारियो। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता"उते तो खूबई बड़ो वारो दोंदरा मचो" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
उते तो खूबई बड़ो वारो दोंदरा मचो
        - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काय भैयाजी, ई दफे कोन के लाने वोट डालने अपन ओरन खों?’’ काल संझा खों मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘इनसे का पूछ रईं बिन्ना? इनको सो खुदई मूंड़ चकरा रओ।’’ भैयाजी की जांगा भौजी ने जवाब दओ।
मैंने देखी के दोई जने थके-मांदे से दिखा रए हते।
‘‘आप ओरें खूबई थक गए दिखा रए। आप दोई हमाए संगे हमाए घरे चलो, हम आप दोई खों अच्छी तुलसी औ अदरक की चाय बना के पियाबी।’’ मैंने दोई जने से कई।
‘‘हऔ चलो!’’ भौजी तुरतईं बोलीं। ठीक बी हतो। काय से के जब कोनऊं थको-थकाओ घरे लौटो होय औ ऊको चाय बनानी परे, सो बा ऊके लाने सजा घांई लगत आए।
‘‘कछु खाबे के लाने होय, सो संगे कछू ख्वा बी दइयो।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘हऔ, ने हुइए सो बना देबी, ऊकी फिकर आप ने करो। घरे तारा डारो औ चलो संगे।’’ मैंने भैयाजी से कई।
बे दोई मोरे घरे आ गए। सच्ची मोय दोई पे बड़ी दया सी आ रई हती। ने जाने कां-कां भगत फिरत रैं हुंइए? औ मोय तो लगत आए के जोन के लाने जे ओरें चुनाव को प्रचार करबे खों गए हते, ऊने इन ओरन खों कछू खवाओ, पियाओ नईं। ने तो जे दसा में काय दिखाते? मनो अब उन दोई से पूछबे में बी अच्छो सो नई लग रओ हतो, सो मैंने ने पूंछी।
अपने घरे पौंच के मैंने पैलऊं गैस की एक बर्नर पे चाय को पानी चढ़ाओ औ दूसरे बर्नर पे कढाई में तेल चढ़ा दओ, मंदी आंच कर के। बेसन को डब्बा खोलो। बेसन निकार के पतीली में घोर लओ। फेर तुरतईं गिल्की और बैंगन काटे। तनक प्याज के लच्छा से सोई काट लए। फेर बेसन में नमक औ अजवाईन मिला के, ऊमें कटी भईं सबरी सब्जियां डार के फेंटा मार दओ। जो लो तेल गरम हो आओ हतो। उते चाय के पानी में शक्कर और चायपत्ती डारी। उबलत साथ अदरक औ तुलसी के पत्ता मींड़ के डार दए। ई तरफी चाय खों उबलन दओ औ संगे दूसरी तरफी गरम तेल में भजिया तलबो शुरू कर दओ। भजिया सिंके की गंध लगतई साथ बैठक में बैठी भौजी ने टेर लगाई-‘‘काय बिन्ना मदद के लाने आएं का?’’
‘‘नईं आप तो बैठो! बस, अभई बनो जा रओ।’’ मैंने भौजी से कई। भौजी सांची में भौतई थकीं कहानीं, नें तो बे खाली टेर ने लगातीं, बे तो किचेन में आतीं औ झरिया मोरे हाथ से छुड़ा के खुदई सेंकन लगतीं।
मैंने झट्टई भजिया को पैलो घना उतारो, कपों में चाय छानी औ ले के बैठक में पौंचीं। उते देखी के भैयाजी सो दीवान पे पसरे डरे हते औ उने नींद लग गई रई। भौजी सोई सोफा पे ऊंघत टिकी हतीं। मैंने दोई को जगाओ।
‘‘सच्ची! तुमाई जैसी बिन्ना सबई खों मिले!’’ भैयाजी बोल परे। बे भजिया देख के गदगद हो गए हते। जेई से अंदाजा लगाओ जा सकत्तो के उन ओरन की का दसा हती।
बे दोई चाय के संगे भजिया खान लगे औ मैं भजिया को दूसरो घना उतारबे के लाने किचेन में चली आई। तब लौं दूसरो घना सोई सिंक गओ रओ। मैंने दूसरो घना सोई उन दोई के आंगू परोस दओ। दोई ने ना नईं करी। मनो मईंना-खांड़ से भूकें होंए।
तीसरो घना के संगे फेर के चाय बना लई। एकई बेर में ज्यादा चाय बना लेबे में बा टेस्ट ने रैतो, काय से के फेर के गरम करनी परती। जेई से मैंने दुबारा फेर के ताजा चाय बनाई। तीसरो घना औ संगे चाय को डग्गा देख के दोई की आत्मा जुड़ा गई। अब कऊं जा के उन ओरन को मोरो खयाल आओ।
‘‘बिन्ना, तुम तो सोई खा-पी लेओ! हमई ओरन खों ख्वाए जा रईं। तुमाए लाने कछू बचो के नईं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, अब तुम इते बैठो, हम तुमाए लाने बनाए दे रए।’’ अबकी भौजी बोलीं। मनो अब उनकी जान में जान लौटी हती।
‘‘अरे, आप ओरें फिकर ने करों! अबे मैं औ ला रई। ओई में मोरे भजिया औ चाय सोई आहें।’’ मैंने दोई खों बताओ।
बे ओरे कछू ने बोले। धीरे-धीरे जीमन लगे। जे बताए के पांछू मोरो मकसद जे रओ के उने पता पर जाए के अबे औ भजिया औ चाय बन रई। बे ओंरे भरपेट जींम लेवें।
सो तीसरो औ चौथो घना संगे ले के मैं बैठक में पौंची। संगे चाय को भरो डग्गा हतो। फेर एक दफा दोई के कप में भर-भर के चाय छान दई। उने खवाए-पिवाए में मोय बड़ो अच्छो सो लग रओ हतो। कोनऊं भूके को ख्वाबे से बड़ो पुन्न औ कोनऊं होई नईं सकत। बे ओरं ऊं टेम पे सबसे बड़े वारे भूके दिखा रए हते।
‘‘आप ओरें सो अलग-अलग पार्टी वारन के लाने प्रचार करबे गए हते न?’’ उन ओरन के खा के मों पोंछ लेबे के बाद मैंने पूछी।
‘‘हऔ, गए तो अलग-अलग हते।’’ भैयाजी मरी सी आवाज में बोले।
‘‘सो उन ओरन ने कछू ने खवाओ का?’’ मनो पूछो तो नईं चाइए रओ, बाकी पूछे बिगैर मोसे रओ नईं गओ।
‘‘अरे कां? उते तो ऐसो दोंदरा मचो, के ने पूछो! बे उन ओरन खों अपनो ठौर-ठिकाना नई सध रओ, हम ओरन खों कां से ख्वाते?’’ भैयाजी खिजियात भए बोले।
‘‘हऔ, कल्ल से हम ओरन खों कोनऊं के लाने नई जाने। चूला में गओ प्रचार-मचार!’’ भौजी सोई बमकत भई बोलीं।
‘‘हो का गओ ऐसो?’’ मैंने पूछी। मोय बड़ो अचरज हो रओ हतो।
‘‘कछू ने पूछो के का भओ!’’ भैयाजी बोले।
‘‘कछू तो बताओ!’’मैंने सोई जिद करी।
‘‘भओ जे के हम ओरें अलग-अलग पार्टी वारन के लाने प्रचार करबे खों गए हते। हमने प्रचार करी बी। मनो टिकट मिलबे के टेम तक मामलई पलट गओ। हमाए उम्मंीदवारन खों टिकट नईं दओ गओ। सो बे भड़कत भए दूसरी पार्टी के लाने सट्ट-पट्ट करन लगे। औ तुमाई भौजी वारे खों तो एक ठलुआ पार्टी ने टिकट दे बी दओ, मनो हमाए वारे उम्मींदवार खों उन्ने बी ने पूछो। सो संझा होत-होत उन्ने निर्दलीय ठाड़े होबे की घोषणा कर दई।’’ भैयाजी बतान लगे।

‘‘हऔ, अब हम उन ओरन से का कैते? जो उनसे खाबे खों मांगते, सो बे ओरें जेई कैते के- देबी फिरैं बिपत की मारीं, औ पण्डा कै मोय परसा देओ!’’ भौजी हंसत भई बोलीं। अब भौजी के मों की रौनक लौट आई हती। जे देख के मोय अच्छो लगो।
‘‘आप ओरें बी कां भटक रए हते!’’ मैंने दोई खों टोंकी।
‘‘बिना ठोंके घड़ा को पतो नई परत के बा कच्चो आए के पक्को!’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, औ घड़ा ठोंकेबे के चक्कर में आप ओरें खुदईं ठुके-पिटे से दिखान लगे।’’ मैंने हंस के कई।
मोरी बात सुन के बे दोई सोई हंसन लगे।
‘‘वैसे सांची कैं बिन्ना! सो रामधई, उते तो बड़ो भारी वारो दोंदरा मचो आए। पिछली की पिछली चुनाव में हमने जोन के लाने वोट देबे की कई रई, तुमें याद हुइए के बा पिछली चुनाव में निर्दलीय हो गओ रओ।’’ भैयाजी बतान लगे।
‘‘हऔ, औ आपने संगवार-वाद चलात भए मोसे सोई कओ रओ के बोई खों वोट दइयो।’’ मैंने भैयाजी खों टोंको।
‘‘हऔ! मनो हमें लगत आए के तुमने हमाई नईं सुनी हती, अपने मन की करी हती। बाकी बा जीत गओ रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सो! वोटर को कभऊं नईं बताओ चाइए के ऊंने कोन खों वोट दओ। आप तो अपनी कओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘इनसे का पूछ रईं? इनके बा वारे उम्मीदवार सो ई दफा एक दूसरी पार्टी को पट्टा पैन्ह के घूम रए। तुम तो इनकी बातन में ने आइयो। जोन के लाने तुमें ठीक लगे, बोई खों वोट दइयो। उते तो जोई समझ नई पर रई के, को कां पौंच गओ? औ कोन, कोन के संगे ठाड़ो?’’ भौजी ने सोई भैयाजी की खिंचाई कर दई। भैयाजी भए चुप रै गए।        
तो, भैया औ बैनों हरों! आप ओरें कोनऊं दोंदरा में ने फंसियो औ अपनी समझ के हिसाब से वोट डारियो। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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