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Saturday, February 3, 2024

शून्यकाल | देश के संविधान के लिए 1909 से ही संकल्पित थे महात्मा गांधी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

"दैनिक नयादौर" में मेरा कॉलम "शून्यकाल"
देश के संविधान के लिए 1909 से ही संकल्पित थे महात्मा गांधी
           - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                 
26 जनवरी 1950 को को भारतीय संविधान लागू किया गया। इससे बहुत पहले सन 1909 से ही महात्मा गांधी ने भारतीय संविधान के बारे में विचार करना आरम्भ कर दिया था। उन्हें विश्वास था कि भारत एक दिन अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होगा और उसके बाद स्वतंत्र देश के रूप में उसे अपने एक अलग संविधान की आवश्यकता होगी। एक स्वतंत्र भारत के लिए किस तरह का संविधान उपयुक्त होगा, इस बारे में उन्होंने गंभीर चिंतन किया था जो उनके विविध लेखों से पता चलता है। क्या वर्तमान संविधान महात्मा गांधी की संकल्पना के अनुरुप है?
भारतीय संविधान लोकतांत्रिक संविधान है। एक ऐसा संविधान जो जनसामान्य के हितों की रक्षा पर केन्द्रित है। इसका ड्रफ्ट डाॅ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में संविधान सभा ने तैयार किया था। भारतीय संविधान विभिन्न देशों के संविधान से प्रेरित है। हमारे संविधान का 75 प्रतिशत भाग भारत सरकार अधिनियम 1935 से लिया गया है लेकिन इसके साथ ही ब्रिटेन, अमेरिका, जापान, सोवियत संघ, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा और जर्मनी आदि देशों के संविधान के कुछ प्रमुख तत्व भी हमारे संविधान में सम्मिलित किए गए हैं। 29 अगस्त 1947 को संविधान मसौदा समिति बनी, जिसके अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर बनाए गए। 9 दिसंबर 1946 को, संविधान सभा की पहली बार बैठक हुई। 21 फरवरी 1948 को मसौदा समिति ने विभिन्न समितियों के प्रस्तावों को ध्यान में रखते हुए, भारत के संविधान का पहला मसौदा तैयार किया, जिसे 21 फरवरी 1948 को प्रकाशित किया गया था। संविधान के मसौदे की विस्तृत समिति पर पांच सप्ताह की बहस के बाद, संवैधानिक सम्मेलन ने अंतिम संस्करण तैयार करने के लिए एक समिति नियुक्त की गई। कुल 2 साल, 11 महीने और 18 दिन की अवधि में, भारतीय संविधान तैयार हुआ।

जब हमारे संविधान की रचना हुई थी तब इसमें 395 अनुच्छेद या धाराएं थीं । मूल अनुच्छेदध्धाराओं की संख्या संविधान में आज भी इतनी ही है । हालाँकि समय समय पर होने वाले संशोधनों के कारण आज कुल अनुच्छेदों की संख्या 448 हो गई है, लेकिन ये मूल अनुच्छेद के ही विस्तार के रूप में स्थापित किये गये हैं । पांडुलिपि 26 नवंबर, 1949 को पूरी हुई और 26 जनवरी, 1950 को हस्ताक्षर किए गए। यह दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। यह हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखी गई है और इसके लेखक बीआर अंबेडकर और बीएन राऊ थे। इस संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। ठीक इसी दिन से देश ने संवैधानिक रूप से गणतांत्रिक प्रणाली को अपनाया। 
1950 को संविधान लागू किए जाने से बहुत पहले सन 1909 से ही महात्मा गांधी ने भारतीय संविधान के बारे में विचार करना आरम्भ कर दिया था। उन्हें विश्वास था कि भारत एक दिन अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होगा और उसके बाद स्वतंत्र देश के रूप में उसे अपने एक अलग संविधान की आवश्यकता होगी। एक स्वतंत्र भारत के लिए किस तरह का संविधान उपयुक्त होगा, इस बारे में उन्होंने गंभीर चिंतन किया था जो उनके विविध लेखों से पता चलता है। क्या वर्तमान संविधान महात्मा गांधी की संकल्पना के अनुरुप है?

 महातमा गांधी प्रबल मानवतावादी थे। वे स्वतंत्र भारत के लिए ऐसे शासनतंत्र की कल्पना करते थे जिसमें प्रत्येक नागरिका को समान अधिकार प्राप्त हो चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ण, लिंग का उन्होंने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से हमेशा समता पर जोर दिया तथा समाज के अंतिम पंक्ति तक के व्यक्ति को सुखी देखने की संकल्पना की। गांधीजी ने मैला ढोने की प्रथा बंद कराई किन्तु इससे पहले स्वयं मैला साफ कर के उस पीड़ा को अनुभव किया जो मैला ढोने वालों को झेलनी पड़ती थी। इसीलिए उनका संवैधानिक आग्रह भी व्यवहारिक था, काल्पनिक नहीं। भारत के लिए संविधान को आकार देने में गांधी जी की भूमिका को परोक्ष रूप से विद्यमान रही। सन 1909 के आरम्भ में, गांधी ने ‘‘हिंद स्वराज’’ में ‘‘भारत के भविष्य के संविधान’’ पर अपने विचार लिखे। इसमें, उन्होंने संसदों के बारे में अपनी आपत्तियां जोरदार ढंग से व्यक्त कीं। संविधान की संरचना और संरचना के बारे में गांधी की धारणा की एक और, अधिक प्रमुख अभिव्यक्ति उस संविधान में प्रमाणित हुई, जिसमें उन्होंने 1923 में औंध के लोगों के लिए मसौदा तैयार करने में मदद की थी। उस संविधान में, गांधी ने एक विकेन्द्रीकृत सरकार की कल्पना की थी, क्योंकि उन्होंने अक्सर केंद्रीकृत सत्ता उचित नहीं माना। ऐसी सरकार उन्हें ‘‘महंगी, अक्षम, निर्दयी और सत्ता की भूखी’’ लगती थी। 

औंध आज महाराष्ट्र राज्य के सतारा जिले में स्थित एक बस्ती है। यह ब्रिटिश राज के काल में एक रियासत हुआ करती थी। औंध में गांधी जी ने अपनी संवैधानिक संकल्पना को प्रयोगात्मक रूप से साकार किया था। औंध में गांधी द्वारा परिकल्पित विकेन्द्रीकृत सरकार में ग्राम पंचायतें, तालुकों का गठन किया गया था। पंचायत अध्यक्ष और तालुकों द्वारा भेजे गए सदस्यों द्वारा गठित एक विधान सभा। गांधीजी ने औंध में अभ्यास करने पर जोर देने वाली दूसरी शर्त यह थी कि केवल साक्षर नागरिक ही मतदान कर सकते थे। पहले चुनाव से पहले, उन्होंने शासक को लोगों को साक्षर बनाने में मदद करने की व्यवस्था करने का सख्त निर्देश दिया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि राजकुमार को औंध के एक गरीब नागरिक के रूप में दस साल तक औंध में रहना चाहिए और काम करना चाहिए। गांधीजी ने मौलिक अधिकारों को शामिल करना भी सुनिश्चित किया।

गांधी जी अव्यवहारिक संविधान के विरोधी थे। वे 1930 के दशक तक भारत में संविधान और संसदीय प्रणाली के विरुद्ध गंभीर आपत्तियां व्यक्त करते रहे। फिर गांधीजी ने धीरे-धीरे संवैधानिक मामलों में रुचि लेना शुरू कर दिया। गांधीजी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया और भारत के भविष्य के संविधान के लिए अपने विचारों को स्पष्ट किया। संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (कांग्रेस) द्वारा आयोजित सत्रों में भी वे सक्रिय रूप से शामिल रहे। इन सभी अवसरों पर, गांधी ने ‘‘स्वराज’’, एक राज्यविहीन समाज के विचार का आग्रह किया, क्योंकि उन्होंने केंद्रीकृत, अखंड राज्य को एक ‘‘स्मृतिहीन मशीन’’ के रूप में माना था जो नागरिकों के अधिकारों को निरस्त कर देगा। उन्होंने राजनीतिक सत्ता की भ्रष्ट प्रकृति और राजनीतिक दलों की सत्ता की राजनीति का तिरस्कार किया। स्वराज का उद्देश्य पुनर्निर्माण के अपने सिद्धांतों को प्राप्त करने के लिए लोगों और राज्य को सशक्त बनाना था।
10 सितंबर 1931 में गांधी जी ने ‘‘यंग इंडिया’’ में लिखा कि ‘‘मैं एक ऐसे संविधान के लिए प्रयास करूंगा, जो भारत को सभी बंधनों और संरक्षण से मुक्त कर देगा।’’

1934 में एम.एन. रॉय ने एक संविधान सभा की स्थापना की मांग की, जिसे कांग्रेस ने जल्द ही आगे बढ़ाया। गांधी जी उस समय भी सशंकित थे। लेकिन, 1939 में, उन्होंने कांग्रेस के प्रस्तावों में संविधान सभा की मांग को शामिल करने में जवाहरलाल नेहरू का समर्थन किया, क्योंकि उन्हें लगा कि यह बड़े पैमाने पर राजनीतिक और अन्य लोगों के लिए एक माध्यम होने के अलावा, सांप्रदायिक समस्याओं और अन्य अशांति को हल करने का एकमात्र तरीका था। 1946 में, जब कैबिनेट मिशन योजना ने एक संविधान सभा का प्रस्ताव रखा और भारतीय राजनीतिक बिरादरी द्वारा इसकी विवादास्पद प्रांतीय व्यवस्थाओं के लिए इसे अस्वीकार कर दिया गया, तो गांधी ने संविधान सभा में शामिल होने के लिए कांग्रेस कार्य समिति के प्रस्ताव को मंजूरी देने के पक्ष में बात की। उन्होंने समझा कि इसकी संरचना में कई खामियां हैं और उन्होंने कहा, ‘‘संविधान सभा आपके लिए गुलाबों का बिस्तर नहीं बल्कि केवल कांटों का बिस्तर बनने जा रही है।’’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘एक सत्याग्रही इंतजार नहीं कर सकता या कार्रवाई में देरी नहीं कर सकता जब तक आदर्श स्थितियाँ न आ जाए।’’ और उन्होंने कांग्रेस पार्टी से संविधान सभा को ‘‘सत्याग्रह का विकल्प’’ मानने का आग्रह किया, क्योंकि उन्होंने इसे ‘‘रचनात्मक सत्याग्रह’’ कहा।

1950 में जब संविधान लागू किया गया तो गांधी जी दिवंगत हो चुके थे किन्तु उनके संविधान संबंधी विचारों से विकेंद्रीकरण, ग्रामीण उत्थान, सहकारी खेती, ग्रामोद्योग, नई शिक्षा, महिला सशक्तिकरण आदि शामिल थे। आज भी भारतीय संविधान महात्मा गांधी के विचारों के अनुरुप जनहित के उद्देश्य को ले कर संचालित है।
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