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My Editorials - Dr Sharad Singh

Sunday, February 4, 2024

ट्रेवलर डॉ (सुश्री) शरद सिंह | महाकाल धाम खेजरा

🚩एक घुमक्कड़ी महाकाल धाम की...
 आप सोच रहे होंगे उज्जैन? ... No! ...
... यह उज्जैन का महाकाल धाम नहीं सागर से झांसी मार्ग पर बांदरी नगर परिषद के अंतर्गत ग्राम खेजरा में स्थित महाकाल धाम है ... नेशनल हाईवे 44 से करीब ही... मैंने सुना कि वहां उज्जैन के महाकाल की प्रतिकृति है... बस, तभी से जिज्ञासा जाग उठी थी... 🎊🔔🎊
🚩 🤔व्यक्ति तभी वहां पहुंचता है जब वहां से बुलावा आता है फिर वह चाहे मंदिर हो, प्रकृति हो या परलोक...😀
🚩 कल 03.02.2024 महाकाल धाम की घुमक्कड़ी का मुहूर्त बना। 
ग्राम पटकुई होते हुए नेशनल हाईवे-44 पकड़ा ...
🚩 इस समय खेतों का सौंदर्य देखते ही बनता है। सड़क की दोनों तरफ पीले-सुनहरे खेत दिखाई दे रहे थे ...यह रंग उन्हें सरसों के फूलों से मिल रहा था .. By God! दिल कर रहा था कि किसी खेत में जाकर खड़ी हो जाऊं मगर अफसोस चारों ओर से कांटो की बाउंड्री बनी हुई थी जिसको पर करना मेरे लिए संभव नहीं था... लोटे में जरूर एक खेत को निकट से देखने का मौका मिला लेकिन उसमें भी प्रवेश नहीं मिल सका नहीं तो मेरा बिजूका बनकर खड़े होने का बहुत दिल कर रहा था 🕳️👚👖🧤 ... 😔ख़ैर अगली बार सही...😊

🚩रानीपुरा, खजुरिया और मेहर होते हुए आगे बढ़ते रहे.... फिर हाईवे के बायीं ओर खेजरा मंदिर प्रवेश द्वार दिखाई दिया। इस द्वार के किनारे लगे बोर्ड से पता चला कि वह आगासिरस से बमनोरा प्रधानमंत्री सड़क मार्ग है। शानदार सड़क 👍 ....यहीं से था धाम का पहुंच मार्ग 🚦🚙🚦
   
🚩 सुंदर खेतों के बीच से होकर जैसे ही मंदिर की पहली झलक मिली तो उसकी सुनहरी आभा देखकर मन प्रसन्न हो गया... सुनहरे रंग से रंगी हुई मंदिर की भव्य इमारत स्वर्ण मंदिर सी आभा दे रही थी.... मंदिर परिसर में पहुंचकर जब मंदिर को सामने से देखा तो सचमुच महाकाल मंदिर की इमारत याद आ गई... सुंदर डिज़ाइन किए हुए ऊंचे-ऊंचे स्तंभ वाले इस मंदिर का वहां एक बोर्ड पर पूरा परिचय लिखा था... यह परिचय इस प्रकार था....⤵️
🚩 महाकाल धाम परिचय ....
🕉️खैजरा दरबार का प्रारंभ 1904 में पं. शिवराम तिवारी कालभैरव साधक के रूप में किया था । उसके बाद पं. अमृतं प्रसाद तिवारी ने 90 वर्षो तक दरबार की सेवा की 2010 में उनके समाधित्य के बाद तिवारी दरवार की सेवा में वर्तमान में कार्य कर रहें हैं। कालभैरव की विशेष कृपा से दरबार का संचालन चल रहा हैं । पं. महेश तिवारी गुरूजी को महाकाल मंदिर पुष्य नक्षत्र में निर्माण करवाने का मार्गदर्शन एवं प्रेरणा भी कालभैरव जी की ही प्रेरणा स्त्रोत है । महाकाल मंदिर का निर्माण 2013 से प्रारंभ होकर केवल  पुष्य नक्षत्र में 2022 में दर्शनार्थ खोला गया मंदिर निर्माण वर्तमान में भी चल रहा है । शिखर निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ है आप सब का सहयोग एवं निर्माण कार्य में दान राशि की अपेक्षा है आप सबके  सहयोग से ही मंदिर पूर्ण होगा। दरबार प्रत्येक रविवार को रहता है जिसमें सभी प्रकार की बाधाओं का निराकरण एवं रोगों का. आर्यर्वेदिक इलाज तथा दैहिक, देवीय, भौतिक, तापीय निराकरण एवं आध्यात्मिक पद्धति से भी इलाज किया जाता है । दरबार में 1978 से अखंड ज्योति भी जल रही हैं जिसको घर से परिवर्तन कर महाकाल मंदिर में स्थापित किया गया हैं घी की ज्योति सतत् जलती है आप लोग भी सहयोग कर सकते हैं। 🕉️
    🚩 फिर मेरा ध्यान दीवार पर लिखी सूचनाओं पर गया... एक सूचना थी मंदिर खुलने एवं बंद होने के समय की तथा विभिन्न आरतियों के समय की ... दूसरी सूचना थी अभिषेक संबंधी... 🌷🙏🌷 फोटोज़ देखकर आप स्वयं जान जाएंगे.... 🎏
    🚩 परिसर में बनी दुकान से प्रसाद खरीदा और फिर मंदिर में प्रवेश किया... मंदिर के मुख्य द्वार के बाईं ओर प्रदक्षिण- पथ से होते हुए जब गर्भगृह में पहुंच कर देखा तू लगा जैसे उज्जैन के महाकाल मंदिर में प्रवेश किया हो... वहां प्रतिष्ठित  भव्य शिवलिंग की विशालता और  सुंदरता आप तस्वीरों में देखकर स्वयं समझ जाएंगे....🚩🙏🚩
    गर्भगृह को भी बहुत सुंदर सजाया गया है गर्भगृह की छत भी बहुत सुंदर है।
    🚩 महाकाल के दर्शन करने के बाद मंदिर के मुख्य द्वार के दाएं और मां अन्नपूर्णा के मंदिर का प्रवेश द्वार है। मां अन्नपूर्णा का मंदिर सीढ़ियां चढ़कर प्रथम मंजिल पर है। इस मंदिर को भी बहुत सुंदरता से बनाया गया है। मंदिर का टेरेस भी बहुत सुंदर है। उसके ऊपर की मंजिल का प्रवेश द्वार अभी बंद था क्योंकि अभी वहां निर्माण कार्य चल रहा है।
    🚩 महाकाल मंदिर के बाहर किंतु परिसर में ही काल भैरव मंदिर है... इस मंदिर में "काल भैरव मंदिर छोटी उज्जैनी महाकाल धाम खेजरा" लिखा है।
   🚩 देव दर्शन के बाद पेट पूजा का समय आया... हम लोग घर से टिफिन रख कर चले थे... अतः परिसर के बाहर एक पेड़ के नीचे चादर बिछा कर बैठ गए। ... जहां हम लोग बैठे थे वहां पास ही राख का ढेर था जो इस बात की गवाही दे रहा था कि वहां किसी दिन दर्शनार्थियों द्वारा बाटियां बनाई गई थीं .... जो बाटियों के बारे में नहीं जानते वे इसे बुंदेली बाफले या बुंदेली लिट्टी के रूप समझ सकते हैं। बाटियों को बाफले और लिट्टी की बहन कहा जा सकता है 🤗 😍😆 वाह !  बाटियों को इस तरह परिभाषित करने पर खुद की पीठ ठोंकने का मन कर रहा है...🙋
    🚩 हम लोगों ने घर से लाया हुआ खाना खाया और बचा हुआ खाना वहां घूम रहे एक बछड़े को खिलाया... फिर  वापसी की यात्रा आरंभ हुई ... 
    🚩 वापसी के दौरान ग्राम अटाटीला के डायवर्सन पर लगे माइलस्टोन के साथ मैंने फोटो खिंचवाई ... फिर एक खेत में प्रवेश करने का छोटा-मोटा असफल प्रयास किया ...😋😁😃 फिर लकड़ियों  से बने उसके खूबसूरत दरवाजे के साथ ही फोटो खिंचा कर काम चलाना पड़ा ....😃😆
    🚩 मैं सड़क के किनारे लगे बोर्ड के साथ फोटो खिंचा ही रही थी कि इसी दौरान वहां से एक ग्रामीण व्यक्ति गुज़रा और उसने बड़ी आत्मीयता से "राम-राम" कह कर अभिवादन किया ... मेरा मन गदगद हो गया ... यही है वह हमारे ग्रामीण अंचल के दिल में भरी हुई आत्मीयता जो शहरी क्षेत्र में दिखाई नहीं पड़ती है... उसे व्यक्ति के लिए हम लोग अपरिचित थे किंतु इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ा क्योंकि हम लोग सामने थे तो उसने प्यार से राम-राम का कर अभिवादन कर दिया और अपने रास्ते चला गया .... यह उसके लिए सहज बात थी लेकिन हम लोगों के दिल में वह अपनी छाप छोड़ गया...
    🚩इसके बाद हम लोग ग्राम खजुरिया में बने ईसा मसीह के पवित्र स्थल "दया सागर प्रभु का तीर्थ स्थान" यानी Divine Mercy Shrine पहुंचे। यह भी नेशनल हाईवे 44 के किनारे है। इस स्थान पर ईसा मसीह की भव्य प्रतिमा है। इस प्रतिमा से संबंधित जो जानकारी मुझे गूगल पर मिली वह इस प्रकार है ... ✝️ तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या को समायोजित करने के लिए बिशप ने एक बाहरी मंदिर बनाने का निर्णय लिया। प्रारंभ में विचार एक बाहरी मंच के शीर्ष पर दिव्य दया की आठ फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित करने का था, लेकिन जब फादर। विंसेंट अक्कारा, लुई पदिनजारेकरन के साथ, एक ऐसे कलाकार की तलाश में केरल गए जो दिव्य दया की 6 फीट ऊंची मूर्ति बना सके, उनकी मुलाकात कोराट्टी में कलाकार पॉली नलप्पादान से हुई, जिन्होंने सुझाव दिया कि वह थर्मोसेटिंग पॉलिमर में 30 फीट की मूर्ति बनाएंगे। रुपये की लागत. 10 लाख, जो पूरा होने पर 43 फीट ऊंची, भारत की दिव्य दया की सबसे ऊंची प्रतिमा बन गई। उन्हें रुपये का भुगतान किया गया था. बाद में 12 लाख रु. 30 सितंबर 2013 को साइरो मालाबार चर्च के प्रमुख आर्कबिशप कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी ने सोलह बिशप और आर्कबिशप और भारत और विदेश से आए सभी धर्मों के 6000 से अधिक तीर्थयात्रियों की उपस्थिति में प्रतिमा को आशीर्वाद दिया था।✝️
    🚩मैं दया सागर प्रभु का तीर्थ स्थान में प्रवेश करके मूर्ति को निकट से देखना चाहती थी किंतु मुख्य द्वार पर ताला लगा हुआ था तथा द्वार पर कोई भी नहीं था कि जिससे कह कर ताला खुलवाया जा सके ... अतः बाहर से ही प्रतिमा की तस्वीर लेकर तसल्ली करनी पड़ी।
    🚩 वहां से आगे बढ़कर हाईवे के किनारे बने होटल राघव में अदरक वाली शानदार चाय पी और चाय बनते तक मैंने झूला भी झूल लिया 🙊 आदत से लाचार हूं ... क्या करूं 🤷😀😀
    🚩 तो मित्रो, यह थी मेरी एक और घुम्मकड़ी 🙋 
    🚩यह जरूरी नहीं कि आप घोर आस्तिक हों, आप किसी धार्मिक स्थल की यात्रा कर सकते हैं... यदि आपके भीतर नास्तिकता के तत्व मौजूद हैं तो फिर आप धार्मिक स्थल पर पहुंचकर वहां कला और प्रकृति के सौंदर्य को जी भरकर निहार सकते हैं ... प्रकृति से बड़ा कोई धर्म नहीं और कला से बड़ी कोई आस्था नहीं... जहां यह दोनों मौज़ूद हो वहां आप यदि ईश्वरवादी है तो ईश्वर की अनुभूति कर सकते हैं और यदि ईश्वर वादी नहीं है तो प्रकृति और कला को आत्मसात कर सकते हैं ...और घुमक्कड़ी तो वह चीज है जो इंसान को रिचार्ज कर देती है  🥰👩‍🎨 🎉🎈🌿🌹🎈❤️

Traveller Dr. (Ms.) Sharad Singh says - "There is no religion greater than nature and no faith greater than art, so explore everything without any prejudice. ❤️"
ट्रैवलर डॉ. (सुश्री) शरद सिंह कहती हैं कि- "प्रकृति से बड़ा कोई धर्म नहीं और कला से बड़ी कोई आस्था नहीं, अतः बिना किसी पूर्वाग्रह के सबकुछ एक्सप्लोर कीजिए। ❤️"
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