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My Editorials - Dr Sharad Singh

Sunday, February 25, 2024

डॉ (सुश्री) शरद सिंह का बुंदेली व्यंग "बुंदेली दर्शन" पत्रिका में

मध्यप्रदेश के सागर संभाग के दमोह ज़िले की हटा तहसील तीन बातों के लिए मशहूर है - बुंदेली उत्सव, पत्रिका "बुंदेली दरसन" और संस्कृतिविद डॉ श्यासुंदर दुबे जी।  विगत कई वर्ष से निरंतर प्रकाशित हो रही वार्षिक पत्रिका "बुंदेली दरसन" का निरंतर कुशल संपादन कर रहे हैं डॉ एम.एम. पाण्डेय जी। 
    पाण्डेय जी अत्यंत कर्मठ संपादक हैं। वे हर वर्ष हर लेखक को रचना भेजने के लिए स्मरण कराते हैं तथा पत्रिका प्रकाशित होने पर तत्परतापूर्वक पत्रिका प्रेषित करते हैं। मैं आभारी हूं कि डॉ एम.एम. पाण्डेय जी की जिन्होंने रचनात्मक रूप में पत्रिका के इजतक के  हर अंक से मुझे जोड़े रखा है।
    तो प्रस्तुत है इस बार के ताजा अंक में प्रकाशित मेरा एक छोटा-सा बुंदेली व्यंग्य लेख में....
व्यंग्य           
अपन ओरें तो फटे ढोल ठैरे
               - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘काए शरद बिन्ना, जे अपनो मूंड पकर के काए बैठीं?’’ भुनसारे से भैयाजी आन टपके।
‘‘कछु नईं। ऊंसई।’’ मैंने कहीं।
‘‘जे ऊंसई का कहात आए? अरे कछु तो हूहे। कोनऊ बुरौ सपनों देख लौ का? काए से के इत्ते भुनसारे और तो कछु सल्ल नई हो सकत आए।’’
‘‘कहीं ना, कछु नइयां। कछु खास बात नोई।’’ मैंने भैयाजी खों टालबो चाओ।
‘‘मनो ने बताने होए सो ने बताओ। हम को लगत तुमाए।’’ भैयाजी तो ठैरे भैयाजी, रिसाबे को स्वांग भरत भए बोले।
‘‘अरे, कछु नईं भैयाजी, ऊंसई मूंड पिरा रओ।’’ मोए बताने पड़ी।
‘‘हें! तबीयत तो ठीक आए ने तुमाई? कछु दवा-सवा तो नईं चायने? काए से के तुमाई भौजी को तो आए दिना मूंड पिरात रैत आए।’’ भैयाजी फिकर करत भए बोले।
‘‘नईं-नईं भैयाजी, दवा की कोनऊ जरूरत नईयां। अपनोई आप ठीक हो जेहे।’’ मैंने कही।
‘‘चलो ठीक है, फेर बी कछु जरूरत परे सो बता दइयो। खुद को अकेलो ने समझियो।’’ भैयाजी लाड़ करत भए बोले।
‘‘आपकी किरपा भैयाजी, बाकी जे अपनो आप ठीक हो जेहे। आप फिकर ने करो।’’ भैयाजी की बात सुन के मोरो दिल भर आओ। कोनऊ दो बोल मिसरी घाईं बोल दे तो अंसुआं से आन लगत आएं। 
‘‘मनो बिन्ना, हमें पतो है के तुमाओ मूंड काए पिरा रओ आए।’’ भैयाजी तनक सोंचत भए बोले।
‘‘सो, कल संझा के बारे में आपको साई पतो पर गओ? कोन ने बताई?’’ मोए अचरज भओ के भैयाजी को कोन ने बता दओ?‘‘
‘‘ईमें कोऊ का बतेहे? ई दिना जो कछु हो रओ ई दुनिया में बा सब कछु युक्रेन औ रूस की लड़ाई के कारन सो हो रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मोरे मूंड के दरद को रूस-युक्रेन की लड़ाई से का लेबो-देबो? जे तो कल संझा की गोष्ठी के कारन पिरा रओ आए।’’ मैंने भैयाजी को बताओ।
‘‘का हो गओ कल गोष्ठी में?’’ भैयाजी अनमने से हो के बोले। 
‘‘होने का हतो। एक भैया को कल्ल 12 मिनट देओ गओ रओ अपनी बात बोलबे के लाने। पर उन्ने तो बारह के बयालीस कर दए। बे भैया माईक से ऐसे चिपके के हटबे को नांव ई नई ले रए हते। कहने थी आम की, बोल गए नीम की। औ बेसरमी ऐसी के अखीर में कैन लगे के हमें सो अबे और बोलने रओ, बा तो संचालक जी ने टेम की पाबंदी लगा दई रई सो हम पूरी बात ने कर सके। मोरो तो जी करो के ठाड़ी हो के कहौं के भैया इते कोनऊं सत्तनारायण की कथा नोईं हो रई के आज ई सगरी बांच देओ। कछु अगली बेरा लाने बी रैन देओ। काए इते सबई के प्रान लेने का? जे आप इच्छाधारी वक्ता ने बनो। कछू गम्म खाओ।’’ मेंने भैया खों बताई।
‘‘सो तुमने उनसे ऐसई बोल दई?’’ भैयाजी चकित होत भए बोले।
‘‘अरे, काए खों! बोल ने पाई, तभई से मोरो मूंड़ सो पिरान लगो। बोल लेती सो उतई जी जुड़ा जातो।’’ मैंने बताई। 
‘‘हैं? सो जे बात आए। हमने तो सोची के यूक्रेन की लड़ाई के कारन तुमाओ मूंड़ पीरा रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ये लेओ, अब जे यूक्रेन की लड़ाई से हमाओ मूंड को का लेबो-देबो?’’ मोए हैरत भई।
‘‘अरे, जे ने कहो बिन्ना! आजकाल जो कछू हो रओ, जो अब कछू ससुरो यूक्रेन की लड़ाई के कारन हो रओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का मतलब?’’
‘‘मतलब जे के पेट्रोल के दाम बढ़ गए सो यूक्रेन की लड़ाई के कारन, पिसी मैंगी हो गई सो यूक्रेन की लड़ाई के कारन, साग-भाजी मैंगी हो गई सो यूक्रेन की लड़ाई के कारन, पाईपें मैंगी हो गईं सो यूक्रेन की लड़ाई के कारन, निंबुआ मैंगे हो गए सो यूक्रेन की लड़ाई के कारन। मोए तो लगत आए के कोनऊ को तलाक बी हुइए सो वो बी यूक्रेन की लड़ाई के कारन।’’ भैयाजी बोलत-बोलत तैस खान लगे। सो, मैंने बात बदलबे की सोची।
‘‘अरे सुनो भैयाजी, निंबुआ से खयाल आओ के बे तो वाकई मैंगे हो गए हैं। कल बो ठिलिया वारो आओ रहो, मैंने उसे पूंछी के निंबुआ कैसे दे रए? सो वा बोलो के दस रुपइया को एक, बाकी दीदी, आपके लाने बीस के तीन लग जेहें। सो, मैंने ऊसे कही के इत्ती मेहरबानी करबे की जरूरत नैंया। मोए नहीं चाहने निंबुआ-विबुआ। बढ़ा लेओ ठिलिया अपनी।’’ मैंने भैयाजी को ध्यान निंबुआ पे अटकानो चाओ।
‘‘जे ई तो हम कै रए के निंबुआ दस के एक हो गए सो यूक्रेन की लड़ाई के कारन।’’ भैयाजी फेर उतई पोंच गए।
‘‘अरे सुनो तो भैयाजी! अभी परों के रोज व्हाट्सअप्प पे एक चुटकुला पढ़ो मैंने, के एक मोड़ी अपने ब्वायफ्रेंड से बोली के हमाओ तुमाओ पेंचअप भए चार मईना बीत गए पर तुमने हमाए लाने कछु गिफ्ट-शिफ्ट नई लाओ। कहूं प्रेम ऐसो करो जात आए? जे सुन के ब्वायफ्रेंड बोलो के अरे, तुम बताओ तो, हम तुमाए लाने ताजमहल बनवा दें, चांद-तारे तोड़ लाएं, एक बार कह के तो देखो। ई पे वा मोड़ी बोली, हमें ताजमहल के नांव पे अपनो मुकरबां नई बनवाने, औ ने हमें चांद-तारे चाने, तुम तो हमाए लाने दो दर्जन निंबुआ ला देओे, ने तो हमाओ तुमाओ ब्रेकअप हो जेहे। समझ लेओ! जे सुन के ब्वायफ्रेंड बोलो, ब्रेकअपई हो जान देओ। इत्तो मैंगो निंबुआ लाने से नोनो आए के ब्रेकअपई हो जाए। जे कै के ब्वायफ्रेंड ब्रेकअप कर के उते से चलो गओ।’’ मैंने भैयाजी को चुटकुलो सुना डारो ताकि भैयाजी यूक्रेन की लड़ाई खों भूल जाएं।
‘‘हऔ बिन्ना, ई समै तो ई बात पे कोनऊ खों ब्रेेकअप हो जाए। मनो, ई के पांछू बी यूक्रेन की लड़ाई को हाथ कहानों। ने लड़ाई होती औ ने निबुआ मैंगो होतो औ ने ब्रेकअप...।’’ भैया जी बोले। 
‘‘भैयाजी, मोरी तो सुनो....’’ मैंने भैयाजी को टोंको, पर बे कहां सुनबे वारे। 
‘‘हमाई जिनगी में ई समै जो कछु बी हो रओ सबई में जेई तो कहो जा रओ के अलां यूक्रेन की लड़ाई के कारन - फलां यूक्रेन की लड़ाई के कारन। रामधई, ऐसो लगत है के हमाओ सबरो ब्यापार यूक्रेन और रूस के संगे होत रओ आए। लड़ाई छिड़ गई, सो, ब्यापार बढ़ा गओ। मोए तो लगत आए के कोनऊ खों कब्जीयत बी हुइए सो ऊको जेई लगहे के यूक्रेन की लड़ाई के कारन पेट अटां गओ। कोनऊं की मोड़ी घरे से भाग जेहे, सो कहो जेहे के यूक्रेन की लड़ाई के कारन भाग गई। कोनऊ चलत-चलत रपट पड़हे सो कहो जेहे के यूक्रेन की लड़ाई के कारन रपट गओ। मैंगाई मनो रोकत नई बन रई, सो कोऊ के मूंड पे ठीकरा फोड़ई जैहे, सो फोड़ो जा रओ।’’ भैयाजी मों बनात भए बोले। 
‘‘कै सो तुम सांची रै भैयाजी! पर करो का जा सकत आए। इनखों लड़ने, उनखों लड़ने, सगरी मुसीबतें सो अपन ओरन के मूंड़े पड़ने। भैयाजी, अपन ओरें तो फटे ढोल ठैरे, चाए इते से थपड़याओ, चाये उते से थपड़याओ चूं ने बोलहें। निंबुआ चाये पचास को एक बिके पर अपन ओरें कछु ने बोलहें। बाकी जे ओरें कबलौं लड़हें? कुल्ल मईना निकर गए लड़त-लड़त। जे ओरें बोर नई भए? नासमिटे कईं के!’’ मोए सोई तैस आन लगी। सो, अब भैयाजी बात बदलबे खों ठाड़े हो गए।
‘‘अब तुमाओ मूंड को दरद कैसो है?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘अब तो ठीक लग रओ।’’ मैंने कही।
‘‘जे ई तो! एक से ध्यान बिलोरबे के लाने दूसरी अड़ी बिधो देओ, फेर देखो, फेर वोई-वोई दिखान लगत आए।’’ भैयाजी हंसत भए बोले,‘‘अब मोए चलन देओ बिन्ना! पंद्रा मिनट में दूध ले के मोए लौटने रओ, ओ अब हो गए घंटा-खांड़। तुमाई भौजी बमकत भई मिलहें।’’
‘‘सो, कै दइयो भौजी से के भैंसिया दूध नई दे रई हती यूक्रेन की लड़ाई के कारन।’’ कहत भइ मोए सोई हंसी छूट परी।               
भैयाजी सोई हंसत भए चले गए। मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। बाकी रूस जाने, फूस जाने, दफ्तर वारे घूस जाने। मोए का करने। बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!   
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