Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Saturday, February 17, 2024

बतकाव बिन्ना की | जो अबे न हुइए, तो कबे हुइए? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
------------------------
बतकाव बिन्ना की
जो अबे न हुइए, तो कबे हुइए?  
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ‘‘बिन्ना! देखो तो फेर के किसान हरें दिल्ली पौंच गए।’’ भैयाजी कछू सोचत भए बोले।
‘‘अबईं तो देखत जाओ के जैसे-जैसे चुनाव करीब आने, उंसई-उंसई कछू ने कछू होत रैने।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, जे तो तुमने सांची कई। मनो ई के पैले कोनउं सुनत कां आए? बा तो चुनाव टेम आबे के संगे कानो में जूं रेंगन लगत आए, ने तो कोऊ कित्तोई चिचियाए कोनऊं फरक नईं परत।’’ भैयाजी बोले।
‘‘चलो जे आप छोड़ो, आपके लाने मैं एक किसां सुना रई। तनक ध्यान से सुनियो!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘कैसी किसां? चलो सुनाओ! का किसान हरों की किसां आए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘नईं! ईको किसानो से कोनऊं लेबो-देबो नईयां। मैं तो ऊंसई सुना रई। आपके लाने फेर जो समझ में आए सो समझ लइयो।’’ मैंने कई।
‘‘चलो सुनाओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘एक गांव में एक पंडतजी के तीन मोड़ा हते। तीनो के तीनों ई में कछू ने कछू डिफेक्ट रओ। मने एक हकला के बोलत्तो। दूसरो बोलबो चालू करतो तो बोलतई चलो जातो। औ तीसरो मोड़ा जो रओ बा रओ तोतलो। जे डिफेक्ट के कारण उनको ब्याओ ने हो पा रओ हतो। पंडतजी बेचारे बड़े परेसान। आखिर एक भौत दूर के गांव में एकई धरे की तीन मोड़ियों के संगे ब्याओ की बात चली। पंडतजी ने सोची के जो जे ब्याओ सेट हो जाए तो एकई घरे की तीनों मोड़ियों के कारण बात ढंकी रैहे। सो पंडतजी अच्छो सो महूरत निकार के अपने तीनों मोड़ा खों संगे ले के निकर परे ऊ मोड़ियन के गांव के लाने।
मोड़ियन को गांव पास आतई साथ पंडतजी ने तीनों मोड़ा खों समझाओ के तीनों चुप रहियो। कछू ने बोलियो। जो कोनऊं कछू पूछे तो अपनो मूंड़ हिला के रै जइयो। बाकी सब हम सम्हार लेबी। तीनों मोड़ा ने हऔ कई। मनो ऐसई झट से नईं कै दई। बड़ो वालो बोलो ‘‘हहहऔ’’, मंझलो वारो बोलो ‘हऔ हऔ हऔ हऔ हऔ’’, औ तीसरो तोतलो वारो बोलो ‘‘हऊ’’। खैर, पंडतजी तीनों मोड़ा खों ले के मोड़ियन के घरे पौंचे। तीनों मोड़ियां खूबई सुंदर हतीं। पंडतजी सोचन लगे के जो जे तीनों हमाए घर की बहू बन जाएं तो हमाए भाग खुल जाएं।
मोड़ियन के बाप-मताई ने पंडतजी औ तीनोई मोड़ों की खूबई आव-भगत करी। अच्छे-अच्छे पकवान दए खाबे के लाने। फेर बात आई मोड़ा हरो से बात करबे की। मोड़ियन के बापराम ने पंडतजी से कई के तनक मोड़ा हरों से सोई पूछ लओ जाए के उने मोड़ियां पसंद आईं के नईं। पंडतजी झट्टई बोले के अरे इन ओरन से का पूछने? जो हमने हौ कै दई तो जे ओरें मना थोड़े करहें। मोड़ियन के बापराम सोई हते चतुरा। उन्ने सोची के जे पंडतजी हमें अपने मोड़ों से बात काय नईं करन दे रए, कछू तो गड़बड़ जरूर आए। ऊपर से तो ऊने कछू नईं कई मनो ऊने लगाई एक जुगत। ऊने पंडतजी खों खूब खिलाओ-पिलाओ। सो पंडतजी खों आने लगी नींद। कछू देर में पंडतजी लेन लगे खर्राटे। बस, मोड़ियन को बापू पौंचों तीनों लरका के लिंगे। औ ऊने बड़ो मोड़ा से कई के बेटा पंडतजी बता रए हते के तुमाई आवाज भौतई साजी आए। पर हमने तो अबे लौं सुनी नईं। तनक हमें सोई कछू बोले के सुना देओ। हमाए कान सोईं तर जाएं।
‘‘हहहऔ, बोबोबोलो ककका सससुनाएं हहहम?’’ बड़ो मोड़ा हकलात सो बोल परो।
ऐं! मोड़ियन के बापू खों समझ में आ गई के जे मोड़ा सो हकलात आए। जेई से पंडतजी ईसे बात नई करन दे रए हते। अब ऊने सोची के बाकियन खों सोई चैक कर लऔ जाए। सो ऊने दूसरे मोड़ा से कई के बेटा, तुमओ बड़ो भैया सो भौतई अच्छो बोलत आए, अब तुम कछू बोल के बताओ। मंझले मोड़ा ने देखी के बड़े की तारीफ करी जा रई सो बा जोस में आ के पूछन लगो के ‘‘का सुनाएं, का सुनाएं, का सुनाएं, का सुनाएं, का सुनाएं?’’
हे मोरे राम! जे तो बोलबे टिको, सो बोलतई जा रओ। जे सो औरई गड़बड़ आए। मोड़ियन के बापू ने सोची। अब ऊने तीसरे मोड़ा खों जांचबे की सोची। ऊने तीसरे खों बोलबे की कई हती के इत्ते में पंडतजी भगत आए। काय से के उतेे उनकी आंख खुली और तीनों मोड़ा ने दिखाने सो बे घबड़ा गए के कऊं पोल ने खुल जाए। पंडतजी ने पौंचतई साथ पूछी के काए तुम ओरन ने अपनो मौन व्रत तो नईं तोड़ो?
काय को मौन व्रत? काय छिपा रए पंडतजी? तुमाए दो मोड़ा खों बोलबो हमने सुन लओ। अब ने छिपाओ। तीसरो वारो को औ सुन लेन देओ। बेचारे पंडतजी धरे रै गए। उन्ने फेर बी छोटे मोड़ा की तरफी देख के आंखें मिचकाईं के बा तो कम से कम चुप रए। मगर जबे छोटे मोड़ा ने देखों के ऊको बापू ऊकी तरफी देख के आंखे मिचका रओ, सो ऊने सोची के बापू कै रए के अब तुम सोई बोल देओ। सो, बा तुरतई बोल परो ‘‘हम तो टुप्प टाप रए, अब आप कै रए सो हम बोल रए।’’ जे सुन के मोड़ियन को बापू समझ गओ जे तीसरो मोड़ा तोतला ठैरो। पंडतजी हते सो अपने मूंड़ पे हाथ दे के रै गए।
मोड़ियन के बापू ने पंडतजी औ उनके तीनों मोड़ों को भगा दओ। बे चारो जने अपनो सो मों ले के घरे लौट परे।
‘‘सो जे तो होतई आए, झूठ कभऊं छुपत नइयां। और यांदी-ब्याओं में सो झूठ बोलोई नईं जाओ चाइए।’’ भैयाजी बोले। उन्ने सोची कि किसां बढ़ा गई।
‘‘भैयाजी, अबे किसां खतम नई भई। जे किसां में कछू नओ टर्न सोई आए।’’
‘‘का मतलब?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मतलब जे के, जब पंडतजी अपने तीनों मोड़ा खों ले के घरे लौट रए हते तो बीच जंगल में बे चारों कछू देर एक पेड़ के नैचे सुस्ताबे खों रुके। ऊ पेड़ पे रैत्तो एक देव। देव ने देखी के चारो जने भारी दुखी आएं। सो ऊने पेड़ से उतर के पंडतजी से कारण पूछी। पंडतजी ने अपने मोड़ा हरो के डिफेक्ट के बारे में ऊको बताई। डिफेक्ट की सुन के बा देव हसन लगो। फेर बोलों के पंडतजी आप जे ने सोचियो के हम आपके मोड़ों पे हंस रए। हमें तो जे देख के हंसी आ गई के जोन डिफेक्ट पे आप आज दुखी हो रए कछू समै बाद जेई डिफेक्ट वारे सबई तरफी दिखाहें। पंडतजी देव की बात सुन के चकराए। तब देव ने बताई के हम ठैरे तीन काल देखबे वारे। हमें भविष्य को सोई दिखा जात आए। औ हम भविष्य में देख रए के कछू समै बाद कहला-कहला के बोलबे वारे, माने गोल-मोल बोलबे वारे जैसो तुमाओ बड़ो मोड़ा बोलत आए, ऐसई लोग राज करहें। औ भविष्य में टेलीविजन नाम की एक चीज हुइए जीमें बहस करबे वारे तुमाए दूसरे मोड़ा घांई एकई बात दोहरा-दोहरा के पगलयात रैहें। औ रई तुमाए तीसरे तोतला मोड़ा की सो ई टाईप की सो सगरी जनता हो जैहे, के अपनी बात साफ बोलई ने पाहे। सो तुम अब इन तीनों मोड़ा खों ले के दुखी ने हो। ई जनम में सेटल ने हो पाए, तो अगले जनम में तो पक्के सेटल हो जैहेे। इत्तो कै के बा देव फेर के पेड़ पे जा बैठो। औ पंडतजी अपने तीनों मोड़ा के संगे खुसी-खुसी घरे लौट गए।
‘‘सो भैयाजी, जा हती किसां। कओ कैसी लगी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘किसां तो अच्छी हती, मनो जे नओ टर्न तुमई ने दओ कहानो।’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले।
‘‘सो का गलत कई मैंने? ई टेम पे तीनों मोड़ा घांई दसा नईयां का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ, है तो सई। मनों हमने तुमसे आतई बात करी हती किसान हरो की जो बे दिल्ली पौंचे जा रए, औ तुमने हमें सुना दई जे किसां। अब जे बताओ के ऊ मामले से ई किसां को का मेल?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मैंने सो पैलई कई रई के दोई को आपस में कोनऊं लेबो-देबो नइयां।’’ मैंने कई।
‘‘सो तुमने जा किसां काय सुनाई?’’ भैयाजी झुंझलात भए बोले।
‘‘जेई से हमने आपके लाने जे किसां सुनाई के आपको ध्यान किसानन से हट जाए। आजकाल जेई को तो जमाना आए के आम की पूछो सो नीम की चर्चा करी जात आए। जो पब्लिक को मुद्दा भुलवाने होय सो अपनो कोनऊं मुद्दा बना के बोई के ढपलिया पीटन लगो। फेर कोनऊं सल्ल नई रैने।’’ मैंने कई।
‘‘सई कई। देखो अब जे किसानों के मामले में का हुइए?’’ भैयाजी फेर चिंता करत भए बोले।      
‘‘भैयाजी, चाए ई तरफी देखो, चाए ऊ तरफी देखो। जा ठैरो चुनाव को टेम। सगरे दोंदरा जो अबे ने हुइए तो कबे हुइए?’’ मैंने भैयाजी कई। मनो किसां सुनबे के बाद बी किसानों खों ले के उनकी सोच-फिकर ने गई।
बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
 -----------------------------   
#बतकावबिन्नाकी  #डॉसुश्रीशरदसिंह  #बुंदेली #batkavbinnaki  #bundeli  #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम  #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat 

No comments:

Post a Comment