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My Editorials - Dr Sharad Singh

Sunday, April 14, 2024

लेख | सागर की निर्भीक पत्रकारिता के आधार स्तम्भों में से एक थे : स्व. भोलाराम भारतीय | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह

🚩'नयादौर' के संपादक भाई काशीराम रैकवार जी के विशेष आग्रह पर भाई स्व. भोलाराम भारती जी पर मेरे द्वारा लिखा गया लेख आज 'नया दौर', 'आचरण', 'सागर दिनकर' तथा 'दी लीला टाइम्स' में प्रकाशित हुआ है। 🚩
🌹हार्दिक आभार भाई काशीराम रैकवार जी🙏
🌹हार्दिक आभार आचरण 🙏
🌹हार्दिक आभार सागर दिनकर 🙏
हार्दिक आभार दी लीला टाइम्स 🙏---     -----------------------------------
लेख
सागर की निर्भीक पत्रकारिता के आधार स्तम्भों में से एक थे : स्व. भोलाराम भारतीय  
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                       
          पत्रकारिता को समाज का चौथा स्तम्भ माना गया है क्योंकि पत्रकार हमेशा समाज के हित में सोचता है, लिखता है, आवाज़ उठाता है। स्व. भोलाराम भारतीय सागर नगर के एक ऐसे ही जुझारू पत्रकार थे जिन्होंने हमेशा समाज और शहर के हित में आवाज़ उठाई। वे सागर को समस्यामुक्त एवं विकसित शहर के रूप में देखना चाहते थे। वे राजनीति को भी स्वच्छ देखना चाहते थे। उन्होंने अपने लम्बे पत्रकारिता जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव देखे किन्तु एक आधार स्तम्भ की भांति अपनी कलम के साथ डटे रहे। उन्होंने जो लिखा पूरी तार्किकता के साथ लिखा।    

    सबसे पहले कुछ संस्मरणात्मक बातें... सन् 1980 के लगभग भोलाराम भारतीय जी से परिचय हुआ था। वे ‘‘गौरदर्शन’’ साप्ताहिक का प्रकाशन कर रहे थे जिसके लिए पोस्टकार्ड द्वारा उन्होंने मेरी और वर्षा दीदी की रचनाएं मंगाई थीं। यह एक औपचारिक परिचय था। संयोगवश कुछ अरसे बाद अपनी मां डाॅ. विद्यावती ‘‘मालविका’’ जी के साथ मेरा सागर आना हुआ। भाई भोलाराम भारतीय जी से भेंट हुई और फिर इतवारी टौरी स्थित उनके निवास पर भाभीजी से भी परिचय हुआ। इसके बाद संपर्क निरंतर बना रहा। सन 1988 में सागर में आ कर बस जाने के बाद सतत पारिवारिक संबंध बना रहा। जब वर्षा दीदी का तीसरा ग़ज़ल संग्रह ‘‘हम जहां पर हैं’’ प्रकाशित हुआ तो नगर के वरिष्ठ साहित्यकारों जैसे डाॅ. आर.डी.मिश्र जी, पद्मश्री डाॅ लक्ष्मी नारायण दुबे जी आदि ने कहा कि इस ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण होना चाहिए। उस समय ‘‘श्यामलम संस्था’’ जैसी कोई संस्था शहर में विद्यमान नहीं थी और श्यामलम अध्यक्ष उमाकांत मिश्र जी भी सरकारी सेवा में किसी अन्य शहर में थे। मैं और वर्षा दीदी तय नहीं कर पा रहे थे कि आयोजन कैसे और कहां किया जाए? जब हम लोगों ने भाई भोलाराम भारतीय से इस समस्या पर विचार विमार्श किया तो वे तत्काल बोल उठे,‘‘मेरे घर में बड़ा हाॅल है, वहीं से लोकार्पण कार्यक्रम कर लेते हैं।’’
      उन दिनों भाई भोलाराम भारतीय जी का शंकरगढ़ क्षेत्र में अपना निवास निर्मित हुआ था। हम लोगों के घर से अधिक दूर भी नहीं था। कुछ ही देर में पूरी रूपरेखा तैयार हो गई। छोटा-सा सादा आमंत्रणपत्र छपवाना तय हुआ। जिसे छपवाने की जिम्मेदारी भी उन्होंने ली। 13 जून 1993 को लोकार्पण के अवसर पर भाई भोलाराम भारतीय जी के निवास पर हाॅल में दरी बिछी हुई थी। धीरे-धीरे सभी अतिथियों का आगमन हुआ। पद्मश्री डाॅ. लक्ष्मीनारायण दुबे, डाॅ. आर.डी. मिश्र, डाॅ. सुरेश आचार्य, चिकित्सक डाॅ. एन.पी.शर्मा, पत्रकार रामशंकर तिवारी, कवि माधव शुक्ल मनोज, कवि दिनकर राव दिनकर, कवि दादा निर्मल चंद निर्मल, कवि ऋषभ समैया ‘जलज’, ‘‘आचारण’’ संपादक एवं विधायक सुनील जैन, ‘‘आचरण’’ की प्रबंध संपादक निधि जैन सहित साहित्य एवं पत्रकारिता क्षेत्र के अनेक लोग पधारे। साथ ही मेरी मां डाॅ. विद्यावती ‘‘मालविका’’, मामा कमल सिंह चौहान तथा भाई भोलाराम भारतीय जी के परिजन उपस्थित थे। पूरा कार्यक्रम बहुत अच्छे ढंग से सम्पन्न हुआ। यह सब भाई भोलाराम भारतीय जी के सहयोग के बिना संभव नहीं था। उन्होंने आयोजन की पूरी जिम्मेदारी इस तरह से निभाई जैसे उनका अपना आयोजन हो। इस संस्मरण को सामने रखने का उद्देश्य मात्र यही है कि जो लोग उन्हें नहीं जान पाए वे भी उनके प्रभाव एवं उनकी सहृदयता को जाने और समझें।    
     भाई भोलाराम भारतीय जी को मैंने जब भी देखा, उत्साह एवं ऊर्जा से भरा हुआ ही देखा। वे आयु में मुझसे बहुत बड़े थे किन्तु हम लोगों के बीच व्यवस्था, राजनीति आदि पर जोरदार बहसें होती थीं। मैंने उनकी बातों में अव्यवस्था के प्रति हमेशा आक्रोश देखा। लाखा बंजारा झील के लिए वे बड़ी पीड़ा के साथ कहते थे कि ‘‘ये लोग इस तालाब को मिटा कर ही मानेंगे। किसी को परवाह नहीं है। जबकि ये हमारे शहर की पहचान है।’’ इस संबंध में उन्होंने एक लेख भी लिखा था जिसका शीर्षक उनके आक्रोश को बखूबी व्यक्त करता था। लेख का शीर्षक था-‘‘तालाब के प्रति निर्वाचित राजनैतिक नेतृत्व की आपराधिक उदासीनता’’।
वे नगर एवं क्षेत्र के उन नेताओं से भी क्षुब्ध रहते थे जो सक्षम होते हुए भी क्षेत्र के विकास की अवहेलना करते थे। वे बातों-बातों में कटाक्ष करते थे कि ‘‘इन्हें तो नेता कहलाने का भी कोई हक नहीं हैं। नेता वो कहलाता है जो नेतृत्व करे, ये तो बस, अपना घर भरना जानते हैं।’’ वे ऐसे नेताओं को अपनी कलम के द्वारा ललकारते रहते थे। 14 मई 2002 को उनका एक लेख प्रकाशित हुआ था-‘‘बौने कद के जनप्रतिनिधियों से कराहती सागर की जनता’’। इस लेख में उन्होंने लिखा था-‘‘सागर जिले की उद्योग विहीनता, बेरोजगारी बढ़ती गरीबी आदि के विरूद्ध सांसद व विधायकों ने लोकसभा व विधानसभा में एक भी मुखर अभिव्यक्ति भाजपाई सांसद व विधायक ने नहीं की है। कारण बहुत साफ है कि बोने कद के लोग जब पद पर पहुंच जाते हैं तो अपने कद के अनुसार रोजमर्रा के छोटेमोटे कार्यों को जनता व अखबारों में जिंदा रहना चाहते हैं। जबकि पद के अनुरूप केंद्रीय व राज्य योजनाओं से सागर के विकास व जनसुविधाओं को बढ़ाने के प्रयास व संघर्ष करना चाहिए। इसके लिए राजनैतिक दक्षता जनता में निष्ठा एवं राजनैतिक हित से उठकर समग्र विकास की मंशा आवश्यक होती है। जिसकी संकीर्णतावादी विचारधारा का भाजपा के अंदर काफी अभाव है। सागर जिले का एकमात्र बीड़ी उद्योग अपनी संकट गृस्तता से अपनी आखरी सांसे गिन रहा है। परंतु सांसद द्वारा इस सवाल पर एक भी दिन संसद में कोई सजग पहल नहीं की है। इस राजनैतिक नेतृत्व के बौने व्यक्तित्व का प्रमाण है कि देश में सबसे अधिक बीड़ी मजदूर सागर जिले में हैं। और सबसे ज्यादा कल्याणकोष साग्र जिले से केंद्र शासन को जाता है। परंतु बीडी मजदूरों को तीस व पचास विस्तार वाले केंद्र अस्पताल मैंगलूर (कर्नाटक) केरल, बारांगल (आंध्रप्रदेश) में खुल गए हैं। परंतु सागर जिले में नहीं है क्योकि इन प्रदेशों में प्रतिनिधित्व करने वाले राजनैतिक नेतृत्व पद के अनुरूप स्तर के व्यक्तित्व के नेता हैं।’’ 
        भोलाराम भारतीय जी किसी राजनीकि दल नहीं अपितु जनता के पक्ष में खड़े रहते थे। बात चाहे किसी भी दल की हो, उन्हें जो बात अनुचित लगती थी वे बिना किसी संकोच के उसे विवेचनात्मक ढंग से सामने रख देते थे। 21 जुलाई 2011 को उनका एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें उन्होंने स्पष्ट शब्दों में लिखा था कि नारेबाजी से भ्रष्टाचार कभी नहीं हट सकता है, इसके लिए नीतिगत परिर्वतन आवश्यक है। ‘‘भ्रष्टाचार से मुकाबला: नारों से नहीं नीति परिवर्तन से संभव’’ शीर्षक से लिखे अपने लेख में उन्होंने लिखा था कि-‘‘दुभाग्यपूर्ण है कि मंत्रीमंडल में 90 प्रतिशत मंत्री जेल में हों यह कांग्रेस व प्रजातंत्र के लिए शर्म की बात है। बाबा रामदेव और अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद व प्रयास सराहनीय है किन्तु उनकी ‘एप्रोच’ चिन्हित भ्रष्टाचारियों को ‘एक्सपोज’ करना है, भ्रष्टाचार से निजात मांगना नहीं है। क्योंकि जिन नीतियों एवं रास्तों से भ्रष्टाचार जन्म लेता है वह उनकी समझ से बाहर है। प्रथमतः मौजूदा चुनाव प्रणाली एवं प्रकिया से राजनैतिक भ्रष्टाचार जन्म लेता है। विधायक या सांसद का चुनाव जीतने के लिए करोड़ों, अरबों रूपये खर्च करके एवं जिनसे पैसा लेकर संसद में पहुँच रहे हैं उनकी सेवा एवं हित रक्षा उनका कर्तव्य बन जाता है और यहाँ से नौकरशाही धनाढ्य तबका एवं राजनीति की काकस की कोख से भ्रष्टाचार जन्म लेता है। इसके लिए आवश्यक है कि तमाम कानूनी उपायों के साथ साथ मौजूदा चुनाव प्रणाली एवं निर्वाचन अधिनियम तथा निर्वाचन नियमावली में महत्वपूर्ण संशोधन करके अनुपातिक चुनाव व्यवस्था एवं खर्च की सीमा घटाए जाने तथा अपराध पृष्ठभूमि के लोगों की चुनावी भूमि से वर्जना जैसे उपायों से तात्कालिक भ्रष्टाचार की कोख से प्रारंभिक नसबंदी संभव हो सकती है।’’ 
नवोदित एवं युवा पत्रकारों को भोलाराम भारतीय जी के लेखों को पढ़ना चाहिए, समझना चाहिए तभी वे पत्रकारिता के सही तेवर को जान सकेंगे। दैनिक ‘‘आचरण’’ में प्रकाशित उनके लेख सन 2011 में प्रकाशक भुवनेश्वर प्रसाद केशरवानी ने संग्रह के रूप में प्रकाशित किया। इस पुस्तक का नाम है-‘‘ खून टपकेगा तो जम जाएगा’’। पूर्व विधायक सुनील जैन के अप्रत्यक्ष सहयोग से प्रकाशित इस संग्रह को भारतीय जी ने निःशुल्क रखते हुए मूल्य के आगे लिखा-‘‘आपका प्रेम एवं सहयोग’’। 
09 जून 1942 को जन्मे भोलाराम भारतीय ने अपने लेखन की शुरुआत कविता से की थी। उन्होंने देश के कई बड़े मंचों पर भी काव्यपाठ किया। फिर उन्हें 1963 में पत्रकारिता रास आ गई। साप्ताहिक चेतना भोपाल, बिग्रेडियर उज्जैन, मुक्ति बोध करेली, बैंक्टेश्वर समाचार मुंबई, साप्ताहिक आगामी कल आदि समाचारपत्रों से होते हुए भोपाल से प्रकाशित दैनिक मध्यदेश का प्रतिनिधित्व किया। इसी बीच सागर से प्रकाशित ‘‘दैनिक राही’’ में सह-संपादक का कार्य किया तथा बाद में नईदुनिया इंदौर, नवभारत जबलपुर के संवाददाता रहे। कुछ दिनों के लिए नवभारत में संपादकीय में कार्य किया। तत्पश्चात सागर से ही नवभारत भोपाल एवं एम.पी. क्रानीकल का कार्य संभाला। 14 जनवरी 1971 को सागर में उन्होंने अपने स्वयं के समाचारपत्र ‘‘साप्ताहिक गौर दर्शन’’ का प्रकाशन आरम्भ किया। चार-चार अखबारों का एक साथ प्रतिनिधत्व करने के कारण लोग उन्हें ‘‘फोर मेन’’ कहने लगे थे। धीरे-धीरे सभी अखबारों को छोड़कर सिर्फ नई दुनिया इन्दौर से 1999 तक सम्बद्ध रहे। बीच में दैनिक नई दुनिया भोपाल को भी सेवायें प्रदान कीं। नई दुनिया को छोड़ने के बाद सागर से प्रकाशित दैनिक ‘‘आचरण’’ से जुड गए। जहां वे अपने अंतिम समय तक कार्यरत रहे। साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्हें कई पुरस्कारों एवं सम्मानों से सम्मानित किया गया। 
       एक बार मैंने भाई भोलाराम भारतीय जी से पूछा था कि आपने अपने अखबार का नाम ‘‘गौर दर्शन’’ क्यों रखा, ‘‘सागर दर्शन’’ भी रख सकते थे?’’ तो उनका उत्तर था,‘‘मैं डाॅ गौर के जीवन दर्शन पर चलना चाहता हूं। जैसे उन्होंने अपनी सुख-सुविधाओं के बदले अपने क्षेत्र की भलाई के बारे में सोचा और यहां विश्वविद्यालय बनवा दिया, मैं भी अपने क्षेत्र के विकास के लिए अपनी क्षमता के अनुसार सबकुछ करना चाहता हूं।’’    
          वस्तुतः भाई भोलाराम भारतीय सागर की पत्रकारिता के आधार स्तम्भों में से एक थे। सागर में आज जो पत्रकारिता की फसल लहलहा रही है, उसकी उर्वर जमीन तैयार करने वालों में उनकी अहम भूमिका थी। 14 अप्रैल 2015 को सागर की निर्भीक पत्रकारिता के आधार स्तम्भों में से एक भाई भोलाराम भारतीय जी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया किन्तु उनके विचार सदैव जीवित रहेंगे। यह प्रसन्नता का विषय है कि उनके दत्तक पुत्र सुनील भारतीय प्रति वर्ष ‘‘पुण्य स्मरण’’ आयोजन द्वारा उनके विचारों को प्रतिध्वनित करते रहते हैं। 
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