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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, April 16, 2024

पुस्तक समीक्षा | प्रेम की उष्मा से भीगी ग़ज़लें | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 16.04.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई डॉ शिवनारायण जी के ग़ज़ल संग्रह  "झील में चांद" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा     
प्रेम की उष्मा से भीगी ग़ज़लें
 - समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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ग़ज़ल संग्रह  - झील में चांद
कवि        - शिवनारायण
प्रकाशक    - संजना प्रकाशन, डी-70/4, अंकुर इंक्लेव, करावल नगर, दिल्ली-110090
मूल्य       - 150/- (पेपरबैक)
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हिन्दी साहित्य जगत में शिवनारायण एक जाना-माना हैं। वे अपनी पत्रिका ‘‘नईधारा’’ के विगत कई वर्षों से सतत संपादन के लिए जाने जाते हैं। वे अपने विचारपूर्ण लेखों एवं चिंतनपूर्ण कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं किन्तु उनका प्रथम ग़ज़ल संग्रह ‘‘झील में चांद’’ का प्रकाशन उनके सभी जानने वालों के लिए चौंकाने वाला क़दम रहा। शिवनारायण के मानस में ग़ज़ल भी आकार लेती रहती है यह तथ्य प्रकट होना रोचक रहा। एक उत्सुकता के साथ हिन्दी साहित्य जगत ने इस ग़ज़ल संग्रह का स्वागत किया। जिस प्रकार का नास्टैल्जिक रोमांस का भाव देता संग्रह का नाम हैं, संग्रह की ग़ज़लों में प्रेम के स्वरूप का उतना ही अधिक विस्तारित है। प्रेम प्रकृति से, प्रेम मनुष्यत्व से और प्रेम प्रिय से - प्रेम ये तीनों रूप संग्रह की ग़ज़लों में मुखरित हुए हैं।
रामदरश मिश्र ने संग्रह के ‘‘अभिमत’’ में लिखा है कि ‘‘झील में चाँद - हिन्दी के विशिष्ट कवि और आलोचक डॉ. शिवनारायण का गजल-संग्रह है। उनकी कविताओं से मेरा अच्छा-खासा परिचय रहा है। उन्हें पढ़ता रहा हूँ। उनकी कविताओं में अपने समय की चेतना और संवेदना के साथ-साथ सामान्य जन की पीड़ा होती है। वास्तव में शिवनारायण संवेदना और प्रतिरोध के कवि हैं। मैं उनकी कविताओं का प्रशंसक रहा हूँ। मैं उनके गजलकार रूप से परिचित नहीं था। इस संग्रह ने उनके गजलकार रूप का परिचय दे दिया। मैं इन गजलों से गुजरता गया और विभिन्न शेरों में व्यक्त बाहर-भीतर के यथार्थ से रू-ब-रू होता गया।’’
इसी प्रकार लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने ‘‘गजलगोई जारी रहेगी’’ की आशा करते हुए अपना अभिमत दिया है कि ‘‘गजल के कारवाँ को आगे ले जाने वालें में इधर एक दमदार नाम शिवनारायण का और जुड़ गया है। शिवनारायण के नाम, साहित्य में उनके व्यापक योगदान तथा उनकी विपुल उपलब्धियों से साहित्य प्रेमी सुपरिचित हैं ही, अब गजल की दुनिया में उनकी दस्तक हर्ष का विषय है। गजल का जादू कम से कम शब्दों में कोई बड़ी बात, कोई गहरी बात आसानी से कह देने में है और यह शिवनारायण के पास भी है।’’
हिन्दी ग़ज़ल के पैरोकार  अनिरुद्ध सिन्हा ने शिवनारायण की ग़ज़लों पर ‘‘बूंदें जो गंगाजल बन जाती हैं’’ शीर्षक से अपना अभिमत दिया है कि- ‘‘गजल के लिए वस्तु-स्थिति का वर्णन करना या उसको प्रतिबिम्बित करना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु गजल-लेखन की अत्यंत मौलिक तकनीक और विधियाँ जो वर्षों के कठोर श्रम के बाद ही प्राप्त होती हैं, मसलन तुक, छंद, अनुप्रास, शैली-भेद आदि, इन सबको गजलों में साधना भी आवश्यक होता है। शायद इसी कारण शिवनारायण ने अपनी गजल पुस्तक को लाने में देर की। गजलों की दुनिया में देर से सही, पर हर तरह से दुरुस्त होकर ही उन्होंने अपने कदम रखे हैं। "झील में चाँद" की गजलों से गुजरते हुए पाठक महसूस करेंगे कि शिवनारायण बहुत ही सहज किन्तु सधे अंदाज में अपनी बात कहते हुए प्रेम, दर्शन और सामयिक यथार्थ की दुनिया से रुबरु कराते हैं। हिन्दी के ख्यात कवि-समालोचक होने के कारण अपने समय को देखने की इनके पास एक विशेष दृष्टि है, जिस कारण इनके कथन की कहन-भंगिमा में संश्लिष्ट सौंदर्य प्रभावी तरीके से सम्प्रेषित हो सम्मोहित करते हैं। पहली नजर में इनकी गजलों के शेर सहज-सरल जान पड़ेंगे, किन्तु पाठ के दोहराव में उनसे जाने कितने-कितने अर्थ झाँकने लगते हैं।’’

यूं तो हिन्दी साहित्य में काव्य विधाओं की कमी नहीं है, दोहा, रोला, सोरठा, चैपाई, घनाक्षरी आदि बहुसंख्यक छांदासिक विधाएं हैं। छंदमुक्त काव्य विधा भी हिन्दी में लोकप्रिय है। फिर भी हिन्दी काव्य में ग़ज़ल विधा को पर्याप्त स्थान मिला है। अमीर खुसरों से अंगड़ाइयां लेती हिन्दी ग़ज़ल ने दुष्यंत कुमार तक आ कर अपना एक सुनिश्चित स्थान पा लिया। हिन्दी में ग़ज़ल ने अरबी, फारसी में प्रचलित बहर की नियमावली को अपने अनुरुप परिवर्तित किया और उसके विषयों को भी विविध सोपान दिए। हिन्दी में कही गई ग़ज़लों में जीवन की खांटी सच्चाई और खुरदुरेपन ने खूब जगह पाई किन्तु उसने अपनी मूल प्रकृति अर्थात् प्रेम का साथ भी कभी नहीं छोड़ा। संस्कृतनिष्ठ शुद्ध हिन्दी में ग़ज़लें कहने वाले स्व. कवि चंद्रसेन ‘‘विराट’’ ने भी प्रेम की ग़ज़लें कहीं और ‘‘एक पत्थर तो उछालो यारो’’ का संकेत देने वाले यथार्थवादी शायर दुष्यंत कुमार ने भी ‘‘मैं किसी पुल-सा थरथराता हूं’’ का प्रेमासिक्त अनुभव अपनी ग़ज़ल में पिरोया। अर्थात् जिसमें संवेदनाएं हैं, वह भला प्रेम की भावना से विमुख कैसे हो सकता है। साहित्यकार एवं संपादक शिवनारायण का भी देर से ही सही ग़ज़ल की दुनिया में प्रविष्ट होना स्वाभाविक है। ‘‘झील में चाँद’’ संग्रह की पहली ग़ज़ल के चंद शेर देखिए-
हवा के साथ मिल कर गा रहा है
प्रणय संवाद का फल पा रहा है
उसी के हाथ होंगे फूल सारे
महक का कारवाँ जो आ रहा है
छुपा है प्रेम की यादों में जादू
सजा कर ख्वाब कोई ला रहा है

प्रेम का यह स्वरूप एक अलग ही आकार ले लेता है जब ‘‘मूडस्विंग’’ करने जैसा भाव ला कर वे मां के प्रेम का स्मरण करने लगते हैं। ये शेर बानगी हैं-
ख्यालों में जो आया है
हाँ, वह मां का साया है
संबंधों के चक्रव्यूह से
लिपटी हर की माया है
उस जग से ही माँग रहे
जिसको समझ न पाया है
मुश्किल की पगडंडी पर
शिथिल पड़ी यह काया है
हँसते हँसते ‘‘शिव’’ अक्सर
इसने धोखा खाया है!
किसी-किसी ग़ज़ल में शिवनाराण वर्तमान के असुरक्षित माहौल को ले कर चिन्तित दिखाई देते हैं और उस प्रेमी के मनोभाव को व्यक्त करते हैं जो अपने प्रिय के लिए ‘‘डीप प्रोटेक्टिव’’ है। उनके ये शेर इस ‘प्रोटेक्टिवनेस’’ को बाखूबी बयां करते हैं-
वक्त की यह नाजुकी समझा करें
हो के तन्हा घर से मत निकला करें
हमने देखा है हवाओं का जुनून
इन हवाओं से नहीं सौदा करें

प्रेम को ले कर कवि का दृष्टिकोण स्पष्ट है। वह प्रेम को वह तत्व मानता है जिससे जीवन आसान हो जाता है। इसीलिए वह प्रेम मिलने की आकांक्षा रखता हैं यहां उसके प्रेम की संकल्पना संकुचित नहीं है, उसे दोस्ती वाले प्रेम की महत्ता भी पता है। प्रेम की भावना का यह विस्तार अपने-आप में समग्रता समेटे हुए है। यह ग़ज़ल उदाहरण है-  
कुछ मुहब्बत मिले कुछ खुशी चाहिए
जिन्दगी अब नहीं बेबसी चाहिए
प्यार का एक किस्सा ही काफी लगे
दोस्तों से नहीं दिल्लगी चाहिए
सिर्फ बातें बना कर न भरमाइये
शायरी के लिए शायरी चाहिए
लूट हत्या डकैती बहुत हो गई
प्यार की अब कोई तो सदी चाहिए
तुम अँधेरे में हो तुमको पहचानें क्या
देखने के लिए रोशनी चाहिए
‘‘शिव’’ खताओं का इल्जाम लेता नहीं
दोस्त हो तो मुझे दोस्ती चाहिए !

प्रकृति और प्रेम के तादात्म्य से जो वैचारिक एवं भावनात्मक सुरम्यता जन्म लेती है, वह इस संग्रह की ग़ज़लों में देखी जा सकती है। संग्रह की शीर्षक पंक्ति वाली ग़ज़ल में अभिव्यक्ति की कोमलता बहुत सुंदर ढंग से रची-बसी है-
फूल जैसा ही वो सँवर जाए
बनके खुशबू कहीं बिखर जाए
जख्म इतना बढ़ा दो सीने में
मौत भी जिन्दगी से डर जाए
क्या भरोसा करें उसी पर हम
साथ देने से जो मुकर जाए
तुम उसी वक्त ही चले आना
चाँद जब झील में उतर जाए

वस्तुतः जो कहना जानता है, वह किसी भी विधा में कह सकता है। वहीं, यह भी सच है कि किसी भी विधा के प्रथम संग्रह में किसी चमत्कारिक अभिव्यक्ति की बहुत अधिक आशा हमेशा नहीं की जानी चाहिए, फिर भी शिवनारायण ने अपने इस प्रथम ग़ज़ल संग्रह में अपनी जिन ग़ज़लों को सहेजा है, वे उनकी ग़ज़लगोई के प्रति आश्वस्त करती हैं। लहज़ा सादा है किन्तु शब्दों में गहराई है, जीवन के अनुभवों का निचोड़ है और साथ ही खूबसूरत प्रभाव है। संग्रह पठनीय है। अनेक शेर ऐसे हैं जो पहली बार पढ़ते ही मन में जगह बना लेते हैं।       
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