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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, June 4, 2024

पुस्तक समीक्षा | बुंदेलखंड के रचनाकार (छतरपुर संदर्भ): एक साहित्यिक पदचिन्ह | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 04.06.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई शोभा शर्मा जी द्वारा संपादित काव्य संग्रह "बुंदेलखंड के रचनाकार (छतरपुर के संदर्भ में)" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
बुंदेलखंड के रचनाकार (छतरपुर संदर्भ): एक साहित्यिक पदचिन्ह
 - समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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कविता संग्रह  - बुंदेलखंड के रचनाकार (छतरपुर के संदर्भ में)
संपादक      - शोभा शर्मा
प्रकाशक      - शाॅपीज़ेन, 201, अश्वमेघ एलेगेंस-2, अंबावडी मुख्य बाज़ार, कल्याण ज्वेलर्स के समीप, अंबावडी, अहमदाबाद, गुजरात-380006
मूल्य         - 465/- 
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      किसी क्षेत्र विशेष के रचनाकारों की काव्य रचनाओं को सहेज कर एक ग्रंथ में प्रस्तुत करना जितना श्रमसाध्य कार्य है, उतना ही महत्वपूर्ण है उसकी प्रस्तुति। ऐसे ग्रंथ की रचनाएं उस क्षेत्र में किए जा रहे सृजन का इतिहास तैयार करती हैं। ऐसी रचनाओं को पढ़ कर यह आसानी से समझा जा सकता है कि उस क्षेत्र विशेष में एक निश्चित कालखंड में किस तरह का काव्य रचा गया। इसीलिए ऐसे ग्रंथ अपने समय में ही नहीं वरन भविष्य में भी संदर्भ ग्रंथ के रूप में शोधार्थियों एवं काव्य के इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए उपयोगी साबित होते हैं। अभी हाल ही में एक ऐसा ही ग्रंथ प्रकाशित हुआ है जिसका नाम है “बुंदेलखंड के रचनाकार” (छतरपुर के संदर्भ में)। इस ग्रंथ की संपादक है शोभा शर्मा तथा सहसंपादक द्वय हैं - डॉ. मनोज तिवारी ‘‘मनसिज’’ तथा डॉ. रामभरोसा पटेल ‘‘अनजान’’।
ग्रंथ की संपादक शोभा शर्मा एक सतत सक्रिय रचनाकार हैं। उनकी कई पुस्तक प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें से उनका उपन्यास “एक थी माल्लिका” की समीक्षा इसी कॉलम में की जा चुकी है। अतः उनके इस उपन्यास के माध्यम से मैं शोभा शर्मा की लेखनी से परिचित हूं। अब उन्होंने सम्वेत संकलन का संपादन किया है। बुंदेलखंड का भौगोलिक क्षेत्र अपने आप में बहुत विस्तृत है। यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दो राज्यों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में अनेक कवि हो चुके हैं जिन्होंने बुंदेलखंड की साहित्यिक प्राचीनता को स्थापित किया। बुंदेलखंड में ही स्थित छतरपुर जिला भी अपने आप में साहित्यिक दृष्टि से हमेशा समृद्ध रहा है। महाकवि जगनिक जैसे सृजनकार का संबंध छतरपुर जिले से रहा है। बुंदेलखंड के सबसे प्रतापी राजा महाराजा छत्रसाल स्वयं एक अच्छे कवि थे। वर्तमान में भी ऐसे कई कवि हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सर्जनात्मकता को पहचान दिलाई है। डॉ अवध किशोर जड़िया एक ऐसा ही नाम हैं जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से छतरपुर को ख्याति प्रदान की। उन्हें उनके सूजन कार्य के लिए पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
इस ग्रंथ में कुल 50 कवियों की प्रतिनिधि कविताओं का संकलन किया गया है। यह कविताएं विविध भावनाओं को व्यक्त करती हैं। इस संकलन को प्रकाशित करने के उद्देश्य के संबंध में संपादक शोभा शर्मा ने ”दो शब्द” के अंतर्गत लिखा है कि ‘‘बुंदेलखंड के रचनाकार’’ का एक मात्र उद्देश्य है कि यहां के सभी कवि, रचनाकारों की रचनाएं एक साथ इस संकलन के माध्यम से, पुस्तक के रुप में अपने पाठकों के समक्ष आयें एवं हमारे बुंदेलखंड के जिला छतरपुर और आसपास के क्षेत्र के अनेक रचनाकार, प्रतिभाएं एवं उनकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर जानी जाएं।’’
इस पुस्तक के कलेवर के बारे में और अधिक प्रकाश डालते हुए सह संपादक डॉ. मनोज तिवारी ‘‘मनसिज’’ ने अपनी बात शीर्षक से लिखा है कि ”अत्यधिक हर्ष और गौरव का अनुभव हो रहा है कि हम आप सभी के समन्वित प्रयास से ‘बुन्देलखण्ड के रचनाकार’ (छतरपुर) जीवनी संकलन का अति महत्वपूर्ण प्रकाशन संभव हुआ है। आमतौर पर हमारे अनेक रचनाधर्मी उत्कृष्ट सृजन का कार्य अनेक वर्षों से अनवरत् कर रहे है लेकिन उन्हें जितनी पहचान मिलना चाहिएय उतनी नहीं मिल पाई। यह व्यक्तित्व और कृतित्व से परिपूर्ण काव्य संग्रह हर स्तर पर दस्तक देगा।” 
पुस्तक के दूसरे से संपादक डॉ. रामभरोसा पटेल ‘‘अनजान’’ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए “दो शब्द” के अंतर्गत लिखा है कि ‘‘बुंदेलखंड के रचनाकार, (छतरपुर) पुस्तक मंगलाचरण से प्रारंभ होकर, धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, पर्यावरण, जल संरक्षण, मतदाता जागरूकता, रीति-रिवाज, अंधविश्वास, अपनापन, मान मर्यादा, रिश्ते जैसे अनेकानेक ज्वलंत विषयों को, गागर में सागर भरने का अनूठा प्रयास है।’’
पुस्तक में शामिल 50 रचनाकारों की काव्य रचनाओं में से सभी की बानगी यहां नहीं दी जा सकती है किंतु कुछ उदाहरण दे रही हूं, जिनके द्वारा संग्रह में मौजूद कविताओं का आस्वाद मिल सकेगा। शोभा शर्मा की कविता “गांधारी अब तो चेतो!” की पंक्तियां देखिए-
घर बाहर बसते दुर्योधन, मौन हुए हैं भीष्म, सुयोधन। 
और बने बाकी धृतराष्ट्र, मणिपुर, दिल्ली या सौराष्ट्र। 
अत्याचारों से अश्रु भरे हैं, जिसको दी देवी का गरिमा, 
उसे बनाया खेल खिलौना, बना दिया माटी की प्रतिमा।
संग्रह में जिन विभिन्न विषयों पर कविताएं हैं, उनमें स्त्री विषयक रचनाएं भी हैं। जैसे कवयित्री डॉ. गायत्री वाजपेयी ने अपनी कविता “नारी” में नारित्व की महिमा वर्णित की है -
त्याग, तपस्या, दया, क्षमा की प्रतिमूर्ति है नारी। 
श्रद्धा और विश्वास की देवी है नारी।। 
धरा पर विविध रूप धरती है नारी। 
वात्सल्य और स्नेह की अभिलाषी है नारी।।
रोजी-रोटी के लिए अपना गांव छोड़ कर जाने की विवशता से बुंदेलखंड के किसान, मजदूर आदि भी ग्रस्त हैं। “मैं एक गांव” कविता में आभा श्रीवास्तव ने व्यक्तियों के पलायन पर गांव की व्यथा का वर्णन किया है-
मुझे छोड़ कर जा चुके थे, 
मेरी गोद में जो खेले पले थे, 
गए दूर कमाने के लिए, 
मेरी माटी, ये खेत, कच्चे मकान। 
मैं देखता रहा उन्हें जाते हुए, 
लाचार पिता और मां जैसा।
देश प्रेम की रचनाएं भी इस संग्रह में है। जैसे कवि एम.एल. अहिरवार ‘लाल’ की की कविता “वीरों को नमन” -
नमन उन वीरों को जिन्होंने, 
अपना सब निछावर कर दिया। 
इस देश की माटी को 
अपने बदन के लहू से तर कर दिया।
इस पुस्तक में प्रत्येक रचनाकार की रचनाओं के साथ उनका परिचय भी प्रकाशित किया गया है जिससे उनके अब तक के सृजन कर्म की जानकारी मिलती है। इसमें स्थापित एवं नवोदित तथा हर आयु वर्ग के कवियों की रचनाएं शामिल की गई हैं जिनमें परिपक्व एवं अपरिपक्व़ हर तरह की रचनाएं हैं। यह एक प्रोत्साहन की भांति भी है जो कई कवियों का मार्ग प्रशस्त करेगा। निश्चित रूप से यह एक अच्छा प्रयास है किंतु संपादकीय दृष्टि से इसमें कई त्रुटियां हैं जो खटकती हैं। जैसे पुस्तक के आरंभ में पद्मश्री कवि डॉ. अवधकिशोर जड़िया का लेखीय परिचय प्रकाशित किया गया है किंतु उसके बाद उनकी रचना के स्थान पर श्री जितेंद्र पाठक जीत द्वारा लिखित “महाराज छत्रसाल” कविता प्रकाशित की गई है। अतः प्रथम बात तो यह की बुंदेलखंड के पितृपुरुष माने जाने वाले महाराज छत्रसाल का परिचय या उनकी काव्य रचना अथवा उन पर लिखी गई रचना सबसे पहले होनी चाहिए थी, तदोपरांत डॉ. अवध किशोर जड़िया का परिचय एवं रचनाएं होनी चाहिए थी। डॉ जड़िया का परिचय है किंतु साथ में रचनाएं नहीं हैं। 
इस पुस्तक में वर्तमान रचनाकारों की रचनाओं का संकलन है। प्रत्येक रचनाकार के परिचय एवं रचनाओं को “रचनाकार परिचय” शीर्षक के बदले उनके नाम के शीर्षक के साथ प्रस्तुत किया जाता तो अधिक उचित होता। कुछ रचनाकारों के परिचय के साथ लिखा गया है “विशेष आग्रह पर”। इस शब्दावली का आशय स्पष्ट नहीं है। 
संग्रह को ‘‘छतरपुर के संदर्भ में’’ अर्थात छतरपुर के कवियों पर केंद्रित रखा गया है किंतु इसमें कुछ रचनाकार ऐसे भी शामिल है जो छतरपुर के नहीं हैं। ऐसे कवियों का इस ग्रंथ में होने का औचित्य भी संपादकीय में स्पष्ट नहीं किया गया है। यह कुछ ऐसी बड़ी त्रुटियां हैं जिन्हें इस अर्थवत्ता पूर्ण संग्रह में नहीं होनी चाहिए थीं। बहरहाल, यह आशा की जा सकती है कि इसके द्वितीय संस्करण में इन त्रुटियों का सुधार कर लिया जाएगा। 
शाॅपीजेन एक तेजी से बढ़ता हुआ प्रकाशन संस्थान है जिसका मुद्रण साफ सुथरा एवं आकर्षण रहता है। अब तक शाॅपीजेन से प्रकाशित कुछ पुस्तक पढ़ने का अवसर मुझे प्राप्त हो चुका है। इसका सुरुचि पूर्ण प्रकाशन प्रभावित करने वाला है। यह पुस्तक भी मुद्रण की दृष्टि से उत्तम है।
जैसा कि पुस्तक के नाम से प्रतीत होता है कि “बुंदेलखंड के रचनाकार (छतरपुर के संदर्भ में)” एक ऐसी शुरुआत है जिसमें बुंदेलखंड के रचनाकारों के पर केंद्रित वृहद योजना की प्रथम इकाई का प्रकाशन हुआ है। यदि संपादक शोभा शर्मा भविष्य में बुंदेलखंड के अन्य जिलों के कवियों पर स्वतंत्र ग्रंथों का संपादन करेंगी तो निश्चित रूप से यह एक महत्वपूर्ण कार्य होगा। अपनी त्रुटियों के बावजूद भी इस पुस्तक की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता है। यह बुंदेलखंड की काव्यात्मकता के पदचिन्ह के समान महत्वपूर्ण है।                  
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